मुसलमान हो या गैर मुसलमान सब इस दौर में गूगल और यूट्यूब के आदी हो चुके हैं। कोई भी मतलब पेश आते ही आज की पीढ़ी सीधे गूगल या यूट्यूब पर जाकर अपने मसले को हल कर लेती है। हम पढ़ी-लिखी कौमों से मुखातिब है। जो नव-मुस्लिम हो या पैदाइशी मुस्लिम सबको सबसे पहले इन बुनियादी चीजों के बारे में बताया जाता है। कुरान, हदीस, वेबसाइट हर जगह आपको इस्लाम की बुनियाद के बारे में बताया गया है और दीन-ए-इस्लाम की बुनियाद जिन पांच (5) चीज़ों पर रखी गई है वो ये हैं:
1. शहादत देना
2. नमाज़ कायम करना
3. ज़कात देना
4. हज करना
5. रोजा रखना
मुसलमान होने के लिए सबसे पहले शहादत देना यानी इस बात को तस्लीम करना कि "अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हजरत मोहम्मद (ﷺ) उसके बंदे और रसूल हैं।" यह पहली बुनियाद है जिस की शहादत हर मुसलमान को देनी होती है उसके बाद आती है "नमाज"।
हर एक मुस्लमान जानता हैं कि इस्लाम मे पांच (5) वक्त की नमाज़ फर्ज़ है फिर भी आज का मुसलमान नमाज की तरफ रूज़ू करना ही नहीं चाहता, उसे 5 मिनट की नमाज 5 घंटों या 5 महीनों सी मालूम होती है। नमाज फर्ज है ये जानते हुए भी जो नहीं पढ़ते उनके लिए मेरे मन में कई सवाल उठ रहे हैं:
1. क्या सब जानते हुए भी नमाज़ छोड़ना सही है?
2. मरने के बाद जिस चीज़ का सवाल सबसे पहले होगा क्या उसी पर अमल सबसे आखीर (बुढापे) मे करना है?
3. इतनी बड़ी बात जानते हुए भी मस्जिदें खाली क्यूँ हैं?
4. क्या ये हम ही है जो मुस्लमान होने का हक़ से दावह तो करते हैं पर इसकी बुनियादी चीज़ों पर अमल नहीं करते?
5. हमारे मज़हब की बुनियादी चीज़ पर सवाल उठाने वाले गैर मुस्लिम क्या गलत हैं?
6. या फिर हम ने खुद उन्हें अपने अमल से ये सोचने पर मजबूर किया है?
7. घंटों मोबाइल मे टिक-टोक मूवीज, सीरिअल, स्पोर्ट्स, न्यूज, डिस्कवरी, क्रिकेट वगैरह देखने का वक्त है पर क्या नमाज़ के लिए 10-15 मिनट भी नहीं?
8. क्या जो बेहयाई की तरफ ले जाए वो आम करना और नमाज़ को छोड़ना समझदारी का सौदा है?
9. नमाज़ नूर है जो दिल को रौशन करती है, जिससे हम दूर हो रहे हैं और मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम्स फितना है जो घर घर मे बसेरा किए हुए है। क्या घर का हर कोना हमने नमाज़ के लिए नहीं बल्कि शैतान के लिए सजाया है?
10. घर-घर मे शैतान का बसेरा, आपसी लड़ाई-झगड़ा, जलन, चुगलखोरी, दिखावा, कता-रहमी क्या ये सब नमाज़ से बेहतर है?
नमाज को लेकर इतना कुछ इतना पढ़ने के बाद क्या आपको इस बात का एहसास नहीं होता कि हमें नमाज की तरफ रूज़ू करना चाहिए। मेरे भाइयों, मेरी बहनों और मेरे दोस्तों हम उस चीज को छोड़ रहे हैं जो हर बुराई को खत्म करने की वजह है।
हदीस के अल्फाज है अगर हमारी नमाज बेहतर होगी तो हमसे कोई सवाल नहीं किया जाएगा क्योंकि अगर नमाज़ बेहतर होगी तो हम हर बुराई से बचे रहेंगे जब हम हर बुराई से बचे रहेंगे तो जाहिर सी बात है कि मौत के बाद कब्र में हम अज़ाब से बच जाएंगे, हमसे रोज़-ए-कयामत कोई सवाल जवाब नहीं होगा। अब सवाल ये उठता है हमें नमाज़ क्यों पड़नी चाहिए? तो मेरे इन सवालों पर गौर करें:
1. क्या आप इस अज़ाब से बचना चाहते हैं ?
