Sahih Namaz Ahadees Se | Step by step salah guide

 
Sahih Namaz Ahadees Se | Step by step salah guide


सहीह अहादीस के मुताबिक़ मर्द और औरत कि मुकम्मल नमाज़

नमाज़ का तरीक़ा

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया 

“ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते हुए देखते हो."

बुख़ारी ह० 631


क़याम का सुन्नत तरीक़ा

पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना

इब्न माजा ह० 803


अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना.

अबू दाऊद ह० 662

namaz me takbeer rafal yadain ahle hadees



फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना

बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861


या कानों तक उठाना

 मुस्लिम ह० 865


फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना 

मुस्नद अहमद ह० 22313


दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर

बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377


ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है 

अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568


दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर

अबू दाऊद ह० 727, नसाई ह० 890


साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है

अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 769


Sahi namaz padhne ka tareeka quran aur sunnat


फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना

 मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900

(इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.)


 फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम

क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589


और बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना 

नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499


फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना 

बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892


जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.

बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874


जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना 

अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880


फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना

मुस्लिम ह० 894


पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना

बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859


और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना.

मुस्लिम ह० 1013, 1014


रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा

salaf salah


फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना)

बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865


ruku karne ka sahi tareeka quran aur sunnat se


और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना.

बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731


सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो.

 अबू दाऊद ह० 730


और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना 

अबू दाऊद ह० 734


 रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना.

 मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869


इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए

 मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571


क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा

रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना``` 

बुख़ारी ह० 735, 789

rafal yadain ahle e hadees


रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना.

बुख़ारी ह० 799


सज्दा का सुन्नत तरीक़ा

फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना.

बुख़ारी ह० 812


सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना 

अबू दाऊद ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627


नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं.

 देखिये अबू दाऊद ह० 838

proper namaz aur sajda



सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना.

अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105


सर को दोनों हाथों के बीच रखना

अबू दाऊद ह० 726


और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना.

नसाई ह० 890


हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना.

सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227


सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना.

बुख़ारी ह० 828


सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना.

बुख़ारी ह० 822


सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना

सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116


और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना.

नसाई ह० 1102


नोट: रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.

सुनन दार क़ुत्नी 1/348


सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’

[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]


इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना

मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571


जलसा का सुन्नत तरीक़ा

फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना

बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730.


sahi namaz kaise padhein step by step


दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरल ’

अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897


इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’

अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850


दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना.

 बुख़ारी ह० 757

इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं


पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना.

 बुख़ारी ह० 823, 824


तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा

तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना.

मुस्लिम ह० 1308, 1310


salaf ki namaz tashhud

फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना.

मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991


और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना.

नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912


पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है.

नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204


लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है.

मुस्नद अहमद ह० 4382


 2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना.

बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 730 

```(इसको तवर्रुक कहते हैं )```


तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना.

बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908


दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए.

बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897

namaz ko khatam kaise karna


इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना.

बुख़ारी ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295


नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें


नमाज़ का तर्जुमा         नमाज़ की अहमियत    मर्द और औरत की नमाज़    वज़ू का सही तरीक़ा

249 सही हदीस ⁠⁠⁠रफ़अयदैन करने की।

⁠⁠⁠रफ़अ़ यदैन यानी दोनों हाथों को कन्धों या कानों तक उठाना

सहीह अहादीस से नमाज़ में रफ़अ़ यदैन 4 मक़ामात पर साबित है:

  1.  तकबीर-ए-तहरीमा के वक़्त
  2. रूकूअ़ में जाते वक़्त 
  3. रूकूअ़ से सिर उठाने के बाद
  4. तीसरी रकअ़त के लिए खड़े होने पर 

           नाफ़ेअ़ रिवायत करते हैं कि अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) तक्बीरे तहरीमा के वक़्त रफ़अ़ यदैन करते और जब रूकूअ़ करते तब और जब ‘समि अ़ल्लाहु लिमन हमिदह’ कहते तब और जब दूसरी रकअ़त से (तीसरी रक्अत के लिए) खड़े होते तब रफ़अ़ यदैन करते, और अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) फ़रमाते कि नबी ﷺ ऐसा ही करते थे. (सहीह बुख़ारी ह0 739)


सहाबा (रज़ि 0) से इसका सुबूत

वैसे तो तक़रीबन 50 सहाबा (रज़ि0) से रफ़अ़ यदैन का सुबूत मिलता है लेकिन सिर्फ़ कुछ मशहूर सहाबा का ही ज़िक्र किया जा रहा है. इस बारे में ख़ुद इमाम शाफ़ई फ़रमाते हैं कि " रफ़अ़ यदैन की रिवायत सहाबा की इतनी बड़ी तादाद ने बयान की है कि शायद इससे ज़्यादा तादाद ने कोई दूसरी हदीस बयान नहीं की. "(नैलुल औतार 2/3/9)

  • अबू बक्र (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/73
  • उमर (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/23, नस्बुर राया 1/416
  • अली (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 864, अबू दाऊद ह0 739, मुस्नद अहमद 3/165, सुनन बैहक़ी 2/74
  • अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) : बुख़ारी ह0 739, मुस्लिम ह0 390, इब्न माजा ह0 858, तिरमिज़ी 255, इब्न हिब्बान 3/168
  • अबू हुरैरह (रज़ि0) : मुस्नद अहमद 1/93, इब्न ख़ुज़ैमा ह0 693, जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 19,22 
  • अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि0) : मुसन्नफ़ अब्दुर रज़्ज़ाक़ 2/69, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा 1/234,जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 21
  • अनस (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 866, सुनन दार क़ुतनी 1/290, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा 1/235
  • अबू मूसा अशअरी (रज़ि 0) : सुनन दार क़ुतनी 1/292
  • जाबिर (रज़ि0) : इब्न माजा ह0 868, मुस्नद सिराज ह0 92
