कुरान पर अमल: तलाक की धमकी
ख्वातीन में कुराने अजीम पर अमल करने की इस रफ्तार का मकसद अपनी जिंदगी की हर चीज को अल्लाह की पसंद के मुताबिक बदलना है। यह दावत दुनियावी जन्नती जिंदगी गुजारने की दावत है यानी कुरान ए करीम की आयात को अमली शक्ल देने की दावत। हम मुसलमानों को चाहिए कि सिर्फ तिलावत पर ही महदूद ना रहें। तिलावत की और बस कुरान मजीद बंद किया और यू आयतों को भी बंद कर दिया। कुरान की आयतों को अमली सूरत देना दुनिया में हर मुसलमान पर फर्ज है ताकि उन आयतों से दिल धड़के और उसके मुताबिक काम करे। जब हम कुरान के मुताबिक अमल करेंगे तो यह किताब हमारे दिलों की बहार बन जाएगी और हमारे सब दुख गम जाते रहेंगे।
अब हम क़ुरआने करीम की एक आयत पर अमल का हकीकी जिंदा तजुर्बा बयान करते हैं इस तजुर्बे में औरतों के एक ग्रुप ने हिस्सा लिया उन औरतों को इस बात की तालीम और तरबियत दी गई कि उन्हें आयते कुरानी पर किस तरह अमल करना है। इस तजुर्बे के मुफीद फायदे निकले। आइए इस तजुर्बे की तफसीलात देखते हैं।
- तलाक एक ऐसा खतरनाक काम है जिससे पल भर में एक हंसता बस्ता घर उजड़ जाता है।
- खुशी और मसर्रत, गमी और दुख में बदल जाती है।
- तलाक पर सुकून और स्थिर खानदान को उखेड़ कर रख देती है।
- तलाक मुआसरे में काला धब्बा छोड़ देती है।
- बीवी का मुस्तकबिल अंधेरा हो जाता है।
- बच्चे अलग हैरान और परेशान होते हैं, मां के साथ रहे तो बाप की मोहब्बत और निगरानी से महरूम और बाप के पास रहे तो मां की ममता और मेहरबानी से महरूम।
- खानदान अलग परेशान हो जाता है।
- उसे कुछ समझ नहीं आता कि वह क्या करें, वह परेशानी में मुब्तिला होता है और इसी उधेड़ बुन में रहता है की नई शादी कर ले या कुछ साल के लिए रुक जाए। नई शादी करने के बाद बहुत से बाप अपनी पहली बीवी के औलाद को नजरअंदाज कर देते हैं और उन्हें यूं भूल जाते हैं जैसे उनके बच्चे थे ही नहीं।
- मुश्किलों का एक ऐसा चक्कर चल पड़ता है जो खत्म होने में नहीं आता। यह मुश्किलात दिनों और महीनों में खत्म नहीं हो जाती बल्कि सालों साल तक रहती है।
मुआसरे को तलाक की वजह से कई मुश्किलों से गुजरना पड़ता है:
- घर मनहूस कदे बन जाते हैं और
- अदालतों में मुआसरे की इज्जतदार ख्वातीन और हजरात जलील होते हैं।
- घरों की परदों की बातें अदालतों में सरेआम बयान होती है तो रुसवाई के सिवा कुछ हाथ नहीं आता। खुद मियां बीवी अपने सुनने और देखने वाले के लिए अपने राज बयान करते हैं।
