सवाल पूछना, इल्म हासिल करने का एक जरूरी हिस्सा है। सबसे ख़ास बात, सवाल सुनने या पढ़ने वालों के दिमाग़ को सोचने और चिंतन करने के लिए उकसाता है। जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने सहाबा को दीन सिखाने के लिये रसूलल्लाह ﷺ से चार सवाल किये-
इस्लाम क्या है?
इमान क्या है?
एह्सान क्या है?
कयामत कब आएगी?
जिब्राईल अलैहिस्सलाम की मशहूर हदीस
जिब्राईल अलैहिस्सलाम के सवाल
हज़रत उमर इब्न ए खत्ताब से रिवायत है:
एक दिन हम रसूलल्लाह ﷺ की खिदमत में हाजिर थे के अचानक एक शख्स हमारे सामने नमोंदार हुआ, उसके कपड़े इन्तेहाइ सफ़ेद थे, और बाल इन्तेहाइ काले थे। ना उस पर सफ़र का कोई असर दिखाई देता था न हम में से कोई उसको पहचानता था। हत्ता के वो आकर नबी अकरम ﷺ के पास आकर बैठ गया। और अपने घुटने आप ﷺ के घुटनों से मिला दिए और अपने हाथ आप ﷺ की रानो पर रख दिए। फिर कहा “ए मुहम्मद ﷺ मुझे इस्लाम के बारे मे बताइए।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “इस्लाम ये है के तुम इस बात की गवाही दो के अल्लाह त’आला के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और मुहम्मद ﷺ उसके रसूल हैं। नमाज़ का एहतमाम करो, जकात अदा करो, रमदान के रोज़े रखो, और अल्लाह के घर का रास्ता तय करने की इस्तीतात् हो तो हज करो”
उस शख्स ने कहा “आपने सच फरमाया।”
हज़रत उमर रदी अल्लाहू अन्हु ने कहा हमे ताज्जुब हुआ, के खुद आपसे पूछता है और खुद ही आपकी तस्दीक करता है।
उसने कहा “मुझे ईमान के बारे मे बताइए।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: ये के तुम अल्लाह त’आला, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आखिरी दिन यानी यौम उल् क़यामत पर यकीन रखो। और अच्छी-बुरी तक़दीर पर भी ईमान लाओ।”
उसने कहा “आपने दुरुस्त फरमाया।”
फिर उसने कहा “मुझे एहसान के बारे में बताइए।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: ये के तुम अल्लाह त’आला की इबादत इस तरह करो गोया तुम उसे देख रहे हों, और अगर तुम उसे नहीं देख रहे तो वो तुम्हें देख रहा है।”
उसने कहा “मुझे क़यामत के बारे में बताइए।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “जिससे उस क़यामत के बारे में सवाल किया जा रहा है वो पूछने वाले से ज्यादा नहीं जानता।”
उसने कहा “तो मुझे उसकी अलामात बता दीजिए।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “ अलामात ये है के लौंडी अपनी मालिकिन को जन्म दे, और ये के तुम नंगे पांव, नंगे बदन, मुहताज, बकरियां चराने वालों को देखो के वो ऊंची-ऊंची इमारतें बनाने में एक दूसरे से मुकाबला कर रहे हैं।”
हज़रत उमर रदी अल्लाहू अन्हु ने कहा, फिर वो साईल चला गया। मैं कुछ देर उसी आलम में रहा। फिर रसूलुल्लाह ﷺ ने कहा “ ए उमर, तुम्हें पता है के पूछने वाला कौन था?”
