दज्जाली फ़ितनों की हमारे दरवाजों पर दस्तक
माथे पर एक आंख
कई दिन से इंटरनेट पर एक लड़की की एक ऐसी तस्वीर गर्दिश कर रही है जिसमें उसके माथे पर एक आंख बनी हुई है, जिसके बाद लोग उस लड़की पर दज्जाल को प्रमोट करने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं, चूंकि लड़की मुस्लिम बताई जा रही है और किसी मुस्लिम इदारे में उसने ये रोल प्ले किया है इसलिए ये मामला और ज़्यादा तूल पकड़ रहा है, और बहुत से लोग उस लड़की को दज्जाल की पत्नि, या बुरा भला बोल कर तंज़ कर रहे हैं, जिसके बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट में वो लड़की इस मामले में सफ़ाई देते हुए इसको सिर्फ़ अपनी एक कविता पर मज़लूम औरतों को जगाने वाली अक्ल को तीसरी आंख के तौर पर ज़ाहिर करना बता रही है, और अपनी सफ़ाई में सहीह मुस्लिम की एक हदीस पेश करती है के दज्जाल दाहिनी आंख से काना होगा ना के उसके तीन आंख होंगी, इसके बाद बहुत से पढ़े लिखे लोग उसकी सफ़ाई को सही मानते हुए दज्जाल प्रमोशन की बात करने वाले लोगों को जाहिल और घटिया सोच के लोग बता रहे हैं (लड़की की सफ़ाई वाली पोस्ट की सच्चाई की मैं पुष्टि नहीं करता)
इलुमिनाती और दज्जाल
अब आइए लड़की के उस फोटो और उसकी सफ़ाई का पोस्टमार्टम करते हैं और जानते हैं के जिस प्ले फ़ोटो को लोग कम इल्मी में एक मामूली सी बात समझ रहे हैं वो असल में किस हद तक ख़तरनाक है और दज्जाली फ़ितने किस क़दर हमारी नस्लों को अपने आगोश में ले चुके हैं, लेकिन उस से पहले ये जान लीजिए के इलुमिनाती और दज्जाल दो अलग बातें नहीं हैं बल्कि इलुमिनाती वो आइडियोलॉजी है जिसका काम दज्जाली निज़ाम को तैयार करना और तौहीद को ख़त्म करना है, इसलिए इलुमिनाती को ज्वॉइन करना ही दज्जाल को रब तस्लीम करना होता है, इलुमिनाती में सिंबॉलिज्म सब से अहम रोल अदा करता है और इसको ज्वाइन करने वालों पर ये फर्ज़ होता है के वो हर बड़े मौक़े पर सिंबलिज्म के ज़रिए अपने इलुमिनाती होने का इज़हार करें जिस से इलुमिनाती फ़ॉलो करने वालों की एकता और ताक़त को बढ़ाया जा सके, इसलिए इलुमिनाती का इल्म रखने वाला कोई शख्स किसी सूरत उस तस्वीर को दज्जाल के प्रमोशन से बाहर नहीं रख सकता है फिर भले ही कोई कितनी भी सफ़ाई क्यों न दे।
सफ़ेद झूठ
उस फ़ोटो को गहराई से देखने पर पता चलता है के लड़की और उसकी प्ले टीम ने काले कपड़े पहने हुए हैं जो इलुमिनाती की ज़रूरी शर्त होती है, लड़की सफ़ाई में तीन आंख की बात करती है जबकि तस्वीर में साफ़ दिख रहा है के उसकी एक आंख बालों से ढकी गई है और वो बाल हेयर जैल से इस तरह सेट किए गए हैं के वो माथे पर बनी आंख को साफ़ दिखाने के लिए माथे पर बनी आंख के बराबर से घूम कर नीचे जा रहे हैं और उसकी एक असली आंख(दाहिनी) को पूरा ढके हुए हैं जो के इलुमिनाती का