गैब के कुछ अहम हिस्से हैं जिनपर ईमान लाना इस्लाम में जरूरी है- एक अल्लाह जिसने ये पूरी सृष्टि बनाई, फरिश्तों पर, इलहामी किताबों पर- कुर’आन (हज़रत मुहम्मद), इंजील (ईसा अ.स.), तौरात (मूसा अ.स.), ज़बूर (दाऊद अ.स.) और सहीफे (उनके पहले के पैगंबर), अल्लाह के सारे रसूल और नबी जिन्होंने अल्लाह के पैग़ाम हम तक पहुँचाए, आखिरत के दिन पर, और अल्-कद्र (तकदीर पर)। इन्हें अरकान ऐ ईमान यानी ईमान के स्तंभ हैं।
गैब पर ईमान Belief on Unseen الايمان بالغيب
ذٰلِکَ الۡکِتٰبُ لَا رَیۡبَ ۚ ۖ ۛ فِیۡہ ِۚ ۛ ہُدًی لِّلۡمُتَّقِیۡنَ ۙ﴿۲
الَّذِیۡنَ یُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡغَیۡبِ وَ یُقِیۡمُوۡنَ الصَّلٰوۃَ وَ مِمَّا رَزَقۡنٰہُمۡ یُنۡفِقُوۡنَ ۙ﴿۳
ये अल्लाह की किताब है, इसमें कोई शक नहीं। हिदायत है उन परहेज़गार लोगों के लिये, जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, जो रिज़्क़ हमने उनको दिया है, उसमें से ख़र्च करते हैं
-सूरत उल बकरह आयत 2,3
गैब क्या है?
अल्लाह त’आला ﷻ ने गैब को ईमान का हिस्सा बताया मगर क्या आपने जानने कि कोशिश की गैब क्या है? आइए जानते हैं-
“जो दिखता है मैं उसपे ही यकीन करता हूँ।“ ये जुमले आपने अक्सर सुना होगा। इस जुमले का मतलब ये भी हो सकता है के लोगों को बिना देखे यकीन नहीं करना चाहिए। और अगर हम किसी चीज को देख ले तो उसपे विश्वास करें।
ये सुनने में तर्कपूर्ण लगता है मगर ये पूरी तरह सच नहीं है। हम ऐसी कई चीज़ों पे विश्वास करते हैं जो हमे दिखाई नहीं देती जैसे कि बिजली, हवा, गुरुत्वाकर्षण, UV किरण, मोबाइल रेडियेशन वगैरह। हम इन्हें देख नहीं सकते मगर इनकी शक्ति महसूस करते हैं।
जैसे बल्ब का जलना, टीवी की तस्वीरें, पंखे का घूमने से हमने अंदाजा होता है के तारों में बिजली है चाहे हम देख ना पायें।
इसी तरह पेड़ के पत्ते हिलने से, नावें चलने से, पतंग के उड़ने से हम समझते हैं के इन सब का कारण हवा ही है, चाहे हम दिखे या ना दिखे।
इसी तरह आसमान की तरफ बॉल उछालने पर हम जानते हैं वो वापस जमीन की तरफ आएगी, गुरुत्वाकर्षण को देखा है? मगर मानते है ना।
हम बिजली, हवा और गुरुत्वाकर्षण को देखे बिना सिर्फ़ इनके प्रभाव से इनमें विश्वास कर लेते हैं। हम लियोनारडो डा विंसी, चार्ल्स डार्विन और आईजैक न्यूटन में भी विश्वास करते हैं हालांकि हमने उन्हें भी नहीं देखा। मगर उनके बारे मे हमने किताबों से जाना।
इस चर्चा से हमने क्या जाना?
“जो दिखता है वही तथ्य है।“ ये जुमले अटल सत्य नहीं है। हम ऐसी कई चीज़ों पे विश्वास करते है जो दिखती नहीं हैं मगर होती हैँ। उनका प्रभाव महसूस किया जा सकता है।
अल-गैब الغيب
अल-गैब الغيب , ये अरबी शब्द है, हिन्दी मे इसे ग़ायब या अदृश्य कह सकते हैं। तो क्या हमें अदृश्य शक्ति का कोई सबूत मिल सकता है? जिससे हम उस पे विश्वास कर पाए?
