अल मुग़नी अल्लाह सुब्हान व तआला की वो सिफ़ात, वो गुण है जो ख़ुद तो बेहद समृद्ध और बेहिसाब असबाब का मालिक है ही और दुसरो को भी खुद मुख्तार बनाने वाला।
अल मुग़नी - ٱلْمُغْنِيُّ
अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल मुग़नी ।
अल मुग़नी- इसके रुट है- غ ن ي - अरबी में इसका मतलब है, हर जरुरत और चाहत से ख़ाली, ख़ुदमुख़्तार, बेहिसाब असबाब का मालिक, बेहद समृद्ध, स्वतः यथेष्ट, मुक्तिदाता, धनप्रदः।
अल मुग़नी अल्लाह सुब्हान व तआला की वो सिफ़ात, वो गुण है जो ख़ुद तो बेहद समृद्ध और बेहिसाब असबाब का मालिक है ही और दुसरो को भी खुद मुख्तार बनाने वाला। अल्लाह तआला के ख़ज़ाने बेहिसाब है और दुनिया के मखलूक को ज़िन्दगी की हर ज़रूरत से बहुत ज़्यादा आता करने के बावजूद भी उसके ख़ज़ानों में से एक तिनके बराबर भी कमी नहीं आती।
आज हमारे आस पास देखें तो जो गनी या थोड़े से भी असबाब का मालिक होता है वो किसी दूसरे को कुछ देना नहीं चाहता। और अगर कोई थोड़ा बहुत दिल पक्का करके दे भी दे मगर अपने से कम देना चाहता है। लेकिन अल्लाह सुब्हान व तआला खुद भी बेनियाज़ और बेपरवाह है अल गनी है और अपने बन्दों को भी दुसरो की मुहताजी से बेनियाज़ करने वाला है और दुसरो के लिए ग़नी बनाने वाला है।
और अगर तुम्हें तंगदस्ती का डर है तो नामुमकिन नहीं कि अल्लाह चाहे तो तुम्हें अपनी मेहरबानी से मालामाल कर दे। अल्लाह जाननेवाला और हिकमतवाला है।क़ुरआन 9:28
अल ग़नी जो बेनियाज़ है और उसको किसी की ज़रूरत नहीं, और बाकि सारी मखलूक को हर लम्हे हर कदम पे अल गनी की मुहताजी है। अल्लाह सुब्हान व तआला की रहमत और करम के बिना एक इंसान अपनी ताकत से एक तिनका भी न उठा पाए। बच्चे की पैदाइश से मौत तक हर सांस के लिए इंसान अल्लाह का मुहताज है।
अल्लाह तो ग़नी (बेनियाज़) है, तुम ही उसके मोहताज हो।कुरआन 48:37
अल्लाह सुब्हान व तआला को हम इंसानो की किसी नेकी या बदी से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम जो नेकी करते हैं वो हमारे अपने फायदे के लिए होती है और जो गुनाह करते हैं उससे हमारा अपना नुक्सान होता है। अल्लाह सुब्हान व तआला ने हमारे ही फायदे के लिए हर बुराई और गलत रास्ते से आगाह कर दिया है। अल्लाह तआला फरमाता है -
अगर वो ग़रीब हों तो अल्लाह अपनी मेहरबानी से उनको मालदार कर देगा,(53) अल्लाह बड़ी समाईवाला और जाननेवाला है।क़ुरआन 24:32
और बेशक अल्लाह फरमाता है -
और बेशक वो ही है जिसने गनी किया और मालदार बनायाक़ुरआन 53:48
अल गनी कैसे फ़कीर को गनी बनाता है उसकी एक तारीख़ी मिसाल देखें -
क़ाज़ी अबु बक्र मुहम्मद बिन अब्दुल बाक़ी कहते हैं - एक दफा बग़दाद के एक रईस ने हज के दिनों में शहर में एलान करवाया के जिस शख्स को हज करने का शौक हो वो हमारे साथ चले, रास्ते के सारे खर्चे मेरे ज़िम्मे मगर वापसी का इंतज़ाम वो खुद कर ले। वापसी के अख़राजात नहीं दिए जायेंगे।
क़ाज़ी साहब कहते हैं के मेरी हालत बड़ी ख़राब थी , बड़ी ग़ुरबत थी , मैंने सोचा चलो हज तो अदा करो , वापसी का देखा जायेगा। खैर हज अदा करने के बाद लोग अपने घरो को लौट गए मैं हरम में पड़ा रहा। न खाने के लिए कुछ था न रक़म थी, सख्त भूक की हालत थी। हरम खाली था लोग अपने घरो को जा चुके थे। इत्तेफ़ाक़ से मुझे एक रेशम की थैली पड़ी हुई मिली। उसमे एक कीमती हार था। उसके मालिक को ढून्ढ कर लौटने के वक़्त उसने मुझे इनाम के तौर पर कुछ रक़म देनी चाही मगर मैंने इंकार कर दिया। काफी इसरार के बाद भी मैं नहीं माना तो आखिर तंग आकर वो मुझे छोड़ कर चला गया।
