Fajr Ki Namaz Ko Qaza Hone Se Kaise Bachaye

क्या आप फज्र की नमाज़ पढ़ने से क़ासिर हैं? 
फ़ज्र की नमाज़ को क़ज़ा होने से बचाने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़े। 


Fajr Ki Namaz Ko Qaza Hone Se Kaise Bachaye



क़ुरान पर अमल: नमाज-ए-फजर के लिए नींद से उठना


मुझे रात देर तक जागने की आदत थी। जब सुबह मुअज्जिन (अजान देने वाला) नमाज ए फजर के लिए अज़ान देता था, मैं गाफिल  बेपरवाह सोई रहती थी। अल्लाह के फरिश्ते मुझे नमाजियों में ना पाते। उस मुबारक वक्त में मैं और मेरे घर वाले शैतान की गिरफ्त में होते थे। हम सब गहरी नींद में सोते। उठने के बाद मुझे सारा दिन उसका अफसोस रहता। मैंने कई बार सुबह सवेरे नमाज के लिए उठने का फैसला किया। मगर इस फैसले ने कभी अमल की सूरत इख्तियार ना की। बार-बार नाकामी का सामना करना पड़ता। यह उस वक्त की बात है जब मोहतरमा बहन सुमैया कि निगरानी मे रमजान में कुरआनी आयात पर अमल करने का तजुर्बा शुरू नहीं हुआ था। जैसे मुझे मालूम हुआ कि मोहतरमा सुमैया ने बहुत सी बहनों के मुद्दे हल कर दिए हैं। तो मैंने भी अपना मुद्दा हल करने का पक्का इरादा कर लिया। मोहतरमा से मशवरा किया तो उन्होंने मुझे इस आयत को बार-बार दोहराने की ताकीद की,


الَّذِیۡ یَرٰىکَ حِیۡنَ تَقُوۡمُ تَقَلُّبَکَ فِی السّٰجِدِیۡنَ 
[Quran 26: 218-219]
"जो तुम्हें उस वक्त देख रहा होता है. जब तुम उठते हो और सजदा गुजार लोगों में तुम्हारी नकल व हरकत हरकत पर निगाह रखता हैl" 


इसलिए मैं इस आयत को बार-बार दोहराती रहती और मैंने कोशिश की कि यह आयत ए मुबारक जिस तरह मेरी जुबान पर जारी है उसी तरह दिल में भी उतर जाए।


आखिरकार वह वक्त आ गया (फैसला लेने का वक्त), आयत के मुताबिक हरकत करने का लम्हा, उधर मुअज्जिन الله أكبر، الله أكبر के कलाम अदा किया, इधर मैंने अपने बिस्तर पर करवटें बदलना शुरू कर दी। मैं मुअज्जिन की आवाज पर लब्बैक कहने से हिचकिचा रही थी। शैतान मेरे लिए नींद को खुशगवार बना कर पेश कर रहा था और नमाज के मामले को मेरी नजर में मामूली बना कर दिखा रहा था। उधर मुअज्जिन के कलमात मुझे यह हकीकत याद दिला रहे थे कि मैं मुसलमान हूं। मुअज्जिन कह रहा था,

أشهد أن لا إله إلا الله

अब मुअज्जिन मेरे रसूले मोहतरम ﷺ का जिक्र कर रहा था,

أشهد أن محمدًا رسولُ الله

मुअज्जिन मुझे बता रहा था कि फलाह और कामयाबी नमाज अदा करने में है।

حيَّ على الفلاح


मुअज्जिन के यह अल्फाज और कुरान की उस आयत के कलमात जिसे बार-बार पढ़ने और अमल करने का मुझे मशवरा दिया गया था, नमाज के लिए पुकार रहे थे। फिर अजान और आयत के कलमात मेरे दिल में उतरते चले गए। अब नींद मेरी आंखों से जा चुकी थी। मैंने अल्लाह रहमान को अपने करीब महसूस किया और उस एहसास के होते ही मैं उठ कर बैठ गई। मैंने अपने कपड़े संभाले, बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि मैं कमरे में तन्हा नहीं हूं, यहां कोई और भी है। वही जो मेरी शहरग से भी ज्यादा मेरे करीब है। उसके करीब होने का एहसास हुआ तो मैं पाक होने के लिए जल्दी से उठी। वुज़ू किया और नमाज ए फजर अदा करने के लिए अपने खालिक व मालिक के सामने खड़ी हो गई। यही वह नमाज थी जिसके पढ़ने की मुझे बेहद हसरत थी। कितनी बार इरादे बांधे और तोड़े मेरी आंखें आंसुओं से लबरेज थी और नमाज के बाद मेरे होठों पर यह अल्फाज थे: 

