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मर्द और औरत कि नमाज़ मे कोई फ़र्क़ नहीं हैं
नबी अलैहिस्सलाम फ़रमाया
"तुम नमाज इस तरह पढ़ो जिस तरह पढ़ते हुए मुझे देखते हो" [बुखारी 631]
यह हुक्म आम हैं मर्द और औरत दोनों के लिए ऐसा नहीं हैं के मर्द कि अलग नमाज़ हैं और औरत कि अलग। उसके बाद भी हम देखते हैं हमारी मायें बहनो इस तरह नमाज़ पढ़ती हैं। अल्लाह कि पनाह उनकी नमाज़ मे ना सजदा सहीह होता हैं ना रुकू ना ही कोई और स्टेप्स।
आखिर ऐसा क्यों होता हैं कि इतनी वाज़ेह हदीस आने के बाद भी औरतें नबी अलैहिस्सलाम कि तरह नमाज़ क्यूं नहीं पढ़ती तो कुछ रिजल्ट्स सामने आते हैं-
- उन्होंने अपने बड़ो को रिश्तेदारों को ऐसे ही नमाज़ पढ़ते देखे।
- अपने मसलक के आलिमों को ही सुना।
- मसलो मसाईल कि किताबों मे पढ़ा हदीस नहीं पढ़ी।
- अपने आस पास कि मुल्लानिओ से सीखा।
- बुज़ुर्गो से सुना।
इन सब बातो का एक ही रिजल्ट निकलता हैं वो हैं ज़इफ हदीसे, क्यूंकि ज़इफ हदीसे ही उम्मत का बिगाड़ बनी हैं। क्यूंकि माँ बाप ने सुना आलिमों से आलिमों ने सुना बिज़ुर्गो से बुज़ुर्गो ने लिखा अपनी किताबों मे और किताबों मे ही ज़इफ हदीस मिला दी गयीं इन सब पहाड़ का चूहा यह ज़इफ हदीस हैं।
वैसे तो ज़इफ हदीस भी हदीस होती हैं लेकिन अगर उसको नबी अलैहिस्सलाम की तरफ मंसूब किया जाए तो वह गुनाह बन जाता है।
मिसाल :-
अगर मैं कहूं गुलाब के फूल में खुशबू आती है तो यह बात सच है कि गुलाब के फूल में खुशबू आती है। लेकिन अगर मैं यह कहूं कि नबी अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि गुलाब के फूल में खुशबू आती है तो इसके लिए मुझे हदीस लेनी होगी। अगर ऐसी कोई हदीस नहीं मिले तो उस हदीस को हम कहेंगे कि यह नबी अलैहिस्सलाम की तरफ मनसूब की गई है।
लेकिन यह बात सच है फूल में खुशबू ही आती है लेकिन उस बात को नबी की तरफ मंसूब करने के लिए हमें पुख्ता दलील चाहिए। अगर दलील ना हुई तो इसको हम मनगढ़त बात कहेंगे।
लेकिन अगर इस पर हदीस दलील हुई तो देखा जायेगा हदीस बयान करने वाले लोगो मे कोई झूठा, या मतरूक, या ज़इफ रावी हुआ। अगर ऐसा हुआ तो हदीस ज़इफ होंगी मानी नहीं जाएगी।
ठीक उसी तरह जो लोग ज़इफ हदीसे बयान करते हैं की औरत और मर्द की नमाज में फर्क है।
आज हम इसी को देखेंगे कि वाकई नहीं, वह हदीस सहीह हैं या नहीं और हदीस सहीह नहीं हुई तुम्हारी नमाज कैसे दुरुस्त होगी? क्योंकि क़यामत के दिन सबसे पहला सवाल नमाज का ही होगा।
मर्द और औरत कि नमाज़ मे फ़र्क़ क़ी दलील -
तो चलिए हम जानते हैं वह हदीसे कौन-कौन सी हैं :-
पहली हदीस :-
यजीद बिन हबीब रहमतुल्ला अलेह से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का गुज़र दो औरतों के पास से हुआ जो नमाज पढ़ रही थी।
नबी अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
"जब तुम सजदा करो तो जिस्म का कुछ हिस्सा जमीन से चिपका दिया करो क्योंकि औरत इस मसले में मर्द की तरह नहीं है"
मरासील ऐ अबू दाऊद :08 /सुनन क़ुबरा लिल बहिएक़ी अल कुबरा 3/7
जवाब
यह हदीस मुरसल हैं।
मुरसल क्या हैं?
