Allah Ne Dukh-Musibat Kyun Banaya | The Problem Of Evil

अल्लाह सिर्फ रहमान और क़ादिरे मुतलक ही नही है बल्कि अल हक़ीम (the wise) भी है उसके हर काम मे हिकमत है। लिहाजा ये कहना कि इस दुनिया मे कोई भी मुसीबत नही आनी चाहिए थी तो वो हमें लगता है मुसीबत है हमारे लिए लेकिन उस मुसीबत में भी हमारे लिए भलाई और हिकमत मौजूद है और अल्लाह की मुकम्मल हिकमत हमे समझ आ जाये ये जरूरी नही है।


अल्लाह ने दुख मुसिबत क्यो बनाई-  The problem of evil aurgument



दुनिया में मुसीबत और बुराई क्यों मौजूद है? (The problem of evil)


इस क़ायनात मे खुदा के होने की बेशुमार निशानियां मौजूद है जिन्हें देखकर कोई भी अक़्ल रखने वाला इंसान खुदा का इंकार नही कर सकता है। और आज की मौजूदा साइंस ने भी खुदा के होने की गवाही दे दी है मौजूदा साइंसटिफिक डिस्कवरी को देखकर वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी तादाद इस बात को मानने पर मजबूर हो गई है कि इस क़ायनात को जरूर किसी एक सुपर पावर ने बनाया है। इतनी साफ साफ निशानियों के बाद भी हमारी दुनिया में कुछ प्राणी ऐसे पाये जाते है जो खुदा का इंकार करते है जिन्हें हम नास्तिक (Atheist) के नाम से जानते है। जब इन नास्तिकों (Atheists) से कहा जाता है कि इतनी निशानियों के बाद भी आप खुदा को क्यों नही मानते तो जबाब में नास्तिक (Atheist) कहता है कि इस  दुनिया मे परेशानी, बुराई और दुख मौजूद है। और अगर खुदा होता तो इस दुनिया मे परेशानी, बुराई, और दुख मौजूद नही होते।इस लेख में हम नास्तिक (Atheist) के इसी ऐतराज़ का जबाब देंगे जिसके बाद नास्तिक (Atheist) के पास सिवाये खुदा के वज़ूद को मानने के अलावा कोई चारा नही है। सबसे पहले हम नास्तिक का पूरा ऐतराज़ आपके सामने रखेंगें फिर उसका जबाब देंगे।



नास्तिक (Atheist) का ऐतराज़

अगर अल्लाह मौजूद है तो उसकी सिफात (Attributes) भी होंगी जैसे अल्लाह का रहमान (दयावान) होना खुदा का क़ादिरे मुतलक (सर्व शक्तिमान, omnipotent) होना आदि। नास्तिक (Atheist) कहता है कि अगर अल्लाह अर रहमान (दयावान) है, तो इस दुनिया मे कभी भी किसी को कोई मुसीबत नही होनी चाहिए, कोई बुराई इस दुनिया मे नही होनी चाहिए, चाहे कोई आसमानी मुसीबत (natural disaster) हो या कोई रोड एक्सीडेंट हो या किसी की मौत हो या कोई भी परेशानी हो। अगर वो रहमान है तो कभी भी नही चाहेगा कि उसके बन्दे मुसीबत में हो। और अगर खुदा क़ादिरे मुतलक़ यानि सर्व शक्तिमान (omnipotent) है तो उसे इतनी ताकत होनी चाहिए कि वो इस दुनिया मे होने वाली मुसीबत और तखलीफ़ को कंट्रोल कर ले और उसे खत्म कर दे। 


लेकिन मुसीबत और तखलीफ़ मौजूद है तो इससे ये साबित हुआ कि या तो खुदा की रहमत मुकम्मल नही है या उसकी कुदरत (ताक़त) मुकम्मल नही है। अगर खुदा की रहमत मुकम्मल होती तो कोई भी इंसानों को मुसीबत नही होती और अगर उसकी रहमत मुकम्मल है तो वह इसे दूर करने की ताकत नही रखता यानि वह क़ादिरे मुतलक़ (सर्व शक्तिमान) नही है।