- बच्चों का अल्लाह के सिवा कोई मददगार नहीं होता। वह मां-बाप के होते हुए भी दोनों की मोहब्बतऔर प्यार से महरूम हो जाते हैं, ना बाप से बात कर सकते हैं ना मां से। अगर मां के पास रह रहे हैं तो वे उन्हें बाप से बात तक नहीं करने देती और अगर बाप के पास रह रहे हैं तो वे उन्हें उनकी मां से बात या मुलाकात करने नहीं देता।
तलाक के इस भयानक मसले का हल भी अल्लाह ताला ने अपनी किताब में रख दिया है। अब सोचें कि हम अल्लाह की किताब के अल्फाज को पढ़ते और समझते हैं मगर उन पर अमल नहीं करते। हमने मस्जिद में हफ्ता वार दरसे कुरान के दौरान इस पेचीदा और मुश्किल मसले का हल निकालने की कोशिश की।
मस्जिद में हम तमाम औरतों ने यह अहद कर रखा था कि जवाल का शिकार हो चुके हैं, इससे निकलने का केवल यही रास्ता है कि हम में से हर एक आयते कुरानी के जरिए जवाल के गड्ढे से निकले। चुनांचे इस बात पर अमल करने के लिए जब अगले हफ्ते के लिए क़ुरआने करीम की आयत का चुनाव करने का वक्त आया तो हमने एक बार फिर यह अहद किया कि क़ुरआने करीम की आयत पर अमल करते हुए हम अपनी चाहत और अपने माहौल की बंदिशों और रस्मो की परवाह नहीं करेंगे।
इस मर्तबा हमने इस इरशाद रब्बानी के बारे में तय किया
یٰۤاَیُّہَا النَّبِیُّ اِذَا طَلَّقۡتُمُ النِّسَآءَ فَطَلِّقُوۡہُنَّ لِعِدَّتِہِنَّ وَ اَحۡصُوا الۡعِدَّۃَ ۚ وَ اتَّقُوا اللّٰہَ رَبَّکُمۡ ۚ لَا تُخۡرِجُوۡہُنَّ مِنۡۢ بُیُوۡتِہِنَّ وَ لَا یَخۡرُجۡنَ اِلَّاۤ اَنۡ یَّاۡتِیۡنَ بِفَاحِشَۃٍ مُّبَیِّنَۃٍ ؕ وَ تِلۡکَ حُدُوۡدُ اللّٰہِ ؕ وَ مَنۡ یَّتَعَدَّ حُدُوۡدَ اللّٰہِ فَقَدۡ ظَلَمَ نَفۡسَہٗ ؕ لَا تَدۡرِیۡ لَعَلَّ اللّٰہَ یُحۡدِثُ بَعۡدَ ذٰلِکَ اَمۡرًا ﴿۱﴾
"ए नबी, जब तुम लोग औरतों को तलाक दो तो उन्हें उनकी इद्दत के लिए तलाक दिया करो और इद्दत के जमाने का ठीक-ठीक शुमार किया करो और अल्लाह से डरो जो तुम्हारा रब है (जमाने इद्दत में) ना तुम उनको उनके घरों से निकालो और ना वह खुद निकले मतलब यह कि वह किसी बड़ी बुराई के गुनहगार न हो यह अल्लाह की मुकर्रर की गई हदें हैं और जो कोई अल्लाह की हदों का उल्लंघन करेगा वह अपने ऊपर खुद जुल्म करेगा तुम नहीं जानते शायद उसके बाद अल्लाह (अनुकूल की) कोई सूरत पैदा कर दे।"
[सूरह तलाक़ 65:1]
कुरान करीम से ख्वातीनो की लाइल्मी
तिलावत के बाद जब इस आयत की तफसीर बयान हुई ताकि ख्वातीन को यह मालूम हो सके कि इस आयत पर कैसे अमल करना है और इसके जरिए अल्लाह के हुक्म को कैसे लागू करना है तो दरस में शामिल एक खातून ने पुकार कर कहा: जरा ठहरो! आप लोग क्या बात कर रहे हैं? क्या तलाक वाली औरतों के लिए जरूरी है कि वह दौरान इद्दत अपने शौहर के घर में ही ठहरे?