कोई ताबई डायरेक्ट नबी अलैहिस्सलाम से रिवायत कर दे उस हदीस को मुरसल हदीस कहते हैं।
यानी ताबई कैसे नबी से सुन सकता हैं जबकि अगर सुन लेता तो वो सहाबी होता ना कि ताबई। ऐसी हदीस को मुरसल कहते हैं, यह ज़इफ हदीस कि क़िस्म होती हैं। इस हदीस मे एक रावी हैं यज़ीद बिन हबीब इन्होने नबी का ज़माना ही नहीं पाया तो कैसे नबी से सुन सकता हैं।
नबी अलैहिस्सलाम कि वफ़ात के 43 साल बाद यज़ीद बिन हबीब पैदा हुआ। (तहज़ीब उत तहज़ीब 11/279)
दूसरी बात इस हदीस कि सनद मे सालिम बिन गीलान यह मतरूक (REJECTED) हैं
अल्लामा तुरक़मानी अल हंफी कहते हैं - इसकी सनद मे इंक़ता हैं।
(मीज़ान उल ऐतिदाल इमाम ज़हबी /दरकुतनी अल ज़ोहर अल नक़ी फी रद्द अल बहिएक़ी 2/315)
लिहाज़ा यह हदीस ज़इफ हुई
️अल्लाह तआला क़ुरआन मे फरमाता है :-
لَقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِىۡ رَسُوۡلِ اللّٰهِ اُسۡوَةٌ حَسَنَةٌ
बेशक अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तुम्हारे लिए बेहतरीन नमूना बनाकर भेजा
सुरह अहज़ाब 21
▪️अल्लाह ने इस आयत मे لَكُمۡ (तुम्हारे लिए For You )कहकर इस्तेमाल किया ये लफ्ज़ जमा (plural ) का सीग़ा है इसमें औरत और मर्द दोनों शामिल है।
अल्लाह ने वाज़ेह फ़रमाया हमने तुम्हारे लिए नबी को Role Model बनाकर भेजा है चाहे औरत हो या मर्द ये आयत तमाम के लिए है....
दीन ऐ इस्लाम मे शरीयत ऐ मुहम्मदिया मे जो काम नबी ने किया वही तमाम को नबी क़ी तरह करना है उसमे ये नहीं देखा जायेगा क़ी औरत के लिए अलग है और मर्द के लिए अलग लेकिन नबी खुद औरत मर्द के अमल मे फ़र्क़ कर दें वो अलग बात है
◾️जैसे :- औरत के लिए सोना (Gold) जाएज़ मर्द के लिए हराम है।
इन वाज़ेह बाते आने के बाद भी आजकल औरतों के ज़हनो मे वो अंधा धुन बुज़ुर्गो क़ी इतात क़ी छवी छोड़ी गयी क़ी औरतें नमाज़ ही नबी क़ी तरह नहीं पढ़ती और समझती है मर्द और औरत क़ी नमाज़ मे फ़र्क़ है क्यूंकि उलेमाओ से सुना है!
