अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-5)
सैयदना सालेह अलैहिस्सलाम और समूद की ऊंटनी (बच्चों के लिए)
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1- आद के बाद
समूद आद के वैसे ही वारिस हुए जैसे आद नूह अलैहिस्सलाम की उम्मत के वारिस हुए थे।
समूद भी आद के नक़्श क़दम पर थे जैसे आद नूह अलैहिस्सलाम की उम्मत के नक़्श क़दम पर थे।
समूद की ज़मीन बहुत ख़ूबसूरत और हरी भरी थीं उसमें फुलवारियां थीं, पानी के चश्मे थे, और ऐसे बाग़ थे जिसके नीचे नहरें बहती थीं। समूद के यहां भी आद की तरह बिल्डिंग खेतियां और बाग़ की ज़्यादाती थीं।
वह समझदारी और कारीगरी में बहुत बुलंदी पर थे। वह पहाड़ों को तराश कर बहुत सुंदर और विशाल घर बनाते थे और पत्थरों पर अनोखी अनोखी नक़्क़ाशी (painting) करते थे।
पत्थर तो उनकी अक़्ल और कारीगरी के सामने जैसे नरम और मुलायम हो जाता था वह उसपर जैसे चाहते कारीगरी का हुनर दिखाते थे।
जब कोई इंसान उनके शहर में दाख़िल होता तो वह हैरान हो जाता, वह देखता कि पहाड़ की तरह बड़े बड़े महल हैं ऐसा लगता है जैसे उसे इंसानों ने नहीं बल्कि जिन्नों ने बनाया है, वह दीवारों पर सुंदर सुंदर फूल देखता जैसे कि बसंत ने उसे उगाए हों। अल्लाह ने केवल समूद पर आसमान और ज़मीन बरकत के दरवाज़े ही नहीं बल्कि बरकत के तमाम दरवाज़े खोल दिए थे।
आसमान से बारिश उनके लिए होती, ज़मीन पर पेड़ पौधे उनके लिए उगते, बाग़ उनके लिए फल फूल देते। अल्लाह ने उनके रिज़्क़ और आबादी में ख़ूब बरकत दी थी।
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2- समूद का कुफ़्र
लेकिन इन सब के बावजूद समूद ने न तो अल्लाह का शुक्र अदा करते थे और न उसकी इबादत ही करते थे बल्कि वह कुफ़्र और सरकशी पर जमे रहे, वह अल्लाह को भूले रहे और जो उनको दिया गया था उसी में मगन रहे और दावा करने लगे कि "कौन है हम से ज़्यादा शक्तिशाली।"
उनके दिमाग़ में यह बात बैठ गई थी कि उन्हें मौत नहीं आएगी, और न यह महल और यह बाग़ से कभी निकलेंगे।
उनका ख़्याल था कि इन पहाड़ों में मौत दाख़िल नहीं हो सकेगी बल्कि रास्ता ही नहीं पाएगी।
शायद कि उन्होंने यह समझा हो कि नूह अलैहिस्सलाम की उम्मत तो घाटी में रहने के कारण डूब गई थी और आद इसलिए बर्बाद हो गए कि वह नर्म जगह पर रहते थे और यह तो महफ़ूज़ मकान में होने की वजह से ख़ौफ़ और मौत से बच जाएंगे।
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3- मूर्तिपूजा
इतना ही नहीं था बल्कि वह पत्थर तराशते थे और मूर्तिपूजा करते थे, वह पत्थरों को पूजते थे जैसे कि नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम पूजती थी और आद भी ऐसा ही करते थे।
