नमाज़ की अहमियत
Table Of Content
1. नमाज इस्लाम का दूसरा सतून है2. नमाज-तक्वा की तरफ रहनुमाई
3. नमाज अच्छी होगी तो सारे आमाल अच्छे होंगे
4. नमाज गुनाहों, बुराई और बेहयाई से रोकती है
5. नमाज से अल्लाह की मदद हासिल करना
6. नमाज मगफिरत का एक जरिया है
7. नमाज आखिरत का इनाम है
8. नमाज अल्लाह से जुड़े रहने का ज़रिया है
9. नमाज़ दिल का सुकून है
10. नमाज शैतान से हिफाजत करती है
11. नमाज इंसान और शिर्क ओ कुफ्र के दरमियान का फर्क है
12. नतीज़ा
नमाज का क़ायम करना उन अहम मौज़ुआत में से एक है जिस पर कुरान में हर चीज से ज्यादा जोर दिया है। कुरान में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को बक़ायदगी से नमाज पढ़ना सीखने की ताकीद की है और नमाज पढ़ने के जिक्र के साथ अल्लाह तआला ने उसके फवायद भी बताए हैं। नीचे दिए गए पॉइंट्स नमाज के अहम फवायद बताती हैं जो नमाज़ की अहमियत को वाज़ेह करती हैं-
1. नमाज इस्लाम का दूसरा सुतून (pillar) है
इस्लाम की बुनियाद 5 चीजों पर कायम की गई है-
- गवाही देना कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और बेशक मोहम्मद (ﷺ) अल्लाह के सच्चे रसूल है।
- नमाज कायम करना।
- जकात अदा करना
- हज करना
- रमज़ान के रोजे रखना
2. नमाज-तक्वा की तरफ रहनुमाई
एक मुसलमान का अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा मकसद तक्वा या नेकी को हासिल करना है। इस्लाम का मकसद हमें हिदायत देना है, बुराई से रोकना, जुल्म को खत्म करना हासिल करना है। और इस सिलसिले में नमाज का बहुत बड़ा किरदार है क्योंकि सारी चीजों पर अमल करना सिखाती है। ग़ैब पर यकीन रखने, सदक़ा देना के साथ-साथ तकवा की तरफ बढ़ने के लिए एक मुसलमान को नमाज भी कायम करनी चाहिए। कुरान मजीद में अल्लाह तआला फरमाता है,
"ये अल्लाह की किताब है, इसमें कोई शक नहीं। हिदायत है उन परहेज़गार लोगों के लिये, जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, जो रिज़्क़ हमने उनको दिया है, उसमें से ख़र्च करते हैं।" [कुरान 2:2-3]
3. नमाज अच्छी होगी तो सारे आमाल अच्छे होंगे
हजरत अनस (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत है, नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया:
"कयामत के रोज बंदे से सबसे पहले उसकी नमाज का हिसाब होगा, अगर वह ठीक रही तो उसके सारे आमाल ठीक होंगे वो खराब निकली तो उसके सारे आमाल खराब हो जाएंगे।" [अस अवसात, सहीह अल जामे-2573]
4. नमाज गुनाहों, बुराई और बेहयाई से रोकती है
हर मुसलमान का अपनी जिंदगी में अच्छे और बुरे माहौल और लोगों से वास्ता पड़ता है, और इसका असर उसकी जिंदगी पर पड़ता है।
हम इस सच्चाई से इनकार नहीं कर सकते कि इस वक्त दुनिया के लोगों के हालात अफसोसनाक हैं, लोग नेकी कम कर रहे हैं, बे हायाई और बुराई पर आमादा हो रहे हैं। बुराई को रोकने की जगह लोग उस बुराई में शामिल हो रहे हैं, इसलिए अपने नफ्स को इन तमाम बुराईयों और बेहयाई से बचाने के लिए नमाज में पनाह हासिल करनी चाहिए क्योंकि ये बे हयाई से लड़ने में मददगार साबित होगी, जैसा कि अल्लाह तआला फरमाता है,
"(ऐ नबी) तिलावत करो उस किताब की जो तुम्हारी तरफ़ वो्य के ज़रिए से भेजी गई है और नमाज़ क़ायम करो, यक़ीनन नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से रोकती है और अल्लाह का ज़िक्र इससे भी ज़्यादा बड़ी चीज़ है। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो।" [कुरान 29:45]
5. नमाज से अल्लाह की मदद हासिल करना
हर मुसलमान को चाहिए कि वह दुआ के ज़रिए सिर्फ अल्लाह तआला से मदद मांगे। और उसकी मदद हासिल करने का सबसे बेहतर ज़रिया नमाज है क्योंकि जब कोई इंसान अल्लाह तआला की इबादत करता है तो उससे उसका ताल्लुक मजबूत होता है और जब अल्लाह तआला से हमारा ताल्लुक मजबूत होता है हम सिर्फ उसी से मदद मांगते हैं। तो हमें चाहिए कि हम अपना ताल्लुक उससे मजबूत करें और सिर्फ उसी से मदद मांगे। अल्लाह तआला फरमाता है,
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, सब्र और नमाज़ से मदद लो। अल्लाह सब्र करनेवालों के साथ है।" [कुरान 2:153]
6. नमाज मगफिरत का एक जरिया है
अल्लाह ने हमें इंसान बनाया और जानता है कि हम गलतियों में पड़ जाएंगे। इन गलतियों से छुटकारा पाने के लिए हमें नमाज़ का सहारा लेना चाहिए क्योंकि नमाज हमें गुनाहों से दूर रखती है और हमारी मगफिरत का एक बेहतरीन जरिया भी है। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,