आखिरकार मैंने फैसला किया के सफर करने के लिए जहाज़ पर नौकरी कर लेते हैं। नौकरी करने सफर भी तय कर लूंगा और सफर में कुछ खाने पीने का इंतज़ाम भी हो जायेगा। जहाज़ के अमले से बात की , और जहाज़ में सफाई करने का काम मिल भी गया , सफर शुरू हुआ।
अल्लाह का शुक्र अदा कियाकि और जहाज़ के अमले में शामिल हो गए। रास्ते में तूफ़ान ने घेर लिया जहाज़ ग़र्क़ हो गया , उसके टुकड़े टुकड़े हो गए। सरे मुसाफिर डूब गए। मगर एक तख्ते पर बैठे तैरते हुए, अल्लाह के हुकुम से एक किनारे से जा लगे।
काज़ी साहब ने कहा के मुझे बिलकुल नहीं मैं कहाँ हु और मेरा क्या होना है। एक जज़ीरे के लिनारे कुछ आबादी थी। मैं सख्त सर्दी की वजह से काँप रहा था, खुश्की देखी , मैं उतरा और अल्लाह का शुक्र अदा किया और करीब एक मस्जिद में जाकर बैठ गया। वो सब न्यू मुस्लिम (revert) थे। फज्र की नमाज़ का वक़्त था। उनमे से किसी को क़ुरआन पढ़ना नहीं आता था। जब उन्होंने मुझे देखा तो पूछा क्या आपको क़ुरआन पढ़ना आता है ? मैंने कहा हाँ। चुनाचे उन्होंने नमाज़ पढ़ने को कहा।
नमाज़ के बाद वो लोग इतने खुश हुए के उन्होंने मुझसे क़ुरआन पढ़ना सीखना शुरू दिया। और एक तवील असर गुज़र गया। वहां काफी दौलत माल भी मिला। माली तौर पे मैं बहुत खुशहाल हो गया।
एक वक़्त कुछ लोग मेरे पास आये और कहा के हमारे पास एक यतीम बच्ची है, इसके पास काफी माल ओ मताब इसके निकाह की हमें फ़िक्र है, आप इससे निकाह करें। मैंने इंकार किया मगर वो पीछे पड़ गए तो मजबूरन मुझे उनकी बात माननी पड़ी। जब निकाह हुआ तो मैंने अपनी बीवी को देखा तो मैं हैरान रह गया के मेरी बीवी के गले में वही हार है जो मक्का में मैंने उस शख्स को वापस किया था। मैंने उसे देखा तो मैं अपनी ज़िन्दगी के तमाम उतार चढ़ाव याद आ गए। लोगों ने मुझे खोया हुआ देखा तो वजह पूछी और मैंने उन्हें अपनी ज़िन्दगी का उस पल से लेकर यहाँ तक का सारा किस्सा सुना दिया।
सबने मिल कर नारा ऐ तकबीर कहा, तो मैंने पुछा के क्या मसला है ? तो उन्होंने कहा के जिन्हे तुमने हार वापस किया था न वो इस लड़की के वालिद थे और हज से वापसी पे वो कहा करते थे मुझे दुनिया में सिर्फ एक पक्का और सच्चा मुसलमान मिला जिसने मुझे हार वापस कर दिया और इनाम भी न लिया और वो दुआ किया करतये थे या अल्लाह अगर वो शख्स मुझे दोबारा मिल जाये तो उससे मैं अपनी बेटी की शादी करदु। और इसी तमन्ना को लिए इस दुनिया से रुखसत हो गए। मगर उनकी दुआ ऐसी क़ुबूल हुई।
-तबक़ातुल हनाबिला, जिल्द 1, पेज 196
और अल्लाह ही जिसे चाहे अपनी बेशुमार नेमतों में से जिसे चाहे गनी बना दे , अल्लाह क़ुरआन में फरमाता है -
और तुम्हें नादार पाया और फिर मालदार कर दियाक़ुरआन 93:8
अल्लाह सुब्हान व तआला की नेमतों की बेहिसाब शुक्र करें, जितना हम शुक्र करेंगे अल मुगनी हमे उतना ही अता करेगा। अल्लाह सुब्हान व तआला हमे दुनिया वालों की मुहताजजी से बेनियाज़ बनाये और सिर्फ अल्लाह सुब्हान व ताला की मुहताजी में रखे। आमीन।
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।