अल्लाह ने तो उन्हें पत्थरों का बादशाह बनाया था लेकिन वह अपनी जिहालत के कारण पत्थरों के बंदे बन गए।
अल्लाह ने उनपर दया की और उन्हें बेहतरीन रिज़्क़ दिया लेकिन उन्होंने अपने आप को ज़लील किया और इंसानियत को अपमानित किया।
"बेशक अल्लाह लोगों पर ज़र्रा बराबर ( कण मात्र) भी ज़ुल्म नहीं करता है लेकिन लोग अपने ऊपर स्वयं ज़ुल्म करते हैं।" (1)
कितने तअज्जुब की बात है! वही पत्थर जिसको यह अपने हाथों से तराशते थे उसका न तो इनकार करते थे और न उसकी नाफ़रमानी करते थे। उसी के आगे नतमस्तक होते थे और उसी के आगे सज्दे में गिर पड़ते थे। क्या ताक़तवर कमज़ोर की इबादत करता है? क्या मालिक अपने ग़ुलाम को सज्दा करता है? वह अल्लाह को क्या भूले थे कि अपने आप को ही भूल गए थे और जब उन्होंने अल्लाह की इबादत से इनकार किया तो अल्लाह ने उन्हें ज़लील कर दिया।
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1, सूरह 10 यूनुस आयत 44
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4- सालेह अलैहिस्सलाम
अल्लाह ने इरादा किया कि उनकी जानिब एक रसूल भेजे जैसे कि नूहअलैहिस्सलाम की क़ौम की जानिब भेजा था और आद की जानिब भी एक रसूल (हूद अलैहिस्सलाम) को भेजा था।
बेशक अल्लाह अपने बंदों के कुफ़्र से राज़ी नहीं होता, अल्लाह ज़मीन में फ़साद को पसंद नहीं करता उनमें एक व्यक्ति थे जिनका नाम सालेह था, वह शरीफ़ घराने में पैदा हुए और अच्छे माहौल में पले बढ़े। वह बहुत ही शरीफ़ थे, बहुत ही नेक थे। लोग उनकी तरफ़ इशारा करते हुए कहा करते, यह सालेह है, सालेह, लोगों को उनसे बड़ी उम्मीदें थी वह कहते कि जल्द ही इसकी बहुत इज़्ज़त होगी। लोग समझते थे कि सालेह एक दिन इज़्ज़तदार और मालदार लोगों में से होगा, उनके पास सुंदर महल और बड़ा बाग़ होगा, उनके पिता सोचते कि उनका बेटा अपनी अक़्ल से बहुत माल कमायेगा और लोगों के बीच उसका दबदबा होगा। जब वह घोड़े पर सवार होकर बाहर निकलेगा तो उसके पीछे नौकर चाकर होंगे, लोग उसे सलाम करेंगे और आपस में चर्चा करेंगे "यह फ़ुलां का बेटा है फ़ुलां का। उसे कितनी ख़ुशी होगी जब वह लोगो से कहते हुए सुनेगा बहुत ख़ुशक़िस्मत है उस का बेटा, कितना दौलतमंद है उसका बेटा।
लेकिन अल्लाह ने कुछ और ही इरादा किया बेशक अल्लाह ने इरादा किया कि उन्हें नबूवत बख़्शे और उन्हें उनकी क़ौम की तरफ़ भेजे ताकि वह लोगों को अंधेरे से निकाल कर रौशनी में ले आए। भला इससे बड़ा मर्तबा क्या होगा और इससे बड़ी इज़्ज़त क्या हो सकती है?
