Jhooti tohmat lagane ka Gunah

दोष लगाना, बहुत संगीन गुनाह है , खुद के गुनाह छिपाने के लिए दूसरों पर दोष (blame) मढ देना सबसे आसान काम है. और आज के पसमंजर में लोगों के लिए ये कोई गुनाह नहीं, एक दूसरे पर बोहतान लगाना, झूठ बोलना आम सी बात हो गई है, किसी के किरदार पर उंगली उठाना, उसे गलत साबित करना, हर तीसरे इंसान की आदत बन चुकी है।

wrong accusation is sin in Islam


झूठी तोहमत लगाने का गुनाह

अल्लाह रब्बुल इज़्जत की बनाई इस खुबसूरत दुनियां में पुरसुकुन होना भी एक पूंजी है, अगर सब कुछ होते हुए भी आप परेशान और बेचैन हैं तो इसका मतलब है कि कहीं कोई कमी ज़रूर है ।

फिर ऐसे लोगों को अपना विश्लेषण (analysis) करना चाहिए कि कहीं कोई चूक हो रही है । इसी बेचैनी में हम अक्सर दूसरों पर इल्जाम (बोहतानतरासी) लगाते है और कई बार अल्लाह को भी कोसने लगते हैं जो कुफ्र है।

अक्सर लोग फहश बाते, एक दूसरे को लान तान , यहां तक के "काफ़िर" भी बोल देते है, दरअसल ऐसे लोग आखिरत के मामले से बिलकुल भी संजीदा नहीं होते ।

यहां लफ्ज़ "काफ़िर" आया है जो हमारे गैर मुस्लिम भाइयों को अक्सर नागवार गुजरता है वजह ये है कि ये एक अरबी लफ्ज़ है जिसका मतलब हम सही से जान ही नहीं पाए, हालंकि ये एक अलग टॉपिक है जिस पर काफ़ी कुछ लिखा जा सकता है ताकि लोगों के doubt clear हो।

फिलहाल हम "काफिर " शब्द के अर्थ पर थोड़ी सी रोशनी डाल लेते हैं:

दरअसल

काफ़िर अरबी लफ्ज़ है जिसका मतलब होता है

मना करने वाला (इंकार करने वाले) - अगर कलाम ए इलाही को आप ने ठीक ठीक लोगों तक पहुंचा दिया है जैसा कि हक है, इसके बाद भी कोई इंकार करे तो वह काफ़िर है अन्यथा आप को कोई हक नहीं कि किसी को काफ़िर कहें।

छुपाने वाला: अगर हम मुसलमानो का ये दावा है कि इस्लाम सच्चा मुक्ति का मार्ग है और क़ुरान हक है ये जानते हुए भी आप ने हक को छुपाया उसे लोगों तक नहीं पहुंचाया तो आप भी काफ़िर हैं।

नाशुक्री करने वाला (ungrateful): अल्लाह ने जो नेमतें हमें अता की है और उन नेमतों को हम जानतें है (जैसा कि कुरान) एक बहुत बड़ी नेमत है,उस नेमत को जान कर भी उस पर अमल ना करना, उसे पीठ पिछे डाल देना नाशुक्री है । और यही नाशुक्री आज हमारे लिए मुसीबत और परेशानी का सबब बना हुआ है।

झूठी तोहमत लगाने का गुनाह:

जो लोग किसी पर झूठी तोहमत लगाते हैं वो कुरान की इस आयत पर गौर करें

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“जो लोग मुसलमान मर्दो और मुसलमान औरतों को बगैर किसी जुर्म के तोहमत लगा कर तकलीफ पहुँचाते हैं, तो यक़ीनन वह लोग बड़े बोहतान और खुले गुनाह का बोझ उठाते हैं।”

📕 सूरह अहज़ाब : 58


इस हवाले से हदीस में आया है कि

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जिस ने किसी मोमिन के बारे में ऐसी बात कही जो उसमें नहीं है, तो अल्लाह तआला उस को दोज़खियों के पीप में डाल देगा, यहाँ तक के उस की सजा पा कर उस से निकल जाए।”

📕 अबू दाऊद: 3597

दोष लगाना, बहुत संगीन गुनाह है , खुद के गुनाह छिपाने के लिए दूसरों पर दोष (blam)मढ देना सबसे आसान काम है. और आज के पसमंजर में लोगों के लिए ये कोई गुनाह नहीं, एक दूसरे पर बोहतान लगाना, झूठ बोलना आम सी बात हो गई है, किसी के किरदार पर उंगली उठाना, उसे गलत साबित करना, हर तीसरे इंसान की आदत बन चुकी है।

एक दूसरे को लान तान , यहां तक के अपने ही किसी मुस्लिम भाई को "काफ़िर" भी बोल देना जहन्नुमी बोल देना हम में से कितने लोग हैं जिन्हें इस बात का गुमान तक नहीं, ऐसे लोग आखिरत के मामले से जर्रा बराबर भी संजीदा नहीं होते, 

क्या एक मोमिन के दो चेहरे हो सकते?

जो दिल में हो वो ज़ुबां पर होना चाहिए 

यही मोमिन कि पहचान है


हुज़ूर ﷺ ने फरमाया :-

"मोमिन ताना देने वाला,लानत करने वाला,बेहया और बदज़ुबान नहीं होता है।

(तिर्मिज़ी 1977)


फिर तो हमें गौर करना चाहिए इश्क ए नबीﷺ का दम भरते नहीं थकते और उनकी सुन्नतों को इग्नोर भी करते हैं, कलामे इलाही पर अमल नहीं करते ,क्या हम सचमुच मोमिन कहलाने योग्य हैं।

क्या ये बदगुमानी नहीं है???

