84. Malik-Ul-Mulk | Asma ul husna - 99 Names Of Allah


84. Malik-Ul-Mulk | Asma ul husna - 99 Names Of Allah

मालिक अल मुल्क़مَالِكُ ٱلْمُلْكُ

अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है मालिक अल मुल्क़

इसके रुट है م ل ك  जिसका मतलब होता है मालिक, स्वामी, अधिकार में, आधिपत्य, प्रभुता, स्वमित्व। मालिक अल मुल्क, अल्लाह के नाम और सिफ़ात में से एक है जिसका मतलब है तमाम मुल्क और ज़मीं आसमान और सारे जहाँ के बादशाहों का बादशाह। तमाम मुल्कों का मालिक, जिसके हाथ में बादशाही है इस पूरे संसार की। 

मालिक अल मुल्क, वो ज़ात जिसने इस पूरी क़ायनात की तख़लीक़ की है और इस पूरी क़ायनात के हर एक ज़र्रे का मालिक है, जो हर मखलूक को चलाता, खिलाता, पिलाता, मारता, जिलाता। वो ज़ात जिसके इल्म से एक ज़र्रा भी गुम नहीं। इस क़ायनात का हर ज़र्रा चाहे वो छोटी से चींटी हो या कोई पहाड़, चाहे कोई गरीब फ़कीर हो या कोई राजा, हर एक पर उसका पूरा पूरा कब्ज़ा है। और कोई एक तिनका भी उसकी मर्ज़ी के बगैर कोई हरकत नहीं कर सकता। 

मालिक अल मुल्क वो ज़ात है जो, जब चाहे, जैसे चाहे, जो चाहे कर सकता है। उसके  ज़र्रा है और सब उसकी हुकूमत में है मगर उस पर किसी की हुकूमत नहीं। वो ही रब है और वो ही इस संसार के कण कण का स्वामी है। इस सृष्टि का एक कण भी उसके साम्राज्य से बाहर नहीं है। इस सृष्टि की संपूर्ण सम्प्रभुता उसकी एक मालिक अल मुल्क के अधीन है। मालिक अल मुल्क यानि सपूर्ण सम्प्रभुता का स्वामी। 

ये पूरी क़ायनात एक मुक़र्रर वक़्त के लिए ही मालिक अल मुल्क ने बनायीं है और इसके ज़र्रे ज़र्रे को तबाह करने पर भी हक़ीक़ी मालिक पूरी तरह क़ादिर है।  सुरह आल ए इमरान में अल्लाह सुब्हान ताला फरमाता है - अल्लाह तुम्हारी मदद पर क़ादिर हो तो कोई ताक़त तुम पर ग़ालिब आने वाली नहीं और अगर वो तुम्हें छोड़ दे तो उसके बाद कौन है जो तुम्हारी मदद कर सकता हो? इसलिये जो सच्चे ईमानवाले हैं उनको अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिये-क़ुरआन 3:160


 ٱللَّهُمَّ مَـٰلِكَ ٱلْمُلْكِ تُؤْتِى ٱلْمُلْكَ مَن تَشَآءُ وَتَنزِعُ ٱلْمُلْكَ مِمَّن تَشَآءُ وَتُعِزُّ مَن تَشَآءُ وَتُذِلُّ مَن تَشَآءُ ۖ بِيَدِكَ ٱلْخَيْرُ ۖ إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ

कहो, “ऐ अल्लाह! मुल्क के मालिक! तू जिसे चाहे हुकूमत दे और जिससे चाहे छीन ले। जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसको चाहे रुसवा कर दे, भलाई तेरे इख़्तियार में है। बेशक तुझे हर चीज़ पर क़ुदरत हासिल है।

क़ुरआन 3:26


जिस काम का फैसला मालिक अल मुल्क कर लेता है, वो काम हो कर रहता है, और वैसा ही होता है जैसा आलमीन चाहता है। उसके फैसले, उसकी तदबीर के बीच कोई नहीं आ सकता।  उसके फैसले के सामने कोई दूसरी ताक़त नहीं जो उसके फैसले को बदल सके। किसी दूसरी शय में ये जुर्रत या ताक़त नहीं जो उसके फैसले के सामने कुछ कर सके। 