ऐतराज़ का जबाब

ये जो नास्तिक (Atheist) ने अल्लाह के बारे में तसव्वुर कायम किया है कि खुदा अर रहमान और क़ादिरे मुतलक़ है ये उसने आधी बात की है। खुदा सिर्फ अर रहमान और क़ादिरे मुतलक़ ही नही है, बल्कि अल्लाह की बहुत सारी सिफात है। जिनमे से एक अल-हक़ीम (The wise) है खुदा का हर फैसला हिकमत (wisdom) वाला है खुदा का कोई भी काम ऐसा नही है जो हिकमत से खाली हो। इस दुनिया के अंदर जितनी भी मुसीबत और परेशानियां मौजूद है इन सब में अल्लाह की हिकमत है।


अब नास्तिक (Atheist) ये कहेगा कि खुद किसी के मरने में, बीमारी आने में और आसमानी मुसीबत में अल्लाह की क्या हिकमत है ? तो इसका जबाब यह है कि ऐसी बेहूदा बातों को फलसफे की जवान मे Argument of ignorance कहा जाता है। 


Argument of ignorance ये है कि कोई जहालत (कम इल्म) की बुनियाद पर दलील दें मतलब कोई यह कहे कि मुझे यह नही पता है इसलिए फलां चीज़ मौजूद नही है। जितनें भी नास्तिक  होते है वो यही कहते है कि हमे अल्लाह के होने का यकीन नही है इसलिए अल्लाह मौजूद नही है। नास्तिकों की ये  कोई दलील नही हुई क्योंकि आपके ऊपर थोड़ी निर्भर करेगा कि आपको यकीन नही है इसलिए अल्लाह मौजूद नही है। आपको अगर अल्लाह की हिकमत (wisdom) का अंदाज़ा नही है तो इसका मतलब यह नही है कि अल्लाह अल हक़ीम (the wise) नही है, आपको अल्लाह की हिकमत का पता हो या न हो इसके वावजूद अल्लाह अल हक़ीम है।


इसको एक उदहारण से समझते है, कि बच्चे बहुत बार ऐसा काम करने की ज़िद करते है, जो उनके लिए सही नही होता है जैसे सर्दियों में आइसक्रीम खाना, स्कूल न जाना, या ज्यादा चॉकलेट खाना आदि जिसपर बच्चे के माँ बाप उसे मना करते है। बच्चे को बहुत गुस्सा आता है कि मुझे मेरी पसंद की चीज़ नही दी जा रही है इसलिए वो रोता है चिल्लाता है, लेकिन उस को उस वक़्त   अपने माँ, बाप के मना करने की हिकमत (wisdom) का अंदाजा नही होता है। वो यह समझता है कि मेरी पसंद की चीज़ न देकर, मेरे माँ बाप मेरे ऊपर जुल्म कर रहे हैं  इसलिए वो रोकर अपनी तखलीफ़ का इज़हार करता है। लेकिन जब वह बच्चा बड़ा होकर खुद बाप बनता है उसकी औलाद होती है। तो वो भी फिर अपने बच्चों के साथ ऐसा ही करता हैं जैसा बचपन में उसके साथ हुआ था। क्योंकि अब जवान होकर उसके अंदर हिकमत बढ़ गई उसको समझ में आने लगा कि बच्चो को अगर बहुत ज्यादा चॉकलेट दी जाए तो उनके लिए नुकसान है। बच्चा अगर स्कूल न जाए तो वो अपना फ्यूचर खराब कर लेगा।


बिल्कुल ऐसे ही हम अभी उस स्तर (level) पर नही है कि हम अल्लाह की मुकम्मल हिकमत को समझ सके। ऐसे ही बहुत से लोगों पर जब कोई परेशानी या मुसीबत आती है। तो वह यह समझते है कि बनाने वाले ने उनके ऊपर जुल्म किया और वो अल्लाह की हिकमत को नही समझ पाते जैसा कि एक बच्चा अपने माँ बाप की हिकमत को नही समझ पाता।