सहाबा ने कहा: नहीं या रसूल अल्लाह (ﷺ), हरगिज़ नहीं।
आप (ﷺ) ने फरमाया, यही हाल पांच वक्त की नमाजों का है कि अल्लाह पाक उनके जरिए से गुनाहो को मिटा देता है।" [सहीह बुखारी-528]
7. नमाज आखिरत का इनाम है
हमारे आमाल चाहे वह अच्छे हो या बुरे उनका सवाल जवाब हमसे आखिरत में किया जाएगा। अच्छे आमाल की जज़ा और बुरे आमाल की सज़ा दी जाएगी। हमारी नमाज का असल अजर हमें आखिरत में मिलेगा जब अल्लाह तआला खासतौर पर हमारे ऊपर अपनी रहमत नाजिल फरमाएगा, इसलिए हमारी मौत के बाद नमाज़ का सिलसिला खत्म हो जाएगा पर इसका हकीकी अज्र आख़िरत में मिलेगा। अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है,
"हाँ, जो लोग ईमान ले आएँ और अच्छे काम करें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें, उनका बदला बेशक उनके रब के पास है और उनके लिये किसी डर और रंज का मौक़ा नहीं।" [कुरान 2:277]
8. नमाज अल्लाह से जुड़े रहने का ज़रिया है
इस दुनिया की चकाचौंध में इंसान गफलत में डूबता चला जा रहा है। उसे इस बात से कोई फिक्र नहीं है कि वह किसी का बंदा है वह आजाद नहीं बल्कि अल्लाह का गुलाम है। इस फिक्र को ताज़ा रखने और अल्लाह से खुद का ताल्लुक जोड़े रखने का सबसे बड़ा ज़रिया नमाज है, जो हर रोज कम से कम पांच बार हमें दुनिया के हंगामे से हटाकर अल्लाह की तरफ ले जाता है। अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है,
"मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं है, इसलिये तू मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिये नमाज़ क़ायम कर।" [कुरान 20:14]
9. नमाज़ दिल का सुकून है
इंसान कितनी भी परेशानी या मुसीबत में मुब्तिला हो उसे सुकून सिर्फ नमाज में हासिल होता है क्योंकि सजदे के दौरान इंसान अल्लाह तआला के सबसे ज्यादा करीब होता है। अल्लाह तआला फरमाता है,
"ख़बरदार रहो, अल्लाह की याद ही वो चीज़ है जिससे दिलों को इत्मीनान मिला करता है।" [कुरान 13:28]
10. नमाज शैतान से हिफाजत करती है
मोमिन का सबसे बड़ा दुश्मन शैतान है और इस कोशिश में लगा रहता है कि लोगों को सही रास्ते से भटका कर गुमराही में डाल दे। शैतान इंसान को हर मुमकिन तरीके से बताने की कोशिश करता रहता है और जब इंसान एक बार उसके बहकावे में आ जाता है तो मुसलसल वह बहकता रहता है और गुमराही की तारीखियों में डूब जाता है
इसलिए हमें शैतान से पनाह मांगते रहना चाहिए। हकीकत में नमाज ना पढ़ने वाले शैतान के शिकंजे में जकड़ जाते हैं और जो लोग नमाज पढ़ते हैं और पढ़ने की कोशिश करते हैं वो शैतान के फितनों का मुकाबला कर रहे होते हैं। जब लंबे वक्त तक यह मुकाबला चलता रहता है नतीजा यह निकलता है वो फिर दोबारा कभी भी शैतान के शिकंजे में नहीं फसतें। अल्लाह तआला का इरशाद है,
"शैतान तो ये चाहता है कि शराब और जुए के ज़रिए से तुम्हारे बीच दुश्मनी और बुग़्ज़ व हसद डाल दे और तुम्हें ख़ुदा की याद से और नमाज़ से रोक दे। फिर क्या तुम इन चीज़ों से बाज़ रहोगे?" [कुरान 5:91]
11. नमाज इंसान और शिर्क ओ कुफ्र के दरमियान का फर्क है
जब इंसान नमाज के करीब होता है तो वह शिर्क ओ कुफ्र से दूर होता है। नमाज गुनाहों से दूर करती है, नमाज में बार-बार हम जिन आयतों को पढ़ते हैं वह हमें सिर्फ अल्लाह की इबादत, बुराई से दूर रहने और भलाई का रास्ता दिखाती है। जाबिर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत है, रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,
"बेशक आदमी और शिर्क ओ कुफ्र के दरमियान (फासला मिटाने वाला अमल) नमाज का छोड़ना है।" [सहीह मुस्लिम-82]
नतीज़ा
जिन्हें अरबी जुबान का इल्म है या जो लोग कुरान को तर्जुमा के साथ पढ़ते हैं जा नमाज में पढ़ी जाने वाली आयतों को समझ कर पढ़ते हैं वह नमाज़ की अहमियत से वाकिफ है और अल्लाह तआला ने कुरान मजीद में इसपर खासतौर से ज़ोर दिया है को इसकी अहमियत बयान की है। मुसलमान होने की हैसियत से हमें यह जान लेना चाहिए कि नमाज फर्ज है जिसे हर हाल में अदा करना है।
आपकी दीनी बहन
मरियम फातिमा
नमाज़ का तरीक़ा नमाज़ का तर्जुमा मर्द और औरत की नमाज़ वज़ू का सही तरीक़ा
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