Kya Ambiya e Ikram (as) farishton ki tarha masoom thein?

अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम की मासूमियत और इस्मत का सहीह अक़ीदा


क्या अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम फरिश्तों की तरह मासूम थे?


क्या अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम फरिश्तों की तरह मासूम थे?


नोट: क़ुरआन हकीम को समझे बगैर अपने अक़ाइद और नज़रियात बनाना सरासर गुमराही है।


"यक़ीनन हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है, पस क्या है कोई नसीहत हासिल करने वाला?" [सूरह अल-क़मर : 22]

"ये बाबरकत किताब है जिसे हमने आपकी तरफ़ इसलिए नाज़िल फ़रमाया कि लोग इसकी आयतों पर गौरो फ़िक्र करें और अक्लमंद इससे नसीहत हासिल करें।" [सूरह साद : 29]

"और इनसे जब कभी कहा जाता है कि अल्लाह तआला की उतारी हुई किताब की ताबेदारी करो तो जवाब देते हैं कि हम तो उस तरीके की पैरवी करेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओ को पाया , अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे हों।" [सूरह अल-बक़रह :170]

"वो जिसे चाहे हिक्मत और दानाई देता है और जिस शख्स को हिक्मत और समझ दिया जाए वो बहुत सारी भलाई दिया गया और नसीहत सिर्फ अक़्लमंद ही हासिल करते हैं।" [सूरह अल-बक़रा : 269]

"और दुनिया में ज्यादा लोग ऐसे हैं कि अगर आप उनका कहना मानने लगे तो वो आपको अल्लाह की राह से बेराह कर दें, वो महज़ बेअसल ख्यालात पर चलते हैं और बिल्कुल क्यासी बातें करते हैं।" [सूरह अल-अनआम :116]


क़ुरआन ए हकीम अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम को मासूम मानता है इस हवाले से की अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम अल्लाह के चुने हुए बंदे हैं।

वो कभी गुनाह नहीं करते। वे पैदाइश से लेकर मौत तक गुनाहों से महफूज़ और मासूम होते हैं।

रहा इजतेहादी ख़ता तो ये अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम से भी हुई हैं।

जो क़ुरआन ए हकीम में मुख्तलिफ जगहों पे आई हैं।


इससे पहले हम इजतेहादी ख़ता को समझते हैं-

सय्यिदना अम्र बिन आस रज़ी० रिवायत करते हैं की रसूलल्लाह ﷺ ने ईरशाद फरमाया: 

"जब कोई हाकीम अपने इजतेहाद से  फैसला करे और सही फैसले पर पहुंच जाए तो उसे दुगना अजर मिलता है और अगर वो इजतेहादी ख़ता कर बैठे तो (भी अच्छी नियत पर) उसके लिए एक अजर है।"

[सहीह बुखारी: 7352; सहीह मुस्लिम: 4487]


अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम के कुछ इजतेहादी ख़ताएं हुई जिसे अल्लाह पाक ने क़ुरान ए मजीद में बयान किया,


ऐ नबी (ﷺ)! "इन लोगों ने इस कोशिश में कोई कमी उठा नहीं रखी कि तुम्हें फ़ित्ने में डालकर उस वो्य से फेर दें जो हमने तुम्हारी तरफ़ भेजी है, ताकि तुम हमारे नाम पर अपनी तरफ़ से कोई बात गढ़ो।अगर तुम ऐसा करते तो वो ज़रूर तुम्हें अपना दोस्त बना लेते,और नामुमकिन न था कि अगर हम तुम्हें मज़बूत न रखते तो तुम उनकी तरफ़ कुछ-न-कुछ झुक जाते।लेकिन अगर तुम ऐसा करते तो हम तुम्हें दुनिया में भी दोहरे अज़ाब का मज़ा चखाते और आख़िरत में भी दोहरे अज़ाब का, फिर हमारे मुक़ाबले में तुम कोई मददगार न पाते।" [सूरह बनी इसराइल : 73-75]

"वो उसकी तरफ़ बढ़ी और यूसुफ़ भी उसकी तरफ़ बढ़ता अगर अपने रब की बुरहान  [ दलील] न देख लेता।ऐसा हुआ, ताकि हम उससे बुराई और बेशर्मी को दूर कर दें। हक़ीक़त में वो हमारे चुने हुए बन्दों में से था।" [सूरह यूसुफ : 24]

"याद करो जब वो (युनुस अलैहिस्सलाम) एक भरी हुई नाव की तरफ़ भाग निकला, फिर पर्ची डालने में शरीक हुआ और उसमें मात खाई।आख़िरकार मछली ने उसे निगल लिया और वो मलामत का मारा था।अब अगर वो तस्बीह करनेवालों में से न होता, तो क़ियामत के दिन तक उसी मछली के पेट में रहता।" [सूरह साफात : 140-144]