इसको एक उदाहरण से और समझते है, हम ज़िंदगी मे बहुत बार बिना हिकमत को समझे अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए दूसरी की बात मानते है। जैसे आप किसी डॉक्टर के पास जाते है तो डॉक्टर आपको बताता है कि आपको फलां बीमारी है अब आपको बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाएगा, आपके शरीर को काट कर अंदर से फलां चीज़ निकाल ली जाएगी और फिर उसको सिला जाएगा, आप होश में आएंगे फिर आपसे कहा जायेगा कि आपको रिकवरी में इतना समय लगेगा और आपको तखलीफ़ होगी। लेकिन कितनी मर्तबा ऐसा होता है कि वो आदमी जो मेडिकल फील्ड का नही है अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए डॉक्टर की बात को मान लेता है। जबकि उस आदमी को डॉक्टर की पूरी हिकमत का पता नही होता फिर भी यकीन कर लेता है। ऐसे ही हम ज़िंदगी मे बहुत बार अपने कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए बिना हिकमत को समझे दूसरे की बात मान लेते है।


ज़रा अब आप सोचिये की बच्चे को माँ बाप की हिकमत समझ नही आती, हमे डॉक्टर की हिकमत समझ नही आती, लेकिन इंसान ये मुतालबा कर रहा है कि हमे हमे खुदा की हिकमत समझ मे आ जाएं।


क्या यह मुमकिन नही है कि अल्लाह की हिकमत हमे समझ मे आ जाये?

अल्लाह जिस जात का नाम है वो जात सीमित (limited) नही है कि उसको किसी सीमा में कैद कर दे, अल्लाह असीमित (unlimited) है। जिस तरह खुदा की जात असीमित है उसी तरह उस की सिफात (attributes) भी असीमित (unlimited) है।


इसी तरीके से खुदा की हिकमत भी असीमित है और हमारी अक़्ल सीमित है और हमारी सारी सिफात (attributes) भी सीमित है। तो हमारी सीमित अक़्ल में अल्लाह की असीमित हिक्मत कैसे आ सकती है? अगर खुदा की मुकम्मल असीमित हिकमत हमारी समझ मे आ जाये तो खुदा की हिकमत भी सीमित हो जाएगी। क्योंकि वो हमारी सीमित अक़्ल में आ गई और अगर खुदा की हिकमत सीमित हुई तो खुदा भी सीमित हुआ और ऐसा खुदा ही क्या जो सीमित हो।


इसलिए अल्लाह की मुकम्मल हिकमत इंसान के समझ मे नही आ सकती है। लेकिन इसका हरगिज़ ये मतलब नही है अल्लाह अल हक़ीम (The Wise) नही है। अल्लाह अल हक़ीम है और उसका कोई भी काम हिकमत से खाली नही है।


अब कोई आदमी ये कहे कि एक बच्चा सड़क पर जा रहा था किसी आदमी ने उसे क़त्ल कर दिया, तो ये बच्चा भी  तकलीफ से गुजरा, बच्चे के मां बाप को भी तकलीफ हुई और जो लोग वहाँ इस मंज़र को देख रहे थे, उनको भी दुख हुआ कि एक बच्चे को इस तरह से क़त्ल कर दिया गया। उसका क्या कसूर था? ज़ाहिर है कोई भी आदमी इसे उचित नही ठहरा सकता, यानी ये ऐसा जुर्म है जिसे किसी भी तरीके से दुरुस्त करार नही दिया जा सकता। ये जुर्म अखलाकियात (morality) के खिलाफ है। अब इस काम मे अल्लाह की क्या हिकमत हो सकती है? इस काम मे कोई हिकमत नज़र नही आ रही है  इससे ये साबित हुआ कि बहुत से काम दुनिया मे ऐसे है जिसममें कोई हिकमत नही है।


