Sajda e tilawat: ise karne ka huqm aur tariqa

Sajda e tilawat: ise karne ka huqm aur tariqa


सजदा ए तिलावत- इसे करने का हुक्म और तरीक़ा

क़ुरआन में कुल कितने सजदा ए तिलावत है और इसे करने का हुक्म और तरीक़ा क्या है?

सजदा मोमिन की नमाज़ के लिए अहम फ़र्ज़ रुकन है जो अल्लाह को सबसे ज़्यादा महबूब है। इस हवाले से हदीस है:

"बंदा अपने रब के सामने जब नमाज़ की हालत में होता है तो वो सजदे की हालत में अपने रब से सबसे ज़्यादा क़रीब होता है तो अपने रब से सजदो में ख़ूब दुआ करो।" [सहीह मुस्लिम 482]

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का इरशाद है: 

"अपने रब की तस्बीह और हम्द बयान करते रहो और सजदे करने वालो में शामिल हो जाओ।" [सूरह हिज्र: 98]


इसी तरह इब्लीस आदम अलैहिस्सलाम को सजदा करने वालों में न हुआ तो अल्लाह ने उसे क़यामत तक ज़लील करके रख दिया। 

क़ुरआन ए करीम की तिलावत में भी कुछ मकामात पर सजदों का हुक्म है चाहे वो तिलावत के दौरान हो या नमाज़ के दौरान हो। इन सजदो की तादाद में इख़्तेलाफ़ है कि इनकी तादाद कुल 14 या 15 है? 

 

अब हम हदीस की रोशनी में देखते हैं कि इन सजदों की कुल कितनी तादाद है?

1. अमरो बिन अल आस (रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने उनको क़ुरआन मजीद में कुल 15 सजदे पढ़ाए इनमें से 3 मुफ़स्सिल में और 2 सुरह हज्ज में। [अबू दाऊद 1401 सनद सहीह]

2. उकबह बिन आमिर (रज़ी०) से रिवायत है की मैंने नबी करीम ﷺ पूछा क्या "सुरह हज्ज" में 2 सजदे हैं? तो आप ने कहा हां। और जो ये दोनों सजदे ना करे वो इसे न पढ़े।" [अबू दाऊद 1402 सनद सहीह]

अलहमदुल्लिलाह ऊपर बयान करदा हदीसों से कुल सजदा तिलावत की तादाद 15 साबित होगी और जो इख़्तेलाफ़ "सुरह हज्ज" के अंदर 2 या 1 सजदों का था वो भी इश्काल दूर हो गया। (अलहमदुल्लिलाह)


सजदा ए तिलावत करने का हुक्म 

अब आते इसके करने का हुक्म की तरफ़-

1. हज़रत इब्ने उमर (रज़ी०) से रिवायत है कि, "जब नबी करीम ﷺ उन आयतों की तिलावत करते जहां सजदे हुआ करते तो आप ﷺ वहां सजदे करते तो हम आप ﷺ के साथ सजदे करते यहां तक हम में से बाज़ को जगह न मिलती।" [सहीह मुस्लिम 575]

2. याद रहे ये सजदे ए तिलावत सुन्नत है फ़र्ज़ या वाजिब नहीं दलील मुलाहिज़ा फ़रमाए:

हज़रत उमर (रज़ी०) ने एक दफ़ा जुमा के दिन "सुरह नहल" की तिलावत फ़रमाई तो जब सजदे की आयत के आख़िर में पहुंचे तो आपने सजदा किया तो बाक़ियों ने भी आपके साथ सजदा किया फिर दूसरे जुमा में हज़रत उमर (रज़ी०) ने वही सूरह की तिलावत की और फिर वही सजदे के मुक़ाम पर पहुंचे तो कहा लोगों हम सजदे की आयत तिलावत कर रहे हैं तो जिसने सजदा किया उसने अच्छा किया और जिसने नहीं किया उस पर कोई गुनाह नहीं और उमर (रज़ी०) ने सजदा नहीं किया।

और नाफ़े (रहमतुल्लाह) ने हज़रत इब्ने उमर (रज़ी०) से ये बात नक़ल की, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हम पर सजदा हमारी ख़ुशी पर छोड़ यानि जिसका दिल करे वो कर ले।

(सहीह बुख़ारी 1077)


(हदीस 03)


ज़ैद बिन साबित (रज़ी०) से रिवायत है कि एक दफ़ा नबी करीम ﷺ ने सुरह नज्म की तिलावत की और अपने सजदे मुक़ाम पर सजदा नहीं किया।


(सहीह बुख़ारी 1073 और सहीह मुस्लिम 577)


जैसा के ऊपर बयान करदा हदीसों से ये बात साबित हो गई की सजदा ए तिलावत सुन्नत है न की फ़र्ज़ वाजिब लेकिन ये बात याद रखें, बिला वजह ये सुन्नत न छोड़ी जाए बल्कि इसका एहतमाम किया जाए क्योंकि अल्लाह को सजदे बहुत पसंद है। जैसा के शुरू में बयान किया जा चुका एक और हदीस से इस सजदा ए तिलावत की एहमियत बयान करने की कोशिश करता हूं; (इंशा अल्लाह)


(हदीस 04)


अबू हुरैराह (रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: इब्ने आदम जब सजदे वाली आयत पढ़ कर सजदा करता है तो शैतान रोते हुए और हाय अफ़सोस कहते हुए वहां से हट जाता है। (और अबू करीब की रिवायत में है कि) हाय मेरी हलाकत इब्ने आदम को सजदे का हुक्म मिला और उसने किया तो उसे जन्नत मिल गई और मुझे सजदे हुक्म मिला तो मैंने इनकार किया तो मेरे लिए आग (जहन्नम)है।

(सहीह मुस्लिम 244)


इस हदीस से सजदा ए तिलावत की अहमियत हमें पता लग गई अल्हमदुल्लिलाह लिहाज़ा हमें चाहिए की बिला वजह सजदा ए तिलावत को न छोड़। (अलहम्दुलिल्लाह) 


▪️अब आते हैं हम इस सजदा ए तिलावत को अदा करने के तरीक़े की तरफ:

 सजदा ए तिलावत भी आम नमाज़ों में किए जाने वाले सजदों की तरह ही जिस्म के 7 आज़ा पर है।

लेकिन इसमें नमाज़ की तरह शर्त नहीं है यानि कि सजदा ए तिलावत के लिए वुज़ू ज़रूरी नहीं है क़िब्ला रुख़ होना भी ज़रूरी नहीं है लेकिन अगर इसका एहतमाम कर लें तो अच्छी बात है।


सजदा ए तिलावत में सिर्फ़ 1 सजदा है यानि आप सिर्फ़ 1 बार अल्लाह हु अकबर कह कर सजदा करेंगे और फिर जो दुआएं है सजदों की वो दुआ पढ़ें नबी करीम ﷺ से बहुत दुआ साबित है सजदों में वो तमाम दुआ पढ़ सकते है और फिर बिना तकबीर कहे सजदे से उठ जाए। लेकिन अगर आप जमाअत में है तो इमाम सजदे करने के बाद तकबीर कहेगा लेकिन ये सिर्फ़ जमाअत के साथ ख़ास है।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सब को दीन का सहीह इल्म अता करे। (अमीन या रब्बील अलामीन)


आपका दीनी भाई 

सरफ़राज़ आलम

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