Nikah (Part-4) Mahr, Gawah, Khutba, Rukhsati aur Walimah

Nikah (Part-4)  Mahr, Gawah, Khutba, Rukhsati aur Walimah


निकाह: महर से दावत ऐ वलीमा की सुन्नत तक


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महर

शौहर की तरफ से बीवी को दिया जाने वाला तोहफा जिसे अरबी ज़ुबान में "महर" कहा जाता है। महर दोनों परिवारों के बीच तय किया जाता है। ये माल की सूरत में भी हो सकता है, या ज़ायज़ाद या किसी और चीज़, जिसे लड़की किसी भी सूरत में इस्तेमाल कर सकती है इस पर उसके सिवा किसी का हक़ नहीं होता।

बाद में, अगर बीवी तलाक मांगती है, तो वह महर वापस कर देगी और खुला लेलेगी। पर जब मामूली वजूहात से तलाक हो जाता है, तो बीवी को आमतौर पर महर रखने की इजाज़त दे दी जाती है।


महर की रकम:


महर औरत की क़ीमत नहीं बल्कि औरत का हक है। और महर की कोई रकम तय नहीं है।


"और अगर तुम एक बीवी की जगह दुसरी बीवी करना ही चाहो और इन में से किसी को तुमने खज़ाना का खज़ाना दे रखा हो।" [क़ुरआन 4: 20]


इस आयत से पता से पता चलता कि खज़ाना भी दिया जा सकता है अगर किसी की हैसियत है तो।

एक सहाबी ने महर में अपनी बीवी को कुरान की सूरह याद कराया। 

शायद कुछ लोगों को मामूली बात लगेगी लेकिन जो कुरान को समझते होंगे उनके लिए बहुत ही बेहतरीन महर होगा क्योंकि कुरान का हर लफ्ज़ में दुनिया और आखिरत दोनों जहानों की कामयाबी है।

जो भी हैसियत है उसके मुताबिक़ महर तय करें और निकाह को सादगी से ही करें वरना आपके महर की कोई एहमियत नहीं होगी। अब ज़ाहिर है लडकियां अपने बाप के घर से सारी ज़िंदगी की जरूरियात का सामान ले आती हैं फिर आपके महर की उन्हें कोई फ़िक्र नहीं रहती, दो या न दो। बेहतर है आप अपनी हैसियत को जाने और इस महर की अहमियत को भी।


महर कब अदा करें:


बेहतर है महर की अदायगी जल्द से जल्द कर दें। अब और भी आसानी हैतयशुदा रकम (amount) बैंक एकाउंट में डाल दे या फिर निकाह के बाद लड़की के घर वालों के हाथ भेज दें। बेहतर यही है के रूखसती से पहले दे दें, जो तरीक़ा आपको बेहतर लगे।

और अगर उधार कर दिया जाये तो फिर क्या सूरत होगी? 

आईए जानते हैं:


महर की अदायगी की सूरत:


और औरतों को इनके महर राज़ी खुशी दे दो, हां अगर वो ख़ुद अपनी मर्ज़ी से कुछ महर छोड़ दें तो इसे शौक से खुश हो कर खा लो। [क़ुरआन 4: 4]

1. उधार हो सकता लेकिन ना देने का इरादा नहीं करना चाहिए वरना फिर वो औरत आपके लिए जायज़ नहीं होगी। 

2. अगर आपने महर नहीं दिया और आपकी बीवी की मौत हो गई तो फिर उसकी अदायगी उसके करीबी रिश्तेदार को दे कर करें। 

3. अगर शौहर की मौत हो गई तो शौहर की विरासत से सबसे पहले उसकी बीवी को उसका हक़ महर अदा किया जायगा।


निकाह में गवाह कौन और कैसा हो?


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: 

"बिना वली और दो गवाह के निकाह बातिल (valid) है।" [सहीह अल जामे: 7558] 

गवाह होना ज़रूरी है और वो कोई भी हो सकता है, यानि हर आकिल और बालिग मुसलमान लेकिन शर्त ये है कि वो सच्चा और आदिल होना चाहिए।


निकाह का खुत्बा:


---------﷽----------


"सब तारीफ़ अल्लाह के लिए हैं' हम इससे मदद तलब करते हैं' इससे माफ़ी मांगते हैं और अपने नफ्स की खराबियों और बुरे अमाल से की पनाह के तलबगार हैं, जिसको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हिदायत दे उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसको वो गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत नहीं दे सकता। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ﷺ इसके बंदे और रसूल ﷺ हैं।"


ऐ लोगों! "अपने परवरदिगार से डरो, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया। इसी से इसकी बीवी को पैदा करके इन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैला दिए, इस अल्लाह से डरो जिसके नाम पर एक दूसरे से मांगते हो और रिश्ते नाते तोड़ने से भी बचो, बेशक अल्लाह तुम पर निगहबान है।" [क़ुरआन 4: 1]