इसका जबाब ये है आप अगर समय में आगे पीछे जा सकते है तो आप क्या करेंगे? इस तरह के इंटरनेट पर आपको बहुत सारे ब्लॉग मिल जाएंगे, जिसमें ये नास्तिक लोग ही बताते है अगर हम समय में आगे पीछे जा सकते तो इनमें एक जुमला आपको मिलेगा जो कि बहुत ही ज्यादा बोला जाता है वो ये है कि नास्तिक कहते है, अगर में इतिहास में वापस चला जाऊं तो मुझे हिटलर बचपन मे ही मिले तो तब भी में उसे क़त्ल कर दूंगा। आखिर नास्तिक के दिल मे ये बात क्यों आई कि हिटलर मुझे छोटा बच्चा ही मिल जाये तो मैं उसे क़त्ल कर दूंगा? क्योंकि आज हमे इतिहास के जरिये पता लगा है कि हिटलर बहुत ही ज़ालिम शख्स था उसने लाखो यहूदियों को क़त्ल किया है और वह दूसरे विश्व युद्ध का भी कारण बना जिसमें लाखों लोगों ने अपनी जान दी।


इसलिए ही आज लोग ये कहते है कि अगर हिटलर हमें बचपन मे ही मिल जाये तब भी हम उसे क़त्ल कर देंगे क्योंकि ये बड़े होकर लाखों लोगो का क़त्ल करने वाला है। इसलिए आप हिटलर को बचपन मे क़त्ल करने को ठीक समझते है।


ऐसे ही अगर कोई बच्चा बचपन मे ही क़त्ल हो जाये तो खुदा जानता है बड़े होकर उसको क्या बनना था इसलिए खुदा ने बचपन मे ही उसे अपने पास बुला लिया और लोगो को उसकी बुराई से बचा लिया। खुदा हमारे माज़ी (past) और मुस्तकबिल (future) को अच्छी तरह जानता है इसलिए सिर्फ खुदा को ही पता है कि हमारे लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। खुदा का कोई भी काम हिकमत से खाली नही होता।


अगर कोई बच्चा बचपन में ही मर जाए तो इसका हरगिज ये मतलब नही हो सकता है कि अल्लाह ने उस पर जुल्म किया। अगर अल्लाह ने उसे बचपन में ही अपने पास बुलाया है तो इसके पीछे भी खुदा की हिक्मत काम कर रही है जो कि मुकम्मल तौर पर हमारी समझ में नहीं आ सकती है। जैसे बच्चा फ्यूचर में बहुत ज्यादा तकलीफ से गुजरने वाला हो, उसे बड़े होकर बहुत सारी मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पढ़ता। और अल्लाह हमारे पास्ट और फ्यूचर को अच्छी तरह जानता है। इसलिए अल्लाह ने उस बच्चे पर रहम किया और बचपन में ही अपने पास बुला लिया। इस हिक्मत को अल्लाह के अलावा और कोई नही जान सकता।


ये दुनिया तो इंसान के लिए बस एक इम्तिहान है और अल्लाह हम सब को अलग अलग स्तिथि में डालकर देख रहा है कि हममें से कौन बेहतर तरीके से अपने इम्तिहान में कामयाब होगा। अल्लाह बहुत बार बच्चे के मां बाप के इम्तिहान के लिए बच्चे को अपने पास बुला लेता है। क्योंकि खुदा ये देखना चाहता है कि अगर में इनसे इनकी सबसे प्यारी चीज जो कि मेरी ही इन्हें दी हुई है वापस ले लेता हु तो ये क्या करेंगे? बच्चे के दुनिया से जाने पर सब्र करेंगे या नही? मुसीबत और परेशानी में अल्लाह को याद रखेंगे या नहीं? अल्लाह के शुक्रगुजार बनेंगे या उसके नाशुक्रे? 