  • उम्मे दरदा (रज़ि0) : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 25
  • मालिक बिन हुवैरिस (रज़ि0) : मुस्लिम ह0 864,865, बुख़ारी ह0 737
  • वाइल बिन हुज्र (रज़ि0) : मुस्लिम ह0 896, इब्न माजा ह0 867, मुस्नद हमीदी 2/342 
  • अबू हुमैद सअ़दी (रज़ि0) : अबू दाऊद ह0 730
  • अब्दुल्लाह इब्न ज़ुबैर (रज़ि0) : सुनन बैहक़ी 2/74
  • अबू सईद ख़ुदरी (रज़ि0) : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 18,61
  • अब्दुल्लाह इब्न अम्र इब्न आस (रज़ि 0) : सुनन बैहक़ी 2/74
  • अब्दुल्लाह इब्न जाबिर (रज़ि 0) : सुनन बैहक़ी 2/75
  • सहल बिन सअ़द (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, इब्न हिब्बान ह0 1868
  • अबू क़तादा (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, अबू दाऊद ह0 730
  • मुहम्मद बिन मस्लमह (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, इब्न हिब्बान ह0 49
  • अबू उसैद (रज़ि 0) : तिरमिज़ी ह0 256, सुनन बैहक़ी 2/101
  • सलमान फ़ारसी (रज़ि 0) : जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम सुबकी पेज 12


सहाबा (रज़ि 0) का इज्मा

  • जब उमर (रज़ि0) ने मस्जिद नबवी में आम सहाबा के सामने रफ़अ़ यदैन से नमाज़ पढ़ाई तो सारे सहाबा ने कहा कि बेशक रसूलुल्लाह ﷺ उसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे जिस तरह आपने पढ़ाई - सुनन बैहक़ी 2/23, नस्बुर राया 1/416
  • इसी तरह अबू हुमैद सअ़दी (रज़ि0) ने जब 10 सहाबा की मौजूदगी में रफ़अ़ यदैन के साथ नमाज़ पढ़ाई तो सारे सहाबा ने कहा कि बेशक रसूलुल्लाह ﷺ इसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे - (अबू दाऊद ह0 730)

इन दोनों वाक़यात में किसी भी सहाबी ने यह नहीं कहा कि रफ़अ़ यदैन मन्सूख़ हो चुका है या रसूलुल्ल्लाह ﷺ तकबीर-ए-तहरीमा के अलावा कभी रफ़अ़ यदैन नहीं करते थे, बल्कि सबने यही कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ इसी तरह हमें नमाज़ पढ़ाते थे, जो इस बात की खुली दलील है कि रफ़अ़ यदैन पर सारे सहाबा का इत्तिफ़ाक़ था और इस तरह रफ़अ़ यदैन पर सहाबा का इज्मा साबित होता है.


अइम्मा-ए-किराम और उलमा हज़रात की गवाही

  • इमाम शाफ़ई (रह0) - " जो शख़्स नमाज़ के शुरू, रूकूअ़ से पहले और रूकूअ़ के बाद रफ़अ़ यदैन करने वाली हदीस सुन ले तो उसके लिए हलाल नहीं कि वह इस पर अमल न करे और इस सुन्नत को छोड़ दे." (तबक़ाते शाफ़ई अल कुबरा 1/242)
  • इमाम अहमद (रह0) - " जो लोग नमाज़ में रफ़अ़ यदैन नहीं करते हैं उनकी नमाज़ नाक़िस है." (अल मन्हजुल अहमद 1/159)
  • इमाम बुख़ारी (रह0) - “अहले इल्म में से किसी से भी नबी ﷺ से रफ़अ़ यदैन छोड़ने की कोई दलील नहीं है. इसी तरह किसी सहाबी से भी रफ़अ़ यदैन न करना साबित नहीं है.” (जुज़ रफ़अ़ यदैन पेज 1)
  • इमाम बैहक़ी (रह0) - “रफ़अ़ यदैन चारों खुलफ़ा-ए-राशिदीन, तमाम दूसरे सहबा और ताबिईन से साबित है.” (सुनन बैहक़ी 2/81)
  • इमाम औज़ाई (रह0) से पूछा गया कि उस शख़्स के बारे में क्या कहना है जो नमाज़ में रफ़अ़ यदैन की तादाद कम कर दे, तो उन्होंने कहा “उसकी नमाज़ नाक़िस है.” (अत-तबरी बा हवाला तम्हीद 9/226)