मैंने अर्ज किया, अल्लाह ﷻ और उसका रसूल ﷺ ज़्यादा आगाह है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “ वो जिब्राईल थे, तुम्हारे पास आए थे, तुम्हें तुम्हारा दीन सीखा रहे थे।”
सही मुस्लिम 93
इल्म सीखने के आदाब
इस हदीस से सबसे ज़रूरी सबक ये के इल्म हासिल करने की कितनी अहमियत है और सीखना कितना ज़रूरी है। ये हदीस हमें इल्म सीखने के आदाब भी सिखाती है। कुछ आदाब जो इस हदीस से हासिल कर सकतें हैं-
हमारे इल्म को हासिल करने की नीयत सिर्फ अल्लाह की रजा होनी चाहिए।
इल्म सीखने के लिए साफ़ सुथरे कपड़े और बाल वगैरह काढ़ के फ्रेश होके जाना चाहिए।
इल्म सिखाने वाले के करीब बैठना चाहिए और अदब से बैठना चाहिए।
छोटे और ज़रूरी सवाल पूछना चाहिए ताकि बात वाजेह हो जाए।
सही आलिम और जरिए से इल्म हासिल करना चाहिए।
ध्यानपूर्वक सुनने की सलाहहियत होना चाहिए। जिब्राईल अलैहिस्सलाम अपने सवाल पूछ के ध्यानपूर्वक जवाब सुन रहे थे।
अच्छे सवाल पूछना, इल्म का आधा हिस्सा है
मशहूर अरबी कहावत है-
अच्छे प्रश्न ही आधा ज्ञान हैं।
ये सच भी है, अच्छे सवाल शिक्षक को अपना इल्म बेहतर तरिके से सिखाने को प्रेरित करता है। अल्लाह ﷻ फरमाते सूरत उल् अंबिया में-
तुम लोग अगर नहीं जानते तो बाख़बर से पूछ लो।
कुर’आन 21:7
Fact : कुरआन में 1200 से ज़्यादा सवाल हैं।
सवाल पूछना, इल्म हासिल करने का एक जरूरी हिस्सा है। सबसे ख़ास बात, सवाल सुनने या पढ़ने वालों के दिमाग़ को सोचने और चिंतन करने के लिए उकसाता है।
बहुत सी अहादीस रसूलुल्लाह ﷺ सवाल से ही शुरू करते थे, जब उन्हें कोई जरूरी सबक सिखाना होता था। सवाल पूछने से सुनने समझने वाले का दिल दिमाग़ जवाब और इल्म सीखने के लिए तैयार हो जाता है।
जब इब्न अब्बास, जो सहाबा में बहुत आलिमों में से थे, से इल्म हासिल करने का राज पूछा गया, उनका जवाब था “सवाल करने वाली जुबान और समझने वाला दिल के ज़रिए।”
हमें छोटे और ज़रूरी सवाल ही पूछना चाहिए, जो हमारे इल्म में इजाफ़ा करें और सही दिशा देने में मदद करें। सवाल पूछने से पहले हमें अपने सवाल को अपने सवाल के बारे में सोचना समझना चाहिए, क्या सवाल ज़रूरी है, क्या इस सवाल के जवाब से हमारे इल्म में इजाफ़ा होगा। अच्छे सवाल सीखने वाले और सिखाने वाले दोनों ही के लिए फायदेमंद होते हैं। और बाकी और लोग जो सवाल और जवाब सुन रहे हैं, उन सबका इल्म बढ़ाने में भी मदद होगी।
फरिश्ते जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने सिर्फ सवाल करे और कोई जवाब नहीं दिए, मगर रसूलुल्लाह ﷺ ने उनके आने का मकसद को दीन ए इस्लाम सिखाने का बताया। इससे मालूम होता है के जिब्राईल अलैहिस्सलाम के सवालों ने सहाबा को रसूलुल्लाह ﷺ से इल्म सीखने का मौका दिया।
इस्लाम के सुतून / स्तंभ
Pillars of Islam
हम सब इस्लाम के सुतून के बारे में पहले से जानते हैं, जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने भी रसूलुल्लाह ﷺ इस्लाम के सुतून के बारे मे साहबा की मौजूदगी में पूछा, जो पहले से जानते थे, क्यूँ?