यहां ये बात ध्यान रहे की आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने हमे बताया है कि जो बच्चे बालिग (puberty) होने से पहले इस दुनिया से चले जाते है तो अल्लाह उन्हे बिना हिसाब किताब के जन्नत अता करेगा। और जब बच्चे के मां बाप दुनिया के इम्तिहान में से कामयाब होकर आयेंगे तो अल्लाह उन बच्चों को अपने मां बाप से वापस मिला देगा। और उनको जन्नत की हमेशा की जिंदगी अता करेगा।


शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया (र.ह ) बहुत मशहूर शख्स गुज़रे है उन्होंने ये बात लिखी है कि अल्लाह ने कोई पूर्ण बुराई पैदा ही नही की है क्योंकि हर बुराई के अंदर कोई न कोई अच्छाई है बहुत सी बार उस बुराई में अच्छाई हमे दिख जाती है और बहुत बार नही दिखती।


खुलासा ये है कि नास्तिक ( atheist) का ये कहना है कि अगर खुदा अर रहमान और क़ादिरे मुतलक है तो इस दुनिया मे मुसीबत नही आनी चाहिए थी।


इसका जवाब यह है कि अल्लाह सिर्फ रहमान और क़ादिरे मुतलक ही नही है बल्कि अल हक़ीम (the wise) भी है उसके हर काम मे हिकमत है। लिहाजा ये कहना कि इस दुनिया मे कोई भी मुसीबत नही आनी चाहिए थी तो वो हमें लगता है मुसीबत है हमारे लिए लेकिन उस मुसीबत में भी हमारे लिए भलाई और हिकमत मौजूद है और अल्लाह की मुकम्मल हिकमत हमे समझ आ जाये ये जरूरी नही है।

अगर खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को जारी रखा है तो इसकी कोई माकूल वजह हमे क्यों नही बताई? क्या खुदा ने हमे कुछ वजह बताई है कि ये मुसीबते इंसान के ऊपर क्यों आती है?


ये भी argument of ignorance है कि आपको मालूम नही तो इसका मतलब ये नही है कि कोई माकूल वजह नही है आप जानने की कोशिश करेंगे तो आपको माकूल वजह मिल जाएगी। खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई क्यों रखी है इसकी तीन वजह तो मै ही आपको बता सकता हूं। इन तीन वजह के अलावा भी बहुत सारी वजह और हो सकती है। आइये अब हम इन तीन वजह को एक एक करके समझते है।


पहली वजह

अगर इस दुनिया के अंदर बुराई न हो बिल्कुल भी किसी इंसान को कोई मुसीबत, तखलीफ़ और परेशानी न हो तो इंसान कभी भी भलाई का आनंद नही कर सकता था।


जैसे किसी को मालूम ही न हो कि गरीबी क्या है? और न वो खुद कभी गरीब हुआ हो, बल्कि उसने कभी गरीबी देखी ही नही तो वह अमीर होने का आनंद कैसे कर सकता है? उसको अमीर होने की अहमियत का तभी पता चल सकता है जब वह अपने आस पास गरीबों को देखें। जैसे अगर हमने कभी बीमारी देखी नही तो हमे स्वस्थ होने की अहमियत का कभी नही पता चल सकता था। अगर हमने कोई अपाहिज इंसान न देखा होता तो हमे कभी भी अपने ठीक होने की अहमियत का पता नही चल सकता था।

अगर हमें कभी मौत ही नही आती तो हमे अपनी ज़िंदगी की अहमियत का पता नही चल सकता था।


फलसफे में एक कानून है कि जब आप किसी चीज़ का विलोम (opposite) देखते है तो तब ही वो चीज़ साफ होकर सामने आएगी।


जैसे रोशनी न हो तो फिर अंधेरे का अंधेरापन होना हमे पता न चले। अगर सारी दुनिया मे अंधेरा ही रहता तो अंधेरा हमारे लिए एक आम चीज़ होती हमे रोशनी की अहमियत का अंदाज़ा ही नही होता। इस दुनिया मे अंधेरा और रोशनी दोनों मौजूद है अंधेरा होने की वजह से ही हमे रोशनी की अहमियत का अंदाजा होता है अगर सिर्फ रोशनी ही रहती तो हम कभी भी रोशनी की अहमियत का अंदाजा नही कर सकते थे।

