इस्लाम में बेटियों की फजीलत (पार्ट-1)
अल्लाह का फरमान:
सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास अल्लाह ही की हैं जो चाहता हैं पैदा करता हैं (और) जिसे चाहता हैं (फ़क़त) बेटियाँ देता हैं और जिसे चाहता हैं (महज़) बेटा अता करता हैं !
या उनको बेटे बेटियाँ (औलाद की) दोनों किस्में अता करता हैं और जिसको चाहता है बांझ बना देता है बेशक वह बड़ा वाकिफ़कार क़ादिर हैं !
अल क़ुरान 42:49-50
ये क़ुरआनी आयतें इस बात की पुख़्ता दलील हैं कि औलाद कोई नही दे सकता सिवाए अल्लाह सुभान हू तआला के !
वजाहत:
हम देखते हैं कि इस आयत में बेटियों का ज़िक्र बेटों से पहले हुआ है, और उलेमा इस पर रोशनी डालते हुए कहते हैं :"यह बेटियों को खुश रखने और उनके लिए मेहरबानी और हौसला आफजाई करने के लिए है, क्योंकि बहुत से बाप बेटी पैदा होने पर के बोझ महसूस करते हैं
अल्लाह का फरमान:
उनमें से जब किसी को लड़की होने की खबर दी जाए तो उसका चेहरा काला हो जाता है और दिल ही दिल में घुटने लगता है।
इस बुरी खबर के कारण लोगों से छुपा छुपा फिरता है।
सोचता है कि क्या वह इसे अपमान सहने के लिए ज़िंदा रखे या उसे जीवित दफ़न कर दे।
आह! क्या ही बुरे फ़ैसले है जो वे करते हैं।
क़ुरआन(16:58-59)
बेटियां मुश्किलों और तकलीफों
का सफ़र तय करती हैं
रहमत बन कर आती है
फिर जान हथेली पर रख
किसी की जन्नत बनती है
एक हदीस में है
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "जो शख़्स उन बेटियों की वजह से किसी तक़लीफ़ में मुब्तिला हुआ उसके लिए ये लड़कियां आग से पर्दा बन जाएँगी।"
Bukhari 1418
दौर ए जिहालत के परवादह एक शख्स ने आप (ﷺ अपनी बेटी हज़रत फातिमा (राज़ीo) के साथ नबी ए अकरम सल्ललाहो अलैहि वसल्लम की मुहब्बत का आलम देखा तो हैरत जदा सा हो गया, आखों से आंसू निकल आए, सोचने लगा के "आह! किस बेदर्दी से मैंने अपनी बेटी को सिर्फ दौर ए जिहालत की असीबत की बिना पर जिंदा दफना दिया था,"
और फिर नबी ए अकरम सल्लाह अलैहि वसल्लम के पूछने पर अपनी दास्तान बयान करना शुरू कर दिया, "मेरी बीवी हमीला थी, उन्हीं दिनों में एक सफर पर मजबूर हो गया, अरसे बाद पलट कर आया तो अपने घर में एक बच्ची को खेलते देखा,
बीवी से पूछा, ये कौन है??
तो बीवी ने कहा, ये तुम्हारी बेटी है, और फिर किसी नमालूम खौफ के तहत इल्तेजामेज़ लहजे में कहा: " जरा देखो तो किस कदर प्यारी बच्ची है, इसके वजूद से घर में कितनी रौनक है, ये अगर जिंदा रहेगी तो तुम्हारी यादगार बनकर तुम्हारे खानदान और कबीला का नाम जिंदा रखेगी" मैंने गर्दन झुकाली, बीवी को कोई जवाब दिए बगैर लड़की को देखता रहा, लड़की कुछ देर तो अजनबी निगाहों से मुझे ताकती रही, फिर ना जाने क्या सोचकर भागती हुई आई और मेरे सीने से लिपट गई, मैं भी जज़्बात में उसे आगोश में भर लिया और प्यार करता रहा, कुछ अरसा यूंही गुजर गया लड़की आहिस्ता आहिस्ता बड़ी होती रही और होशियार हुई, साने बुलूग के करीब पहुंच गई, अब मां को मेरी तरफ से बिलकुल इत्मीनान हो चुका था, मेरा रवैया भी बेटी के साथ मोहब्बत आमेज था,
एक दिन मैंने अपनी बीवी से कहा.. "जरा इसको बना संवार दो, मैं कबीला की एक शादी में इसे ले जाऊंगा" मां बेचारी खुश हो गई और जल्दी से सजा संवार कर तैयार कर दिया, मैंने बेटी का हाथ पकड़ा और घर से रवाना हो गया, एक गैर आबाद बयाबान में पहुंच कर पहले से तैयार शुदा एक गाढ़े के करीब मैं खड़ा हो गया, बेटी जो बड़ी खुशी के साथ उछलती कूदती चली आ रही थी मेरे क़रीब आकार रूक गई, और बड़ी मासूमियत से सवाल की,
"बाबा ये गड्ढा किस लिए??"