2. क्या आप चाहते हैं आपकी कब्र नूर से रोशन हो?
3. आप चाहते हैं आपकी रूह को फरिश्ते मलमल के सफेद खुशबूदार कपड़ों में लपेट कर ले जाए?
4. क्या आप चाहते हैं आपका दिल और दिमाग ठीक रहे, आप खुश रहें?
5. क्या आप अल्लाह को देखना और रसूल अल्लाह (ﷺ) के साथ वक्त गुजारना चाहते हैं?
6. एक ऊंचा महल, बेहतरीन शानदार, खुशनुमा झरनों का बहता हुआ पानी, जन्नत कि खुशबूदार हवाएं क्या यह सब चीजें आपको चाहिए?
7. हमेशा जवान रहने की खुशी, कभी बूढ़े ना होने का गम, नूरानी चेहरा, जन्नत की पाकीजा हूरों का साथ जिन्हें कभी किसी ने छुआ भी ना हो। क्या आपको यह सब भी चाहिए।
8. क्या आप चाहते हैं आप शैतान के वसवसे से दूर रहे और जन्नत की नेअमतों का लुत्फ उठाएं?
9. पूरे परिवार, शोहर/बीवी के साथ जन्नत में घूमे-टहले। ये तो जरूर चाहते होंगे आप?
10. क्या आप चाहते हैं कि जन्नत में अल्लाह के नजदीक आपको आला मुकाम हासिल हो?
तो आज से नमाज के पाबंद हो जाए, वक्त पर नमाज अदा करें, नमाज मे आयातों को समझ कर पढ़ें, दिल लगाकर। अफजल है कि आप यह सोचे कि आप अल्लाह के सामने खड़े हैं और अगर यह नहीं तो इस बात का ही दिल में खौफ रखें कि आपके सामने अल्लाह खड़ा है, वह आपको देख रहा है, सुन रहा है, आपको जान रहा है।
बस हर रोज थोड़ा सा वक्त अगर हम अपने अल्लाह को याद करने के लिए निकाल ले तो वो थोड़ा सा वक्त हमें कब्र के आजाब से ही नहीं बल्कि कयामत के रोज होने वाले सवाल जवाब से भी हम बच जाएंगे।
अभी भी वक्त है नमाज पढ़े इससे पहले के एक दिन आपकी नमाज (नमाज़-ए-जनाज़ा) पढ़ा दी जाएगी और तब पछताने के सिवा कुछ भी आप साथ लेकर नहीं जाएंगे।
अल्लाह रब्बुल आलमीन हम सबको नमाज पढ़ने और नेक अमल की तौफीक अता करें और बुराई से रोके। आमीन
1. क्या सब जानते हुए भी नमाज़ छोड़ना सही है?
2. मरने के बाद जिस चीज़ का सवाल सबसे पहले होगा क्या उसी पर अमल सबसे आखीर (बुढापे) मे करना है?
3. इतनी बड़ी बात जानते हुए भी मस्जिदें खाली क्यूँ हैं?
4. क्या ये हम ही है जो मुस्लमान होने का हक़ से दावह तो करते हैं पर इसकी बुनियादी चीज़ों पर अमल नहीं करते?
5. हमारे मज़हब की बुनियादी चीज़ पर सवाल उठाने वाले गैर मुस्लिम क्या गलत हैं?
6. या फिर हम ने खुद उन्हें अपने अमल से ये सोचने पर मजबूर किया है?
7. घंटों मोबाइल मे टिक-टोक मूवीज, सीरिअल, स्पोर्ट्स, न्यूज, डिस्कवरी, क्रिकेट वगैरह देखने का वक्त है पर क्या नमाज़ के लिए 10-15 मिनट भी नहीं?
8. क्या जो बेहयाई की तरफ ले जाए वो आम करना और नमाज़ को छोड़ना समझदारी का सौदा है?
9. नमाज़ नूर है जो दिल को रौशन करती है, जिससे हम दूर हो रहे हैं और मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम्स फितना है जो घर घर मे बसेरा किए हुए है। क्या घर का हर कोना हमने नमाज़ के लिए नहीं बल्कि शैतान के लिए सजाया है?