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बिल्कुल ऐसे ही इस दुनिया के अंदर खुदा ने  मुसीबत भी रखी है, बुराई भी रखी है और भलाई भी रखी है। ख़ुदा ने इस दुनिया मे बुराई इसलिए रखी है कि हमे भलाई के भलाई होने का पता चल सके और हम उस भलाई का आनंद ले सके। अल्लाह ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में कहा है कि:

हर मुश्किल के साथ आसानी है, बेशक हर मुश्किल के साथ आसानी है।

कुरआन 94: 6-7


दूसरी वजह: 

अल्लाह ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि इंसान के अंदर अच्छाई परवान चढ़ सके।

Allah apne nek bando ki azmaish karta hai unhe ajmaane ke liye


जैसे अगर इस दुनिया मे किसी को कोई मुसीबत न हो तो इंसान को सब्र की क्या जरूरत होगी? सब्र एक इंसान की अच्छी सिफात (attributes) है। और इंसान को सब्र किसी मुसीबत पर करना पड़ता है अगर दुनिया मे कोई मुसीबत ही नही है तो इंसान सब्र किस चीज़ पर कर सकता है? अगर इस दुनिया मे कोई मुसीबत न हो तो इंसान की एक अच्छी सिफात (attributes) जो इंसान को इंसान बनाती है, जानवर से उसको मुमताज (बेहतर) करती है वो पैदा नही हो सकती। देखे जानवर के अंदर सब्र नही है अगर जानवर को भूख लगी है और उसके सामने खाना मौजूद है तो उससे ज्यादा खुदगर्ज़ कोई चीज़ नही है, जो उस जानवर के अपने खानदान के भी होंगे तो वह उनको छोड़कर खुद छपटा मरेगा। अल्लाह ने इंसान के अंदर सब्र रखकर इंसान को जानवर से मुमताज कर दिया है। अगर नास्तिक जानवर बना रहना चाहता है तो वह उसकी ख्वाहिश है तो वह जानवर बना रहे। लेकिन एक अहले मज़हब एक इंसान बनना चाहता है, उसके अंदर इंसानियत के गुण आये तो उसकी ख्वाहिश है, और इंसानियत के गुण में से एक गुण सब्र है अगर दुनिया के अंदर मुसीबत न हो तो कभी भी सब्र की जरूरत न पड़े तो कोई भी इंसान सब्र करने वाला नही हो सकता। अल्लाह ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में कहा है कि:

अल्लाह किसी को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता।

  📓(कुरआन 2:286)


अगर किसी इंसान को कोई भी तकलीफ न हो तो मुझे बताइये हमारे अंदर कभी रहमत (दया) की सिफात (गुण) परवान चढ़ सकती है? हम सामने वाले के ऊपर रहमत और हमदर्दी का अहसास तभी कर सकते है जब सामने वाला किसी मुसीबत में हो। तो किसी के साथ हमदर्दी करना किसी के ऊपर मेहरबानी करना ये सब इंसान की अच्छी सिफात (गुण) है, लेकिन उनकी जरूरत तब पड़ती है जब सामने वाला किसी मुसीबत में हो। अगर सामने वाला किसी मुसीबत में नही है तो हमदर्दी करने की जरूरत ही क्या है? और उस पर मेहरबान होने की जरूरत ही क्या है? किसी इंसान पर हमदर्दी करना मेहरबान होना, ये आला इंसानी अख़लाक़ है। अगर इस दुनिया मे मुसीबत न हो तो इंसानियत आला इंसानी अख़लाक़ से महरूम हो जाएगी।


ऐसे ही अल्लाह ने दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है कि अल्लाह की बहुत सारी सिफात (attributes) मे से इंसान को कुछ सिफात का अंदाज़ा भी हो सके कि अल्लाह की वो सिफात भी है।