सहाबा की याददिहानी और इस्लाम मे इनकी अहमियत बताने के मकसद से। इस्लाम शब्द का अर्थ है “अल्लाह को समर्पित”। ये शब्द सलाम से बना है, जिसका अर्थ है “शांति”। इस तरह, अपनी ज़िंदगी अल्लाह के सुपुर्द करने से दुनिया मे सुख चैन और शांति आती है। अगर कभी आप किसी व्यक्ती या वस्तु से खौफ़ज़द होते हैं या घबराते हैं, के वो आपको नुकसान पहुचा सकती है तो, आप सुरक्षा की तरफ़ दौड़ते हैं। जहाँ आप को सुकून मिले और आपकी घबराहट खत्म हो। इस दुनिया में भी कई बुरी और नकारात्मक शक्तियाँ हैं। तो जब आप अपने आपको उस रब के सुपुर्द कर देते हैं जो सबसे ज्यादा ताकतवर है, आप सुरक्षित हो जाते हैं और शान्ति प्राप्त करते हैं।
इस्लाम मे दाखिल होने पर 5 अरकान हैं जो ईमान और इबादत के लिए जरूरी होते हैं-
शहादत
दिल से कुबूल करना और जुबाँ से गवाही देना- अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है, हज़रत मुहम्मद अल्लाह के आखिरी रसूल हैं।
मुस्लिम इन अल्फाज़ को अपनी नमाज में कई बार दोहराते हैं। कोई नया इंसान इस्लाम में दाखिल होता है, तो इस कलमें से शुरुआत करता है।
5 वक्त नमाज़ (सलाह)
अपने रब के साथ मजबूत रूहानी रिश्ते के लिए मुस्लिम पर 5 वक़्त की नमाज फ़र्ज़ की गई है।
फज्र प्रात: فجر
जुहर मध्याह्न ظهر
अस्र सूर्य के अस्त के पहले عسر
मग़रिब सूर्यास्त के बाद مغرب
ईशा रात्रि عشاء
मस्जिद में नमाज़ पढ़ना बेहतरीन है, मगर नमाज़ पढ़ने के लिए कोई ख़ास जगह नहीं, दुनिया के किसी भी साफ़ सुथरे पाक जगह पर नमाज़ अदा की जा सकती है। नमाज़ में कियाम, रुकू, सजदा, करने के साथ कुर’आन की अरबी में तिलावत की जाती है। नमाज़ के दौरान सारी दुनिया के मुसलमान काबा की तरफ़ रुख़ करते हैं। ये आदम अलै. द्वारा बनाया गया पहला घर है जो अल्लाह की इबादत के लिए बनाया गया, जिसकी इब्राहिम अलै. और इस्माईल अलै. ने दोबारा तामीर की।
जकात (दान)
क्योंकि हर चीज़ अल्लाह ही की है, हमारा माल भी अल्लाह ही की तरफ़ से हमें अता किया गया है। इसी तरह हमारे माल का 2.5% (सालाना) हिस्सा गरीब और जरूरतमंद के लिए मखसूस किया गया है। मुसलमानों को इसके अलावा भी सदक़ा निकालने को प्रेरित किया गया है, जिससे गरीबों और जरूरतमंद लोगों की जरूरतें पूरी हो सके।
रोज़ा
हर साल रमज़ान के महीने (9 माह हिजरी कैलेंडर), मुस्लिम निर्जल व्रत करते हैं, जिसमें सूर्योदय से पहले से सूर्यास्त तक खाना, पीना बंद कर देते हैं। रोज़ा रखने से अपनी इच्छाओं पर काबु और अनुशासन की ट्रेनिंग होती है। दुनिया की किसी आर्मी ट्रेनिंग मे भी इतनी बेहतरीन ट्रेनिंग नहीं मिलती अनुशासन की। रोज़ा दृढ़ इच्छाशक्ति की ट्रेनिंग देता है। और उन लोगों का दर्द महसूस किया जा सकता है जो गरीबी और भूख से पीड़ित हैं। इससे इंसान ज्यादा उदार और कृपालु बनता है। जकात उल् फ़ित्र, इसी उदारता का एक उदाहरण है।
हज
जो मुस्लिम तंदरुस्त और मालदार हैं उन्हें ज़िंदगी में एक बार मक्का में हज अदा करना फ़र्ज़ है। धुल हिज्ज के महीने में हर साल 20 लाख हाजि मक्का में हज करने आते हैं।