प्यारे आका ﷺ ने फ़रमाया:

बद गुमानी से बचो क्योंकि बद गुमानी सबसे ज्यादा झूठी बात है,किसी के एब मत तलाश करो और ना जासूसी करो(दौलत,नुमाइश में)मुकाबला बाजी ना करो,हसद ना करो,बुग्ज (नफरत)ना रखो,एक दूसरे से मुंह ना फेरो,और अल्लाह के ऐसे बंदे बन जाओ जो आपस में भाई भाई हैं।

(मुस्लिम 6536)

बहुत ही अजीब कैफियत है सोशल मिडिया पर आज अक्सर लोग दीन के मामले में भी बीना कुछ जानें बुझे एक दूसरे से बहस करते, गाली गलौज करते नज़र आते हैं।

मेरे प्यारे भाइयों जरा कुरान की इन आयतों पर गौर करें:

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“जो लोग खुदा के दीन में झगड़ते हैं, जब के वह दीन लोगों में मक़बूल हो चुका है (लिहाजा) उन लोगों की बहस उन के रब के नजदीक बातिल है, उनपर खुदा का ग़ज़ब है और सख्त अजाब (नाज़िल होने वाला है)।”

📕 सूरह शूरा :16


अब इतनी कमियों के बाद भी लोग खुद को नबी ﷺसे मुहब्बत और मुसल्लम ईमान होने का दावा ठोंकते हैं। ये दावा कितना सच्चा है अल्लाह ही बेहतर जानता है। (वतु  इज़्ज़ु मंतशा वतु  ज़िल्लु मंतशा)

लोगों का हाल ये है कि चाहें कोई बात पता हो या न हो, फिर भी हर तरह के मुद्दे में शामिल होकर खुद को अफ़ज़ल दिखाने के लिए अपना सही या गलत दृष्टिकोण देना हक समझते हैं अब इस से भले ही सामने वाले की जात को नुकसान पंहुच रहा हो उसे ठेस पहुंच रही हो, उसका दिल दुख रहा हो, उसकी insult हो रही हो इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हमें तो बस बातों का लुत्फ उठाना है जबकि हम इंसान को ऐसा होना चाहिए के अपनी जिंदगी का कीमती वक्त नेक काम और अल्लाह को राज़ी करने में लगाए, या फालतू बोलने से बचें,ख़ामोश रहे ताकि उससे कम से कम दूसरे भाइयों को कोई नुकसान न पहुंचे।

इस बारे में एक हदीस में है कि:

हज़रत अबू मूसा रजि० से रिवायत है,नबीकरीम ﷺ ने फ़रमाया: हर मुसलमान के लिए सदका करना (जरूरी) है। अबू मूसा ने पूछा, अगर वह सदक़ा करने के लिए कुछ न पाए ? आपने फ़रमाया, अपने हाथों से काम (मेहनत, मज़दूरी) करे और (मजदूरी हासिल करके) अपने नफ़्स को भी नफ़ा पहुंचाए और सदक़ा भी करे। 

उन्होंने पूछा? 

अगर उसे उसकी भी ताक़त न हो? 

आपﷺ ने फ़रमाया वह किसी मुसीबतजदा हाजतमंद की मदद कर दे।

 उन्होंने कहा, अगर यह इसकी भी ताक़त न रखे? 

आपﷺ ने फ़रमाया, वह नेकी या भलाई का हुक्म करे। उन्होंने पूछा, अगर वह यह भी न करे? आपने फ़रमाया, वह दूसरों को नुक्सान पहुंचाने से बचा रहे, यक़ीनन यह भी सदक़ा है। 

अल बुखारी 6022


खुलासा मजमून: उपर्युक्त क़ुरान की आयत और हदीस से ये बात साबित होती है कि किसी पर तोहमत लगाना निहायत ही संगीन गुनाह है अल्लाह इब्बुल इज़्जत ने इंसान को एक बा शउर मखलूक बना कर इस रु ए जमीं पर पैदा किया है और अनगिनित नेमतों से नवाजा है इस लिए हमें उसका शुक्र अदा करते रहना चाहिए , और सारी नेमतों में सबसे बड़ी नेमत हमारे अंदर सोचने समझने, अपनी बात को सही तरीके से रखने की सलाहियत दी है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अपने आस पास किसी ऐसे शख्स को देखा होगा या जानते होगें जो अपना जहनी तवाजून खो चुका है, फिर आप खुद को उस इंसान से compare कर के देखें तो पता चलेगा कि अल्लाह ताला ने आप को क्या दिया है और उस इंसान से क्या छीन लिया है तब सायद आप को अल्लाह की सिफत का अंदाजा हो, और आप बोहतनतरासी जैसे संगीन गुनाह से खुद को पाक कर पाएं जो आप के चैन सुकुन को छीन कर आप को मानसिक रूप से कुंठित कर देता है और आप खुद की फ़िक्र छोड़ कर दूसरों को ब्लेम करने में लीन हो जाते हैं,

अल्लाह की दी हुई नेमतों और रहमतों पर शुक्र करें गुनाहों को छोड़ कर खुद को अल्लाह की याद में लगा लें, यही कामयाबी है।।

अल्लाह का फरमान है:

सब मिलकर अल्लाह की रस्सी(क़ुरान)को मज़बूत पकड़ लो और फिरकों में न बटों।

कुरआन [3:103]


अल्लाह रब्बुल इज़्जत हमारे हाल पर रहम करे, हमारे खताओं को माफ़ कर दे और हमें हर बदगुमानी से बचाए।।

आमीन

#फिरोजा खान

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