shab e qadr aur uski fazilat

shab e qadr aur uski fazilat


शब-ए-क़द्र और उसकी फज़ीलत


1. शब-ए-क़द्र (लैलतुल क़द्र) क्या है?

शब-ए-क़द्र, जिसे लैलतुल क़द्र भी कहा जाता है, इस्लाम की सबसे मुबारक रातों में से एक है। यह वही रात है जब क़ुरआन-ए-करीम पहली बार हज़रत मुहम्मद ﷺ पर फ़रिश्ते जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) के ज़रिए नाज़िल किया गया। क़ुरआन में इसे "हज़ार महीनों से बेहतर" (सूरत अल-क़द्र 97:3) कहा गया है।


क़ुरआन मजीद में शब-ए-क़द्र का ज़िक्र:

[सूरत अल-क़द्र 97:1-5]

إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ (1)

बेशक, हमने इसे (क़ुरआन को) शब-ए-क़द्र में नाज़िल किया।

وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ (2)

और आपको क्या मालूम कि शब-ए-क़द्र क्या है?

لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ (3)

शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।

تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ (4)

इस रात में फ़रिश्ते और रूह (जिब्राईल) अपने रब के हुक्म से हर अम्र (फैसले) के साथ नाज़िल होते हैं।

سَلَامٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ الْفَجْرِ (5)

यह सलामती वाली रात है, जो फजर के तुलु तक रहती है।

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[सूरत अद-दुखान 44:3-4]

إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ ۚ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ (3)

बेशक, हमने इसे एक मुबारक रात में नाज़िल किया, और हम (इंसानों को) आगाह करने वाले हैं।

فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ (4)

इसी रात में हर हिकमत भरी बात का फ़ैसला किया जाता है।


2. शब-ए-क़द्र कब होती है?

यह रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अशरे (दस दिनों) की ताक़ (odd) रातों में आती है। आमतौर पर इसे 27वीं शब माना जाता है, लेकिन यह 21वीं, 23वीं, 25वीं या 29वीं रात भी हो सकती है। इस रात को सुकून, नूर और अजीब-सी राहत महसूस होती है। सुबह सूरज की रोशनी नरम और हल्की होती है।

हज़रत आयशा (रज़ि.) बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"शब-ए-क़द्र को रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में तलाश करो।" [सहीह बुखारी: 2017, सहीह मुस्लिम: 1169]


3. शब-ए-क़द्र की फज़ीलत:

i. फैसलों की रात: अल्लाह तआला इस रात में लोगों की तक़दीर के अहम् फैसले करता है।

ii. हज़ार महीनों से बेहतर: इस रात की इबादत का सवाब 83 साल से ज़्यादा इबादत के बराबर है।

"शब-ए-क़द्र हजार महीनों से बेहतर है।" [सूरह अल-क़द्र: 3]

हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "जो शख्स ईमान और सवाब की नीयत से शब-ए-क़द्र में क़याम (इबादत) करता है, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।" [सहीह बुखारी: 1901, सहीह मुस्लिम: 760]

iii. गुनाहों की माफ़ी: जो शख्स इस रात को खालिस दिल से इबादत करता है और इख़लास के साथ दुआ मांगता है, अल्लाह तआला उसके पिछले तमाम गुनाह माफ फरमा देता है।

iv. क़ुरआन का नुज़ूल: इसी मुबारक रात में अल्लाह तआला ने क़ुरआन को नाज़िल फरमाया।

vफरिश्तों का नुज़ूल: इस रात में हज़रत जिब्रईल (عليه السلام) और बहुत से फरिश्ते अल्लाह के हुक्म से ज़मीन पर उतरते हैं और मोमिनों के लिए रहमत और बरकत लाते हैं।

शब-ए-क़द्र अल्लाह की रहमत, मग़फिरत और बरकतों से भरी रात है। यह हमें अपने रब से क़ुरबत (नजदीकी) हासिल करने का बेहतरीन मौक़ा देती है।


4. इस रात में इबादत कैसे करें?

i. नफ़्ल नमाज़ें: जितनी हो सके, नफ़्ल नमाज़ और तहज्जुद अदा करें।

ii. क़ुरआन की तिलावत: क़ुरआन मजीद पढ़ें और उस पर ग़ौर करें।

iii. दुआ और इस्तिग़फ़ार: अल्लाह से मग़फिरत (माफी) माँगें और अपनी हाजतों (ज़रूरतों) के लिए दुआ करें।

iv. ज़िक्र-ए-इलाही: तस्बीहात, दुरूद शरीफ और दूसरे अज़कार का विर्द करें।

v. सदक़ा व ख़ैरात: ज़रूरतमंदों की मदद करें ताकि ज़्यादा बरकत हासिल हो।

vi. रोज़ा रखने की नीयत: अगले दिन रोज़ा रखने की नीयत करें।


5. शब-ए-क़द्र की मस्नून (खास) दुआ:

हज़रत आयशा (रज़ि.) फ़रमाती हैं कि मैंने नबी करीम ﷺ से अर्ज़ किया:

"या रसूलुल्लाह! अगर मुझे पता चल जाए कि शब-ए-क़द्र कौन सी रात है, तो मैं उसमें क्या दुआ करूँ?"

आप ﷺ ने फ़रमाया:

 اللهم إنك عفو تحب العفو فاعف عني

(अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ुव्वुन तुहिब्बुल अफ़्वा फअफु अन्नी)

(ऐ अल्लाह! तू माफ़ करने वाला है और माफ़ करना पसंद करता है, तो मुझे माफ़ फ़रमा।)

[सुन्नन तिर्मिज़ी: 3513, इब्न माजा: 3850, मुस्नद अहमद: 25390]


शब-ए-क़द्र एक अज़ीम (महान) रात है जिसमें अल्लाह तआला बेहिसाब बरकतें नाज़िल करता है, फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं, और इबादत का सवाब हज़ार महीनों (83 साल से ज़्यादा) की इबादत से बढ़कर होता है।

इस मुबारक रात को ग़नीमत समझें और ज़्यादा से ज़्यादा इबादत, दुआ, इस्तिग़फ़ार और ज़िक्र करें, ताकि अल्लाह की रहमत और मग़फिरत हासिल कर सकें।

अल्लाह हमें इस मुबारक रात की क़दर करने और इसका भरपूर फ़ायदा उठाने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन!


By Islamic Theology

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