ये सारी अरकान, दीन के सूतून या स्तंभ कहलाते हैं, जैसे किसी इमारत के लिए उसके स्तंभ ज़रूरी हैं, अगर एक भी हटा दिया जाए तो इमारत कमजोर हो जाएगी। और सारी नहीं तो कुछ हिस्सा गिर जाएगा, उसी तरह अगर कोई मुसलमान इनमें से एक या दो से इंकार करता है तो फिर वो मुस्लिम नहीं रहता।
ईमान के अरकान
Articles of Faith
जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह ﷺ से ईमान का सवाल किया, जिसका मतलब होता है गैब पर यकीन। रसूलुल्लाह ﷺ ने ईमान के 6 अरकान बताये जो इस्लाम में ईमान का ज़रूरी हिस्सा है। हर मुस्लिम के लिए इन 6 अरकान पर यकीन करना और अमल करना बुनियादी रूप से ज़रूरी है। ये अरकान, मुस्लिम की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में गहरे, सकारात्मक और व्यावहारिक असर डालते हैं।
ये हैं-
अल्लाह पर ईमान
एक ईश्वर में विश्वास करना, जो शास्वत है, (ना पैदा हुआ ना कभी मरेगा), सर्वशक्तिमान (सब पर ग़ालिब) और दयावान (बहुत ज़्यादा रहम करने वाला है)।
अल्लाह ﷻ अपने हर मखलूक पर निहायत रहम करता है, हर एक पर दया करता और सबका ख़याल रखता है। जब उससे मदद तलब की जाती है, या सहारे की ज़रूरत होती है या उससे माफ़ी तलब की जाती है, सबकी मदद करने को मौजूद होता है। अल्लाह ﷻ को इस ज़िंदगी में इंसान की कमजोर आँखों से देख पाना मुमकिन नहीं। ना ही जिस्मानी तौर पे अल्लाह किसी इंसान या जानवर या किसी भी और वस्तु का रूप लेता। उसे किसी भी काम के लिए किसी नश्वर शरीर की ज़रूरत नहीं, ना ही धरती पर आने की ज़रूरत। अल्लाह ﷻ जो चाहता है, वो कहता है “हो जा” तो वो काम हो जाता है। उसे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं होती। अल्लाह ﷻ एक अकेला है, ना उसका कोई साथी, ना कोई रिश्तेदार, संबंधी।
नबियों और रसूलों पर ईमान
अल्लाह ﷻ की द्वारा भेजे गए सारे नबियों और रसूलों पर ईमान लाना। अल्लाह ﷻ ने हर ज़माने में हर कौम हर देश में एक या एक से ज़्यादा नबी भेजे, जो अल्लाह के संदेश को लोगों तक पहुंचाये। अल्लाह सुरह फातिर में फरमाता है-
और कोई उम्मत ऐसी नहीं गुज़री है जिसमें कोई ख़बरदार करनेवाला न आया हो।
कुर’आन 35:24
कुरआन में 25 नबीयों का नाम के साथ ज़िक्र है। जिसमें आदम अलै., नुह अलै., इब्राहिम अलै., मूसा अलै., ईसा अलै., मुहम्मद ﷺ प्रमुख हैं। इसके अलावा हज़ारों पैगंबर हैं जिनका ज़िक्र क़ुरआन में नहीं है। अल्लाह ﷻ सुरह निसा में फरमाते हैं-
हमने उन रसूलों पर भी वही (संदेश) भेजी जिनकी चर्चा हम इससे पहले तुमसे कर चुके हैं और उन रसूलों पर भी जिनकी चर्चा तुमसे नहीं की।
कुरआन 4:164
मुस्लिमों को उन सारे रसूल और नबी पर ईमान लाना है, और इस बात पर के वो सब तौहीद की दावत देते थे और एक अल्लाह की इबादत का संदेश देते थे। कुछ पैगंबर को अल्लाह की तरफ से किताब भी दी गईं।
आसमानी क़िताबों पर ईमान