दुनिया की हर शै उस रब ही की तरफ से है और मालिक अल मुल्क का हर शै पर पूरा  नियंत्रण है। इस ज़मीन और आसमान की सल्तनत का  बादशाह, मालिक अल मुल्क इस रू ए ज़मीन पे जिसे चाहता है बादशाहत आता करता है एक महदूद  एक मुक़र्रर वक़्त के लिए। और जब चाहता है बादशाहत छीन लेता है। सूरह नूर में अल्लाह सुब्हान तआला फरमाता है -

आसमानो और ज़मीन की बादशाही अल्लाह  है और उसी की तरफ सबको  पलटना है। 
क़ुरआन 24:42 

रोज़ाना हम हर नमाज़ में अल्लाह को याद करते हैं, मालिक है जो बदले का दिन का।  क़ुरआन के पहली सूरह में हमे ये बात बताई गयी है के अल्लाह ही सारे फैसलों का मालिक है और उसका फैसला ही आख़री होगा, और हुकूमत और सारी बादशाही  रब्बुल आलमीन ही की है -

  مَٰلِكِ يَوۡمِ ٱلدِّينِ

मालिक है जो बदले के दिन का 
क़ुरआन 1:4 

अल्लाह सुब्हान व तआला का ये नाम हमें ये याद दिलाता है दुनिया क्षणभंगुर और थोड़े से वक़्त के लिए है। हमारी ज़िन्दगी सदा के लिए नहीं है अपने मालिक के सामने पेश होना है। लोग अक्सर गुमान में रहते हैं के उनका जीवन कभी ख़तम नहीं होगा और तमाम गैर ज़रूरी चीज़ें हासिल करने के लिए  उम्र बिता देते हैं। ज़मीन, जायदाद, साज़ ओ सामान की होड़ में हम अपने असल मक़सद से भटक जाते हैं। हम ये समझने लगते हैं के हमे इस दुनिया में  पैसा हासिल करने के लिए ही भेजा गया है। और जब हमे सफलता मिलती है तो हम आख़िरत को भूलने  लगते हैं। कामयाबी, पैसा और शोहरत ये सब अल्लाह की तरफ  नेमत होने के साथ साथ  आज़माइश भी है - क्या इंसान अल्लाह हुई कामयाबी को  ख़ुशनूदी और क़ुर्ब हासिल करने में खर्च  करता है या अपनी ख्वाहिशात की पैरवी करने में?

इसे एक मिसाल समझें-  आज  आपने पहला घर खरीदा।  आप बहुत  खुश हो, आगे आने वाले टाइम में आप इसमें रहेंगे।  फिर आप दूसरा इन्वेस्टमेंट करते हैं फिर तीसरा। आप ये समझने लगते हैं के आप बहुत कामयाब हैं, आप इन सब ज़मीन और जायदाद के मालिक हैं। आप के अंदर एक तकब्बुर और खुद पसंदी का ख्याल उभरने लगता है-  इन सब के मालिक आप है। लेकिन क्या आप हमेशा से इस ज़मीन के मालिक थे ? आपसे पहले कितने लोग उस ज़मीन  मालिक हो चुके हैं? क्या आप हमेशा इस ज़मीन के मालिक रहेंगे ? आपकी मौत के साथ इस ज़मीन का मालिक कोई और हो जायेगा।  यानि इस आरज़ी और अस्थायी मिलकियत से हम खो जाते हैं और इसे ही अंतिम सत्य  समझने लगते हैं।  इस फरेब और भटकने की वजह ये है के इस पूरी प्रक्रिया में  अल्लाह का शुक्र  गायब है। अल्हम्दुलिल्लाह, अल्लाह ने हमे इस ज़मीन की मिलकियत हमें दी। जी, हम सिर्फ वक़्ती तौर पर  इस ज़मीन के मालिक हैं और सारी ज़मीन  और आसमानो का हक़ीक़ी और सदा के लिए मालिक सिर्फ और सिर्फ अल्लाह है।  अल्लाह सुभान व ताला कुछ वक़्त के लिए कुछ लोगों  को मालिक बना देता है, मगर सारा अख्तियार  अल्लाह ही  है। ये एक छोटी सी मिसाल है ये समझने लिए के इंसान कितनी आसानी से गफलत में पड़ जाता है। 