  • इमाम हाकिम (रह0) - “हमें ऐसी किसी सुन्नत का पता नहीं जिसकी नबी ﷺ से रिवायत पर चारों -खुलफ़ा-ए-राशिदीन, अशरा-ए-मुबश्शरा और दीगर बड़े सहाबा मुत्तफ़िक़ हों अगरचे ख़ुद दूर दराज़ मुमालिक में फैले थे सिवाय इस (रफ़अ़ यदैन वाली) सुन्नत के.” (फ़तहुल बारी 2/220)
  • इमाम इब्न क़य्यिम (रह0) - “जो शख़्स रूकूअ़ को जाते हुए और रूकूअ़ से उठते हुए रफ़अ़ यदैन न करे वो सुन्नते रसूल को छोड़ने वाला है.” (इअ़लामुल मुवक़्क़ेईन 1/325)
  • अल्लामा इब्न जौज़ी (रह0) - “रफ़अ़ यदैन के मंसूख़ होने से मुताल्लिक़ जितनी भी रिवायात पेश की जाती हैं वो या तो ज़ईफ़ हैं या मौज़ूअ़ (गढ़ी हुई) हैं” (तज़किरतुल मौज़ूआत 2/98)
  • अल्लामा सिंधी हनफ़ी (रह0) - “जो लोग यह कहते हैं कि रफ़अ़ यदैन मंसूख़ हो चुका है वो ग़लत हैं.” (हाशिया सुनन नसाई 1/140)
  • शाह वली उल्लाह देहलवी (रह0) - " रफ़अ़ यदैन करने वाला शख़्स मेरे नज़दीक न करने वाले से अफ़ज़ल है, क्योंकि रफ़अ़ यदैन की अहादीस ज़्यादा हैं और सहीह हैं." (हुज्जतुलाहिल बालिग़ह 2/10)
  • अनवर शाह कश्मीरी (रह0) - " रफ़अ़ यदैन की अहादीस सनद और अमल दोनों लिहाज़ से मुतवातिर हैं (यानी इतने ज़्यादा लोगों ने बयान की है कि जिनका झूठ पर जमा होना नामुमकिन है). इसमें कोई शक नहीं किया जा सकता . इसमें एक हर्फ़ भी मन्सूख़ नहीं हुआ है." (नैलुल फ़र्क़दैन पेज 22)
  • अब्दुल हई फ़रंगी महली (रह0) -"नबी करीम ﷺ से रफ़अ़ यदैन करने का सुबूत ज़्यादा और निहायत उम्दा है. जो लोग कहते हैं कि रफ़अ़ यदैन मन्सूख़ हो गया हैं उनका दावा बेबुनियाद है. उनके पास कोई तसल्ली बख़्श दलील नहीं है." (तअलीकुल मुमज्जद पेज 91)

 

रफ़अ़ यदैन नमाज़ की ज़ीनत है 

  • अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) फ़रमाते हैं " रफ़अ़ यदैन नमाज़ की ख़ूबसूरती है." (उम्दतुल क़ारी 5/272, नैलुल औतार पेज 68)
  • इमाम इब्न सीरीन (रह0) फ़रमाते हैं " रफ़अ़ यदैन नमाज़ को मुकम्मल करता है." (जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 41, तल्खीसुल हबीर पेज 28)
  • मशहूर ताबई सईद इब्न जुबैर (रह0) फ़रमाते हैं " यह वह अमल है जिससे तुम अपनी नमाज़ को ख़ूबसूरत बनाते हो." (जुज़ रफ़अ़ यदैन इमाम बुख़ारी ह0 39, सुनन बैहक़ी 2/75)


रफ़अ़ यदैन का सवाब

  • उक़बा बिन आमिर (रज़ि0) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने इरशाद फ़रमाया " आदमी अपनी नमाज़ में अपने हाथ के साथ जो इशारा करता है उसके एवज़ में उसके लिए 10 नेकियां लिखी जाती हैं, हर उंगली के बदले एक नेकी मिलती है."  (तबरानी कबीर 17/297, सिलसिला अहादीस अस सहीहा ह0 3276)
  • हाफ़िज़ इब्न अब्दुल बर्र (रह0) कहते हैं कि अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) फ़रमाते हैं कि हर बार रफ़अ़ यदैन करने से 10 नेकियां मिलती हैं, हर उंगली पर एक नेकी." (उम्दतुल क़ारी 5/272 )


