86. Al Muqsit - अल-मुक़्सित - Asma ul husna - 99 Names Of Allah

 
86. Al Muqsit - अल-मुक़्सित - Asma ul husna - 99 Names Of Allah

अल-मुक़्सित- ٱلْمُقْسِطُ

अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अल-मुक़्सित। 

अल-मुक़्सित के रुट है ق س ط जिसका मतलब होता है इन्साफ करने वाला। अल-मुक़्सित वो ज़ात है जो इस निज़ाम ए क़ायनात को अद्ल ओ इन्साफ पे जारी और सारी रखे हुए है। यानि इस क़ायनात में  कोई एक चीज़ भी इन्साफ के तक़ाज़ों से हटी हुई नहीं है। किसी भी मखलूक पे जुल्म नहीं हो रहा और हर चीज़ अल्लाह सुब्हान व तआला के हाथ में है। और इंसानो को भी अल्लाह का यही हुकुम है के इंसान किसी दूसरे पर ज़ुल्म ओ ज़्यादती न करे। 

अल मुक्सित (पूर्णतः न्यायसंगत) ये नाम अल्लाह के दो और सिफ़ात से मिलता है अल हकम (निष्पक्ष फैसला करने वाला ) और अल अद्ल (पूरा इन्साफ करने वाला ) . अल-मुक़्सित वो ज़ात है जो पूरा पूरा इन्साफ करने वाला है और किसी भी मखलूक पे ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता।  और वो ज़ालिमों का पूरा पूरा हिसाब लेने वाला है और हर जुर्म की पूरे इंसाफ के साथ सजा देने वाला भी है। वो मुजरिम की जवाबदेही ठहरा कर मज़लूम को पूरा इन्साफ और इत्मीनान देने पर क़ादिर है। अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाता है -

क़यामत के दिन हम ठीक ठीक तौलने वाला तराज़ू रख देंगे, फिर किसी शख्स पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म न किया जायेगा।  जिसका राइ के दाने के बराबर भी कुछ किया धरा होगा, वो हम सामने ले आएंगे, और हिसाब लगाने के हम काफी हैं। 
- क़ुरआन 21 : 47  

अल्लाह के 99 नाम में से 81 नाम कुर’आन में मौजूद है। बाकी 18 में अलग अलग स्कॉलर की अलग अलग राय है।अल मुक़्सित , उन 18 नाम में से है जो कुछ स्कॉलर की लिस्ट में नहीं है हालांकि इब्न अरबी र.अलै., इमाम बेहक़ी र.अलै., इमाम ग़जाली र.अलै. की लिस्ट में ये नाम शामिल है, मगर इब्न ए वज़ीर र.अलै., इब्न हज्म र.अलै. की लिस्ट में नहीं है।

अल-मुक़्सित ने हर चीज़ में तवाज़ो और बैलेंस रखा है।  सर्दी के बाद गर्मी और दिन के बाद रात। अगर सिर्फ एक ही मौसम या उजाला ही होता या अँधेरा ही होता तो वो इन्साफ नहीं होता। 

अल-मुक़्सित वो ज़ात है जो मज़लूम को ज़ालिम से निजात दिलाता है। इस दुनिया में आज देखें कोई देश या कोई जगह हो, कोई हुकूमत हो, कोई पार्टी हो, डेमोक्रेसी हो या तानाशाही, नज़र दौड़ाइए, क्या कहीं इन्साफ नज़र आता है ? जो गरीब, परेशां और मजबूर हैं उनकी कोई सुनवाई नहीं। और कई बार तो उन्हें बिना सबूत और जुर्म के सालो सलाखों के पीछे दाल दिया जाता है। कहीं हुकुमरान ही मजबूर और मज़लूम पे गोलियां चला रहे हैं तो कहीं बुलडोज़र। जिसके पास ताक़त है सत्ता है पैसा है वो दुसरो पे बेहिसाब ज़ुल्म कर रहा है। यानि इस दुनिया पर इन्साफ करने वाला सिर्फ और सिर्फ अल्लाह सुब्हान व तआला है।  जो ज़ालिम के ज़ुल्म की ऐसी सजा देता है के उसकी लाठी बेआवाज़ होती है। और मज़लूम की मदद करने वाला, और मज़लूम की मदद के हालात और असबाब करने वाला। और ज़ुल्म का पूरा पूरा बदला आख़िरत में देने वाला। सुरह नहल में अल्लाह तआला फरमाते हैं -
उस दिन जब हर कोई अपने ही बचाव की फ़िक्र में लगा हुआ होगा और हर एक को उसके किये का बदला पूरा पूरा दिया और किसी पर ज़र्रा बराबर भी जुल्म न होने पायेगा। 
क़ुरआन 16:111 
और सुरह आल ए इमरान में अल्लाह तआला फरमाता है -