तीसरी वजह

अल्लाह ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि हम अपनी पसंद से अच्छाई और बुराई को चुन सके। अल्लाह की दी हुए आजादी (free will) का इस्तेमाल कर सके। अल्लाह ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में कहा है कि:


और हम मुब्तिला करते हैं तुम्हें अच्छे हालात में और बुरे हालात में, तुम्हें आज़माने के लिए और हमारी तरफ़ तुम लौटाए जाओगे।

कुरआन 21:35

और हम मुब्तिला करते हैं तुम्हें अच्छे हालात में और बुरे हालात में, तुम्हें आज़माने के लिए और हमारी तरफ़ तुम लौटाए जाओगे।  कुरआन 21:35


उदहारण के लिए जैसे आप किसी स्कूल में गए और वहाँ आपका इम्तिहान हुआ और इम्तिहान में आपके प्रश्न पत्र में 10 प्रश्न आये और हर प्रश्न के 3 विकल्प है और तीनों ही विकल्प सही है तो आप मजबूर है कि आप सही जवाब को ही चुने। आप गलत जबाब को नही चुन सकते क्योंकि गलत जबाब है ही नही। लेकिन अगर उस प्रश्न पत्र में सही जवाब भी हो और गलत जवाब भी हो। और आपको ये कहा जाए कि आप सही जवाब को चुने तो आप आज़ादी के साथ गलत जवाब को छोड़कर सही जबाब चुनेंगे।


ऐसे ही इस दुनिया के अंदर अल्लाह ने अच्छाई और बुराई को इस लिए रखा है कि हम आज़ादी के साथ अच्छाई को इख्तियार करे और बुराई को छोड़ दें।


अल्लाह ने बुराई को पैदा किया है लेकिन उसके अंदर भी भलाई का पहलू मौजूद है। बुराई को बनाना हमारी आज़माइश/इम्तिहान के लिए है इसलिए बुराई को बनाना बुरा नही है बल्कि बुराई को इख्तियार करना बुरा है। इंसान बुरा उस वक़्त बनता है जब वह बुराई को इख्तियार कर लेता है उदहारण के लिए एक टीचर आपसे सवाल पूछता है और उसने आपको 3 विकल्प (option) दिए है जिसमे से 2 गलत है और 1 सही है। तो आप यह नही कह सकते कि ये टीचर बड़ा ज़ालिम है इसने सवाल के अंदर 2 विकल्प गलत दिए है  और 1 विकल्प सही। टीचर अपना काम सही तरीके से अंजाम दे रहा है क्योंकि ये हिकमत है कि वो आपसे इसी तरीके से सवाल पूछे ताकि आप अपनी आजादी (free will) का इस्तेमाल करके सही जवाब को चुनें।


आखरी बात


नास्तिक बुराई को जहां मन्सूब करना चाहिए वहाँ मन्सूब नही करता बल्कि गलत जगह मन्सूब कर देता है। नास्तिक ये समझता है कि बुराई इस दुनिया मे खुदा की वजह से है इसलिए वो खुदा को नही मानता है।


नास्तिक का ये ऐतराज़ बिल्कुल ही गलत है क्योंकि इस दुनिया में खुदा ने बुराई को पैदा किया है लेकिन इंसान को बुराई करने पर मजबूर नही किया है। इंसान खुद से ही बुराई को चुनता है अगर हमारी जिंदगी में बुराई मौजूद है तो उसका सवब (cause) हम खुद है।


बहुत बार ऐसा होता है कि मुसीबत का सवब (cause) इंसान खुद ही होता है। जैसे एक आदमी बहुत तेज़ रफ्तार से गाड़ी चला रहा है और यातायात के नियमों का पालन भी नही कर रहा है जिसके नतीजे में उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है और वह मर जाता है। तो इस मुसीबत का सवब इंसान खुद हुआ।