💎हमें एक बार रफ़अ़ यदैन करने पर 10 नेकियां मिलती हैं तो इस तरह 4 रकअ़त नमाज़ में कुल 100 नेकियां मिलेंगी. पूरे दिन में सिर्फ फ़र्ज़ नमाज़ों में ही हमें 430 नेकियां और सुन्नते मुअक्किदह में 600 नेकियां ज़्यादा मिलेंगी. तो इस तरह हम दिन भर में सिर्फ़ फ़र्ज़ और सुन्नते मुअक्किदह नमाज़ों के ज़रिए 1030 नेकियां ज्यादा पा सकते हैं.  

माशा अल्लाह !!


इमाम के पीछे सूरह फ़ातिहा क्यों पढ़ना ज़रूरी है?

  • अल्लाह तआला ने फ़रमाया “हमने तुमको बार बार दुहराई जाने वाली सात (आयतें) और क़ुरआन अज़ीम अता किया है.” - सूरह हिज्र आयत 87

           इसकी वज़ाहत करते हुए रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ सूरह फ़ातिहा ही बार बार दुहराई जाने वाली सात             (आयतें) हैं.” - बुख़ारी ह० 4704

(इससे पता चला कि सूरह फ़ातिहा को नमाज़ में बार बार दुहराया जाना चाहिए और यह तब ही मुमकिन है जब हम हर नमाज़ में इसको पढ़ें चाहे वह अकेले हो या जमात मे. अगर इमाम के पीछे चुप रहा जाए और सूरह फ़ातिहा न पढ़ी जाए तो इस आयत की मुख़ालिफ़त होगी)


  • रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया " जिस शख़्स ने (नमाज़ में) सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ी उसकी नमाज़ नहीं हुई." बुख़ारी ह० 756; मुस्लिम ह० 874, 876, अबू दाऊद ह० 837
  • आएशा (रज़िo) बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया " हर वह नमाज़ जिसमे सूरह फ़ातिहा न पढ़ी जाए वह नाक़िस (Defective) है." - इब्न माजा ह० 840; मुस्नद अहमद ह0 26888
  • उबादा बिन सामित (रज़िo) रिवायत करते हैं कि “ हम फ़ज्र की नमाज़ में रसूलुल्लाह ﷺ के पीछे थे, आपने क़ुरआन पढ़ा तो आप पर पढ़ना भारी हो गया. जब नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो फ़रमाया ‘शायद तुम अपने इमाम के पीछे कुछ पढ़ते हो ?’हमने कहा हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! आपने फ़रमाया ‘ सिवाए सूरह फ़ातिहा के कुछ न पढ़ा करो क्योंकि उस शख़्स की नमाज़ नहीं जो नमाज़ में सूरह फ़ातिहा न पढ़े." - अबू दाऊद ह० 823, तिरमिज़ी ह० 311, मुस्नद अहमद 5/322, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 1581
  • अबू हुरैरह (रज़िo) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया " जिस शख़्स ने नमाज़ पढ़ी और उसमें सूरह फ़ातिहा न पढ़ी बस वह (नमाज़) नाक़िस है , वह (नमाज़) नाक़िस है , वह (नमाज़) नाक़िस है, पूरी नहीं है " अबू हुरैरह (रज़िo) से पूछा गया ‘हम इमाम के पीछे होते हैं’ (फिर भी पढ़ें?)" अबू हुरैरह (रज़िo) ने कहा ‘(हाँ) तुम उसे दिल में पढ़ो.’ - (मुस्लिम ह० 878, अबू दाऊद ह0 821 )
  • जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि0) बयान करते हैं कि हम लोग इमाम के पीछे ज़ुह्र और अ़स्र की नमाज़ों में पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा और कोई और सूरह पढ़ते थे और बाद की 2 रकअ़तों में (सिर्फ़) सूरह फ़ातिहा पढ़ते थे."- इब्न माजा ह0 843, बैहक़ी 2/170