सबसे ख़ास सिंबल है, यानि उसके चेहरे पर उस वक्त तीन नहीं बल्कि एक सही और एक कानी आंख(दाहिनी)माथे पर दिख रही है, ठीक वैसे ही माथे पर बनी आंख और उसकी मज़लूमियत के ख़िलाफ़ अक्ल की आंख होने की सफ़ाई में सफ़ेद झूठ शामिल है, क्योंकि दज्जाल की एक आंख(दाहिनी) कानी(खड़ी) होगी, अगर मान लिया जाए के उसके माथे पर बनी आंख अक्ल की निशानी के तौर पर बनी है तो क्या उसकी असली आंखें भी उसी तरह खड़ी हैं.?? या ऐसी खड़ी आंख वो दज्जाल से अलग पूरी दुनिया में किसी भी मखलूक के चहरे पर दिखा सकती है ??, इलुमिनाती में नापाक लोगों से नजाइज़ रिश्ते बनाना भी एक ज़रूरी शर्त होती है जिसका इशारा भी गौर करने से समझा जा सकता है।
असल में जिस तस्वीर को लोग सिर्फ़ एक प्ले फ़ोटो समझ रहे हैं वो इलुमिनाती की तरफ़ से ऐलान है के हम यहां पहुंच चुके हैं, तस्वीर आने पर इसके ख़िलाफ़ उठने वाली आवाजों पर ये सफ़ाई सिर्फ़ गुमराह करने को है, मेरी इस पोस्ट का स्क्रीनशॉट ले लीजिए और जान लीजिए के कुछ ही वक्त बाद उसी जगह से अगला प्रमोशन LGBTQ (हम जिंस परस्ती) का होगा, और हर हाल में होगा, कोई उसको रोक नहीं पाएगा, क्योंकि इसके पीछे बहुत मज़बूत लॉबी काम कर रही है जिसने इलुमिनाती की जड़ें वहां पूरी तरह जमा दी हैं, इस वाक्ये के दज्जाल प्रमोटर न होने में ज़र्रे बराबर भी गुंजाइश नहीं, अगर कोई गुंजाइश है तो सिर्फ़ इतनी के हो सकता है उस लड़की को कोई दूसरा इलुमिनाती इस्तेमाल कर ले गया हो लेकिन ये भी कोई बहुत आसान काम नहीं है।
वैसे आपको बता दूं के आज दुनिया भर में बेहद पढ़े लिखे अमीर घरानों के मुस्लिम नौजवान इलुमिनाती की गिरफ्त में हैं और अब इलुमिनाती बड़े शहरों से होती हुई गांव कस्बों तक कूच कर रही है, दिल्ली की एक नाम निहाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी मुस्लिम नौजवानों के इलुमिनाती सेंटर में तब्दील हो चुकी है, जहां मुस्लिम लड़कियों का नापाक लोगों से ज़िना और शराबनोशी तो जैसे उनके सिलेबस का हिस्सा बन चुका है, और उसको प्रमोट करने वाले भी नाम निहाद मुसलमान ही है, यहां तक के भ#वा लव ट्रैप भी इसी का एक हिस्सा है, और अगर आप ये सोच रहे हैं के आज कोई भी बड़ा ईदारा इलुमिनाती से बचा हुआ है तो ये सिर्फ़ आपकी भूल है, वैसे भी इलुमिनाती किसी दाढ़ी वाले मौलाना या किसी आलिमा को नमाज़ पढ़ने से नहीं रोकती बल्कि उसके निशाने पर मुस्लिम नौजवान हैं और ख़ास कर मुस्लिम लड़कियां, क्योंकि एक लड़की को तौहीद से गाफिल करने का मतलब है एक नस्ल को गाफिल कर देना, पाकिस्तान जैसे इस्लामी मुल्क में वहां की औरतें बेहद बड़ी तादाद में इलुमिनाती की शिकार हैं जो खुले आम अपने दीन का जनाज़ा निकाल रही हैं और उन पर अब किसी का बस नहीं चलता।
सिंबॉलिज्म की ताक़त
क्या आप सिंबॉलिज्म की ताक़त जानते हैं ??