बात को मुख़्तसर करते हुए चलते हैं उस हदीस क़ी तरफ जिससे औरत मर्द क़ी नमाज़ मे फ़र्क़ किया जाता है
दूसरी हदीस :-
हज़रत अली से रिवायत है कहते हैं
عَنْ عَلِيٍّ ، قَالَ : " إِذَا سَجَدَتِ الْمَرْأَةُ فَلْتَحْتَفِزْ وَلْتَضُمَّ فَخِذَيْهَا
जब औरत सजदा करें तो सिमट जाए और अपनी रानो को मिलाये
[मुसन्नफ इब्ने अबी शेयबा 2701]
[सुनन क़ुबरा लिल बहिएक़ी 2/222]
⚫️खुलासा हदीस ज़इफ है
क्यूंकि इसमें एक रावी है हारिस अल ओर जमहूर (majority ) मुहद्दासीन के नज़दीक सख्त मजरूह (जिस पर जरह हो ) है और जिस रावी (अबू इसहाक़ अस सबैई) से रिवायत कर रहा है उसने ही खुद इसे कज़्ज़ाब (झूठा ) कहा है
◾️किन मुहद्दासीन ने इस रावी पर जरह क़ी है आइये मुलाहिज़ा फ़रमाए :
(1) इमाम इब्ने हजर असक़लानी ने कहा
كذبه الشعبي في رأيه، ورمي بالرفض، وفي حديثه ضعف
वो (हारिस अल ओर ) सबैई से रिवायत मे झूठा है और यक़ीनन हदीस मे ज़ोफ है
(2) इमाम दरक़ुतनी
(3) इमाम ज़हबी
(4) इमाम अली बिन मदीनी
(5) इमाम अबू हातिम अर राज़ी
इन तमाम ने इस रावी को ज़इफ कहा है
मज़ीद
▪️ज़ैली हंफी ने कहा :-
इससे हुज्जत नहीं पकड़ी जाती
[नसब उर राये 2/327]
◾️इस सनद के दूसरे रावी अबू इसहाक़ अस सबैई मुदल्लिस हैं
[तबक़ात उल मुदलिसीन इब्ने हजर ने तीसरे तबके मे रखा 3/91]
लिहाज़ा हदीस ज़इफ हुई
आइये चलते हैं एक और ज़इफ हदीस क़ी तरफ
तीसरी हदीस :-
عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ ، أَنَّهُ سُئِلَ عَنْ صَلَاةِ الْمَرْأَةِ ، فَقَالَ : " تَجْتَمِعُ وَتَحْتَفِزُ " .[مصنف ابن أبي شيبة » كتاب الصلاة » أَبْوَابُ صِفَةِ الصَّلاةِ » الْمَرْأَةُ كَيْفَ تَكُونُ فِي سُجُودِهَا ؟ رقم الحديث: 2702]
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अन्हु से किसी औरत की नमाज के बारे में सवाल हुआ तो आपने फरमाया वह इकट्ठे होकर खूब सिमट कर नमाज़ पढ़े
[मुसन्नफ इब्ने अबी शेयबा जिल्द 1 सफा 270 हदीस 2702]
जवाब :-
इस रिवायत मे मोके व महल बयान नहीं हुआ के औरत कब मुजतिमा (जमा )हो और सुकढ़े???
क्या क़ियाम मे जमा /सुकड़ा जा सकता है जैसा क़ी एहनाफ़ क़ी औरतें सजदे में होती हैं?
नीज़ रिवायत भी मुंकता (ज़इफ ) है
مصنف ابن ابي شيبة : 2702
حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرٍ ، قَالَ : نا حَدَّثَنَا أَبُو بَكْرٍ ، قَالَ : نا أَبُو عَبْدِ الرَّحْمَنِ الْمُقْرِي ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ أَبِي أَيُّوبَ ، عَنْ يَزِيدَ بْنِ أَبِي حَبِيبٍ ، عَنْ بُكَيْرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ الْأَشَجِّ ، عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ ، أَنَّهُ سُئِلَ عَنْ صَلَاةِ الْمَرْأَةِ ، فَقَالَ : " تَجْتَمِعُ وَتَحْتَفِزُ
ये रिवायत बक्र बिन अब्दुल्लाह बिन अल सज्जी ने सय्यदना इब्ने अब्बास रज़ि अन्हुमा से बयान क़ी है
हालांकि बक्र क़ी सय्यदना इब्ने अब्बास से मुलाक़ात साबित नहीं है
इमाम हाकिम कहते हैं
لم یثبت سماعه من عبدالله بن الحارث بن جزء و إنما روایته عن التابعین
अब्दुल्लाह बिन हारिस बिन जुज़अ (रज़ि अन्हु क़ी वफ़ात 88 हिजरी ) से इसका समा (सुनना, मुलाक़ात, मिलना ) साबित नहीं है इसकी रिवायत तो सिर्फ ताबयीन से है
[ तहजीब उत तहजीब जिल्द 1 सफा 493]
याद रहे इब्ने अब्बास रजि अल्लाह अन्हू 68 हिजरी मे ताइफ मे फोत हुए थे जब 88 हिजरी मैं फोत होने वाले सहाबी से मुलाक़ात नहीं तो 68 हिजरी मे फोत होने वाले से किस तरह साबित हो सकते हैं??