सारी आसमानी क़िताबों पर ईमान- कुरआन मे इब्राहिम अलै., दाऊद अलै., मूसा अलै., ईसा अलै. और मुहम्मद ﷺ को किताबें और सहींफे दिए जाने का ज़िक्र है। हालांकि, उचित दस्तावेज की कमी के कारण, कुरआन के अलावा अन्य सभी पवित्र पुस्तकों को समय के साथ उपेक्षित, बदल दिया गया, छुपाया या खो दिया गया था।
कुर’आन ही इकलौता धर्म ग्रंथ है जिसकी सत्यता प्रमाणित है, और जो आज भी अपने मूल् रूप में मौजूद है। और ये इकलौती किताब है जो पैगंबर, जिनको दी गई, उनकी जिंदगी मे ही लिख ली गई और सहेजी गई। और क़ुरआन इकलौती किताब है जो अपनी मूल् भाषा में जस की तस मौजूद है। और हज़रत मुहम्मद आखिरी पैगंबर हैं, और क़ुरआन आखिरी किताब जो क़यामत तक के लिए समस्त मानव जाति के लिए उतारी गई है।
फरिश्तों पर ईमान
फरिश्ते अल्लाह के बनाई हुई वो मखलूक हैं जिन्हें अल्लाह की इबादत और अल्लाह के हुक्म की पाबंदी के लिए बनाया गया है।
फरिश्तों को अल्लाह ने नूर यानी रौशनी से पैदा किया, सबसे ख़ास फरिश्ते हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हैं, जो अल्लाह के पैगाम को अल्लाह के नबी और रसूल तक पहुंचाते हैं। कुर’आन मे उन्हें रूह उल् क़ुद्दूस (Holy Spirit) के नाम से मुखातिब किया गया है।
आखिरत यानी फैसले के दिन और उसके बाद की ज़िंदगी पर ईमान
हर इंसान की हर बात, हर हरकत और हर नीयत को नोट किया जा रहा, लिखा जा रहा है। जिनका हिसाब किताब और फैसला, क़यामत के दिन होने वाला है, जिनकी नेकिया ज़्यादा होंगी उन्हें जन्नत की खुशनसीब ज़िंदगी मिलेगी जहाँ वो हमेशा हमेशा रहेंगे और जिनके गुनाह (जिनकी माफ़ी नहीं) ज़्यादा होंगे उन्हें जहन्नुम का दर्दनाक अज़ाब मिलेगा, जहां वो सदा के लिए रहेंगे। ये दुनिया नश्वर है और वो ज़िंदगी शाश्वत, इसलिए यहां जो कुछ हम करते हैं उसका बदला हमें मिलने वाला है। ईमान का ये हिस्सा, मोमिन को अच्छे और नेक काम करने की प्रेरणा देता है।
अल्-कद्र यानी अच्छी-बुरी तक़दीर पर ईमान
अल्लाह ﷻ की तरफ से इस दुनिया में होने वाली हर अच्छी-बुरी तक़दीर लिख दी गई है, दुनिया बनाने के पहले ही। अल्लाह ﷻ सुरह कमर में फरमाता है-
हमने हर चीज़ एक तक़दीर के साथ पैदा की है
कुरआन 54:49
और अल्लाह हुकुम देता है मुस्लिमों को उसकी लिखी हुई तकदीर को माने-
कहो, “हमें हरगिज़ कोई [ बुराई या भलाई] नहीं पहुँचती, मगर वो जो अल्लाह ने हमारे लिये लिख दी है अल्लाह ही हमारा मौला [ कारसाज़] है, और ईमानवालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।”
कुरआन 9:51
और हज़रत मुहम्मद ﷺ ने भी अच्छी-बुरी तक़दीर पर यकीन को ईमान का हिस्सा बताया है। ईमान का यह हिस्सा लोगों को उनकी ज़िंदगी के अच्छे और बुरे हालात को अपनाने और सच को स्वीकार करने में मदद करता है।
कुछ लोग गुनाह करतें हैं और बहाना बनाते हैं के अल्लाह ﷻ ने हमारी तक़दीर में गुनाह करना लिखा था। ये ग़लत धारणा है। कुछ लोग "लोगों पर की गई कार्रवाइयों" और "लोगों के द्वारा की गई कार्रवाइयों” को एक ही समझ लेते हैं.