सिंबॉलिज्म की ताक़त जानने से पहले ये जान लीजिए कि ये इस्लाम का एक बेहद अहम हिस्सा है लेकिन इस दौर के ज़्यादातर मुसलमान उसकी ताक़त तो क्या, ये भी नहीं जानते के सिंबॉलिज्म है क्या बला, क्योंकि इस दौर के मुसलमानों ने हिकमत वाले इस्लाम को तर्क कर के उसके हर अमल को सबाब और गुनाह से मंसूब कर दिया, बाक़ी रही सही कसर बेदीन फिरक़ा परस्त उलेमा ने एक दूसरे मुसलमानों को जन्नती जहान्नुमी बता बता कर बुनियादी इस्लाम से मुसलमानों को कोसों दूर कर दिया, लेकिन इस्लाम के इस अहम हिस्से को आज इलुमिनाती उसी इस्लाम को ख़त्म करने में इस्तेमाल कर रहा है और नाम निहाद मुसलमान ही उसका मोहरा हैं, यानि सिंबॉलिज्म के बिना इलुमिनाती का कोई वजूद मुमकिन नहीं है।
जब कोई मशहूर मुसलमान शहादत की उंगली उठा कर बात करता है, या कोई खिलाड़ी सजदा ए शुक्र या अल्लाहु अकबर की सदा बुलंद करता है तब तमाम दुनिया के मुसलमान उस से मुहब्बत करने लगते हैं, लेकिन उसी अमल पर हर हक़ मुखालिफ बेचैन हो उठता है और तमाम हक़ मुखलिफों में खलबली मच जाती है, जबकि उस अमल करने वाले इंसान ने किसी हक़ मुखालिफ को वो अमल करने का ज़ोर भी नहीं डाला होता है, और ये ही तो सिंबॉलिज्म की ताक़त है, इस्लाम ने शहादत की उंगली उठाना, सलाम, अज़ान या नारा ए तकबीर के साथ जिंदगी के हर मौक़े के लिए सिंबल दिया है, ये ही सिंबॉलिज्म था जिस में नारा ए तकबीर लगा कर 313 मोमिन हजारों लाखों की फौज़ हो हरा देते थे, लेकिन इस दौर में हम किसी मुसलमान के सिंबॉलिज्म पर तो जान छिड़कते हैं लेकिन जब इलुमिनाती अपने सिंबल ज़ाहिर करती है तो उसको सिर्फ़ बकवास समझते हैं, और ये ही नासमझी आज हमारी नई नस्ल को इलुमिनाती के गर्त में आसानी से पहुंचने दे रही है।
क्या आप कभी सजदा ए शुक्र करने वाले खिलाड़ी से ये पूछते हैं के उसका सजदा सच्चा था या झूठा, नहीं ना ? क्योंकि आपको उस सिंबल पर पूरा यक़ीन है उसी तरह जब इलुमिनाती अपने सिंबल ज़ाहिर करती है तो उसके मानने वाले उसका पैग़ाम साफ़ साफ़ समझ रहे होते हैं फिर आप भले उसको कोई भूल समझें, हादसा समझें, या इत्तेफ़ाक.. इसलिए जिस तरह किसी गैर मुस्लिम का इस्लाम में दाख़िल होने पर कलमे के साथ शहादत की उंगली उठाना फ़र्ज़ हैं उसी तरह इलुमिनाती में दाख़िल होने पर काने दज्जाल का सिंबल फ़र्ज़ है लेकिन हम अपने सिंबल को सच्चा और उनके सिंबल को मज़ाक़ समझते हैं...
फ़िक्र ए तौहीद
ये नाज़ुक वक्त है जब हर तरफ से फितना अपनी जड़ें हर इदारे और ख़ास मकामो पे जमा चुका है, तौहीद और बुनियादी उसूलों को मज़बूती से थमने का वक्त है। जरुरत है के हर मुसलमान गाफिल न रहे बल्कि अपने तक़वे और इस्लाम को मज़बूती से थाम ले। और इस फ़ितने का पुरज़ोर मुक़ाबला करे। सारे मुसलमान भाई भाई बन करे रहे और एक हो जाये फिरकों में न बटें। हक़्क़ की जंग इत्तिहाद से जीती जा सकती है तफ़रकों से नहीं।
ज्यादा से ज्यादा दीन की दावत आम करें। जितना सही दीन पता हो दूसरों तक पहुचाएं। रिश्तेदारों से हसद और कीना आज और अभी ख़त्म कर दें। और अपने खानदान को इस क़दर मज़बूती से एक डोर में बांध लें के बड़ी से बड़ी ताक़त भी आपको तोड़ न पाए। फिर अपने आस पास के जगह और फिर जहाँ तक हो सके एक होने की कोशिश करें।
सही इस्लाम को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाएं। इल्म हासिल करें और दुसरो तक इल्म को आम करें। जिस तेज़ी से ये फितना आम हो रहा है , यक़ीनन हम इसका मुक़ाबला करने के लिए एक करिश्मे की जरुरत है और वो करिश्मा तौहीद पर मज़बूत जमना ही है।
-आपका दीनी भाई
मंसूर अदब पहसवी
3 टिप्पणियाँ
Beshaq
जवाब देंहटाएंJazak ALLAH khair
जवाब देंहटाएंMashallah bahut behtareen
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।