नतीजा :-
सनद मुंकता (ज़इफ व मरदूद )है
सहीह हदीस और क़ुरआन का हुक़्म
इस ज़इफ ग़ैर मुसतनद अकवाल के बरखिलाफ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सहीह फरमान देखिये
नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया क़ी
सजदो मे ऐतिदाल को मलहूज़ रखो और अपने बाज़ू कुत्तो क़ी तरह ना फैलाओ
[ बुखारी 822 मुस्लिम 493]
अल्लाह मेरी माओ बहनो को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके पर चलने क़ी और हम सबको नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के तरीके पे चलने क़ी तोफ़ीक़ अता फ़रमाए।
आमीन।
जो लोग मर्द और औरत की नमाज़ में फर्क करने की दलीलें देते हैं
उनके पास कयास और मंतिक के अलावा कुछ नहीं है....
आइए उनकी एक लॉजिक का जवाब देने की कोशिश करते हैं
▪️मालिक बिन हुवैरिस रज़ि अन्हु ने बयान किया कहा हम नबी अलैहिस्सलाम की खिदमत में हाजिर हुए हम सब हमउम्र और नौजवान ही थे
आप की खिदमत है मुबारक में 20 दिन और रात की क़ियाम रहा नबी अलैहिस्सलाम बड़े ही रहम दिल थे जब आप ने देखा कि हमें अपने वतन वापिस जाने का शौक है तो आपने पूछा तुम लोग अपने घर किसे छोड़ कर आए हो?
हमने बताया फिर आप ने फरमाया कि अच्छा अब तुम अपने घर जाओ
उन घर वालों के साथ रहो और उन्हें भी दीन सिखाओ और दीन की बातों पर अमल करने का हुक्म दो मालिक ने बहुत सी चीजों का जिक्र किया अबू अयूब ने कहा अबू क़िलाबा ने यूं कहा वह बातें मुझे याद हैं
या यूं कहा मुझको याद नहीं
और नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया उस तरह नमाज पढ़ो जिस तरह पढ़ते तुमने मुझे देखा और जब नमाज का वक्त आ जाए तो कोई एक अजान दे और जो तुम में सबसे बड़ा हो वह नमाज पढ़ाये।
[सहीह बुखारी 631]
इस हदीस पे जाहिलाना इतिराज़
इतिराज़ :-
अगर तुम कहते हो इस हदीस मे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा है क़ी तुम नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते देखा तो पूरी हदीस क्यूंकि नहीं मानते इसी हदीस मे आगे अल्फाज़ है क़ी तुम मे एक अज़ान भी दे तो जब हुक्म मर्द और औरत दोनों को है तो तुम्हारी औरतें अज़ान क्यूं नहीं देती अमल करो तो पूरी हदीस पर अमल करो?
जवाब :-
इस जाहिलाना सुवाल का कोई सर और पैर नहीं है
(1)▪️क्या इस हदीस मे नबी ने ये कहा है क़ी तुम अज़ान उस तरह दो जिस तरह मर्द देतें हैं?
जब इसमें वाज़ेह है नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते देखा तो क्या अज़ान नमाज़ का हिस्सा है??
(2)▪️ये हदीस नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बयान कर रहे हैं यह हदीस उस दौर की औरतों के सामने भी आई होंगी लेकिन इस हदीस के आने के बावजूद भी क्या किसी औरत साहबिया ने अजान दी थी?
जवाब आएगा नहीं तो जब नहीं दी उन्होंने तो आज की औरतों की क्या ज़ुर्रत हो सकती है क्योंकि सबसे बेहतरीन औरतों में साहबिया क्या उन्हें इस हदीस का इल्म नहीं था कि हमको अजान देनी है
फायदा
°°°°°°°°°
इस हदीस मे नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने जब सहाबा से पूछा तुम क्या छोड़ कर आए हो ?
नबी ने फरमाया जाओ अपने घर वालों को दीन सिखाओ
अब ज़रा सोचे घर वालों मे मर्द भी होती है औरतें भी होते है और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इनमें फर्क नहीं किया वरना नबी यह बोलते कि तुम अपने घर वालों को दीन सिखाओ मर्द को अलग और औरत को अलग।
यह इस बात की दलील है कि औरत और मर्द की नमाज में कोई फर्क नहीं।
इलज़ामी जवाब
जिन लोगों के नजदीक नाफ के नीचे हाथ बांधना जायज है
तो तो जरा हमें यह बताएं जब नबी ने साहबाओ को कहा कि जाओ घर वालों को दीन सिखाओ
तो साहबाओ ने दीन सिखाया होगा
अब सवाल ये है
जब दीन सिखाया होगा तो नाफ के नीचे हाथ बांधना सिखाया होगा तो इनकी घर क़ी औरतें सीने पे हाथ क्यूं बाँधती हैं??
