पैमाने को अपनी जिंदगी में इस्तेमाल
पहले हम पैमाने की जरूरत और हकीकत पर बात कर चुके है, इस दफा हम कुछ और पहलू देखेंग।
पैमाने के उपर बात करने से पहले कुछ लफ्ज़ हैं जिनको जानना बहुत ज़रूरी है-
1. Subjective (व्यक्तिपरक)
इसको समझने के लिए एक उदाहरण को समझते है – अगर कोई इंसान एक डॉक्टर के पास जाए और बोले की उसके दर्द हो रहा है और डॉक्टर उस मरीज से पूछे की आपको कितना दर्द है जिसके जवाब में मरीज जवाब दे की बहुत ज्यादा या मरीज कह सकता है ज्यादा नही।
ये दोनों ही बातें यानी दर्द की शिद्दद को मरीज ने किसी पैमाने पर नहीं नापा बल्कि खुद अपने अनुभव से बताता है।
यह अनुभव अलग अलग लोगो के लिए अलग अलग हो सकता है। यानी किसी में बर्दाश्त का माद्दा ज्यादा होगा तो उसको शायद यह दर्द बहुत कम लगे इसके विपरीत किसी दूसरे व्यक्ति को यह दर्द बहुत ज्यादा लग सकता है।
एक और खास बात यह है कि यह किसी पैमाने पर नापा नही जा सकता!
इसके और दूसरे उदाहरण भी है जैसे किसी को एक खाना बहुत अच्छा लग सकता है जबकि दूसरा व्यक्ति शायद उस खाने को पसंद न करे। यह उसके रहन सहन, जगह आदि पर भी निर्भर कर सकता है यानी उसके जिंदगी के पुराने अनुभवों पर।
एक बात जो और पता चलती है कि यहा बात हमेशा 1 व्यक्ति के अनुभवों की होगी, एक से ज्यादा की नहीं।
2. Arbitrary (स्वेच्छाचारी)
ऊपर जो उदाहरण हमने पढ़ा उसको एक बार फिर से देखते है। इस बार जब डॉक्टर ने पूछा की आपको कितना दर्द है तो उसके जवाब में मरीज ने कहा कि 10 में से 8 यानी की इस बार मरीज एक ऐसे पैमाने को लेकर जवाब दे रहा है जो उसने खुद बनाया है। इससे हमे ये तो पता चलता है की मरीज के दर्द की शिद्दद बहुत ज्यादा है लेकिन ये पैमाना आर्बिटरी यानी स्वेच्छाचारी है। क्योंकि कोई व्यक्ति कम दर्द को भी ज्यादा अंक दे सकता है।
खाने के उदाहरण से ये आप अच्छी तरह समझ पाएंगे, किसी खाने को 10 में से एक व्यक्ति 5 अंक देता है जबकि दूसरा व्यक्ति उसी खाने को 10 में से 10 अंक दे सकता है।
ये उस व्यक्ति के अनुभवों पर आधारित है।
आपको शायद पोहा न पसंद आए परंतु बहुत से लोग इसे बड़े चाव से खाते है।
3. Objective (वस्तुनिष्ठता)
इसे समझने के लिए हम एक उदाहरण को समझते है – यदि किसी व्यक्ति को बुखार आ रहा हो तो वह उसे नापने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग करता है। यहाँ थर्मामीटर एक पैमाने की तरह काम कर रहा है परंतु इस बार यह पैमाना एक ऑब्जेक्टिव (वस्तुनिष्ठ) पैमाना है। इस पैमाने से जो भी उत्तर आयेगा वह पुराने अनुभवों पर आधारित नहीं होगा।
जैसे अगर थर्मामीटर में 98° F लिखा हुआ आया तो वह प्रत्येक देखने वाले व्यक्ति के लिए यही होगा।
जैसे अगर किसी बॉटल में गरम पानी लिया जाए तो उसका टेंपरेचर चाहे जो भी नापे वह एक सा ही आयेगा।
पैमाने को अपनी जिंदगी में कैसे इस्तेमाल करे?
यदि कोई व्यक्ति हमसे सवाल करे कि शादी की उम्र क्या होनी चाहिए?
ज़रा इस सवाल को थोड़ा टटोल कर देखते है।
शादी की उमर 18/21 हो जैसा की हममें से बहुत से लोग जवाब देंगे, मगर क्या हमारे पास इसके लिए कोई पैमाना है?
ऐसा कहा जा सकता है कि इस उमर तक के लोग मैच्योर/बालिग हो जाते है।
- लेकिन हमे कैसा पता चला?
- हमने कैसे नापा कि ये मैच्योर/बालिग हैं और वो नही है?
- क्या यह एक आर्बिटरी (स्वेच्छाचारी) पैमाना नही है। हम कैसे किसी को उम्र के बिनाह पर मैच्योर/बालिग कह सकते है?
- क्यूं एक लड़की जल्दी मैच्योर हो रही है और क्यों एक लड़का इतने देर से?
- अगर कल को ये उम्र 18 से बढ़ा कर 21 कर दें तो क्या कल से लड़किया देर से मैच्योर होने लगेंगी?
- क्या है इन सब बातों के पीछे का पैमाना? हमें सोचने की जरूरत है। असल पैमाना क्या है?
इस सवाल के कुछ और भी जवाब हो सकते है मैच्योर होने के अलावा, आप उनके बारे में खुद सोच कर देंखे।
इसके आगे हम कुछ और लफ्ज़ों के बारे में जानेंगे, इन शा अल्लाह और पैमाने को और ज्यादा समझने की कोशिश करेगे।
डॉ० ज़ैन ख़ान
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