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5- सालेह की दावत
सालेह अपनी क़ौम के बीच और बुलंद आवाज़ से कहा ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की इबादत करो उसके इलावा किसी की इबादत न करो। मालदार लोग खाने, पीने और खेल और तमाशे में मशग़ूल थे और मूर्तिपूजा करते थे उन्हें इसके इलावा कुछ नज़र नहीं आता था उन्हें सालेह की दावत अच्छी नहीं लगी, समूद के दौलतमंद चीख़ उठे और कहने लगे यह कौन है? नौकरों ने कहा यह सालेह है उन्होंने पूछा क्या कहता है? नौकरों ने जवाब दिया, वह कहता है अल्लाह की इबादत करो उसके इलावा किसी और की इबादत न करो वह यह भी कहता है कि अल्लाह तुमको तुम्हारी मौत के बाद उठाएगा और तुम्हें बदला देगा। उसका यह भी कहता है कि मैं रसूल हूं अल्लाह ने मुझे अपनी क़ौम की तरफ़ भेजा है।
दौलतमंद हंसे और कहा बेचारा यह रसूल क्या होता है? यह रसूल जिसके पास न तो महल है, न बाग़ है, न इसके पास खेतिया है और न खुजूर के दरख़्त है फिर यह कैसे रसूल हो गया।
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6- मालदारों का प्रचार
मालदारों ने देखा कि कुछ लोग सालेह की दावत से प्रभावित हो रहे हैं तो उन्हें अपनी सत्ता के विषय में भय पैदा हुआ, उन्होंने प्रचार करना शुरू किया।
"यह नहीं है मगर तुम्हारे जैसा एक इंसान जो वह खाता है वही तुम भी खाते हो, जो वह पीता है वही तुम भी पीते हो। अगर अपने ही जैसे एक इंसान की बात मानोगे तो तुम नुक़सान में रहोगे।" (1)
"क्या वह तुमको धमकी देता है कि जब तुम मर जाओगे और मिटी व हड्डी रह जाओगे तो तुम दोबारा उठाए जाओगे।" (2)
"नामुमकिन, बिल्कुल नामुमकिन है यह वादा जो तुमसे किया जा रहा है।" (3)
"ज़िन्दगी कुछ नहीं है मगर केवल यही दुनिया की ज़िन्दगी। यहीं हमको मरना और जीना है और हम हरगिज़ दोबारा उठाए जाने वाले नहीं हैं।" (4)
"यह शख़्स अल्लाह के नाम पर सिर्फ़ झूठ घड़ रहा है और हम कभी इसकी बात मानने वाले नहीं हैं।”(5)
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1,सूरह 23 अल मुमेनून आयत 33
2, सूरह 23 अल मुमेनून आयत 34
3, सूरह 23 अल मुमेनून आयत 35
4, सूरह 23 अल मुमेनून आयत 36
5, सूरह 23 अल मुमेनून आयत 37, 38
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7- हमारा गुमान ठीक नहीं था
लोगों ने सालेह अलैहिस्सलाम की दावत का इनकार किया और ईमान नहीं लाए।
जब सालेह अलैहिस्सलाम ने नसीहत की और मूर्तिपूजा से मना किया तो उनका जवाब था ऐ सालेह! तुम तो बहुत शरीफ़ और बहुत ही प्यारे बच्चे थे हम तो समझते थे कि तुम लोगों में बड़े और इज़्ज़तदार बन कर उभरोगे, हमारा तो यह गुमान था कि तुम फ़ुलां फ़ुलां जैसे हो जाओगे मगर तुम तो कुछ भी न हो सके। जो तुम्हारी उम्र के थे लेकिन अक़्ल में तुम्हारे बराबर न थे वह तो बड़े अदमी बन गए।
ऐ सालेह! तुम ने तो फ़कीरों का रास्ता चुन लिया तुम्हारे बारे में हमारा जो गुमान था वह ग़लत साबित हुआ और हमारी उम्मीदें मिट्टी में मिल गईं।
तुम्हार बाप बेचारा, तुमसे कोई फ़ायदा उसे हासिल नहीं हुई। तुम्हारी मां बेचारी, उसकी तमाम मेहनत बेकार गई!
सालेह अलैहिस्सलाम ने उनकी बातें सुनी और अफ़सोस किया। जब वह अपनी क़ौम के पास से गुज़रते तो लोग कहते, ऐ सालेह के बाप तुम्हारा बेटा तो समझो तुम्हारे हाथ से गया।
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8- सालेह की नसीहत
सालेह अलैहिस्सलाम अपaनी क़ौम को बराबर नसीहत करते रहे और उन्हें हिकमत और नरमी के साथ अल्लाह की जानिब बुलाते रहे। वह कहते, ऐ मेरे भाइयो! तुम क्या समझते हो कि हमेशा यहीं रहना है। या तुम्हें गुमान है कि इन महलों में हमेशा रहोगे।
क्या तुम समझते हो कि इन बाग़ और नहरों में हमेशा ऐश करोगे और तुम्हें गुमान है कि तुम हमेशा इन खेतियों और दरख़्तों से खा सकोगे। क्या तुम पहाड़ तराश तराश कर ऐसे मकान बनाते रहोगे।
कभी नही! कभी नहीं!