अल्लाह दीन समझने क़ी तौफ़ीक़ दे।
बेदलील बहाने
जब लोगो के पास दलाईल ख़त्म हो जाते हैं तो वो बहाने बनाते हैं और अपने मसलक को साबित करने के लिए दलील देने की बजाय उल्टे सवाल करते हैं
▪️जब मर्द और औरत नमाज़ मे फ़र्क़ करने क़ी कोई दलील नहीं मिलती तो कहते हैं ये बताओ अगर मर्द औरत मे फ़र्क़ नहीं तो फिर हज मे औरत रमल करेंगी या नहीं तलबीया कहेंगी या नहीं क़ुरआन हदीस से दलील दो?
यानी ये वही बात हो गयीं एक बाइक सवार को ट्रैफिक पुलिस वाला पकड़ लेता है पुलिस वाला कहता है बाइक के कागज़ दिखाओ?
तो बाइक वाला सोचता है क़ी कागज़ तो है नहीं क्या करू?
तो वो तरकीब बनाता है और पुलिस वाले से कहता है अच्छा तुम कागज़ दिखाओ ये मेरी बाइक नहीं है
यानी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
इनके सवालों के जवाब हम तीन तरह से देंगे
- इजमा किसे कहते हैं?
- औरतों को रमल करना कैसा?
- औरतो का तलबीया कहना कैसा?
इजमा
इमाम ज़हबी रहिमल्लाह कहते हैं
هو ما أجمعت عليه علماء الأمة قديما وحديثا
इजमा से मुराद वो मसला है जिस पर उम्मत के पहले और बाद के उलेमा जमा हो जायें
{सियार आलामिन नेबुला 7/116}
इजमा यानी किसी भी मसले को लेकर पूरी उम्मत जमा हो जाती है इजमा कहलाता है..
जैसे क़ी दो सजदे के बीच मे हमें हाथ रानो पर रखने है इस पर उम्मत का इजमा है
आसान लफ्ज़ो मे जिस अमल क़ा ज़िक्र क़ुरआन और हदीस मे ना मिलता हो लेकिन पूरी उम्मत उस पर जमा हो जाए वो इजमा क़ी दलील है
और ऐसा नहीं क़ी ये इजमा कोई दीन मे नया नाम है बल्कि इजमा क़ी दलील नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलती है मुलाहिज़ा फ़रमाए
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया :-
إِنَّ أُمَّتِي لاتَجْتَمِعُ عَلَى ضَلالَةٍ،
उम्मत कभी गुमराही पर जमा नहीं होंगी
{अल मुस्तादरक लिल हाकिम हदीस 399}
यानी उम्मत गुमराही वाले काम पे कभी जमा नहीं होंगी
इस वाज़ेह हदीस से पता चला क़ी इजमा क़ी दलील हदीस से साबित है अगर किसी मसले पे इजमा होता है तो वो दरअसल नबी से ही साबित है।
रमल
रमल के लुगवी मानी क़दम नज़दीक नज़दीक रखना -
और मोंढो को हिलाना ये हज क़ी सुन्नत है ये सिर्फ मर्दो के लिए है औरतों के लिए नहीं
एक तवाफ मे 7 चक्कर होते हैं पहले तवाफ मे तीन चक्करो मे सीना तान कर अकड़ते हुए बहादुरी दिखाते हुए चलना (रमल कहलाता है ) बक़ीया रफ़्तार चार चक्करो मे मामूली रफ़्तार पर चलना सुन्नत है।
इसी अमल को जो मर्द औरत क़ी नमाज़ मे फ़र्क़ करते हैं कहते है हदीस मे दिखाओ क़ी औरत रमल नहीं करेंगी
आइये हदीस से देखते हैं
अम्मा आयशा रज़ि अन्हा से सुवाल हुआ क्या औरतें दौरान ऐ तवाफ रमल करेंगी?