अल्लाह सुब्हान व तआला ने कुछ लोगों को बेशुमार दौलत और ताक़त का मालिक बनाया, जैसे नमरूद और फिरौन। ताक़त और दौलत के अहंकार में वो  भटक गए।  उन्होंने खुद को ऐसा ताक़तवर राजा मान लिया जिसे कोई छू न सके। जिसके हुकुम के आगे किसी का  कोई बस न चले।  सूरह बक़रह में नमरूद के इस गफलत का ज़िक्र है, किस तरह उसने अपनी क़ौम पर हुकूमत की और उसके हुकुम के आगे किसी का बस नहीं चलता था। उसकी बात ही कानून थी। अगर वो किसी इंसान को क़त्ल करने का फैसला करे तो बिना किसी वजह से भी कर सकता था। 
क्या तुमने उस आदमी के हाल पर ग़ौर नहीं किया जिसने इबराहीम से झगड़ा किया था? झगड़ा इस बात पर कि इबराहीम का रब कौन है, और इस वजह से कि उस आदमी को अल्लाह ने हुकूमत दे रखी थी। [ 291] जब इबराहीम ने कहा कि “मेरा रब वो है जिसके इख़्तियार में ज़िन्दगी और मौत है।” तो उसने जवाब दिया, “ज़िन्दगी और मौत मेरे इख़्तियार में है।” इबराहीम ने कहा, “अच्छा, अल्लाह सूरज को पूरब से निकालता है, तू ज़रा उसे पश्चिम से निकाल ला।” ये सुनकर वो हक़ का दुश्मन हक्का-बक्का रह गया, मगर अल्लाह ज़ालिमों को सीधा रास्ता नहीं दिखाया करता।
कुरान 2:256

इस आयत में इब्राहिम अलैहिस्लाम ने नमरूद को याद दिलाया के उसके पास सारी ताक़त और क़ुव्वत नहीं जिसका वो गुमान कर बैठा है। बल्कि उसके ऊपर भी एक ताक़त है जो इस सारे जहाँ और सारी मिलकियत का अकेला मालिक है। 

वही दूसरी तरफ सुलेमान अलैहिसलाम को भी अल्लाह ताला ने हुकूमत और बादशाहत से नवाज़ा लेकिन सुलेमान अलैहिसलाम ने अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल नहीं किया बल्कि अल्लाह के फर्माबरदार रहे। उनकी एक दुआ का क़ुरान में ज़िक्र है -

सुलैमान उसकी बात पर मुस्कुराते हुए हँस पड़ा और बोला, ऐ मेरे रब, मुझे क़ाबू में रख कि मैं तेरे एहसान का शुक्र अदा करता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर किया है और ऐसा भला काम करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी रहमत से मुझको अपने नेक बन्दों में दाख़िल कर।”

कुरआन 27:19 


इस खूबसूरत दुआ से ये मालूम होता है के इतनी बेशुमार ताक़त और दौलत मिलने के बावजूद सुलैमान अलैहिसलाम अल्लाह के शुक्रगुज़ार रहे और उनके अंदर तकब्बुर नहीं आया।  और उनके हर काम की बुनियाद अल्लाह की मर्ज़ी और रज़ामंदी है। 

समझने की बात ये है के अल्लाह ने जो कुछ भी हमें नवाज़ा है उसका हमे शुक्रगुज़ार होना चाहिए और तकब्बुर और गफलत में  नहीं पड़ना चाहिए। हर ज़र्रे का मालिक अल्लाह है और मुल्कों का मालिक सिर्फ अल्लाह है। और हर काम में अल्लाह की राजा और ख़ुशनूदी हासिल करने की कोशिश करना चाहिए।  और मालिक अल मुल्क से खैर और भलाई माँगना चाहिए जिससे दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाबी हासिल हो। 


अर रऊफ़             Asma ul Husna         ज़ुल जलाली वल इकराम  

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