  • इमाम तिरमिज़ी (रह0) फ़रमाते हैं, “ उबादा (रज़ि0) की हदीस हसन सहीह है और इसी पर अक्सर अहले इल्म सहाबा जैसे उमर इब्न ख़त्ताब (रज़ि0) जाबिर इब्न अब्दुल्लाह (रज़िo) और इमरान इब्न हुसैन (रज़ि0) वग़ैरह अमल करते हैं. ये हज़रात कहते हैं कि कोई भी नमाज़ सूरह फ़ातिहा के ब़गैर सहीह नहीं है. इमाम इब्न मुबारक, इमाम शाफ़ई, इमाम अहमद और इमाम इस्हाक़ (रह0) का यही क़ौल है. इस बाब (अध्याय, chapter) में अबू हुरैरह (रज़ि0) आइशा (रज़ि0), अनस (रज़ि0), क़तादा (रज़ि0) और अब्दुल्लाह इब्न अम्र (रज़ि0) से रिवायात हैं.” - तिरमिज़ी ह0 247 के तहत


सहाबा (रज़ि 0) से इसका सुबूत

इमाम के पीछे सूरह फ़ातिहा पढ़ने का सुबूत क़ौली और अमली तौर पर कई सहाबा से मिलता है, जैसे…..

  • उमर (रज़िo) : बैहक़ी 2/67,तारीख़ अल कबीर ह0 3239, दारक़ुत्नी ह0 1197,1198, 
  • अबू हुरैरह (रज़िo) : जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 73,283, किताबुल क़िराअत इमाम बैहक़ी ह0 68
  • अब्दुल्लाह इब्न मसऊद (रज़िo) : मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह0 3752
  • अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) : मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह0 3773
  • अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo): सहीह इब्न ख़ुज़ैमा 1/572
  • अनस (रज़िo) : किताबुल क़िराअत इमाम बैहक़ी ह0 231
  • अब्दुल्लाह इब्न अम्र इब्न आस (रज़िo) : मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह0 2775, जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 60
  • जाबिर इब्न अब्दुल्लाह (रज़िo) : इब्न माजा ह0 843
  • उबई इब्न कअब (रज़िo) : जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 52,53, दार क़ुत्नी ह0 1199
  • अबू सईद ख़ुदरी (रज़िo) : जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 57,107
  • उबादा इब्न सामित (रज़िo) : मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह0 3770


अइम्मा-ए-किराम और उलमा हज़रात की गवाही

  • मशहूर ताबई सईद इब्न जुबैर (रह0) से पूछा गया कि " क्या मैं इमाम के पीछे भी (सूरह फ़ातिहा) पढ़ू ?" तो उन्होंने जवाब दिया "हाँ तब भी जब तुम इमाम की क़िराअत सुन रहे हो." -(जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 273)
  • हसन बसरी (रह0) फ़रमाते हैं " इमाम के पीछे सूरह फ़ातिहा हर नमाज़ में पढ़ा करो." - मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह0 3762, किताबुल क़िराअत इमाम बैहक़ी ह0 242
  • इमाम शाफ़ई (रह0) फ़रमाते हैं "उस शख़्स की नमाज़ जायज़ नहीं है जो हर रकअ़त में सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता, भले ही वह इमाम हो या मुक़्तदी, भले ही इमाम बुलंद आवाज़ से पढ़े या ख़ामोशी से." - जुज़ क़िराअत इमाम बुख़ारी ह0 226
  • मौलाना अब्दुल हई फ़रंगी महली लखनवी (रह0) फ़रमाते हैं "इमाम के पीछे सूरह फ़ातिहा पढ़ने की मनाही किसी भी सहीह और मर्फ़ूअ हदीस से साबित नहीं है. इसकी मनाही करने वाली कोई भी मर्फ़ूअ हदीस सहीह नहीं है और वो बेबुनियाद है." - तअलीक़ुल मुमज्जद पेज 101

आमीन ज़ोर से क्योँ कहना चाहिए

