Nikah (Part-2) Balugat ki Umar aur kuch shartein

Nikah (Part-2) Balugat ki Umar aur kuch shartein


निकाह के लिए बलूग़त की सही उम्र और कुछ शर्तें 



Table Of Content
  1. निकाह के लिए सही उम्र क्या है?
  2. किस किस से निकाह नहीं कर सकतें हैं?
  3. एक वक्त में कितने निकाह कर सकते हैं?


निकाह के लिए सही उम्र क्या है?

निकाह के लिए कोई बकायदा उम्र तो नहीं बताया गया है लेकिन हां, क़ुरान की एक आयत से पता चलता है कि,

"यतीमो को आजमाओ जब तक वो निकाह को पहुंच जाएं।" [क़ुरआन 4:6]

इस आयत में بَلَغُوا النِّکَاحَ (reach marriageable age) بَلَغُوا (puberty:- the age at which girls and boys attain reproductive maturity)

लड़के और लड़कियों में बलूग़त (Puberty) की कोई तयशुदा उम्र (fixed age) नहीं है ये environmental and geographical conditions etc. पे निर्भर करता है। 

NCERT के अनुसार लडकियों में puberty 10 to 14 years और लड़को में 13 to 16 years होती है। अब कुछ लोगों को ऐतराज़ होगा इतनी कम उम्र में निकाह कर दिया जाए? 


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"कोई नुक्सान ना पहुचाओ और ना नुक्सान लो।" [सुन्न इब्ने माजा: 2341]


अहले इल्म इस हदीस के हवाले से कहते हैं:

कोई लड़की का निकाह बालिग होने के अलावा साथ इन बातों पर भी निर्भर करता है कि "she should be able for sexual intercourse and mentally stable".

और अगर onset of puberty आने पर, characters पे गौर करेंगे तो आपको साफ साफ नज़र आएगा कि लड़की और लड़को का रुजूहान (inclination) opposite gender में होता है क्योंकि उनका physiological behaviour में बदलाव आता है जैसे: sex/reproductive hormones (testosterone in male & estrogen and progesterone in female) का secretion होने लगता हैं।  यकीकन ये सब को पता होगा लेकिन हमारा बताने का मक़सद ये है कि अगर वो अपनी नफसियाती ख्वाहिशात की तकमील के लिए कोई गुनाह में मुबतला हो  जाएंगे तो उसके जिम्मेदार आप होंगे। इसी लिए "लड़को और लड़कियों का निकाह उनकी सही उम्र में कर देना चाहिए" जिससे बहुत सी बुराईयां और बीमारियां होने से अपने समाज को बचाया जा सकता है।


किस किस से निकाह नहीं कर सकतें हैं?


"और इन औरतों से निकाह ना करो जिनसे तुम्हारे बापो ने निकाह किया हो मगर जो गुज़र चुके हैं, ये बे हयाई का काम और बुगज़ का सबब है और बड़ी बुरी राह है।" [क़ुरआन 4:22]

इस आयत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सौतेली मां के हवाले से बात किया है क्यूंकि दौरे जहीलियत में अहले अरब अपनी सौतेली बेवा मांओ से निकाह कर लिया करते थे।


"हराम की गईं हैं तुम पर तुम्हारी मांये और तुम्हारी लडकियां और तुम्हारी बहने तुम्हारी फूफियां और तुम्हारी खालाएं और भाई की लडकियां और तुम्हारी वो मांये जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो और तुम्हारी दूध शारीक बहनें और तुम्हारी सास और तुम्हारी वो परवरिशकरदा लडकियां जो तुम्हारी गोद में हैं, तुम्हारी इन औरतों से जिनसे तुम दाखुल कर चुके हो, हां अगर तुमने इनसे जिमा (sexual intercourse) ना किया हो तो तुम पर कोई गुनाह नहीं और तुम्हारी सलबी सगे बेटों की बीवियां और तुम्हारा दो बहनों का जमा करना हां जो गुज़र चुका सो गुज़र चुका यकींनन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बख्शने वाला मेहरबान है।"  [क़ुरआन 4:23]


परवरिशकरदा से मुराद बीवियों की बेटियां, वो बेटी ही होगी हां अगर बीवी के साथ जिमा (sex intercourse) नहीं किया है तो फिर वो लड़कियां भी जायज़ हैं।

दो बहने एक वक्त में बीवियां नहीं बन सकती हैं। इस आयत अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त दौरे जहीलियत को मुखातिब किया है कि जो गुज़र गया सो गुज़र गया 

इन सब के अलावा सारी औरतों से निकाह जायज़ है।


एक वक्त में कितने निकाह कर सकते हैं?


एक वक्त औरत सिर्फ़ एक ही निकाह कर सकती है लेकिन मर्द के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान:

"अगर तुम्हें डर हो कि तुम यातीम लड़कियों से निकाह करके तुम इंसाफ़ नहीं कर सकोगे तो और औरतों में से जो तुम्हें अच्छी लगें तुम इनसे निकाह कर लो दो दो, तीन तीन, चार चार से लेकिन अगर तुम्हें बराबरी ना कर सकने का खौफ हो तो एक ही काफ़ी है या तुम्हारी मिल्कियत की ये ज़्यादा क़रीब है, कि (ऐसा करने से ना इंसाफी और) एक तरफ़ झुकने से बच जाओ।"  [क़ुरआन 4:3]

इस आयत का खुलासा इस हदीस से होता है।

एक शख़्स ने इस्लाम क़ुबूल किया, इसकी आठ बीवियां थीं, नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: इन में से सिर्फ़ चार रखना।

चार तक की इजाज़त है लेकिन इंसाफ़ करने की पाबंदी के साथ और अगर कोई इंसाफ़ नहीं कर सकता तो वो सिर्फ़ एक से ही निकाह करे क्योंकि अखिरत में बहुत सख़्त पकड़ है।


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

"जिस शख़्स की दो बीवियां हों और वो इनके दरमियान अदल और इंसाफ़ ना करे तो कयामत के दिन इस हाल में उठेगा कि इसका जिस्म का एक धड़ अलग हो गया।" [तिर्मीजी:1141]


अल्लाह रब्बुल इज़्जत से दुआ है कि अल्लाह हमें दीन पर अमल करने की तौफीक दे

आमीन या रब-उल आलमीन 

जज़ाक अल्लाह खैर

-अहमद बज़्मी

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