88. Al Gani - अल ग़नी - Asma ul husna - 99 Names Of Allah

 

Al gani Asma ul husna 99 names of allah hindi


अल ग़नी - ٱلْغَنِيُّ

अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल ग़नी । 

अल ग़नी- इसके रुट है- غ ن ي  - अरबी में इसका मतलब है, हर जरुरत और चाहत से पाक और बेनियाज़, पूर्णतः  संपन्न और संतुष्ट, ख़ुदमुख़्तार, बेहिसाब असबाब का मालिक, बेहद समृद्ध, स्वतः यथेष्ट, मुक्तिदाता, धनप्रदः। 

अल ग़नी, वो ज़ात है जो हर ज़रूरत से पाक और बेनियाज़ है, पूर्णतः सम्पन्न, वो अकेला खुद मुख्तार है और किसी पर निर्भर नहीं, और तमाम मखलूक उसी पर निर्भर है। अल ग़नी, जिसके ख़ज़ाने अनंत और कभी न ख़तम होने वाले हैं, वो सारी दुनिया के तमाम मखलूक को जितना अता करता है उससे उसके ख़ज़ानों में एक तिनके जितनी भी कमी नहीं आती।

हदीस ऐ क़ुदसी का मफ़हूम है रसूलुल्लाह ने फ़रमाया के अल्लाह तआला फरमाता है - तुम में से सबसे पहले से लेकर आखिरी तक सारे, इंसान और जिन्न, एक जगह खड़े होकर मुझसे मांगे, और हर एक को जो कुछ उसने माँगा है दे दूँ , तो जो कुछ मेरे पास है उसमे इससे ज़्यादा कमी नहीं आएगी जितनी एक सुई को समुन्दर में डाल कर निकालें। -(सही मुस्लिम 2557 a )

ये अल्लाह के ख़ज़ाने हैं, की पहले इंसान और पहले जिन्न से लेकर क़यामत तक के सरे अगर अपनी सारी ख्वाहिशात भी अल्लाह सुब्हान व तआला से मांग लें और अल्लाह तआला सबको दे दे तब भी एक सुई जितना पाना समुन्दर से पानी काम कर सकती है बस उतनी कमी होगी। अल ग़नी से अपनी हैसियत के हिसाब से नहीं बल्कि उसकी शान के हिसाब से माँगे।  अल्लाह सुब्हान व तआला बेहिसाब देने वाला है।  

अब अगर हम मांगे अल्लाह से के हमे गनी बना दे तो इसका क्या मतलब हो सकता है ? क्या पैसा और महल ही असली दौलत है ? हाँ ये भी एक दौलत है मगर अगर किसी पास बहुत पैसा है मगर ज़िन्दगी का अरसा कम है, बीमारियां है , कोई परिवार नहीं, कोई दोस्त नहीं या अक्ल ही कम है, क्या उसे ग़नी कह सकते हैं ? और अगर किसी को अपनी ज़िन्दगी का असल मक़सद ही न मिला, हिदायत न मिली , अल्लाह सुब्हान व तआला की इबादत और अल्लाह को राज़ी करने का मौका न मिला , और आख़िरत में उसको मालूम चले के उसने कुछ न कमाया तो क्या उसे ग़नी कहा जा सकता है ?

अल ग़नी, सिर्फ माल ही नहीं बल्कि हर चीज़ में गनी है चाहे वो इल्म हो या ताक़त, प्रभुत्व हो या सत्ता हो या पैसा। इससे समझें के अल ग़नी सिर्फ माल के मामले में नहीं बल्कि हर मामले में गनी है और उसके पास सब कुछ है और हर चीज़ का मालिक है, उसे किसी की ज़रूरत नहीं है और वो पूरी तरह से संपन्न है। 

قَالَ الَّذِیۡ عِنۡدَہٗ  عِلۡمٌ  مِّنَ  الۡکِتٰبِ اَنَا اٰتِیۡکَ بِہٖ قَبۡلَ  اَنۡ یَّرۡتَدَّ اِلَیۡکَ طَرۡفُکَ ؕ فَلَمَّا رَاٰہُ  مُسۡتَقِرًّا عِنۡدَہٗ  قَالَ ہٰذَا مِنۡ فَضۡلِ رَبِّیۡ  ۟ ۖ لِیَبۡلُوَنِیۡۤ  ءَاَشۡکُرُ اَمۡ  اَکۡفُرُ ؕ وَ مَنۡ شَکَرَ فَاِنَّمَا یَشۡکُرُ  لِنَفۡسِہٖ ۚ وَ مَنۡ  کَفَرَ  فَاِنَّ رَبِّیۡ غَنِیٌّ  کَرِیۡمٌ 