अल्लाह गवाह है के बेशक नहीं कोई इलाह सिवाय अल्लाह के और फ़रिश्तो और इल्म वालों ने (गवाही दी) के अल्लाह इन्साफ पर क़ायम है और नहीं कोई इलाह सिवा अल्लाह के और वो बहुत ज़बरदस्त और बहुत हिकमत वाला है।
क़ुरआन 3:18
 क़ुरआन में अल मुकसित नाम इस्तेमाल नहीं हुआ मगर 3 जगह अल्लाह ने ये बात फ़रमाई इन्नल लाहा युहिब्बुल मुकसितीन यानि बेशक अल्लाह मुहब्बत करता है इन्साफ करने वालों से। तीनो मौके और वाक़िया अलग अलग है मगर ये बात साफ़ है के अल्लाह सुब्हान व तआला उन लोगों को पसंद फर्मता है जो अल्लाह के लिए नेकी करते हैं। पहला मौका है जबमदीना के यहूदी आप सलल्लाहु अलैहिवसल्लम के पास आये और उन्होंने किसी मसले का हल मांगना चाहा जिसमे उन्होंने  ज़्यादती की थी तो अल्लाह ताला ने रहनुमाई की थी के सही सही फैसला करो इन्साफ के साथ या उन्हें वापस लौटा दो। अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाता है -

ये झूठ सुनने वाले और हराम का माल खाने वाले हैं इसलिए अगर ये तुम्हारे पास अपने मुक़दमे लेकर आये तो तुम्हे अख्तियार दिया जाता है के चाहो तो उनका फैसला करो, वरना इंकार करदो।  इंकार कर दो तो ये तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकते। और फैसला करो तो ठीक ठीक इन्साफ के साथ करो अल्लाह इंसाफ करने वालों को पसंद करता है। 
-क़ुरआन 5 : 42 


और अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाता है -

और अगर ईमानवालों में से दो गरोह आपस में लड़ जाएँ तो उनके दरम्यान सुलह कराओ। फिर अगर उनमें से एक गरोह दूसरे गरोह से ज़्यादती करे तो ज़्यादती करनेवाले से लड़ो, यहाँ तक कि वो अल्लाह के हुक्म की तरफ़ पलट आए। फिर अगर वो पलट आए तो उनके दरम्यान अद्ल के साथ सुलह करा दो। और इन्साफ़ करो कि अल्लाह इन्साफ़ करनेवालों को पसन्द करता है।

क़ुरआन 49:9
इस आयत में ये मुराद नहीं है के दो ईमानवाले गिरोह आपस में लड़ें, बल्कि मुसलमानो को दूसरे मुसलमान से हुस्न इ सुलूक करना ही है, मगर अगर कभी ऐसा मौका पेश आ ही जाये तो झगड़ने वाले दो गिरोह के अलावा बाकि मुसलमानो से कहा जा रहा है के उनके बीच मामला सुलझाए और अगर बात न बने तो मज़लूम की मदद करके उनपर ज़ुल्म होने से बचाये, जब तक उन दोनों गिरोह के बीच सुलह न हो जाये।  अल्लाह इन्साफ करता है और इन्साफ करने वालों को पसंद करता है। तीसरे मौके पर अल्लाह सुब्हान व तआला फरमाता है - 

अल्लाह तुम्हें इस बात से नहीं रोकता कि तुम उन लोगों के साथ नेकी और इनसाफ़ का बरताव करो जिन्होंने दीन के मामले में तुमसे जंग नहीं की है और तुम्हें तुम्हारे घरों से नहीं निकाला है। अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है।