"ऐ ईमान वालों! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से इतना डरो जितना इससे डरना चाहिए और देखो मरते दम तक मुसलमान ही रहना। [क़ुरआन 3: 102]


"ऐ ईमान वालों! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से डरो और सीधी सीधी (सच्ची) बाते किया करो। ताकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुम्हारे काम संवार दे और तुम्हारे गुनाह माफ़ फरमा दे, और जो भी अल्लाह और उसके रसूल की ताबेदारी करेगा इसने बड़ी मुराद पाली।" [क़ुरआन 33: 70-71]


खुत्बे का पैग़ाम:


इल्मिया ये है लोगों को पता ही नहीं होता है कि कुरान की कौन कौन सी आयात पढ़ी जा रही है और उसमें हमारा रब हमारे लिए क्या पैगाम दे रहा है? 

तो आईए देखते क्या पैग़ाम है: 

1. तीन आयतो में डरने की बात की गई, इंसान को अपने हर मामलात में अल्लाह से डरते रहना चाहिए। 

2. हर बुराई की जड़ झूठ होती है और झूठ तो मज़ाक में भी नहीं बोलना चाहिए। तो बात करते वक्त सच ही बोले और रिश्तो को अल्लाह के खौफ के साथ निभाओ। क्योंकि ये रिश्ता दो अनजान लोगों को इतना क़रीब ले आता है जिसकी बरकत से दुनिया आबाद है। 

3. अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमसे मुतालबा कर रहा है देखो मरते दम तक मुसलमान ही रहना और हम मुसलमान तभी रहेंगे जब अल्लाह और उसके रसूल की ताबेदारी करेंगे। 


और हम क्या कर रहे हैं?

इसके ठीक उल्टा शादी के नाम पे अल्लाह और उसके रसूल की खूब ना फरमानिया करते हैं। अगर नहीं करते तो होते हुए तो देख रहें हैं। निकाह- ज़िना और फहश कामों को रोकती है लेकिन आज के मुस्लिम घरानों में शादी के नाम पे ही बेहयाई हो रही है। हम ख़ामोश तमाशाई बने हैं। 

ये ही है खौफ ऐ खुदा?

रुखसती: 


निकाह के कुछ सालों बाद भी रुखसती की जा सकती है। नबी करीम ﷺ ने आयशा (रज़ी०) को तीन साल बाद बहुत सादगी से रुखसत करवाया जबकि आयशा (रज़ी०) के वालिद (अबु बकर रज़ी०) बहुत मालदार थे। आज हमारे यहाँ निकाह और रुखसती दिनों का फासला सिर्फ़ दो तकरीबों में इज़ाफा (निकाह के बाद की गैरमज़हबी रस्मों) के लिए कर रहें हैं। अब ये कुछ दिनों रस्म बन जाएगी।  

रुखसती के वक्त लड़की को कुरान के साए में घर से निकालते हैं ऐसा करने से क्या होगा? 

एक मिसाल से देखें, अगर आपको भूख लगी हो तो क्या आपके सिर्फ खाना, खाना, खाना.... करने से भूख का एहसास खत्म हो जाएगा? 

इसी तरह दुल्हन का कुरान के साए में चले जाने से या कुरान ख्वानी करवा लेने से हमारी हिफाज़त नहीं होती है बल्कि उसके लिए हमें कुरान पढ़ना और समझना और फिर उस पे अमल करना चाहिए। ये कुरान का भी हक़ है। इस तरह तो हम मुसलमान ही कुरान की बेहुरमती कर रहे हैं।


दावत ऐ वलीमा की सुन्नत


वलीमा रूखसती के बाद की जाने वाली दावत है। ये कैसे होगी इसकी भी रहनुमाई की गई है; 


"शादी (वलीमा) के तकरीब (ceremony) मून’किद (held) करो, चाहे सिर्फ एक भेड़ के साथ।" [सहीह मुस्लिम: 1427]


वालिमे में कितनी फुज़ूल खर्ची की जाती है जबकि एक बकरे से भी किया जा सकता है।


नबी करीम ﷺ ने फरमाया:

सबसे बुरे किस्म का खाना शादी (वलीमा) की दवात है जिसमें अमीरों को बुलाया जाता है और गरीबों को नज़र अंदाज किया जाता है। जो दावत में नहीं आता वो दरहकीकत अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की नाफरमानी करता है।" [सहीह मुस्लिम: 1432]


 हम अपनी दावतों में गरीबों को ही नज़र अंदाज़ करते हैं और एक इंसान का दूसरे इंसान पे ये हक़ है कि जब वो उसे दावत दे तो उसकी दावत क़ुबूल करे।


अल्लाह रब्बुल इज़्जत से दुआ है कि अल्लाह हमें दीन पर अमल करने की तौफीक दे

आमीन या रब-उल आलमीन 

जज़ाक अल्लाह खैर

-अहमद बज़्मी

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