अल अफुव्व-ٱلْعَفُوُّ
अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल अफ़ुव्व।
अल अफ़ुव्व, इसके रुट है ع ف و जिसका मतलब होता है माफ़ करना, गलती को माफ़करने के साथ साथ उसी पूरी तरह मिटा देना, सजा देने से जाना, अनदेखा करना, फ़ौरन माफ़ कर देना, जितना माँगा जाये उससे ज़्यादा देना।
अल अफ़ुव्व का मतलब है बहुत ज्यादा माफ़ करने वाला। अल्लाह सुब्हान व तआला जो अल अफ़ुव्व है दरगुज़र करने और पर्दापोशी करने को पसंद करता है। चाहे गुनाह ख़्वाह संगीन क्यों न हो, कितना ही बड़ा क्यों न हो। उससे दरगुज़र करना, उसको माफ़ करना, उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं। वो अपने बन्दों के ऐब पर पर्दा डालता है। और उनको ज़ाहिर करना पसंद नहीं करता। और बन्दों के हक़्क़ में भी यही पसंद करता है के वो दूसरे ऐब, उनकी गलतिया, उनकी कोताहियाँ माफ़ कर दें। और उनको दूसरों के सामने रुस्वा न करें।
अल्लाह सुब्हान व तआला अपने बन्दों से उनकी बुराइयों पर, अपने रहम और पर दर गुज़र करता है। मेहरबानी और इनाम की बिनाह पर दरगुज़र करता है। और उनके लिए अपनी वसी दरवाज़ा खोल देता है। यहाँ तक के दिलों से हर तरह की मायूसी ख़त्म हो जाती है।और फिर हर तरह का बोझ उतर जाता है।
अल अफ़ुव्व का एक माना होता मिटाना यानि वो ज़ात है जो गुनाहो को इस तरह मिटा देता है जैसे वो कभी हुए ही न हो। और अरबी जुबां में इसका एक माना होता है दरगुज़र करना, यानि गुनाहो को देख कर भी उस पर सवाल न करना। और अल अफ़ुव्व का एक माना सज़ा के मुस्तहिक़ को सज़ा न देना। यानि वो शख्स जो अपनी जुर्म की वजह से सज़ा का मुस्तहिक़ था उसे उसकी गलती की सज़ा न दी और अल्लाह तआला ने दर गुज़र कर दिया।
अल अफ़ुव्व का एक माना है आसानी पैदा करना, अल्लाह सुब्हान व ताला फरमाता है, يُرِيدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡيُسۡرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡ "अल्लाह तुम्हारे लिए आसानी पैदा करता है, तंगी पैदा नहीं करता। " (क़ुरआन 2:185)
मिसाल के तौर पर जब इंसान के पास पानी न हो या वुज़ू करने में कोई बीमारी का मसला हो तो अल्लाह सुब्हान व तआला उसके लिए तयम्मुम की आसानी करते हैं, अगर किसी में खड़े होने की ताक़त न हो तो बैठ कर नमाज़ पढ़ने की सहूलियत देते हैं, कोई शख्स रमज़ान में रोज़े न रख सके तो उसे उनकी गिनती रमज़ान के बाद पूरी करने की रुखसत देते हैं, सफर में नमाज़ 4 की जगह 2 रकअत और बहुत सी ऐसी सहूलियत।
अल अफ़ुव्व कहते हैं ज़ायद चीज़ को, ये कसरत के माने में भी इस्तेमाल होता है। यानि अल अफ़ुव्व बन्दों की नेकियों को कई गुना बढ़ा देता है। यानि उनके हक़्क़ से कही ज़्यादा उनको अता करते हैं।
ये दरगुज़र करना अल अफ़ुव्व रोज़ाना इंसान जितना गुनाह कर रहे हैं, जिस क़दर गुनाहो में जकड़े हुए हैं के अगर अल अफ़ुव्व दरगुज़र न करे तो उनमे से एक भी ज़िंदा बाकि न रहे। ये अल्लाह तआला की दरगुज़र करने की खासियत है जो अल्लाह सुभान व ताला अपनी सारी मखलूक से करते हैं मगर यक़ीनन एक ख़ास दरगुज़र है जो अल्लाह सुब्हान व तआला अपने उन ख़ास करते हैं रब से तौबा करते हैं सच्चे दिल से माफ़ी मांगते हैं। ज़रिये अपने गुनाहो को मिटाने की कोशिश करते हैं, अच्छे आमाल से अपने रब को राज़ी करने की कोशिश करते हैं। उनसे भी दरगुज़र करता है ख़ूबसूरती के साथ। और अल्लाह तआला फरमाते हैं -
إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا
और बेशक अल्लाह हमेशा से बेहद माफ़ करने वाला निहायत बख्शीश फरमाने वाला है।
क़ुरआन 4:43
सूरह अश्शूरा में अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाते हैं -
وَهُوَ ٱلَّذِي يَقۡبَلُ ٱلتَّوۡبَةَ عَنۡ عِبَادِهِۦ وَيَعۡفُواْ عَنِ ٱلسَّيِّـَٔاتِ وَيَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ
वही है जो अपने बन्दों से तौबा क़बूल करता है और बुराइयों को अनदेखा करता है, हालाँकि तुम लोगों के सब कर्मों को वो जानता है।
क़ुरआन 42:25