तर्कपूर्ण रास्ते से अल्लाह के वुजूद तक पहुचना-
जब आप घर पहुंचे और आपकी टेबल पे बिल्कुल ताजे गरमा-गरम गुलाब जामुन मिले तो क्या आप नहीं कहोगे “आज माँ ने गुलाब जामुन बनाए हैं? “ इसका अर्थ है जब कोई ठोस चीज़ हम देखते हैं तो कोई होता है जिसने उसे बनाया हो। अगर आप से ये कहा जाए के ये गुलाब जामुन किसी ने नहीं बनाए मगर एक दुर्घटना में ये अपने आप बन गए तब आपका क्या जवाब होगा? बेशक आप कहोगे “क्या मजाक है, कोई चीज अपने आप बन सकती है?”
और आपको जवाब मिले के एक भयंकर तूफ़ान की वजह से शकर, खोवा, पानी, मैदा सब सही अनुपात में आसपास में मिला, और तेल भी गरम हो गया, और जो सामाग्री उसमें गिरी उसके कारण गुलाब जामुन बन गए। सही अनुपात पे सामाग्री का मिलना, तेल का सही मात्रा में गरम होना, और जलने से पहले गैस बंद हो जाना। क्या कोई इस कहानी पे विश्वास कर सकता है।
अब ज़रा गौर करें- सूरज, चांद, धरती, सितारे, नदी, पहाड़, समंदर, मछली, खरगोश, हिरण क्या किसी दुर्घटना में बन सकते हैं? ये तो गुलाब जामुन बनाने से ज्यादा मुश्किल है।
तो ये कहना के इंसान बिना किसी खालिक या बनाने वाले के, खुद-ब-खुद पैदा हो गए ये बेवकूफ़ी की बात है। इंसान का शरीर एक बेजोड़ मिसाल है कारीगरी की। ह्यूमन एनाटॉमी पे गौर करेंगे तो पाएंगे, आंख, कान, दिल, दिमाग, किडनी, गुर्दे और बहुत से अंग जो आपसी सामंजस्य की अनोखी मिसाल हैं और अलग अलग ना जाने कितने काम आपके लिए करते है जिनके बारे मे आप कभी गौर नहीं करते।
अल्लाह त’आला ﷻ सूरत उल् तूर में फरमाते हैं
क्या ये किसी ख़ालिक़ के बग़ैर ख़ुद पैदा हो गए हैं? या ये ख़ुद अपने पैदा करने वाले हैं?
📓(कुरआन 52:35)
रूहानी ताक़त
जब हम आसपास के जिवित व्यक्तियों को देखते हैं, उनके दो आयाम होते हैं-
भौतिक आयाम (जिस्मानी) Physical Dimension
अध्यात्मिक आयाम (रूहानी) Spiritual Dimension
हम भौतिक या जिस्मानी रूप को देख सकते हैं मगर हम सिर्फ़ इसी से बने हुए नहीं है। एक और हिस्सा है हमारे अस्तित्व का, जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है- वो है रूह या आत्मा। बिना रूह के कोई जिवित चीज़ जिंदा नहीं रह पाएगी। रूह का अस्तित्व है ये हम सभी जानते है, मगर विज्ञान इसे साबित नहीं कर पाया।
इसी तरह, हम देखते हैं, इस खूबसूरत, विशाल क़ायनात को, इस सृष्टि को जिसमें धरती, सूरज, आकाश गंगा, गृह, चंद्रमा कितना कुछ है। ये सृष्टि का भौतिक रूप है। मगर इस क़ायनात को जिंदा रखने वाला, क़ायम रखने वाला, उस ताकत को हम देख नहीं सकते। वो अदृश्य ताकत जो दिन को रात मे बदलता और प्रकृति के हर कण को पैदा करने वाला खालिक- अल्लाह- इश्वर- God।
हम अल्लाह त’आला ﷻ को देख नहीं सकते मगर हर कदम पे उसके वुजूद को महसूस कर सकते हैं, हर पल, हर धड़कन, हर साँस के साथ।
जब कोई शिशु पैदा होता है, फूल खुशबु रंग बिखेरते हैं, परिंदे परवाज़ करते हैं, जानवर जंगल में दौड़ते फिरते हैं, सैकड़ों तरह की मछलियाँ समंदर मे तैरती फिरती हैं। सितारे जिन्हें गिन पाना हमारे बस की बात नहीं उन्हें बनाना क्या मामूली बात है? और ये सितारे आसमान में बिना रुके बिना थके घूम रहे हैं और आपस में टकराते नहीं?