मैंने उस खातून पर वाज़ेह कर दिया कि तलाक वाली औरतों के लिए सोहर के घर में इद्दत गुजारने का हुक्म अल्लाह ने दिया है ताकि इस दौरान इस बिगड़ हुए हालात की कोई सूरत पैदा हो जाए, मियां बीवी अपने घर में एक साथ रहे और अपने अपने एहले खानदान की दखल से महफूज रहें तो शायद उनमें सुलह की कोई सूरत पैदा हो जाए और वह फिर एक साथ रहने लगे। बीवी का घर से निकल जाना या उसे निकाल देना गलत ताल्लुक करने का वजह बनता है। गुस्सा, नफरत, शिकवा, शिकायत का माहौल शैतान के लिए मौसम में बहार होता है, मामले की भागदौड़ शैतान के हाथ में चली जाती है तो जुदाई तक नौबत पहुंच जाती है। यू शैतान की खुशी की कोई हद नहीं रहती।
मेरी ये वज़ाहत सुनकर सवाल करने वाली खातून ने बताया हाय मेरी बदनसीबी, दीन ए इस्लाम से अनजान रहना मेरे घर के उजड़ने का सबब बनी। क़ुरआने करीम से मेरा अनजान रहना, कुरान करीम से मेरी लाइल्मी ने मेरे बच्चों को मुझ से दूर कर दिया। मेरे खानदान और मेरे दरमियान मामूली सा इखतेलाफ हुआ। बात बिल्कुल छोटी सी थी। इस बात से मेरा खानदान सख्त गुस्से में ना होता मगर मैंने बिना वजह कुछ ऐसी बातें कर दी के उनका गुस्सा अपनी इंतेहा को जा पहुंचा। गुस्से की वजह से मेरा शौहर होश व हवास में ना रहा और उसने तलाक का लफ़्ज़ बोल दिया। यह लफ्ज़ सुनते ही मैंने जल्दी से अपना सामान बांधा और घर से निकल पड़ी। दिल दर्द से लबरेज़ (भरा हुआ) था और आंखें आंसुओं से। मैं जैसे ही अपने मायके पहुंची तो मेरी कहानी सुनकर मेरे मायके का हर शख्स मेरे शौहर से मेरी तोहीन (बेइज्जती) का बदला लेने के लिए बेताब था। मेरे शौहर ने मुझे कहला भेजा कि घर वापस चली आओ उसकी यह पेशकश नफरत से ठुकरा दी। इस तरह मेरे नफ्स और मेरी आना ने मुझे सोचने समझने और दुरुस्त फैसला लेने से मेहरून कर दिया।
"अपने जो आयत अभी पड़ी है मैं यह आयत कई बार पढ़ चुकी हूं मगर मैंने इसे समझने की एक बार भी कोशिश ना की। मुझे ना इसकी कभी समझ आई और ना मैंने कभी इसे समझने की कोशिश की। इद्दत गुजारने के बाद हम दोनों मियां बीवी अलग अलग हो गए। कई बार मैंने इतना बुलाने के दौरान घर से निकलने का गुनाह भी किया। मैं अपने शौहर से भी मैहरूम हुई और अल्लाह के खिलाफ जाकर गुना करने का भी मामला मेरे सर पर आ गया।"
उस गमजदा खातून ने रोते हुए कहा: "हाय मेरी शामत व बदबखती! मैं आप सब से दरख्वास्त करती हूं के आप लोगों ने किताब अल्लाह पर अमल का जो अहद किया है उस पर मेहरबानी फरमा कर सख्ती से उस पर अमल करना।"
यह दुख भरी दास्तान सुनकर हमने एक बार फिर आयते करीमा पर अमल करने का पुख्ता अहद किया और दिल से इस रास्ते पर चलने का खुद से वादा किया।
कुछ वक्त के बाद हमने बहनों से तलाक के बारे में इरशाद रब्बुल इज्जत पर अमल के तजुर्बात सुनने का इरादा किया।
कुरान पर अमल का पहला वाक़्या
एक बहन ने कहा: "जब से मैंने अल्लाह के साथ ही यह अहद किया था कि मेरे अल्फाज और मै जो भी काम करूंगी उन पर इस आयत की हुक्मरानी होगी। मैं हमेशा यह दुआ करती रहती थी कि जब हक़ीक़ी इल्म का मौका आए तो अल्लाह मुझे हिम्मत दे कि मैं कुरान के मुताबिक सारे काम करूं। मेरा शौहर जज्बाती आदमी है, अक्सर गुस्से में आकर गलत बातें बोलने लगता है। इस आयत पर अमल करने से पहले मैं गुस्से मे आ जाती थी और उसकी हर एक बात का जवाब देती। हम मियां बीवी की यह हालत को देखकर हमारा छोटा बेटा चुपचाप रहता, सदमे से कुछ ना बोलता था। हम मियां बीवी इस कैफियत में एक दूसरे की बात सुनने के बजाय अपनी अपनी बात पर डटे रहते।"