आयशा रज़ि अन्हा ने फ़रमाया क्या तुम्हारे लिए हमारा तरीक़ा उसवा ऐ हसना नहीं? तुम पर तवाफ करते वक़्त और सफा मरवा क़ी साअ करते वक़्त रमल नहीं है
{मुसन्नफ इब्ने अबी शेयबा 13109}
इस हदीस पे लोग इतिराज़ करते हैं क़ी ये तो साहबिया का क़ौल है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दिखाओ?
तो अर्ज़ है क़ी हमारे नज़दीक सहाबा और साहबिया का क़ौल भी हुज्जत है अगर नबी से ना टकराता हो क्यूंकि तमाम सहाबा आदिल हैं इस पे इजमा है
अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया
और इनकी तरह (साहबाओ ) ईमान लाए तो तुम हिदायत पर हो
सुरह बक़रा आयत 137
यहाँ अल्लाह ने साहबाओ को मयार ऐ हिदायत बनाया है तो हमारे नज़दीक सहाबा को क़ौल भी हुज्जत है क्यूंकि अम्मा आयशा फ़क़ीहा (आलिमा )थी और अहले बैत मे से भी थी
सहाबा से बेहतर दीन कोई समझने वाला कोई नहीं।
दूसरी बात ये है
इमाम क़ुदामा कहते हैं
इब्ने मुंज़िर रहिमल्लाह का कहना है के अहले इल्म का इजमा है क़ी बैतुल्लाह का तवाफ करते वक़्त औरतें रमल नहीं करेंगी
[अल मुग़नी इब्ने क़ुदामा 3/197]
और जैसा क़ी हमने ऊपर साबित किया इजमा होना हदीस से साबित है लिहाज़ा ये मसला भी हदीस से ही अखज़ हुआ है
तलबीया
मर्द बुलंद आवाज़ से अल्लाहुम्मा लब्बैक कहते हैं औरत बुलंद आवाज़ से तलबीया नहीं कहेगी
हदीस मुलाहिज़ा फ़रमाए :-
हज़रत इब्ने उमर रज़ि अन्हु फरमाते हैं औरतें सफा मरवा पे ना चढ़े और ना बा बुलंद आवाज़ तलबीया कहें।
[सुनन क़ुबरा बहिएक़ी हदीस 9039]
लिहाज़ा हमने दोनों मसले हदीसो से इजमा से साबित कर दिए
लेकिन औरत मर्द क़ी नमाज़ मे कोई फ़र्क़ कयामत तक कोई नहीं कर सकता।
वैसे तो बहुत कुछ लिखा जा सकता था लेकिन खुलासा यही सामने आया क़ी तमाम हदीस ज़इफ है मर्द औरत क़ी नमाज़ के फ़र्क़ मे...
अल्लाह तआला फरमाता है-
ऐ ईमान वालों इतात करो अल्लाह क़ी और उसके रसूल क़ी और साहिब ऐ अम्र क़ी
[सुरह निसा 59]
आयत मे वाज़ेह है क़ी हमें अल्लाह और उसके रसूल क़ी इतात का हुक्म दिया गया है किसी बुज़ुर्ग या बाबो क़ी इतात का नहीं....
औरत हो या मर्द सभी को नबी अलैहिस्सलाम के तरीके पे ज़िन्दगी गुज़ारनी है अगर ऐसा ना किया तो आख़िरत मे पकड़ होगी
नमाज़ सिर्फ और सिर्फ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके पर पढ़नी है चाहे औरत हो या मर्द!
निष्कर्ष
कुछ लोग हैं जो कहते हैं क़ी नमाज़ के दोनों तरीके जाएज़ है जैसे भी पढ़ो नमाज़ पढ़ो
देखें ये बात कैसे सहीह हो सकती है क़ी नमाज़ का तरीका नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ना हो और नमाज़ दोनों तरीके से जाएज़ हो?