जब ये कायनात अपने अंदर इतना कुछ समेटे हुए है, इतनी बेहतरीन है तो इसे बनाने वाले की जितनी तारीफ की जाए कम है।
तमाम तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है, जो सारे जहान का रब [पालनहार] है,
📓(कुरआन 1:1) सूरत उल् फातिहा
बहुत ही पाक और बरतर है, वो जिसके हाथ में कायनात की सल्तनत है, और वो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
📓(कुरआन 67:1)- सूरत उल् मुल्क
गैब पे ईमान लाना इस्लाम में ईमान का बहुत अहम हिस्सा है। ये वो हिस्सा है जिसके साथ हम पैदा हुए हैं। अल्लाह ने हम सबका दिल इस तरह बनाया है के हम सबका दिल इस बात को जानता है इस एहसास को फितरत فطرة कहते हैं। हमारी फितरत हमे एक ख़ालिक (बनाने वाले) पर ईमान लाने, उसको मानने और नेक काम करने को प्रेरित करती है।
गैब के कुछ अहम हिस्से हैं जिनपर ईमान लाना इस्लाम में जरूरी है- एक अल्लाह जिसने ये पूरी सृष्टि बनाई, फरिश्तों पर, इलहामी किताबों पर- कुर’आन (हज़रत मुहम्मद), इंजील (ईसा अ.स.), तौरात (मूसा अ.स.), ज़बूर (दाऊद अ.स.) और सहीफे (उनके पहले के पैगंबर), अल्लाह के सारे रसूल और नबी जिन्होंने अल्लाह के पैग़ाम हम तक पहुँचाए, आखिरत के दिन पर, और अल्-कद्र (तकदीर पर)। इन्हें अरकान ऐ ईमान यानी ईमान के स्तंभ हैं।
ईमान(faith) के 6 अरकान (pillar) है इन मे से एक अरकान (pillar) भी कम हो जाए तो इंसान मोमिन नही रहता चाहे वो लाख ईमान की दुआए करता रहे जैसे एक इमारत अपने तमाम सुतुनो (Pillar) पर ही कायम रह सकती है इसी तरह ईमान भी अपने तमाम अरकान के ज़रिये ही मुकम्मल हो सकता है.
1) अल्लाह पर ईमान .
3) आसमानी किताबों पर ईमान.
4) नबीयों पर ईमान.
5) आख़िरत के दिन पर ईमान.
6) अच्छी बुरी तकदीर पर ईमान.
अल्लाह त'आला का इरशाद है.
सारी अच्छाई मशरीक (East) मगरिब (West) की तरफ मुँह करने में ही नही बल्कि हक़ीकत में अच्छा वो है जो अल्लाह पर, कयामत के दिन पर,फरिश्तों पर, किताब अल्लाह पर और अंबियाओ पर ईमान रखने वाला हो.
📓(कुरआन 2/177)- सूरत उल् बकरह
ईमान लाने का मतलब जुबान से इकरार करना, दिल से तस्दीक करना और उसपे अमल करना। लगभग सारे अरकान हमारे लिए अनदेखे है। नबियों को देखने वाले लोगों का प्रतिशत बहुत कम है। कुरान के सिवा बाकी सारे अरकान दुनिया के लिए अदृश्य हैं।
अल्लाह त’आला ﷻ का फरमान है के अल्लाह के बनाए सभी इंसान अल्लाह पर और गैब पर यकीन रखे। और अल्लाह त’आला ﷻ की इबादत करे।
अल्लाह त’आला ﷻ के 99 नाम, असमा उल हुस्ना
अल्- बातिन الباطن, the unseen, ओझल, पोशीदा, छुपा हुआ, अदृश्य, जिसे देखना मुमकिन ना हो। अल्लाह के बनाए मखलूक (प्राणी) अल्लाह को इस जिंदगी में देख नहीं सकते, मगर हम अल्लाह की बनाई क़ायनात में अल्लाह की बेहतरीन कारीगरी, उसकी ताकत, उसकी रहमत, उसकी अद्भुत रचना, इस दुनिया के हर शय का आपसी तालमेल, हमारी जीने मरने में उसकी मौजूदगी देख सकते हैं। अल्लाह के बेहतरीन नामों में से एक नाम है अल्-ज़ाहिर الظاهر, the obvious or the evident, जिसके होने में कोई शक नहीं, जग ज़ाहिर, सृष्टि का हर कण उसके होने की गवाही दे रहा है। अल्लाह हमारी आँखों से ओझल है मगर हमारी आंखे उसके होने के सबूत को हर जगह देख सकती हैं।
अल्लाह त’आला ﷻ सूरत उल् हदीद में फरमाता है-
वही अव्वल भी है और आख़िर भी, और ज़ाहिर भी है और छिपा हुआ भी और वो हर चीज़ का इल्म रखता है।
📓(कुरआन 57:3)
साभार : फ़िज़ा ख़ान
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