90. Al Maani - अल मानिअ- Asma ul husna - 99 Names Of Allah

अल मानिअ  - इसके रुट है م ن ع  इसका मतलब होता है रोक देना, बाधित करना , थामे रखना,  इंकार करना, विरोध करना, मना करना, निषेध, रक्षा करना , हिफाज़त करना , बचाना। 


90. Al maani - अल मानिअ- Asma ul husna - 99 Names Of Allah

अल मानिअ  - ٱلْمَانِعُ

अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल मानिअ । 

अल मानिअ  - इसके रुट है م ن ع  इसका मतलब होता है रोक देना, बाधित करना , थामे रखना,  इंकार करना, विरोध करना, मना करना, निषेध, रक्षा करना , हिफाज़त करना , बचाना। 

अल मानिअ  वो ज़ात है - जो अपनी मखलूक में जिस से चाहता है अपने खज़ानों में से बेहिसाब देता है  जिससे चाहता है अपनी नवाज़िशों को रोक लेता है- मुहाफ़िज़, रोकने वाला, मना करने वाला, बचाने वाला। अगर अल्लाह किसी चीज को देने से इंकार कर दे तो कोई दूसरा नहीं जो अल्लाह के रोके हुए चीज़ के बदले वैसा कुछ भी सके। और अगर अल्लाह ने कोई चीज़ देने का फैसला कर लिया तो कोई एक भी ऐसा नहीं जो अल्लाह की नेमत को रोक सके और उसमे बाधा डाल सके। और अल्लाह का हर फैसला अज़ीम हिकमत और रहमत से भरा हुआ होता है। अल्लाह सुब्हान व तआला किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता। अल्लाह तआला फरमाता है -
या फिर बताओ, कौन है जो तुम्हें रिज़्क़ दे सकता है, अगर रहमान अपना रिज़्क़ रोक ले? असल में ये लोग सरकशी और हक़ से भागने पर अड़े हुए हैं.

कुरआन 67:21

अल्लाह के 99 नाम में से 81 नाम कुर’आन में मौजूद है। बाकी 18 में अलग अलग स्कॉलर की अलग अलग राय है।अल मानिअ, उन 18 नाम में से है जो कुछ स्कॉलर की लिस्ट में नहीं है हालांकि इब्न अरबी र.अलै., इमाम बेहक़ी र.अलै., इमाम ग़जाली र.अलै. की लिस्ट में ये नाम शामिल है, मगर इब्न ए वज़ीर, इब्न हज्म की लिस्ट में नहीं है।

अल मानिअ- शर को रोक कर ख़ैर पहुचाने वाला, ये दुनिया तमाम शर और मुसीबतों में घिरी होती है, अल-मानिअ इन मुसीबतों को रोक कर हमारी हिफाज़त करता है। अल मानिअ वो हस्ती है जो हमारी हिफाज़त के ख़ास ख़ास असबाब मुहैय्या करा कर हमारे जिस्म और हमारी ज़िन्दगी से नुक्सान और हलाकत को रोकता और दूर करता है। अल्लाह फरमाता है -

यक़ीनन अल्लाह मुदाफ़अत (बचाव) करता है उन लोगों की तरफ़ से जो ईमान लाए हैं।  यक़ीनन अल्लाह किसी ख़ियानत करनेवाले नाशुक्रे को पसन्द नहीं करता।

क़ुरआन 22:38
साथ ही अल मानिअ ऐसे लोगों से अपनी खैर को भी रोक लेता है जो उसके हक़दार नहीं होते।  जो दूसरो पर रहम नहीं करते अल्लाह तआला भी उन पर रहम नहीं करता।

जो कुछ भी अल्लाह बस्तियों के लोगों से अपने रसूल की तरफ़ पलटा दे वो अल्लाह और रसूल और रिश्तेदारों और यतीमों और मसकीन और मुसाफ़िरों के लिये है ताकि वो तुम्हारे मालदारों ही के बीच चक्कर न लगाता रहे। जो कुछ रसूल तुम्हें दे वो ले लो और जिस चीज़ से वो  रोक दे उससे रुक जाओ। अल्लाह से डरो, अल्लाह सख़्त सज़ा देनेवाला है।

क़ुरआन 59:7

और बाज़ दफा अल मानिअ अपनी हिकमत से ऐसी खैर रोक लेता है जो हमको लगता है के हमारे लिए बहुत बड़ी ख़ैर है मगर असल में हमारे लिए उसमे नुक्सान हो। 

