Nikah (part 8): Love Marriage

Love Marriage in islam


लव मैरिज 

क्या इस्लाम में लव मैरिज की इजाज़त है?

आज जिस प्रकार लव मैरिज का क्रेज सर चढ़ कर बोल रहा हैं इंसान ख़ुदगर्जी में अंधा होता जा रहा है, जब कोई अपने नफ्स की गुलामी में मुब्तला हो ऐसे में हराम हलाल उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। हर वो शख्स जो मुसलमान होते हुए दीन ए इस्लाम से दूर है, मॉर्डन सोच और सेक्युलरिज्म के भवर में सुनहरे ख्वाबों के गोते लगा रहा है जिसके लिय ये आरज़ी दुनियां ही सब कुछ रह गई है।

फिर उसे जायज़ और नाजायज, हराम और हलाल में फ़र्क नज़र नहीं आता, और फिर हराम रिश्ते भी सही लगने लगते हैं, क्यों कि जब कोई इंसान पहली बार गलती करता है तो उसे थोड़ा बुरा लगता है मगर बार बार  जब उस चीज़ की लत लग जाए तो फिर वही चीज़ अच्छी लगने लगती है और उस गलत काम के प्रति हमारा नज़रिया  सकरात्मक हो बन जाता है ।

मसलन हम सभी जानते हैं कि चोरी करना एक जुर्म है फिर जब पहली बार कोई इंसान चोरी करता है तो उसका ज़मीर उसे ऐसा करने से रोकता है दिल की कैफियत कुछ अजीब होती है, लेकिन फिर दुसरी तीसरी बार में उसका डर ख़त्म हो जाता है और धीरे धीरे वो इसका आदी हो जाता है , अब चोरी करना उसे गुनाह नहीं लगता बल्कि अच्छा लगने लगाता है। ठीक यही हाल हराम मुहब्बत का भी है।

 और ऐसे में न्यू जनरेशन की तरफ़ से ये सवाल बार बार पूछा जाता है कि क्या इस्लाम में लव मैरिज जायज़ है?आइए इस अहम और पेंचीदा सवाल का जवाब कुरान और हदीस की रोशनी में देखते हैं। 


हदीस:

अबू मूसा अशरी बयान करते हैं के नबी ﷺ फरमाया: "वली के बगैर निकाह नहीं है।" [अबू दाऊद  2085 ,अल-तिर्मिज़ी  1101]

और एक हदीस में नबी ﷺ का फरमान है:

“जिस औरत ने भी अपने वली की इजाज़त के बगैर निकाह किया, उसका निकाह बातिल है, उसका निकाह बातिल है, उसका निकाह बातिल है।  और अगर कोई  मसला हो जाए  तो उसका  वली काज़ी या  हाकिम होगा।" [मुसनद अहमद 24417, अबू दाऊद  2083, अल-तिर्मिज़ी 1102]


वजाहत:

  • ऊपर बयान की गई अहादीस से ये बात वाजेह होती है कि जब तक किसी लड़की के निकाह में उसके वालिद  की इजाज़त न हो तब तक वो निकाह मान्य नहीं हो सकता।
  • यहां एक बात और जेहन में बैठा लेना चाहिए कि कोई औरत किसी औरत का निकाह नहीं पढ़ा सकती।
  • गौर करने का मकाम है कि जो लड़कियां भाग कर कोर्ट में शादी कर लेती हैं या काज़ी को रिश्वत देकर निकाह कर लेती हैं उनका निकाह बातिल (अमान्य) है। ऐसा निकाह अल्लाह रब्बुल इज़्जत की बारगाह में नाजायज है। यानि ये निकाह नहीं ज़िना होगा।
  • इस तरह के निकाह में न खुशियां आती हैं न ही बरकत , साथ ही जिल्लत और रुसवाई का सामना करना पड़ता है। मां बाप को भी समाज में रुसवा होना पड़ता है।
  • याद रखें मां बाप  माफ़ कर भी दें। मगर जमाना और समाज कभी माफ़ नहीं करता और इस तरह की हरकत को अल्लाह रब्बुल इज़्जत भी माफ़ नहीं करता जब तक कि तौबा न किया जाए।


🟢और एक बात आप जिस किसी के साथ भी भाग कर शादी की हैं वो लाइफ पार्टनर आप को वो इज़्जत और एहतराम नहीं दे सकता जो आप के वालदेन के चुने हुए रिश्ते से मिलती है।

🟢ऐसे मर्द जिनके साथ लड़किया भाग कर शादी करती हैं वो उनकी वफादारी पर शक करता रहता है, ऐसे रिश्ते में भरोसा और ऐतबार की सिद्दत से कमी पाई जाती है अपने साथी से हर वक्त डर लगा रहता है और झगड़ा होने पर ऐसे मर्द ताने भी देते हैं, "जो अपने मां बाप की न हुई वो मेरी क्या होगी, तेरी औकात क्या है मेरे सामने भाग कर आई थी मेरे साथ।"