क़ुरआन 60:8

इस आयत में मुसलमानो को सभी गैर मुस्लिमो से दुश्मनी करने से रोका गया है।  अगर गैर मुस्लिम मुसलमानो के साथ अच्छा बर्ताव कर रहे हैं और उन्हें उनके घरो से नहीं निकलते तो उनके साथ इन्साफ और सच्चा मामला करना चाहिए। इस आयत का नुज़ूल माना जाता है अबू बक्र सिद्दीके रज़ि अल्लाहु अन्हु की बेटी अस्मा के अपनी माँ से मिलने के इंकार करने पर, उनकी माँ मक्का से उनसे मिलने आयी थी और मुशरिक होने की वजह से अस्मा रज़ि. ने अपनी माँ से मिलने से इंकार कर दिया था। जब नबी करीम के सामने मामला पेश आया तब ये आयत नाज़िल हुयी थी।


हम जानते हैं के अल्लाह सुब्हान व तआला बहुत ज़्यादा रहम करने वाला और बहुत करीम है मगर ये भी याद रखना चाहिए के अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत का मालिक और बहुत ज़यादा इन्साफ करने वाला है। अगर इस दुनिया में हमने किसी का दिल दुखाया, किसी पे ज़ुल्म किया, किसी की हक़ तलाफ़ी की है तो बेहतर है के मौत से पहले पहले हम अपने मामलात उस इंसान से सही कर लें और उससे माफ़ी तलब करें।  मुमकिन है के हम वो माफ़ कर दे और इन्साफ के दिन हमारा हिसाब किताब आसान हो। 

रसूलुल्लाह () ने फ़रमाया, ''जिसने अपने किसी भाई पर ज़ुल्म किया हो तो उसे चाहिये कि उस से (उस दुनिया में) माफ़ करा ले। इसलिये कि आख़िरत में रुपये पैसे नहीं होंगे। इससे पहले (माफ़ करा ले) कि उसके भाई के लिये उसकी नेकियों में से हक़ दिलाया जाएगा और अगर उसके पास नेकियाँ न होंगी तो उस (मज़लूम) भाई की बुराइयाँ उस पर डाल दी जाएँगी।"

बुखारी 6534
एक उसूल हमेशा के लिए बाँध लें लोगों के साथ वैसा बर्ताव करें जैसा हम चाहते हैं अल्लाह सुब्हान व तआला हमारे साथ क़यामत में करे। जो दुसरो को माफ़ करेगा अल्लाह सुब्हान व तआला उसको माफ़ करेगा। हम सब गुनाह गार और खटकर बन्दे हैं और कोई भी यक़ीन के साथ नहीं कह सकता के उसके आमाल उसको जन्नत में ले जायेंगे या जहन्नुम में। जन्नत सिर्फ अल्लाह की रहमत और करम से ही हासिल हो सकती है। अगर किकिसी ने आपके साथ गलत किया है या दिल दुखाया है तो उसे माफ़ कर दें, इंशाल्लाह, अल्लाह इसका बदला यौम उल आख़िरत में देगा। 

मैंने रसूलुल्लाह () से सुना  आप () ने फ़रमाया, किसी शख़्स का अमल उसे जन्नत में दाख़िल नहीं कर सकेगा 
सहाबा किराम (रज़ि०) ने कहा : या रसूलुल्लाह! आपका भी नहीं? 
आप () ने फ़रमाया, नहीं  मेरा भी नहीं  सिवा उसके कि अल्लाह अपने फ़ज़ल और रहमत से मुझे नवाज़े इसलिये (अमल में) बीच की रविश इख़्तियार करो और क़रीब-क़रीब चलो और तुममें कोई शख़्स मौत की तमन्ना न करे क्योंकि या वो नेक होगा तो उम्मीद है कि उसके काम में और बढ़ोतरी हो जाए और अगर वो बुरा है तो मुमकिन है वो तौबा ही करे।

बुखारी 5673


ज़ुल जलाली वल इकराम             Asma ul Husna         अल जामिउ 

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