इसको एक उदहारण से समझते है, कि बच्चे बहुत बार ऐसा काम करने की ज़िद करते है, जो उनके लिए सही नही होता है जैसे सर्दियों में आइसक्रीम खाना, स्कूल न जाना, या ज्यादा चॉकलेट खाना आदि जिसपर बच्चे के माँ बाप उसे मना करते है। बच्चे को बहुत गुस्सा आता है कि मुझे मेरी पसंद की चीज़ नही दी जा रही है इसलिए वो रोता है चिल्लाता है, लेकिन उस को उस वक़्त   अपने माँ, बाप के मना करने की हिकमत (wisdom) का अंदाजा नही होता है। वो यह समझता है कि मेरी पसंद की चीज़ न देकर, मेरे माँ बाप मेरे ऊपर जुल्म कर रहे हैं  इसलिए वो रोकर अपनी तखलीफ़ का इज़हार करता है। लेकिन जब वह बच्चा बड़ा होकर खुद बाप बनता है उसकी औलाद होती है। तो वो भी फिर अपने बच्चों के साथ ऐसा ही करता हैं जैसा बचपन में उसके साथ हुआ था। क्योंकि अब जवान होकर उसके अंदर हिकमत बढ़ गई उसको समझ में आने लगा कि बच्चो को अगर बहुत ज्यादा चॉकलेट दी जाए तो उनके लिए नुकसान है। बच्चा अगर स्कूल न जाए तो वो अपना फ्यूचर खराब कर लेगा।

बिल्कुल ऐसे ही हम अभी उस स्तर (level) पर नही है कि हम अल्लाह की मुकम्मल हिकमत को समझ सके। ऐसे ही बहुत से लोगों पर जब कोई परेशानी या मुसीबत आती है। तो वह यह समझते है कि बनाने वाले ने उनके ऊपर जुल्म किया और वो अल्लाह की हिकमत को नही समझ पाते जैसा कि एक बच्चा अपने माँ बाप की हिकमत को नही समझ पाता।

इसको एक उदाहरण से और समझते है, हम ज़िंदगी मे बहुत बार बिना हिकमत को समझे अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए दूसरी की बात मानते है। जैसे आप किसी डॉक्टर के पास जाते है तो डॉक्टर आपको बताता है कि आपको फलां बीमारी है अब आपको बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाएगा, आपके शरीर को काट कर अंदर से फलां चीज़ निकाल ली जाएगी और फिर उसको सिला जाएगा, आप होश में आएंगे फिर आपसे कहा जायेगा कि आपको रिकवरी में इतना समय लगेगा और आपको तखलीफ़ होगी। लेकिन कितनी मर्तबा ऐसा होता है कि वो आदमी जो मेडिकल फील्ड का नही है अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए डॉक्टर की बात को मान लेता है। जबकि उस आदमी को डॉक्टर की पूरी हिकमत का पता नही होता फिर भी यकीन कर लेता है। ऐसे ही हम ज़िंदगी मे बहुत बार अपने कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए बिना हिकमत को समझे दूसरे की बात मान लेते है।

ज़रा अब आप सोचिये की बच्चे को माँ बाप की हिकमत समझ नही आती, हमे डॉक्टर की हिकमत समझ नही आती, लेकिन इंसान ये मुतालबा कर रहा है कि हमे अल्लाह की हिकमत समझ मे आ जाएं।

सही बुखारी की सही हदीस में दर्ज एक खत का ज़िक्र जिसमे नबी करीम जो दुआ पढ़ते जिसमे इस अस्मा उल हुस्ना अल मानिअ का ज़िक्र है -

मुझसे मुग़ीरा-बिन-शोबा (रज़ि०) ने मुआविया (रज़ि०) को एक ख़त मैं लिखवाया कि नबी करीम (सल्ल०) हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद ये दुआ पढ़ते थे 

لا إله إلا الله وحده لا شريك له ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ له الملك ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ وله الحمد ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ وهو على كل شىء قدير ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم لا مانع لما أعطيت ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ ولا معطي لما منعت ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ ولا ينفع ذا الجد منك الجد

अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। उसका कोई शरीक नहीं। बादशाहत उसकी है और तमाम तारीफ़ उसी के लिये हैं। वो हर चीज़ पर क़ादिर है। ऐ अल्लाह जिसे तू दे उससे रोकने वाला कोई नहीं और जिसे तू न दे उसे देने वाला कोई नहीं और किसी मालदार को उसकी दौलत और माल तेरी बारगाह में कोई नफ़ा न पहुँचा सकेंगे। 

- Sahi al Bukhari 844



अल मुग़नी            Asma ul Husna         अज़ - ज़ार्र 

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