ये हालात फिर सामने आए लेकिन अब मेरे दिल की कैफियत बदल चुकी थी। मैंने अल्लाह से लव लगाए रखी और कुरान करीम की आयात पर अमल करने का फैसला कर लिया। आज मेरी पूरी कोशिश यह थी कि मैं अपने शौहर को गुस्से में ना आने द़ू। मैं बेचैनी और बेकरारी महसूस कर रही थी। मैं चाहती थी अपने घर से निकल कर अपने करीब की मस्जिद में चली जाऊं, कोई मैं अपना घर और अपने सुकून की जगह समझती थी। कभी यह ख्याल आता के अपने किसी मुसलमान बहन के पास चली जाऊं ताकि वह हमदर्दी के चांद बोल बोल कर मुझे तसल्ली दे और मुझे हिम्मत दे और इस तरह मेरे दिल को सुकून और ठंडक नसीब हो। मेरी हालत तो यह थी, इधर में आपे से बाहर हो रहा था, गुस्से के मारे उसका बुरा हाल था, उसकी गुस्से भरी बातों से यह महसूस होता था कि वह मुझे तलाक देकर देने के बारे में सोच रहा है।
कई बार शौहर को जवाब देने का शैतानी ख्याल दिल में आया मगर मैंने हर बार अपने ऊपर काबू पा लिया। मैंने अल्लाह का जिक्र और उसकी तस्बीह व तक़्दीस शुरू कर दी। मैं साथ-साथ यह भी सोचती रही कि अल्लाह ना करे अगर मेरे ख्वाब में तलाक का लफ़्ज़ मुंह से निकाल ही दिया तो मुझे शौहर के घर में यही रहना होगा। मैं तो चाहती हूं कि मस्जिद में जाऊं वहां हफ्तावार दरस ए कुरान सुनू। इद्दत के दौरान तो मैं घर से बाहर न निकल सकूंगी। क्या मैं दरस ए कुरान की मजलिस से भी महरूम हो जाऊंगी। यह ख्याल मेरे लिए दर्दनाक बन रहा था। अल्लाह के घर में जाकर तो हम पाकीजा फ़िज़ाओं में कुरान मजीद की आयत समझती हैं और फिर इस पर अमल का इक़रार करके वहां से बाहर निकलती हैं। इद्दत गुजारने के लिए अपने शोहर के घर में बंद होकर रहना के दरस ए कुरान सुनने के लिए मस्जिद में भी ना जा सकूं, मेरे लिए यह बेचैनी का सबब बन रहा था। दर्स ए कुरान ने मेरी जिंदगी इस तरह से बदली थी कि जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी। मैं कतरत से कुरान पढ़ा करती थी मगर अल्लाह का कलाम मेरे गले से नीचे नहीं उतरता था। मैं अपने ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकली तो क्या देखती हूं कि मेरे बच्चे ने अपने बाप पर नजरें जमा रखी हैं, जैसे वह कह रहा हो उसका वालिद भी अम्मी की तरह खामोश हो जाए। मैंने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और अल्लाह से दुआ करने लगी कि वह शोहर को पुर सुकून कर दे।
धीरे-धीरे मेरे शौहर के गुस्से का पारा उतरने लगा और वह खामोशी से अपने काम मे लग गया। फिर अस्तगफार पढ़ने लगा जबकि मैं अपनी जगह से ना हटी, तस्बीह व ज़िक्र में मशगूल रही और अल्लाह से दुआ करती रही। बाद में जब उनका गुस्सा ठंडा हुआ हो गया तो उन्होंने कहा: "मै माफी मांगने का हकदार हूं, मुझे इस बराबर इस बात का अंदेशा रहा कि तुम मेरी बातों का पहले की तरह ताबड़तोड़ जवाब दोगी। आज तलाक का लफ़्ज़ मेरे होठों के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था। मैं हैरान हूं कि आज तुमने तलाक का मुतालबा नहीं किया। पहले तुम कहती थी कि मुझे तलाक दे दो, मगर मैं नहीं देता था। आज मैंने सोच रखा था कि तुम्हारी तरफ से तलाक का मुतालबा होते ही मैं तुरंत तलाक दे दूंगा। तुमने आज पहले की तरह तलाक क्यों नहीं मांगी?"