आप अपनी मर्जी से जो काम करते हैं, वे आपके स्वयं के कार्य हैं। आप उनके लिए जिम्मेदार हैं। अल्लाह ने आपको कार्य करने की आज़ादी और अच्छे या बुरे काम को चुनने का विकल्प दिया है। अल्लाह आपको अच्छे काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन अगर आप बुरे काम करने पर जोर देते हैं तो वो आपको रोकेगा नहीं क्योंकि अल्लाह ﷻ ने आपको दिमाग़ और इसके साथ पसंद की स्वतंत्रता दी है। हालांकि, आपके साथ मौसम, हमले, दुर्घटनाएं, या बीमारियां जैसी क्रियाएं अल्लाह की कार्य और कद्र के प्रकार हैं, और वे हिकमत के लिए हैं। अल्लाह ﷻ उनके ज़रिए-
* आपके ईमान को परखना चाहता है
* आपकी इच्छाशक्ति को बढ़ाना चाहता है
* आपके कुछ गुनाहों को मिटाना चाहता है
* आपको तकलीफ़ के बदले बहुत अजर देना चाहता है
* आपको अल्लाह की नेअमते याद दिलाना चाहता है, जैसे माल, सेहत, परिवार, खुशी
* आपको किसी बड़ी मुसीबत से बचाना चाहता है छोटी मुसीबत के बदले
अल्लाह ﷻ का कोई काम हिकमत से खाली नहीं होता, इंसान की छोटी सी अक्ल में ये हिकमत समझना और जानना मुमकिन नहीं।
अल्लाह ﷻ हमारे अच्छे बुरे काम जो हम कर चुके हैं, कर रहे हैं और करने वाले हैं उनके बारे मे जानता है। मगर अल्लाह ﷻ ने इंसान को पूरी आज़ादी दी है चुनने की, इसलिए हम जो भी करेंगे उसकी सज़ा या जज़ा हम को ही मिलेगी।
अल्-एहसान
अपने लिए और दूसरे के लिए नेक काम करना। अरबी में इहसान का मतलब होता है बेहतरीन। इस का मतलब बेहतरीन इबादत और बेहतरीन अखलाक से है। इस हदीस मे रसूलुल्लाह ﷺ बेहतरीन इबादत का तरिका सिखा रहे हैं। उनकी सलाह है-
i. इबादत ऐसे करो के तुम अल्लाह को देख रहे हो
ii. और ये मुश्किल हो तो सोचो अल्लाह तुम्हें देख रहा है
हम हमेशा इस बात का ख़याल रखें के अल्लाह हमें देख रहा है तो हमारे अख़लाक़ बेहतरीन हो जाएंगे। मगर हम बार बार ये भूल जाते हैँ। अल्लाह ﷻ फरमाता है-
एहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ एहसान किया है
कुरआन 28:77
अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने हाथों अपने आपको हलाकत में न डालो। एहसान का तरीक़ा अपनाओ कि अल्लाह एहसान करनेवालों को पसन्द करता है।
कुरआन 2:195
क़यामत की निशानियाँ
जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने आखिर में क़यामत के बारे मे सवाल किया, क़यामत कब आएगी, रसूलुल्लाह ﷺ ने जवाब में कहा वो भी उतना ही जानते हैं जितना जिब्राईल अलैहिस्सलाम, रसूलुल्लाह को ये मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई के वो क़यामत का वक्त नही जानते। यौम उल् कियामह को आखिरत, फैसले का दिन भी कहा जाता है। सूरत उल् कमर मे अल्लाह ﷻ फरमाता है-
क़ियामत की घड़ी क़रीब आ गई और चाँद फट गया।
कुरआन 54:1
क़यामत की घड़ी सिर्फ अल्लाह ﷻ ही जानता है। सूरत उल् आराफ में अल्लाह ﷻ फरमाता है-
ये लोग तुमसे पूछते हैं कि आख़िर वो क़ियामत की घड़ी कब आएगी? कहो, “इसका इल्म मेरे रब ही के पास है। उसे अपने वक़्त पर वही ज़ाहिर करेगा। आसमानों और ज़मीन में वो बड़ा सख़्त वक़्त होगा, वो तुमपर अचानक आ जाएगा।”
कुरआन 7:187
फिर जब रसूलुल्लाह ﷻ इसका जवाब नहीं दे पाए, फिर जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने क़यामत की निशानियाँ तलब की। ये निशानियाँ क़यामत के नज़दीक आने की तरफ इशारा करती हैं। क़यामत की कई बड़ी और छोटी निशानियाँ है। जिसमें से कुछ बड़ी निशानियाँ हैं- सूरज का पश्चिम से निकालना, दज्जाल का आना, ईसा अलै. का दुनिया में दोबारा आना। इस हदीस में रसूलुल्लाह ﷺ ने सिर्फ 2 छोटी निशानियाँ बतायी हैं। रेगिस्तान की गरीब लोग इतने अमीर हो जाएंगे के ऊंची ऊंची इमारतें बनाने में होड़ करेंगे और बांदी अपनी मालकिन को जन्म देगी। इसके अलावा कई छोटी निशानियाँ हैं, जैसे कत्ल आम होना, इमाम महदी का ज़हूर।
-फ़िज़ा ख़ान
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