ऐसा नहीं हो सकता ऐसा हर्गिज़ नहीं होगा।
फिर तुम्हारे बाप दादा कैसे मर गए मेरे भाईयो! उनके भी महल थे, बाग़ थे और चश्मे थे।
उनके पास भी तो खेतियां थीं, शहद के छत्ते थे, उन्होंने भी पहाड़ो को तराश कर घर बना रखे थे जिसमें वह सुकून से रहते थे।
लेकिन इन तमाम चीज़ों ने उन्हें क्या फ़ायदा पहुंचाया? वह सब मिलकर भी उन्हें न बचा सकीं और मौत का फ़रिश्ता आ पहुंचा और उनतक पहुंचने का रास्ता तलाश कर लिया। ऐसे ही तुम भी मरोगे फिर अल्लाह तुम्हें दोबारा उठाएगा और तुमसे उन नेअमतों के बारे में सवाल करेगा।
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9- मैं तुम से कोई अज्र नहीं मांगता
मेरे भाईयो! तुम मुझसे क्यों दूर भागते हो? तुम मुझसे डरते क्यों हो? मैं तुम्हारे माल में से कुछ भी कम नहीं करूंगा और न मैं तुमसे कोई चीज़ मांगता हूं।
मैं तुमको नसीहत करता हूं, मैं तो केवल तुम्हारे पास अपने रब का पैग़ाम पहुंचाता हूं।
"मैं तुमसे कोई बदला नहीं मांगता मेरा अज्र तो अल्लाह के पास है जो तमाम संसार का पालनहार है।" (1)
ऐ मेरे भाईयो! तुम मेरी इताअत क्यों नहीं करते। मैं तो तुम्हें नसीहत करने वाला और अमानतदार हूं।
तुम उनकी इताअत क्यों करते हो जो लोगों पर ज़ुल्म करते हैं, उनका माल खाते हैं , ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं और कोई सुधार नहीं चाहते!
क़ौम निरुत्तर हो गई, उसके पास सालेह अलैहिस्सलाम की इन बातों को कोई जवाब नहीं था।
"तुम तो जादूगर हो, तुम तो हमारे जैसे एक इंसान हो अगर तुम सच्चे हो तो फिर कोई निशानी ले आओ।" (2)
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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 145
2, सूरह 26 अश शुअरा आयत 153, 154
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10- अल्लाह की ऊंटनी
सालेह अलैहिस्सलाम ने पूछा, बताओ कैसी निशानी चाहते हो?
क़ौम ने कहा, अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा निकालो इस पहाड़ से एक गाभिन (pregnant) ऊंटनी! लोगों को तो यही मालूम था कि ऊंटनी को ऊंटनी ही जन्म दे सकती है ज़मीन से ऊंटनी पैदा नहीं हो सकती और न पत्थर से निकल सकती है। उन्हें तो यक़ीन था कि सालेह हार जाएंगे और वह जीत जाएंगे!
लेकिन सालेह अलैहिस्सलाम का तो अपने रब पर ईमान मज़बूत था वह तो भली भांति जानते थे कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
सालेह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की और वैसा ही हुआ जैसा लोगों में तलब किया था, पहाड़ से एक गाभिन ऊंटनी निकली और उसने बच्चे को जन्म दिया।
लोग हैरान हो गए और दहशत में आ गए लेकिन एक के इलावा कोई ईमान नहीं लाया।
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11- पारी
सालेह अलैहिस्सलाम ने कहा, यह अल्लाह की ऊंटनी है और यह अल्लाह की निशानी है! तुमने मांग की थी इसलिए अल्लाह ने उसको अपनी क़ुदरत से पैदा किया।
इस ऊंटनी की इज़्ज़त करो, "बुरी नीयत से इसे हाथ भी मत लगाना वरना तुमको जल्द ही अज़ाब पकड़ लेगा।" (1)
यह ऊंटनी अल्लाह की ज़मीन पर चरती फिरेगी और पानी पीयेगी यह जब और जहां चाहे आएगी और जाएगी उसका दाना पानी तुम्हारे ज़िम्मे नहीं है क्योंकि दाना भी बहुत है औऱ पानी भी बहुत है।
यह ऊंटनी बहुत बड़ी और जन्मजात अजीब थी। लोगों के चौपाये उससे डरते और भागते थे। जब वह पानी पीने आती तो दूसरे जानवर बिदकते और भाग खड़े होते।
सालेह अलैहिस्सलाम ने यह देखा तो फ़ैसला किया कि "एक दिन ऊंटनी का होगा और एक दिन तुम्हारे जानवरों का। चुनांचे एक दिन यह ऊंटनी पानी पीयेगी और दूसरे दिन तुम्हारे जानवर पानी पीयेंगे।
इस प्रकार जब ऊंटनी की पारी होती तो वह जाती और पानी पीती, और जब लोगों के जानवरों की पारी होती तो वह जाते और पानी पीते।
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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 156
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12- समूद की सरकशी
लेकिन समूद ने घमंड और सरकशी की कहा, हमारे जानवर भला रोज़ाना पानी क्यों नहीं पीयेंगे?