"अल्लाह का शुक्र है वह जात हर किस्म के ऐब से पाक है, जिसने मुझे मेरे मरने से पहले इस नमाज की तौफीक दी और यूं मुझ पर बड़ा करम किया। अल्लाह ने मुझ पर चार नहीं पांच नमाजे फर्ज की थी मगर मैं अपनी सुस्ती व काहिली की वजह से सिर्फ चार नमाजे ही अदा करती रही। मैंने रो-रोकर अल्लाह से अपने उस गुनाह की माफी मांगी और बारगाह ए इलाही में दुआ की कि वह मुझे आखिरी उम्र तक इसी पांचों नमाज अदा करने की तौफीक दे।"


तौबा वा अस्तगफार के बाद मै पुरसुकून होकर बैठ गई। मेरे सामने मेरी जिंदगी की फिल्म चलने लगी तसव्वुर से अपनी गुजरी हुई जिंदगी के मनाजिर देख रही थी। मैं एक आम सी लड़की थी जिसकी जिंदगी का कोई मकसद ना था। मेरी जिंदगी कोल्हू के एक बैल की तरह घूम रही थी। जिस तरह मुझसे पहले बहुत से लोग घूम चुके थे। एक बेमकसद जिंदगी।


बिला आखिर मेरी शादी हो गई। मुझे अपने शौहर के खयालात से कोई दिलचस्पी ना थी। मुझे तो उसकी पोजीशन, माल-ओ-दौलत से मतलब था। उसे भी नमाज-रोज़े से कोई दिलचस्पी ना थी। सिर्फ दुनिया की गहमागहमी की चिंता थी। जिंदगी की गाड़ी यूं ही चलती रही। दुनिया में बच्चे भी आ गए। मुझे अपने बच्चों से ताल्लुक था तो इतना कि वह क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, स्कूल जाते हैं, पढ़ाई कैसी जा रही है, होमवर्क कैसा हो रहा है। मैंने अपने बच्चों से भूल कर भी ना पूछा कि उन्होंने नमाज पढ़ी है या नहीं, उन्होंने कितना कुरान मजीद हिफज कर लिया है, क्या वह अंबिया इकराम अलैहिस्सलाम के हालात से वाकिफ हैं, उन्हें रसूल अल्लाह ﷺ की जिंदगी के बारे में कुछ पता है। मुझे बच्चों के इन मामलात में कतई दिलचस्पी ना थी। बल्कि मैं तो देर तक उनके साथ टेलीविजन के सामने बैठी रहती। मैं टेलीविजन पर आने वाले प्रोग्राम, डरामा और फिल्मों को उनको समझाती ताकि उन्हें समझने में दुश्वारी ना हो।


मैं नमाज पढ़ कर बैठती थी तो पिछली जिंदगी के बीते हुए रात दिन की यह फिल्में मेरे ज़हन की स्क्रीन पर चल रही थी की मै अचानक अपने शौहर के खर्राटों से चौक पड़ी। मनाजिर धुंधला गए।

मैंने चाहा कि उसे जगाऊं, उसे नमाज के लिए उठाऊं, और अपना किस्सा भी सुनाऊं मैंने उसे उसका नाम लेकर नहीं जगाया जैसा कि मेरी आदत थी। मैंने आज उसके कंधों पर झुक कर काफी तेज आवाज में यह आयत पड़ी,


الَّذِیۡ یَرٰىکَ حِیۡنَ تَقُوۡمُ تَقَلُّبَکَ فِی السّٰجِدِیۡنَ


यह आयत सुनकर मेरा शौहर उठा वजू किया, नमाज पढ़ी और फिर आकर मेरे पास बैठ गया।
कहने लगा: "आज की सुबह कितनी मुबारक और किस कदर हसीन है। आज मुझे तुमसे कुरान सुनने का मौका मिला। मैं इसे अपनी बड़ी खुशकिस्मती समझता हूं।"

मैंने कहा: "खुशकिस्मती तो मेरी है कि मैंने आज मुअज्जिन की आवाज सुनकर कुरान की आयत पर अमल किया, खुश किस्मत मै हूं कि मैंने आज तुम्हें पहली बार नमाज ए फजर पढ़ते देखा।"

यह सुनकर मेरे शौहर का दिल नूरे ईमान से जगमगा उठा।

उसने कहा: "मैं तुम्हें एक अजीब बात सुनाता हूं।"

