अल मानिअ - इसके रुट है م ن ع, इसका मतलब होता है - रोक देना, बाधित करना , थामे रखना, इंकार करना, विरोध करना, मना करना, निषेध, रक्षा करना , हिफाज़त करना , बचाना।
अल मानिअ - ٱلْمَانِعُ
या फिर बताओ, कौन है जो तुम्हें रिज़्क़ दे सकता है, अगर रहमान अपना रिज़्क़ रोक ले? असल में ये लोग सरकशी और हक़ से भागने पर अड़े हुए हैं.कुरआन 67:21
यक़ीनन अल्लाह मुदाफ़अत (बचाव) करता है उन लोगों की तरफ़ से जो ईमान लाए हैं। यक़ीनन अल्लाह किसी ख़ियानत करनेवाले नाशुक्रे को पसन्द नहीं करता।क़ुरआन 22:38
जो कुछ भी अल्लाह बस्तियों के लोगों से अपने रसूल की तरफ़ पलटा दे वो अल्लाह और रसूल और रिश्तेदारों और यतीमों और मसकीन और मुसाफ़िरों के लिये है ताकि वो तुम्हारे मालदारों ही के बीच चक्कर न लगाता रहे। जो कुछ रसूल तुम्हें दे वो ले लो और जिस चीज़ से वो रोक दे उससे रुक जाओ। अल्लाह से डरो, अल्लाह सख़्त सज़ा देनेवाला है।क़ुरआन 59:7
बिल्कुल ऐसे ही हम अभी उस स्तर (level) पर नही है कि हम अल्लाह की मुकम्मल हिकमत को समझ सके। ऐसे ही बहुत से लोगों पर जब कोई परेशानी या मुसीबत आती है। तो वह यह समझते है कि बनाने वाले ने उनके ऊपर जुल्म किया और वो अल्लाह की हिकमत को नही समझ पाते जैसा कि एक बच्चा अपने माँ बाप की हिकमत को नही समझ पाता।
इसको एक उदाहरण से और समझते है, हम ज़िंदगी मे बहुत बार बिना हिकमत को समझे अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए दूसरी की बात मानते है। जैसे आप किसी डॉक्टर के पास जाते है तो डॉक्टर आपको बताता है कि आपको फलां बीमारी है अब आपको बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाएगा, आपके शरीर को काट कर अंदर से फलां चीज़ निकाल ली जाएगी और फिर उसको सिला जाएगा, आप होश में आएंगे फिर आपसे कहा जायेगा कि आपको रिकवरी में इतना समय लगेगा और आपको तखलीफ़ होगी। लेकिन कितनी मर्तबा ऐसा होता है कि वो आदमी जो मेडिकल फील्ड का नही है अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए डॉक्टर की बात को मान लेता है। जबकि उस आदमी को डॉक्टर की पूरी हिकमत का पता नही होता फिर भी यकीन कर लेता है। ऐसे ही हम ज़िंदगी मे बहुत बार अपने कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए बिना हिकमत को समझे दूसरे की बात मान लेते है।
ज़रा अब आप सोचिये की बच्चे को माँ बाप की हिकमत समझ नही आती, हमे डॉक्टर की हिकमत समझ नही आती, लेकिन इंसान ये मुतालबा कर रहा है कि हमे अल्लाह की हिकमत समझ मे आ जाएं।
सही बुखारी की सही हदीस में दर्ज एक खत का ज़िक्र जिसमे नबी करीम जो दुआ पढ़ते जिसमे इस अस्मा उल हुस्ना अल मानिअ का ज़िक्र है -
मुझसे मुग़ीरा-बिन-शोबा (रज़ि०) ने मुआविया (रज़ि०) को एक ख़त मैं लिखवाया कि नबी करीम (सल्ल०) हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद ये दुआ पढ़ते थे
لا إله إلا الله وحده لا شريك له ، له الملك ، وله الحمد ، وهو على كل شىء قدير ، اللهم لا مانع لما أعطيت ، ولا معطي لما منعت ، ولا ينفع ذا الجد منك الجد
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। उसका कोई शरीक नहीं। बादशाहत उसकी है और तमाम तारीफ़ उसी के लिये हैं। वो हर चीज़ पर क़ादिर है। ऐ अल्लाह जिसे तू दे उससे रोकने वाला कोई नहीं और जिसे तू न दे उसे देने वाला कोई नहीं और किसी मालदार को उसकी दौलत और माल तेरी बारगाह में कोई नफ़ा न पहुँचा सकेंगे।
- Sahi al Bukhari 844
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