  • अबू हुरैरह (रज़ि0) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “ *जब इमाम आमीन कहे तो तुम भी आमीन कहो* क्योंकि जिसकी आमीन फ़रिश्तों की आमीन के साथ हो गयी तो उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे.” - बुख़ारी ह0 780

इस हदीस से मालूम हुआ कि इमाम भी ज़ोर से आमीन कहेगा ताकि मुक़तदी उसकी आमीन सुन कर ख़ुद भी आमीन कहें.

  • अली (रज़ि0) फ़रमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना कि जब आपने ‘ वलद्दालीन’ कहा तो फ़रमाया 'आमीन'. - इब्न माजा ह0 854
  • वाइल इब्न हुज्र (रज़ि0) बयान करते हैं " *जब रसूलुल्लाह ﷺ ' वलज्ज़ाल्लीन ' पढ़ते तो आमीन कहते और इसके साथ अपनी आवाज़ को बुलंद करते. - अबू दाऊद ह0 932, तिरमिज़ी ह० 248
  • आइशा (रज़ि0) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फ़रमाया "यहूदी तुमसे किसी चीज़ से इतना हसद (जलन) नहीं रखते जितना सलाम और आमीन से.- इब्न माजा ह0 856

👉 इस रिवायत से पता चला कि यहूदियों को आमीन से नफ़रत थी. यह तभी मुम्किन है जब वो आमीन सुनते हों और यह भी तभी मुम्किन है जब आमीन ज़ोर से कही जाए, वरना मस्जिद के बाहर खड़े किसी शख़्स को कैसे मालूम होगा कि हमने कब आमीन कही?

  • अबू हुरैरह (रज़ि0) फ़रमाते हैं “ जब रसूलुल्लाह ﷺ सूरह फ़ातिहा की क़िराअत से फ़ारिग़ होते तो अपनी आवाज़ बुलंद करते और फ़रमाते आमीन.” - सहीह इब्न हिब्बान ह० 1803
  • अता इब्न अबी रिबाह (रह0) ने कहा कि आमीन एक दुआ है और अब्दुल्लाह इब्न ज़ुबैर (रज़ि0) और उन लोगों ने जो आपके पीछे (नमाज़ी) थे इतनी ज़ोर से आमीन कही कि मस्जिद गूँज उठी और अबू हुरैरह (रज़ि0) इमाम से कह दिया करते थे कि आमीन से हमें महरूम न रखना, और नाफ़ेअ (रह0) ने कहा कि अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़ि0) आमीन कभी नहीं छोड़ते थे और लोगों को इसकी तरग़ीब भी दिया करते थे. (बुख़ारी बाब 111 के तहत)


अइम्मा-ए-किराम और उलमा हज़रात की गवाही

  • अता इब्न अबी रिबाह (रह0) (जो एक ताबिई और इमाम अबू हनीफ़ा (रह0) के उस्ताद थे) इन अल्फ़ाज़ में शहादत पेश करते हैं " मैंने ख़ुद मस्जिदे हरम में इमाम के ' वलज्ज़ाल्लीन ' कहने के बाद 200 सहाबा को जोर से आमीन कहते हुए सुना." (बैहक़ी 2/59)
  • शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह0) फ़रमाते हैं " जहरी नमाज़ (यानी जिसमे इमाम बुलंद आवाज़ से क़िराअत करे) में आमीन ज़ोर से कहना चाहिए." (ग़ुन्नियतुत तालिबीन पेज 11)
  • अल्लामा इब्ने जौज़ी (रह0) फ़रमाते हैं “ किसी एक सहाबी का भी बुलंद आवाज से आमीन का इन्कार साबित नहीं है बल्कि इस पर उनका इज्मा है.” (तोह्फ़तुल जौज़ी पेज 66)
  • शाह वली उल्लाह मुहद्दिस देहलवी (रह0) फ़रमाते हैं " इससे मालूम हुआ कि मुक़्तदी अपने इमाम की आवाज़ सुन कर ख़ुद भी आमीन कहे." (हुज्जतुलाहिल बालिग़ह 2/7)
  • मौलाना अब्दुल हई लखनवी फ़रंगी महली (रह0) फ़रमाते हैं " अगर इन्साफ़ से पूछा जाए तो सच बात यह है कि ज़ोर से आमीन कहने का मसअला दलील के लिहाज़ से ज़्यादा क़वी (मज़बूत) है." (तअ़लीक़ुल मुमज्जद पेज 103)



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आपका दीनी भाई

मुहम्मद रज़ा

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