10. घर-घर मे शैतान का बसेरा, आपसी लड़ाई-झगड़ा, जलन, चुगलखोरी, दिखावा, कता-रहमी क्या ये सब नमाज़ से बेहतर है?
नमाज को लेकर इतना कुछ इतना पढ़ने के बाद क्या आपको इस बात का एहसास नहीं होता कि हमें नमाज की तरफ रूज़ू करना चाहिए। मेरे भाइयों, मेरी बहनों और मेरे दोस्तों हम उस चीज को छोड़ रहे हैं जो हर बुराई को खत्म करने की वजह है।
हदीस के अल्फाज है अगर हमारी नमाज बेहतर होगी तो हमसे कोई सवाल नहीं किया जाएगा क्योंकि अगर नमाज़ बेहतर होगी तो हम हर बुराई से बचे रहेंगे जब हम हर बुराई से बचे रहेंगे तो जाहिर सी बात है कि मौत के बाद कब्र में हम अज़ाब से बच जाएंगे, हमसे रोज़-ए-कयामत कोई सवाल जवाब नहीं होगा। अब सवाल ये उठता है हमें नमाज़ क्यों पड़नी चाहिए? तो मेरे इन सवालों पर गौर करें:
1. क्या आप इस अज़ाब से बचना चाहते हैं ?
2. क्या आप चाहते हैं आपकी कब्र नूर से रोशन हो?
3. आप चाहते हैं आपकी रूह को फरिश्ते मलमल के सफेद खुशबूदार कपड़ों में लपेट कर ले जाए?
4. क्या आप चाहते हैं आपका दिल और दिमाग ठीक रहे, आप खुश रहें?
5. क्या आप अल्लाह को देखना और रसूल अल्लाह (ﷺ) के साथ वक्त गुजारना चाहते हैं?
6. एक ऊंचा महल, बेहतरीन शानदार, खुशनुमा झरनों का बहता हुआ पानी, जन्नत कि खुशबूदार हवाएं क्या यह सब चीजें आपको चाहिए?
7. हमेशा जवान रहने की खुशी, कभी बूढ़े ना होने का गम, नूरानी चेहरा, जन्नत की पाकीजा हूरों का साथ जिन्हें कभी किसी ने छुआ भी ना हो। क्या आपको यह सब भी चाहिए।
8. क्या आप चाहते हैं आप शैतान के वसवसे से दूर रहे और जन्नत की नेअमतों का लुत्फ उठाएं?
9. पूरे परिवार, शोहर/बीवी के साथ जन्नत में घूमे-टहले। ये तो जरूर चाहते होंगे आप?
10. क्या आप चाहते हैं कि जन्नत में अल्लाह के नजदीक आपको आला मुकाम हासिल हो?
तो आज से नमाज के पाबंद हो जाए, वक्त पर नमाज अदा करें, नमाज मे आयातों को समझ कर पढ़ें, दिल लगाकर। अफजल है कि आप यह सोचे कि आप अल्लाह के सामने खड़े हैं और अगर यह नहीं तो इस बात का ही दिल में खौफ रखें कि आपके सामने अल्लाह खड़ा है, वह आपको देख रहा है, सुन रहा है, आपको जान रहा है।
बस हर रोज थोड़ा सा वक्त अगर हम अपने अल्लाह को याद करने के लिए निकाल ले तो वो थोड़ा सा वक्त हमें कब्र के आजाब से ही नहीं बल्कि कयामत के रोज होने वाले सवाल जवाब से भी हम बच जाएंगे।
अभी भी वक्त है नमाज पढ़े इससे पहले के एक दिन आपकी नमाज (नमाज़-ए-जनाज़ा) पढ़ा दी जाएगी और तब पछताने के सिवा कुछ भी आप साथ लेकर नहीं जाएंगे।
अल्लाह रब्बुल आलमीन हम सबको नमाज पढ़ने और नेक अमल की तौफीक अता करें और बुराई से रोके। आमीन
By Islamic Theology
4 टिप्पणियाँ
Bohot khubsoorti se samjhaya 👍🏻
जवाब देंहटाएंjazak ALLAH khair
जवाब देंहटाएंSubhanallah aapki sabhi post bhut acchi hoti h
जवाब देंहटाएंJazak ALLAH khair
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।