मेरे साथ यह वाक्या हुआ कि मैं कल जब घर वापस आ रहा था और अपनी गाड़ी में रेडियो की सुई घुमा रहा था तो यह कुरान ए करीम स्टेशन पर आकर रुक गई। मैंने चाहा कि स्टेशन से सुई को हटा दूं लेकिन उससे पहले ही ट्रैफिक पुलिस ने मुझे गाड़ी रोकने के लिए इशारा किया।

मुझे उस वक्त कुरान सुनते हुए यही एहसास हुआ कि अल्लाह मुझसे बात कर रहा है।

तुम जानती हो कि मेरा रब मुझसे क्या कह रहा था?
 

قَدَرُوا اللّٰہَ حَقَّ قَدۡرِہٖ ٭ۖ وَ الۡاَرۡضُ جَمِیۡعًا قَبۡضَتُہٗ یَوۡمَ الۡقِیٰمَۃِ وَ السَّمٰوٰتُ مَطۡوِیّٰتٌۢ بِیَمِیۡنِہٖ ؕ سُبۡحٰنَہٗ وَ تَعٰلٰی عَمَّا یُشۡرِکُوۡنَ
[सूरह ज़ुमर 39: 67]


"उन लोगों ने अल्लाह की कदर ही ना की जैसा कि उसका कदर करने का हक है। उसकी कदर कामला का हाल तो यह है कि कयामत के रोज़ पूरी जमीन उसकी मुट्ठी में होगी और आसमान उसके दाएं हाथ में लिपटे हुए होंगे, पाक और बलातर है वह उस शिर्क से जो वह लोग करते हैं।"


क़ुरआने करीम के इस इरशाद ने मेरे पूरे वजूद को हिला कर रख दिया मैं समुंदर के साथ साथ जा रहा था। मैंने अपने हाथ की मुट्ठी को देखा और फिर समुंदर की जानिब देखा, इस फर्क ने मुझे हिला कर रख दिया।

यह समुंदर तो कुछ भी नहीं अल्लाह के हाथ में तो पूरी जमीन है। अल्लाह किस कदर बड़ा है। मैंने सुनते ही यह आयत याद कर ली। मुझे महसूस हुआ, यह आयत मेरे दिल में है और मेरा दिल उसी से धड़क रहा है।

मुझे अपने पूरे जिस्म में एक मिठास का एहसास हुई और मेरे परवरदिगार का फजल मुझ पर आज उस वक्त पूरा हुआ जब तुमने कुरान मजीद की आयत पढ़कर जगाया। मुझे तुमने नहीं जगाया बल्कि मुझे अल्लाह ने जगाया, नमाज ए फजर अदा करने के लिए।

मैंने कहा कि मुझे भी मेरे रब ने ही आयते करीमा से जगाया है। मेरे और तुम्हारे अमल से यह आयत जिंदा और ताकतवर हुई है। मेरे शौहर ने पछतावे का इजहार करते हुए कहा, मेरी उम्र 40 साल से ज्यादा हो गई है।

कुरान मेरे घर में मौजूद है। मैं यह नहीं कहता कि मैं कुरान नहीं पढ़ता हूं मैं पढ़ता हूं मैंने बहुत सी सूरते और आयतें याद भी की है, मगर मेरे और कुरान ए करीम के दरमियान एक रुकावट थी।

मैंने फौरन जवाब दिया, जी हां, यह रुकावट भी कुरान के मुताबिक अमल ना करने की, कुरान के मुताबिक हरकत ना करने की। नबी अकरम ﷺ तो जमीन पर चलता हुआ कुरान थे। हम भी जमीन पर चलते हैं मगर कुरान के साथ नहीं मैंने यह कहा और फूट-फूट कर रोने लगी।


मेरे शौहर की आंखों में भी आंसू थे। वह एकदम खड़ा हो गया बच्चों के कमरे की तरफ बढ़ा, उसने कमरे की लाइट जला दी फिर बंद कर दिया दो तीन बार ऐसा ही किया तो बच्चे जाग उठे उसने नमाज के लिए जोर से الله أكبر कहा बच्चे हैरान और परेशान थे कि यह क्या हो रहा है?

मेरे शौहर ने बच्चों से कहा: "जानते हो हमें कौन मिलने आया है? और हमें अब देख रहा है?"