हालांकि हम जानते हैं क़ी दूसरा तरीक़ा साबित ही नहीं तमाम हदीस ज़इफ हैं
अगर अब भी कोई कहे दोनों तरीके सहीह है तो उनके लिए एक हदीस है
मुलाहिज़ा फ़रमाए :-
हुज़ेफा इब्ने यमान रज़ि अन्हु ने एक शख्स को देखा के ना रुकू पूरी तरह करता ना सजदा,
इस लिए आप ने इससे कहा के तुमने नमाज़ ही नहीं पढ़ी और अगर तुम मर गए तो तुम्हारी मौत उस सुन्नत पर नहीं होगी जिस सुन्नत पर अल्लाह तआला ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैदा किया था।
[सहीह बुखारी 791]
इस हदीस से वाज़ेह हुआ क़ी वो शख्स तरीक़ा ऐ रसूल पे नमाज़ नहीं पढ़ रहे थे जल्दबाज़ी कर रहे थे ना रुकू सहीह ना सजदा।
अब आप गौर करें क़ी अगर हमारी औरतें नबी अलैहिस्सलाम के तरीके पे नमाज़ न पढेंगी तो उनकी मौत कैसे नबी के दीन पर होंगी।
अल्लाह हमें नबी अलैहिस्सलाम के तरीके पे चलने क़ी तौफ़ीक़ अता फरमा
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
नमाज़ का तरीक़ा नमाज़ का तर्जुमा मर्द और औरत की नमाज़ वज़ू का सही तरीक़ा
2 टिप्पणियाँ
भाई, हूजूर स.अ.व.ने ये फरमाया था कि "तुम में से जो बडा हो, वो नमाज़ पढाये!" ये हदीष की कौन सी किताब में है और ईस के रावी कौन है?
जवाब देंहटाएंحَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ الْمُثَنَّى ، قَالَ : حَدَّثَنَا عَبْدُ الْوَهَّابِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا أَيُّوبُ ، عَنْ أَبِي قِلَابَةَ ، قَالَ : حَدَّثَنَا مَالِكٌ ، أَتَيْنَا إِلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَنَحْنُ شَبَبَةٌ مُتَقَارِبُونَ ، فَأَقَمْنَا عِنْدَهُ عِشْرِينَ يَوْمًا وَلَيْلَةً ، وَكَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ رَحِيمًا رَفِيقًا ، فَلَمَّا ظَنَّ أَنَّا قَدِ اشْتَهَيْنَا أَهْلَنَا أَوْ قَدِ اشْتَقْنَا سَأَلَنَا عَمَّنْ تَرَكْنَا بَعْدَنَا ، فَأَخْبَرْنَاهُ ، قَالَ : ارْجِعُوا إِلَى أَهْلِيكُمْ ، فَأَقِيمُوا فِيهِمْ وَعَلِّمُوهُمْ وَمُرُوهُمْ ، وَذَكَرَ أَشْيَاءَ أَحْفَظُهَا أَوْ لَا أَحْفَظُهَا وَصَلُّوا كَمَا رَأَيْتُمُونِي أُصَلِّي ، فَإِذَا حَضَرَتِ الصَّلَاةُ فَلْيُؤَذِّنْ لَكُمْ أَحَدُكُمْ وَلْيَؤُمَّكُمْ أَكْبَرُكُمْ .
जवाब देंहटाएंहम नबी करीम (सल्ल०) की ख़िदमत पाक मैं हाज़िर हुए। हम सब हम-उम्र और नौजवान ही थे। आप (सल्ल०) की ख़िदमत मुबारक मैं हमारा बीस दिन और रात क़ियाम रहा। आप (सल्ल०) बड़े ही रहम दिल और मिलनसार थे। जब आप (सल्ल०) ने देखा कि हमें अपने वतन वापस जाने का शौक़ है तो आप (सल्ल०) ने पूछा कि तुम लोग अपने घर किसे छोड़ कर आए हो। हमने बताया। फिर आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि अच्छा अब तुम अपने घर जाओ और उन घर वालों के साथ रहो और उन्हें भी दीन सिखाओ और दीन की बातों पर अमल करने का हुक्म करो। मालिक ने बहुत सी चीज़ों का ज़िक्र किया जिनके मुताल्लिक़ अबू-अय्यूब ने कहा कि अबू-क़ुलाबा ने इस तरह कहा वो बातें मुझको याद हैं या इस तरह कहा मुझको याद नहीं। और नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि इसी तरह नमाज़ पढ़ना जैसे तुमने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है और जब नमाज़ का वक़्त आ जाए तो कोई एक अज़ान दे और जो *तुममें सबसे बड़ा हो वो नमाज़ पढ़ाए।*
किताब : अज़ान के मसायल के बयान में#631
Status: صحیح
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