जिस शख़्स के पास किताब का इल्म था वो बोला, “मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे लाए देता हूँ।” ज्यों ही कि सुलैमान ने वो तख़्त अपने पास रखा हुआ देखा, वो पुकार उठा, “ये मेरे रब की मेहरबानी है ताकि वो मुझे आज़माए कि मैं शुक्र करता हूँ या नाशुक्रा बन जाता हूँ। और जो कोई शुक्र करता है तो उसका शुक्र उसके अपने ही लिये फ़ायदेमंद है, वरना कोई नाशुक्री करे तो मेरा रब ग़नी (बेनियाज़/निस्पृह) और बुज़ुर्गी और बड़ाई वाला है।”

क़ुरआन 27:40


وَ رَبُّکَ الۡغَنِیُّ ذُو الرَّحۡمَۃِ ؕ اِنۡ یَّشَاۡ یُذۡہِبۡکُمۡ وَ یَسۡتَخۡلِفۡ مِنۡۢ بَعۡدِکُمۡ  مَّا یَشَآءُ  کَمَاۤ   اَنۡشَاَکُمۡ  مِّنۡ ذُرِّیَّۃِ  قَوۡمٍ اٰخَرِیۡنَ

तुम्हारा रब ग़नी (बेनियाज़) है और मेहरबानी उसका तरीक़ा है। अगर वो चाहे तो तुम लोगों को ले जाए और तुम्हारी जगह दूसरे जिन लोगों को चाहे ले आए, जिस तरह उसने तुम्हें कुछ और लोगों की नस्ल से उठाया है।

क़ुरआन 6:133

बाज़ दफ़ा हम अपने रब की दी हुई तमाम नेमतों की नाशुक्री करते हैं।  अल्लाह सुब्हान व तआला ने हमें तमाम  नेमतें अता की हैं और उन पर कभी गौर नहीं करते। हमे मिली हुई अल्लाह सुब्हान व तआला की नेमतों से हम संतुष्ट नहीं होते। ये शैतान की चाल होती है, हम एक चीज़ के पीछे भागते हैं, जब वो मिल जाती है तो दूसरी के पीछे फिर तीसरी।  इसी तरह तमाम उम्र निकल जाती है।  यहाँ तक के हम कब्र तक आ पहुंचते हैं। ये इब्लीस का वादा है जो उसने खुद से किया था आदम अलैहिसलाम को सजदे से इंकार करने के बाद " आगे और पीछे, दाएं और बाएं , हर  इनको घेरूँगा और इनमे से ज़्यादातर लोगों को तू शुक्रगुज़ार नहीं पायेगा। (क़ुरआन 7: 17 ) नबी करीम ﷺ  की सुन्नत से हमे बेहतरीन सीख मिलती है।  नबी करीम ﷺ कभी भी खाने या पीने की चीज़ों की तारीफ नहीं करते थे मगर हमेशा जिसने बनाया है उस रब की तारीफ बयान करते थे।  खाने से फारिग होने के बाद आप ﷺ  फरमाते "तमाम क़िस्म की तारीफ अल्लाह ही के लिए है जिसने हमे खिलाया पिलाया और हमें मुसलमान बनाया। - (मिश्कात 4204 ) हमे भी नबी करीम की तरह ज़िन्दगी की  के लिए अपने रब का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। 

इंसान के इख्तियार में कुछ  भी नहीं मगर हर काम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के इख्तियार में है। हर कामयाबी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह सुब्हान व ताला की ही तरफ से है और हम को जब भी कोई परेसहनी या कोई ज़रूरत हो अल ग़नी अल मुग़नी से मांगे।  अल्लाह सुब्हान व तआला के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं।  वो बेनियाज़ और बेपरवाह है। उसके ख़ज़ाने बेहिसाब हैं और वो ही सबको नवाज़ने वाला है।  



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