"अल्लाह तुम लोगों से मिलने आया है।"

बच्चों ने एक दूसरे को देखा उनका वालिद बड़ी मीठी आवाज में पढ़ रहा था:


الَّذِیۡ یَرٰىکَ حِیۡنَ تَقُوۡمُ تَقَلُّبَکَ فِی السّٰجِدِیۡنَ
“जो तुम्हें उस वक्त देख रहा होता है जब तुम उठते हो और सजदे गुजार लोगों में तुम्हारी नकल हरकत पर निगाह रखता है। "


फिर उसने कहा: "आज घर में नमाज पढ़ लो कल से इंशा अल्लाह मस्जिद में नमाज पढ़ने जाएंगे।"

मेरा शौहर बच्चों को नमाज पढ़ते देखता रहा सब ने नमाज पढ़ ली तो उसका दिल सुकून हुआ फिर उसका जेहन उस आयत की तरफ ध्यान हुआ,


وَ کَانَ یَاۡمُرُ اَہۡلَہٗ بِالصَّلٰوۃِ وَ الزَّکٰوۃِ ۪ وَ کَانَ عِنۡدَ رَبِّہٖ مَرۡضِیًّا
[सूरह मरियम 19 : 55]
"वह अपने घर वालों को नमाज और जकात का हुक्म देता था और अपने रब के नजदीक एक पसंदीदा इंसान था।"


उसने अल्लाह से दुआ की या अल्लाह मुझसे राजी हो जा मुझे माफ फरमा दे, मुझ पर रहम कर।

फिर मुझसे कहने लगा: "आज से तुम बच्चों की निगरानी करोगी और उन्हें नमाज पढ़ने का हुक्म दोगी।"

मैंने कहा: "यह मेरी नहीं सुनते। मुझे उन्हें नमाज का पाबंद बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ेगी।"

शौहर ने मुझे मशवरा दिया: "तुम उन्हें इस आयत से मजबूत करो,
 

وَ کَانَ یَاۡمُرُ اَہۡلَہٗ بِالصَّلٰوۃِ وَ الزَّکٰوۃِ ۪ وَ کَانَ عِنۡدَ رَبِّہٖ مَرۡضِیًّا
[सूरह मरियम 19 : 55]
"वह अपने घर वालों को नमाज और जकात का हुक्म देता था और अपने रब के नजदीक एक पसंदीदा इंसान था।"


मैंने अपने बच्चों को नमाज का पाबंद बनाने का इरादा कर लिया। मैंने एक बड़ा चार्ट लिया और यह आयत उस पर लिख दी,

الَّذِیۡ یَرٰىکَ حِیۡنَ تَقُوۡمُ تَقَلُّبَکَ فِی السّٰجِدِیۡنَ


यह थी नमाज ए फजर पढ़ने के लिए कुरान ए करीम के मुताबिक हरकत करने की बरकत की हकीकी कहानी।


उस खातून ने मस्जिद में आकर यही आयत एक बड़े चार्ट पर लिखवा कर वहां भी लटका दिया और दर्स सुनने आने वाली तमाम अपनी बहनों को अपने तजुर्बा से आगाह किया।

हम में से हर एक इस बात का मोहताज है कि वह अपनी आंखों पर पड़े हुए पदों को हटा दें। दिल पर लगी मोहरों को साफ कर फेंक दे। दिल पर पड़े हुए गफलत के पदों की वजह से हम बिना सोचे समझे यूं ही कुरान मजीद पढ़ते रहते हैं। ना हम समझते हैं ना अमल करते हैं। हमारी यह दावत सिर्फ मुसलमान औरतों के लिए ही मखसूस नहीं है।

हम पूरी दुनिया के मुसलमानों को दावत देते हैं कि आइए उनका मुतआला रूहे मोहम्मद ﷺ और अरवाह ए सहाबा رضي الله عنهم के साथ करें।

वही जज्बा वही वलवला जो आप हजरत ﷺ और सहाबा इकराम मैं था वही हमारे अंदर भी आ जाए। हम कुरआन मजीद की तिलावत करते वक्त यह एहसास करें कि यह नूरानी आयात किताबों के वरकों और रेडियो से निकलकर हमारे सामने खड़ी है।

वह हमें बुला रही है, पुकार रही है और खालिक व मालिक की वहदानियत का ऐलान कर रही है।

हम अहद करते हैं कि कुरान जिस बात का हमें हुक्म देगा हम उस पर हम अमल करेंगे और जिस बात से रोकेगा उससे रुक जाएंगे।



मुसन्निफ़ा (लेखिका): सुमैय्या रमज़ान 
हिंदी तरजुमा: मरियम फातिमा अंसारी 



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