बाज मर्तबा कोई दूसरा शख्स जो हमारे समाज का है वो मुसीबत का सवब बनता है। जैसे एक आदमी अहतियात के साथ ड्राइविंग कर रहा है और यातायत के नियमों का भी पालन कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ से एक गाड़ी आ रही है और वो आदमी तेज़ ड्राइविंग कर रहा है और यातायात के नियमों का भी पालन भी नही कर रहा है। जिसकी वजह से दूसरे आदमी की गाड़ी का पहले आदमी की गाड़ी से एक्सीडेंट हो जाता है और पहला आदमी मर जाता है तो इस मुसीबत का सवब हमारे समाज का कोई दूसरा शख्स हुआ।


किसी मुसीबत का वाज़ मर्तबा पूरा समाज सवब बनता है उदहारण के लिए अभी हाल ही में पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैल गया था। बहुत से देशों में जिसमे हमारा देश भी शामिल है वहाँ पर मरीज के लिए वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी थी जिसकी वजह से बहुत से लोग जिनकी जान बचाई जा सकती थी वो दुनिया से चले गए। इन सब लोगो की जान का जिम्मेदार हमारा समाज खुद है। क्योंकि हमने ही हमारे समाज के ऐसे लोगो को चुनकर सत्ता में भेजा है जो कि भ्रष्टाचार करते है। जो पैसा वेंटिलेटर और ऑक्सीजन पर लगना चाहिए था इन लोगो ने वो पैसा वहाँ नही लगाया जिसकी वजह से बहुत सारे लोग मारे गए। इससे ये साबित हुआ कि इस मुसीबत का सवब हमारा समाज खुद है और हमारे समाज का भ्रष्ट होना है।

जब भी हम दुनिया मे मुसीबत देखे तो उस मुसीबत का सवब इंसान खुद है। चाहे वो खुद हो या उसके आस पास के लोग हो या चाहे हमारा पूरा समाज हो।


इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को अल्लाह ने जारी रखा है और उस बुराई के अंदर भी भलाई का पहलू मौजूद है लेकिन अगर इंसान के अंदर कोई बुराई है तो उसका कारण वो खुद है। जैसाकि अल्लाह ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में कहा है कि:


जो मुसीबत तुम्हें पहुंची वह तो तुम्हारे अपने हाथों की कमाई से पहुंची और बहुत कुछ तो वह माफ कर देता है।

📓(कुरआन 42:30)


नास्तिक का ये ऐतराज़ की अल्लाह रहमान और क़ादिरे मुतलक (सर्वशक्तिमान) है तो इस दुनिया मे बुराई क्यों मौजूद है? इसका जबाब हमने ये दिया है कि अल्लाह सिर्फ रहमान और क़ादिरे मुतलक ही नही बल्कि अल-हक़ीम (The Wise) भी है। अल्लाह का कोई भी काम हिकमत से खाली नही है और खुदा की मुकम्मल हिकमत हमे समझ आ जाये ये जरूरी नही है। फिर हमने जाना कि अल्लाह ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को रखा है तो इसकी माकूल वज़ह क्या है? इसकी तीन माकूल वज़ह ऊपर बताई गई है।


1 .अगर इस दुनिया के अंदर मुसीबत औऱ बुराई न हो तो इंसान कभी भी भलाई का आनंद नही कर सकता।


2. खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि इंसान के अंदर अच्छाइयां परवान चढ़ सके।


3. खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि हम अपनी पसंद से अच्छाई और बुराई को चुन सकें, खुदा की दी हुई आज़ादी  (free will) का इस्तेमाल कर सकें।


इन तीन वज़हों के अलावा और भी बहुत सी वज़ह हो सकती हैं। अगर अब भी नास्तिक को समझ में नहीं आ रहा है कि अल्लाह ने मुसीबत और बुराई को क्यों रखा है तो उससे एक सवाल ये है कि अगर दुनिया में मुसीबत और बुराई मौजूद है तो इसकी वजह से आप अल्लाह का इंकार कैसे कर सकते है?


साभार: अकरम हुसैन 

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