🟢इस्लाम मां बाप को दरकिनार कर इस तरह के हराम रिश्तों की इजाज़त नहीं देता जिसमें मां बाप को औलाद की तरफ़ से जिल्लत और रुसवाई का सामना करना पड़े।


मां बाप का मकाम

इस्लाम में मां बाप का मकाम किस हद तक ऊंचा है आइए कुरान और हदीस की दलाइल से जानते हैं-


कुरान:

इर्शाद ए बारी तआला है:

"माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो। अगर तुम्हारे पास इनमें से कोई एक या दोनों, बुढ़ापे को पहुँचे तो उन्हें उफ़ तक न कहो, न उन्हें झिड़ककर जवाब दो, बल्कि उनसे एहतिराम के साथ बात करो।" [सूरह 17 (बनी इस्राईल) आयत 23]


हदीस:

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"वालदेंन की नाफ़रमानी करना कबीरा गुनाह है।" [सही बुख़ारी  2653]

"वालिद (father) जन्नत का दरमियाना (बीच का) दरवाज़ा है इसलिए तेरी मर्ज़ी उसे ज़ाया कर या मेहफ़ूज़ रख।" [जाम ए  तिरमिज़ी 1899]

"अल्लाह की रज़ा वालिद (या वाल्दैन) की ख़ुशी में है और अल्लाह का गुस्सा वालिद (या वालदेन) की नाराज़गी में है।" [तिरमिज़ी 1900]


वजाहत:

अल्लाह रब्बुल इज़्जत का एहसान है हम पर कि उसने हमें मां बाप जैसे अज़ीम शख्शियत से नवाजा है हमें उस रब ए कायनात का शुक्र गुजार होना चाहिए।

ऊपर बयान की गई अहादिस और कुरान की आयत से पता चलता है कि मां बाप के खिलाफ़ जाना उनसे रिश्ता तोड़ लेना अल्लाह को नाराज़ करना है । शरीयत के दायरे से निकल कर गलत काम करना नाजायज और हराम काम है।

शरीयत की हद पार करना कुरान और सुन्नत की खिलाफ़वर्जी करने से अल्लाह का अजाब नाजिल होता है। हमें इस तरह के गुनाहों से बचना चाहिए अगर जन्नत चाहिए तो वालदेन की ना फरमानी नहीं करनी चाहिए। अल्लाह से डरते रहना चाहिए।


लड़की-लड़के की पसंद

अगर किसी लड़की या लड़के को कोई पसंद हो तो क्या करे?

इंसानी जिंदगी में मुहब्बत एक फितरी जरुरत है, हर इंसान की जिंदगी में एक ऐसा लम्हा ज़रूर आता है जब कोई पसंद आ जाता है, हालात ऐसे हों कि जब किसी लड़के/लड़की को सामने वाला पसंद आ जाए तो इसका बस एक ही हल है कि निकाह कर दिया जाए क्यों कि नबी ﷺ का फरमान है:

"दो मोहब्बत करने वालों के लिए हमने निकाह की मिस्ल कुछ नहीं देखा।" [सुनन इब्न माजा 1847]

आज जिस तरह से समाज में फहाशी और बेहयाई के हालात बनते जा रहे हैं इस्लाम किसी भी हाल में इसकी इजाज़त नहीं देता।

"ऐ नबी ﷺ! इनसे कहो कि मेरे रब ने जो चीज़ें हराम की हैं (उनमें से एक है) बेशर्मी के सारे काम चाहे खुले हुए हों या छिपे हुए।" [सूरह आराफ़ (7):33]


इस्लाम में ना मेहरम का मिलना जुलना free बात चीत, फालतू का हंसी मज़ाक की इजाज़त बिल्कुल नहीं।

प्यार मोहब्ब्त रोमांस, घूमना फिरना एक दुसरे के साथ निकाह से पहले मना है एक दुसरे को टच करना हराम है।

अब सोचें घर से भाग कर शादी करना कैसे जायज़ हो सकता है ऐसी शादी हराम है, जिना है और बदकारी की राह है जिसमें दुनियां की जिंदगी में रुसवाई और बदनामी और आखिरत का अजाब अलग।

इरशादे बारी तआला है:

"ऐ ईमान वालो!अपने आपको और अपने अहले खानदान को (जहन्नुम की) आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर होंगे।" [सूरह तहरीम (66):6]


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सब मुसलमानो को साबित कदम रखे, और कबीरा गुनाहों से बचाए।

आमीन

आप की दीनी बहन
फ़िरोज़ा

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