मैंने जवाब दिया: "मेरे रब ने मुझे अपनी किताब के ज़रिये और अपने काम के ज़रिये अदब दिखा दिया है। मैं पहले सोचा करती थी के तलाक से मुझे आजादी मिल जाएगी मगर मेरी सोच अल्लाह की किताब की अमली ताबीर से बिल्कुल अलग थी।"
इस बहन ने अपनी यह दास्तान सुना कर हमें बताया: "उस दिन के बाद से अब तक हम घर में प्यार व मोहब्बत से रह रहे हैं। ऐसा इत्तेफाक़, अमन व सलामती, सुकून और इत्मिनान हमें इससे पहले कभी नसीब नहीं हुआ था। शुक्र है कि मेरी जुबान इस दर्श ए कुरान की बरकत से बंद रही और मैंने कहीं शोहर से यह नहीं कह दिया कि मुझे तलाक दे दो। पहले मुझे शैतान तलाक को खुशनुमा बना कर पेश करता था। इसे मेरी आज़ादी बताता था। जबकि हकीकत यह है के तलाक तो पाबंदी है। इस वाक़्या के बाद मेरे शहर में भी काफी तब्दीली आ चुकी है। वाह बहुत बदल चुका है। उसने अपने गुस्से, नफरत और अना पर काबू पा लिया है क्योंकि मेरी खामोशी की वजह से उसे मुझ से माफी मांगी पड़ी थी। मैं जितना भी अल्लाह का शुक्र अदा करूं कम है कि उसने मेरे लिए कुरान समझने का काम आसान कर दिया। उसने हमें कुरान के मुताबिक जिंदगी गुजारने की तौफीक़ अता फरमाई है। शुक्रगुजार भी इसी मेहरबानी की तौफीक से मुमकिन है। अल्लाह का शुक्र है कि उसकी किताब एक आयत पर अमल करने की बरकत से मेरा घर बर्बादी से बच गया।"
कुरान पर अमल का दूसरा वाक़्या
जब यह बहन अपना वाक़्या सुना चुकी तो दर्स में मौजूद ख्वातीनो मे से एक ख्वातीन ने बात करने के लिए अपना सिर उठाया, लेकिन फिर शर्माकर जल्दी से नीचे कर लिया।
थोड़ी देर तक वह इस कशमकश में मुब्तिला रही, फिर हिम्मत की और बात करने की इजाज़त मांगी।
इजाज़त मिलने के बाद उसने बताया: " मेरा शौहर अच्छा है मगर गुस्से वाला है, बहुत जल्दी फैसले लेता है और उन पर अमल भी करता है। अगर वह मेरे खिलाफ एक बात करता तो मैं उसके खिलाफ दस बातें करती, मैं उसको हर काम पर टोक देती और उसे सही और गलत मे फर्क समझाने लगती। वह अगर मुझे कोई काम करने के लिए कहता तो मेरे उस काम को करने के बाद उसे यूं महसूस होता जैसे उसका वास्ता किसी चट्टान से पड़ा है। एक दिन हमारे बीच कहा-सुनी बहुत ज्यादा बढ़ गई। बकबक और झक झक के एक ऐसे ही दौरे के बाद उसने मुझे आवाज दी। मैं समझी के शायद मेरे साथ सुलाह करना चाहता है। मैंने उसकी तरफ ध्यान दिया तो मेरा नाम लेकर कहने लगा: “ तुम्हें तलाक है।"