"मैंने सपाट लहज़े में उससे कहा "अपने खानदानी रस्म ओ रिवाज के मुताबिक़ मैं तुमको उसमे दफन कर देना चाहता हूं ताकि तुम्हारी पैदाइश से हमारे खानदान और कबीला को जो जिल्लत वा रुसवाई हुई है उससे निजात मिल जाए"
लड़की को सूरत ए हाल का अंदाजा हुआ तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया और अब उसकी तरफ से किसी रद्द ए अमल का इजहार न हुआ, मैंने उसको गड्ढे में धकेल दिया, लड़की देर तक रोटी और गिड़गड़ाती रही लेकिन मुझपर उसके रोने और फरयाद करने का कोई असर ना हुआ, मैंने गड्ढे को मिट्टी से भरता रहा, अगरचे आखिर वक्त तक वह हाथ उठाए मुझसे जिंदगी की इल्तेजा कर रही थी,
लेकिन अफसोस! मैंने अपने दिल के टुकड़े को जिंदा दरगोर कर दिया, लेकिन उसकी आखिरी इल्तेजा आज भी मेरे कानों में आग की लावा की जैसी तपकती रहती है, "बाबा तुमने मुझे को दफन तो कर दिया लेकिन मेरी मां को हकीकत ना बताना, कह देना के मैने अपनी बेटी को कबीला वालों में छोड़ आया हूं"
आप (ﷺ) अरब सहाबी से एक बेटी को जिंदा दरगोर कर दिए जाने की दास्तान सुनी तो नबी (ﷺ) की आंखों से आंसुओं का सैलाब जारी हो गया, उस वक्त नबी सलाह° की आगोश में हज़रत फातिमा जहरा राज़ी° बैठी हुई थी, उनकी भी आंखों से आंसुओं के सैलाब जारी थी, आप ﷺने बेटी हज़रत फातिमा राज़ी° को सीने से लगा लिया और नबी ए करीम सल्लाहो अलैहि वसल्लम के होंटों पर ये जुमला जारी हो गए,
"बेटी तो रहमत है"
और फिर आसमान की तरफ देखते हुए फरमाया..
"मैं फातिमा को देखकर अपने मशाम जान को बहिस्त की खुशबू से मुआतिर करता हूं। या अल्लाह!! मैं तुझसे मौत के वक्त आराम वा राहत और कयामत के हिसाब वा किताब के वक्त आफू मगफीरत का तालिब हूं"
अगर गौर किया जाए तो हम पाते हैं कि अपनी औलाद का कतल सिर्फ़ दौरे जहलियत में ही नहीं बल्कि आज के पढ़े लिखे लोग भी शामिल हैं जो हाई सोसाइटी में रहते हैं जदीद टेक्नोलॉजी के इस दौर में गुनाह करना कितना आसान हो गया है कि अपनी औलाद को कत्ल कर के आसानी से लोग इसे छुपा लेते हैं और घर वालों को भी इसकी भनक नहीं लगती लेकिन ये इस बात से बेखबर क्यू हैं की अल्लाह तो दिलों के हाल भी जनता है।
और ताजुब्ब की बात ये की जो दीन दारी का ढोंग करते है, अपने सीने कलाम ए इलाही लिय फिरते हैं खुद को जाहिर तौर पर मुस्लमान होने के दावे करते हैं।
अफ़सोस है ऐसे लोगो पर, मैंने ऐसे लोगों को भी ये गुनाह करते देखा है। दौर ए जहलियात में तो ये एक खानदानी रस्म थी लोग बड़े शान से ये काम करते थे वो अल्लाह से नहीं छुपाते थे । मगर हम? हमारे पास तो अल्लाह का कलाम मौजुद है रहनुमाई के लिए ।
फरमाने रसूल ﷺ है के
जिस शख्स की बेटी हो , वो उसको ना तो जिंदा दफन करे , और ना उसे जलील करे , और ना बेटे को उस पर तरजीह दे,तो अल्लाह ताला उसको जन्नत में दाखिल फरमाएगा।
( अबु दाऊद 5146)
नबी करीम ﷺ फरमाते हैं: अपनी बेटियों से नफ़रत ना करो क्यों कि वो तुम्हारी कीमती साथी है।
जहां मायके में अपने वालदेन के आंखो की ठंडक होती, बड़े नाज से पलती है मां बाप उसके नखरे उठाते नहीं थकते.। मगर ये एहसास बचपन में ही दिलाया जाता है कि वो पराई है उसे पराए घर जाना है।
हसती खिलखिलाती , सोर मचाती...
जैसे जैसे बड़ी होती है उसका अल्लहडपन बढ़ता जाता है
कितनी मासूम कितनी कोमल... और जिद्दी इतनी की हर बात आसानी से मनवा ले... जब जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही नसीहतों का दौर शुरू होता है.... और शादी के बाद ही उसकी जिन्दगी एक नया करवट लेती है.... उसे देख कर कहीं से नहीं लगाता कि वह वही अल्लहडपन करने वाली चिड़िया है जो मायके में एक सूट का दुपट्टा मैच ना हो तो पुरा घर सर पर उठा लेती थी.... सुसराल में उसकी वो हंसी और और ठहाके ऐसे बिलिन हो जाते हैं जैसे उफनती नदी समुद्र की गोंद में समा कर अपना सारा जोर खो देती है... ।
Jajaqallah khair
अल्लाह पाक बेटियों के नसीब अच्छे करें..🤲🤲🤲
जारी है....
बेटियों के नसीब (पार्ट-2)मां बनने से लेकर कब्र की आगोश तक (पार्ट-3)
-फिरोजा
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