लोग इस ऊंटनी से बोर हो गए क्योंकि उनके जानवर उससे बिदकते थे और सालेह अलैहिस्सलाम बने उन्हें पहले ही वार्निंग दे दी थी कि इस ऊंटनी की बेइज़्ज़ती न करें लेकिन वह न माने और आपस में मशविरा करने लगे "कोई है जो इस ऊंटनी को मार डाले"
एक व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला, मैं
दूसरा बोला, मैं
दोनों बदबख़्त गए और ऊंटनी के निकलने की जगह घात लगा कर बैठ गए। जब वह ऊंटनी निकली तो उनमें से एक ने तीर मारा और दूसरे ने बरछी और उसे मार डाला।
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13- अज़ाब
जब सालेह अलैहिस्सलाम को पता चला कि ऊंटनी को मार डाला गया है तो उन्हें अफ़सोस हुआ, वह बहुत दुखी हुए और लोगों से कहा, "अब केवल तीन दिन अपने घरों में और मज़े कर लो यह ऐसी मुद्दत है जो झूठी साबित नहीं होगी।" (1)
शहर में नौ लोग थे जो ज़मीन में फ़साद फैलाते थे और कोई सुधार नहीं चाहते थे उन्होंने क़सम खाई और कहा "हम सालेह और उसके घर वालों को रात में क़त्ल कर देंगे और जब हमसे पूछा जाएगा तो हम कह देंगे हमें कुछ नहीं पता?
जब तीसरा दिन आया तो उन पर अज़ाब आ गया वह अपनी आदत के अनुसार उठे लेकिन वह तो सख़्त ज़लज़ले के साथ एक चीख़ थी। ऐसी चीख़ जिससे दिल फट जाए और ऐसा ज़लज़ला जिससे घर गिर जाए। समूद पर वह बहुत सख़्त दिन था। सभी मर गए पूरा शहर तबाह व बर्बाद हो गया। सालेह अलैहिस्सलाम और ईमान लाने वाले इस बदबख़्त शहर से हिजरत कर गए । अब भला वह इस शहर में क्या करते?
सालेह अलैहिस्सलाम निकले तो अपनी क़ौम को देख रहे थे कि मुर्दा पड़ी हुई थी। उन्होंने दुखी आवाज़ में कहा,
"ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम तक अपने रब का पैग़ाम पहुंचा दिया और तुम्हारा भला चाहा लेकिन तुम नसीहत करने वालों को पसंद नहीं करते थे।" (2)
आज कोई इंसान देखता कि महल वीरान पड़े हैं, कूएं बेकार हो गए हैं, बस्तियां डरावनी हो गई हैं उसमें न कोई पुकारने वाला था और न कोई जवाब देने वाला था।
जब तबूक जाते हुए सीरिया जाते हुए रास्ते मे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुज़र समूद की बस्ती से हुआ तो फ़रमाया, "उन घरों में दाख़िल मत होना जिन्होंने ख़ुद पर ज़ुल्म किया मगर रोते हुए ऐसा न हो कि तुम्हें भी वही अज़ाब पहुंचे जो उन्हें पहुंचा था।" (3)
याद रखो! समूद ने अपने रब का इंकार किया और दूर फेंक दिए गए समूद।" (4)
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1, सूरह 11 हूद आयत 65
2, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 79
3, सही मुस्लिम हदीस 7465
4, सूरह 11 हूद आयत 68
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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