मैंने कहा: "तुम क्या कह रहे हो? मेरे बच्चों का क्या बनेगा? मेरे पांच बच्चे हैं, उनका अंजाम क्या होगा? तलाक का लफ़्ज़ तुमने कितनी आसानी से कह दिया है। "
मेरी इन बातों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। मेरा चीखना चिल्लाना किसी मकसद का ना था, बेफिज़ूल था। मैं जल्दी से अपने कमरे की तरफ गई इंतेहाई गुस्से की हालत में मै अपने सूटकेस में खास खास कपड़े रखने लगी। इस दौरान बच्चे रो रहे थे, चिल्ला रहे थे। उनके रोने की आवाज सुनकर संग दिल से संग दिल इंसान का दिल भी पिघल जाता। मैंने अपना सूटकेस बंद किया तो उसके साथ ही ज़ालिम शख्स की तरफ से अपने दिल को भी बंद कर लिया। "
"जैसे ही मैंने घर से निकलने का इरादा किया तो मुझे अल्लाह ताला के इस हुक्म ने बाहर जाने से रोक दिया,
وَ لَا یَخۡرُجۡنَ
"और ना वह खुद निकले। "
मैं दरवाजा बंद कर के कमरे में बैठ गई और सोचने लगी या अल्लाह! अब मैं क्या करूं? मैं लगातार रोए जा रही थी, मेरे पास मेरे बच्चे बैठ कर तसल्ली देने की कोशिश कर रहे थे। वह मेरे आंसू पोछ रहे थें। जब मुझे कुछ सुकून हो गया तो मेरा शौहर कमरे के दरवाजे के पास आकर कहने लगा:
"तुम गई क्यों नहीं?
क्या मैंने तुम्हें तलाक नहीं दे दी?"
मैंने उससे बड़ी नरमी से कहा: "एक बहुत बड़ी चीज मुझे जाने से रोक रही है?"
ने मजाक उड़ाते हुए कहा: "यह बहुत बड़ी चीज क्या है?"
मैंने कहा: "अल्लाह। अल्लाह ने अपनी एक आयत के ज़रिया मुझे जाने से रोक रखा है? "
शौहर बोला: "अब तुम कुरान की बात कर रही हो। तुम जब पहले मेरे खिलाफ बोलती थी और मेरे हुकूक को नज़रअंदाज करती थी तो उस वक्त तुम्हें कुरान याद नहीं आता था? अब तुम तलाकशुदा औरत हो और तुम्हें यहां रहने का कोई हक नहीं।"
मैंने जवाब दिया: "यह तो आप कह रहे हैं और इस घर का मालिक कुछ और कह रहा है। वह तो तलाक देने वाले मर्दों से मुखातिब होकर फरमा रहा है,
मैंने उससे बड़ी नरमी से कहा: "एक बहुत बड़ी चीज मुझे जाने से रोक रही है?"
ने मजाक उड़ाते हुए कहा: "यह बहुत बड़ी चीज क्या है?"