फिर हमने आदम से कहा कि “तुम और तुम्हारी बीवी, दोनों जन्नत में रहो और यहाँ जी भर कर जो चाहो खाओ, मगर उस पेड़ का रुख़ न करना, वरना ज़ालिमों में गिने जाओगे।”
आख़िरकार शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ का लालच देकर हमारे हुक्म की पैरवी से हटा दिया और उन्हें उस हालत से निकलवाकर छोड़ा जिसमें वो थे।
हमने हुक्म दिया कि “अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हें एक ख़ास वक़्त तक ज़मीन में ठहरना और वहीं गुज़र-बसर करना है।”
उस वक़्त आदम ने अपने रब से कुछ कलिमात [बोल] सीखकर तौबा की, जिसको उसके रब ने क़बूल कर लिया, क्योंकि वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।
[
सूरह बकरा : 35 -37]

नूह ने अपने रब को पुकारा। कहा, “ऐ रब ! मेरा बेटा मेरे घरवालों में से है और तेरा वादा सच्चा है और तू सब हाकिमों से बड़ा और बेहतर हाकिम है।” जवाब में कहा गया, “ऐ नूह ! वो तेरे घरवालों में से नहीं है, वो तो एक बिगड़ा हुआ काम है, इसलिये तू इस बात की मुझसे दरख़ास्त न कर जिसकी हक़ीक़त तू नहीं जानता। मैं तुझे नसीहत करता हूँ कि अपने आपको जाहिलों की तरह न बना ले।” नूह ने फ़ौरन कहा, “ऐ मेरे रब! मैं तेरी पनाह माँगता हूँ इससे कि वो चीज़ तुझसे माँगूँ जिसका मुझे इल्म नहीं। अगर तूने मुझे माफ़ न किया और रहम न किया तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा। [सूरह हूद : 45-47]

(एक दिन) वो शहर में ऐसे वक़्त दाख़िल हुआ जबकि शहर के लोग बेसुध थे। वहाँ उसने देखा कि दो आदमी लड़ रहे हैं। एक उसकी अपनी क़ौम का था और दूसरा उसकी दुश्मन क़ौम से ताल्लुक़ रखता था। उसकी क़ौम के आदमी ने दुश्मन क़ौमवाले के ख़िलाफ़ उसे मदद के लिये पुकारा। मूसा ने उसको एक घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। (ये हरकत होते ही) मूसा ने कहा, “ये शैतान का किया-धरा है, वो सख़्त दुश्मन और खुला गुमराह करनेवाला है।” फिर वो कहने लगा, “ऐ मेरे रब, मैंने अपने आप पर ज़ुल्म कर डाला, मुझे माफ़ कर दे।” चुनाँचे अल्लाह ने उसे माफ़ कर दिया, वो बहुत माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है। [सूरह क़सस : 15-16]

ऐ नबी (ﷺ)! "हमने तुमको खुली फ़तह अता कर दी, ताकि अल्लाह तुम्हारी अगली-पिछली हर कोताही को माफ़ फ़रमाए, और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दे और तुम्हें सीधा रास्ता दिखाए।" [सूरह अल फतह : 1 -2]

ऐ नबी (ﷺ)! तुम चाहे ऐसे लोगों के लिये माफ़ी की दरख़ास्त करो या न करो, अगर तुम सत्तर बार भी इन्हें माफ़ कर देने की दरख़ास्त करोगे तो अल्लाह इन्हें हरगिज़ माफ़ न करेगा, इसलिये कि इन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया है, और अल्लाह फ़ासिक़ [नाफ़रमान] लोगों को नजात का रास्ता नहीं दिखाता। [सूरह तौबा : 80]

नबी (ﷺ)! को और उन लोगों को जो ईमान लाए हैं, उनके लिये मुनासिब नहीं कि मुशरिकों के लिये माफ़ी की दुआ करें, चाहे वो उनके रिश्तेदार ही क्यों न हों, जबकि उनपर ये बात खुल चुकी है कि वो जहन्नम के हक़दार हैं।" [सूरह तौबा : 113]

ऐ आदम की औलाद ! "ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें फिर उसी तरह फ़ितने में डाल दे, जिस तरह उसने तुम्हारे माँ-बाप को जन्नत से निकलवाया था और उनके लिबास उन पर से उतरवा दिए थे; ताकि उनकी शर्मगाहें एक-दूसरे के सामने खोले। वो और उसके साथी तुम्हें ऐसी जगह से देखते हैं जहाँ से तुम उन्हें नहीं देख सकते। इन शैतानों को हमने उन लोगों का सरपरस्त बना दिया है जो ईमान नहीं लाते।" [सूरह आयराफ : 27]


इन सभी आयतों से वाज़े हुआ की अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम से भी इजतेहादी ख़ताऐं हुई हैं लेकिन अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम दुनिया में ही अल्लाह की तरफ रूजू कर लेते हैं। जिस पर अल्लाह उनकी इजतेहादी ख़ता के एवज़ एक अजर देता है।

अहले बिदअत जो ये अक़ीदा बयान करते हैं की अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम फरिश्तों के जैसे मासूम हैं तो ये बिलकुल क़ुरआन के ख़िलाफ है।

फरिश्तों को तो इजतेहादी ख़ता का भी इख्तियार नहीं होता है लेकिन अम्बिया ए किराम अलैहिस्सलाम को इजतेहादी ख़ता का इख्तियार होता है।

अगर अम्बिया ए किराम को इजतेहादी ख़ता का इख्तियार होगा ही नहीं तो उनकी आज़माइश किस हवाले से होगी?


आपका दीनी भाई
मुहम्मद अज़ीम


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