अल्लाह के बन्दे जब खतायें करते हैं और फिर नादिम होते हैं, पश्चाताप करते हैं, माफ़ी मांगते हैं, पलटते हैं तो अल्लाह सुब्हान व तआला उन ख़ताओ को माफ़ करता है, दरगुज़र करता है, जब वो हर बात जनता है के गुनाह करने की क्या वजह थी, उससे क्या क्या नुक्सान हुआ, इरादा क्या था और फिर भी बन्दे के रुजू करने पर इन सब बातों से दरगुज़र करता है। और गुनाह कितने भी ज़्यादा हों अल्लाह सुभान व तआला उन सबको माफ़ फरमा सकता है। अल्लाह सुब्हान व तआला अपने बन्दों की छोटी बड़ी गलतियां बिना माफ़ी के दरगुज़र करते रहते हैं और बन्दों को मुश्किल और आज़माइश में भी डालता हैं के बंदा बड़ी बड़ी गलतियां करने से बच जाये। हक़ीक़त ये है के अल्लाह सुब्हान व तआला अपने बन्दों की कितनी ज़्यादा दरगुज़र फरमाता है, इंसान कई बार अपनी गलतियों से खुद ही मुश्किल में फंस जाता है।
अल्लाह सुब्हान व तआला इंसान की कितनी ही ख़ताओं से दरगुज़र कर देता है उसकी माफ़ी भी तालाब नहीं करता और कई दफा इंसान की अपनी गलतियों की वजह से वो मुश्किलों में फंस जाता है तो वो भी उसके और दूसरे के लिए इबरत का सबब होता है के आइंदा उस गलती से इंसान बचने की कोशिश करें।
وَمَآ أَصَـٰبَكُم مِّن مُّصِيبَةٍۢ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُوا۟ عَن كَثِيرٍۢ
तुमपर जो मुसीबत भी आई है, तुम्हारे अपने हाथों की कमाई से आई है और बहुत-से क़ुसूरों को तो वो वैसे ही अनदेखा कर जाता है।
क़ुरआन 42:30
यानि इंसानो को जो कोई भी मुसीबत पहुँचती हैं वो खुद उसके अपने कर्मो का फल होता है, यानि तुम्हारी अपनी गलतियां जो तुम्हारे सामने आती हैं और बहुत ज़्यादा से तो वो वैसे ही दरगुज़र कर देता है। यानि उन पर पकड़ता ही नहीं। उनको बिन कहे ही माफ़ कर देता है।
इसी तरह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इंसान के ऐबों पर , गलतियों पर, उसके कुसूरों पर पर्दा भी डालता है। रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
إِنَّ اللَّهَ عَزَّ وَجَلَّ سِتِّيرٌ يُحِبُّ السَّتْرَ
यक़ीनन अल्लाह तआला परदापोश है। और पर्दापोशी को पसन्द फ़रमाता है।(सुनन नस'ई 406)
यानि बन्दे की गलतियों और ऐबों को ढाँपता रहता है। यानि अल्लाह सुब्हान व तआला खुद भी पर्दापोशी फरमाता है और बन्दों से भी चाहता है के वो भी दूसरों की पर्दापोशी करें। इसी अल्लाह तआला पसंद नहीं करते के कोई ऐब खोले, यानि इंसान किसी दूसरे के ऐबों को बयां करे ये भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को पसंद नहीं और कोई खुद अपने ऐब बयान भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को पसंद नहीं। रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: के मेरी तमाम उम्मत को गुनाहो पर माफ़ी मिलेगी सिवाय उनके जो अपने गुनाहों का एलान करने वाले हो। (सही मुस्लिम 2990)
और गुनाहो को खुल्लमखुल्ला करने में ये बात भी शामिल है के कोई इंसान रात को कोई गुनाह करे और बावजूद इसके के अल्लाह तआला उसके इस गुनाह को छुपा दे मगर पर वो लोगों से कहने लगे के रात को मैंने फलां फलां गुनाह का काम किया था। यानि अपना गुनाह खुद अपने मुँह से बोल के लोगों को बताने लगे। यानि रात गुज़र गयी थी, उसके रब ने उसका गुनाह छुपाए रखा लेकिन जब सुबह हुई तो वो अपने मुँह से अपने ऐब खोलने लगा। तो अल्लाह सुब्हान व तआला खुद हम पर हमसे भी ज़्यादा मेहरबान हैं। यानि हम खुद भी अपनी वो भलाई नहीं जानते, हम खुद भी अपने ऊपर वो एहसान नहीं करते, जो अल्लाह सुब्हान व तआला हम पर करता है।
ये है हमारा रब अल अफ़ुव्व जो बड़ा ही दरगुज़र करने वाला है।
ईमान और तक़वा गुनाहो को मिटाने का जरिया बनता है। इस्लाम लाना, हिजरत करना ये पिछले गुनाहो को मिटाने जरिया है।
क्या खूबसूरत नाम है ये अल्लाह सुब्हान व तआला का। अपने बन्दों को माफ़ करने वाला और ऐसी माफ़ी के गुनाहो को मिटा देना, ये हमारे रब की कितनी बेहतरीन सिफ़ात है। अपने रब, अल अफ़ुव्व, से मांगे अपने सरे गुनाहो की माफ़ी, और अपने रब की तरफ रुजू करें। क्युकी माफ़ी मांगने का मौका सिर्फ ज़िन्दगी रहते तक है मरने के बाद ये मौका बाकी नहीं रहेगा।
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