मैंने कहा: "अल्लाह। अल्लाह ने अपनी एक आयत के ज़रिया मुझे जाने से रोक रखा है? "
शौहर बोला: "अब तुम कुरान की बात कर रही हो। तुम जब पहले मेरे खिलाफ बोलती थी और मेरे हुकूक को नज़रअंदाज करती थी तो उस वक्त तुम्हें कुरान याद नहीं आता था? अब तुम तलाकशुदा औरत हो और तुम्हें यहां रहने का कोई हक नहीं।"
मैंने जवाब दिया: "यह तो आप कह रहे हैं और इस घर का मालिक कुछ और कह रहा है। वह तो तलाक देने वाले मर्दों से मुखातिब होकर फरमा रहा है,
لَا تُخۡرِجُوۡہُنَّ مِنۡۢ بُیُوۡتِہِنَّ وَ لَا یَخۡرُجۡنَ
[सूरह तलाक़ 65:1]
"ना तुम उनको उनके घरों से निकालो और ना वह खुद निकले।"
"अल्लाह का यह हुक्म मुझ पर भी लागू होता है और आप पर भी। मेरे लिए इतनी सजा काफी है जो मैंने कुरान के मुताबिक ना चल कर पाई है। जब मैंने देखा कि मैं यहां ही रहने पर हमारा हूं तो उसने भी अल्लाह के हुक्म को तस्लीम करने का फैसला कर लिया।"
"अपने शौहर के साथ तलाक के बाद रहने की कुरान के हुक्म पर अमल करने का खुशगवार नतीजा यह निकला कि मेरे शौहर ने मेरे साथ बोलचाल शुरू कर दी। धीरे-धीरे हम दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे और एक दूसरे को खुश रखने की कोशिश करने लगे। एक महीने के बाद ही घर सुकून, करार, मोहब्बत और प्यार का पालना (झूला) बन गया। मेरे शौहर ने तलाक से रूजू कर लिया और कुरान की बरकत से मेरी जिंदगी, मेरा घर, मेरे बच्चे और मेरा खानदान एक बहुत बड़ी मुसीबत से बच गया। मेरे बच्चे भटकने और नफसियाती मरीज बनने से बच गए। खुश हूं और कहती हूं कि मेरे सच्चे दाना रब ने किस कदर दुरुस्त फरमाया था:
لَعَلَّ اللّٰہَ یُحۡدِثُ بَعۡدَ ذٰلِکَ اَمۡرًا
[कुरान 65:1]
"शायद इसके बाद अल्लाह कोई नई सूरत पैदा कर दे। "
"मेरी अजीज़ बहनों! मैं अपने घर में अपने बच्चों के साथ पर बहुत खुश हूं। मेरे मुश्किल दिन गुजर गए। मेरी अब यही कोशिश होती है कि हर मुमकिन तरीके से अपने शौहर को खुश करूं और उसके खाने-पीने, कपड़े और राहत व आराम का ख्याल रखूं। मुझे अपने पहले के रवैया पर सख्त निदामत है, मैं अपनी पिछली गलतियों और कोताहिओं के बदले अपने शोहर का ज्यादा ख्याल रखती हूं, नफिल नमाजें अदा करती हूं और अस्तगफार करती हूं। मैं दुआ किया करती हूं कि अल्लाह ताला आप मुझे इतनी फुर्सत दें के मैं अपनी खिदमत वह मोहब्बत से अपने शौहर का दिल जीत लूं। वह हकीकत में एक अच्छा आदमी है। वह चाहता था कि मैं उसकी शराफत को उसकी कमजोरी ना समझूं। "
"यह है मेरा वाक्या। इस वक्त हमारे तालुकात बहुत ज्यादा खुशगवार हैं। हमें जो मोहब्बत, रवादारी और एक दूसरे की बात को समझना और तर्जीह देना इस वक्त है वह पहले कभी ना थी। पाक है अल्लाह, इंसानों को पैदा करने वाला, इंसान की नफ्स को जानने वाला, उसने यह हुक्म दे दिया के ऐसी ख्वातीन अपने घर में शौहर के साथ रहे ताकि इद्दत के दौरान में इस मसले का कोई खुशगवार, पसंदीदा हल निकल आए। मैं अपनी बहनों से दरख्वास्त करती हूं कि अगर किसी बहन को (अल्लाह ना चाहे) ऐसी सूरत हाल से गुजरना पड़े तो वह घर से ना निकले, अपने नफ्स और अना को तर्जी ना दें बल्कि अल्लाह के हुक्म पर अमल करें। औरतों को ऐसे मौकों पर अपनी "इज्ज़त" का भरम रखने के लिए नहीं सोचना चाहिए बल्कि अल्लाह के हुक्म की तामील में ही इज्जत समझना चाहिए। अल्लाह के हुक्म की नाफरमानी करके अपने घर को बर्बाद कर लेना कहां की समझदारी है।"
यह था इस ख्वातीन का वाक्य। मैंने यह सुनकर बारगाह ए इलाही में सजदा ए शुक्र अदा किया। क्या अजमत है इस कुरानी आयत की।
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