बेटियों के नसीब
नबी ﷺ फरमाते हैं:
जिसने "3" लड़कियों की परवरिश की उनको तमीज़, तहज़ीब सिखाये उनकी शादी की, उनके साथ हुस्न-सुलुक किया उनके लिए जन्नत है।
अबू दाऊद : 5147
मायके की दहलीज से निकलकर ससुराल का सफर...
या फिर यू कहें... पराए घर से पराए घर का सफर...😔
मैंने दुनिया में बहुत से लोगों को गरीबी लाचारी बेबसी में देखा है मगर एक बेटी के बाप से ज्यादा गरीब ,बेबस और लाचार किसी को नहीं देखा जो अपने जिगर के टुकड़े को 20 साल तक दिल से लगाए रखने के बाद किसी के हवाले कर के अपनी पूरी जिंदगी की कमाई देकर भी उसके सुसराल वालों के सामने हांथ जोड़ कर अपनी बेटी को खुश रखने की मिन्नतें करता हो।
वो चहकने वाली गुड़िया जो बात बात पर रूठती थी, ज़िद करती थी अब सारा वक्त दूसरों का ख्याल रखने और मनाने में गुजर जाता है। जब मायके से कोई मिलने आता है या फोन आता है तो अपने दर्द को दिल और आसुओं को पलकों में झुपाये होठों पर नकली मुस्कान सजाए कहती है "बाबा मैं ठीक हूं! मेरी फिक्र न करें!"
यही से शुरू होता है एक बेटी के जिन्दगी में मानसिक दबाव का सफ़र उसकी पसंद ना पसंद उसकी वह हंसी और ठहाके सब बदल जाते हैं उसकी जिंदगी में एक नया शोर होता है और उसके चेहरे पर खामोशी , पराए घर में आकर वह इसे पराया नहीं समझती बल्कि अपना घर समझती है और रिश्तो को समेटने की कोशिश करती है उसकी हर कोशिश यही रहती है कि वह इस घर को अपना बना ले जहां वह अपने घर में बिना किसी झिझक से बल्कि हक के साथ चीजों को इस्तेमाल किया करती थी अपने भाई बहन से लड़ती झगड़ती... बेपरवाह...
मगर
ससुराल की छोटी छोटी चीजों को जल्दी हाथ नहीं लगाती
शब्दो के चुभते और जलते बाण का निशाना उसे यहां रोज होना पड़ता है कोई चीज नहीं लाई हो तो कहा जाता है तेरे बाप ने दिया क्या है? कोई छोटी सी चीज के भी हाथ लगा दे तो कहा जाता है अपने बाप के घर से लाई है क्या? कोई छोटा सा भी काम बिगड़ जाए तो सास और ननद ताने देती है तेरी मां ने सिखाया नहीं क्या? या तेरी मां ने यही सिखाया है क्या? वगैरा-वगैरा।
अकसर ससुराल के लोग 20 साल की बहु से 40 साल का एक्सपीरियंस चाहते हैं इतने सारे बोझ, इतनी सारी जिम्मेदारी दे दी जाती हैं।
थकी हारी मन में एक नया शोर और डर के तूफान को दबाते हुए अपने प्यारे रिश्तों को भूलाते हुए अपने सपनो की दुनियां मे से निकल कर हकीकत की दुनियां में मुकम्मल खो जाना चाहती है।
फिर वो जिसके के लिए अपना घर बार, मां बाप, भाई बहन सब छोड़ कर आई है, उसने अपने आप को और अपनी जिंदगी को उस के हवाले कर दिया, वो पहले ही मुलाकात में लंबी चौड़ी नसीहते करता है "मेरे घर वाले मेरे लिए बहुत अहम हैं खास कर मेरी अम्मी, मैं उनसे से बहुत प्यार करता हूं, उन्हें खुश रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है, उनकी खिदमत करना उन्हें किसी बात का जवाब मत देना, मेरी बहन मेरी लाडली हैं खयाल रहे उसका कभी दिल न दुखे, मेरे भाई की हर फरमाइश वक्त पर पुरा करना, अब्बू को जल्दी चाय की आदत है..."
उफ्फ
हद तो तब होती है जब कुछ बेगैरत मर्द अपनी शरीक ए हयात से बेहुदा सवाल करते हैं, "तुम्हारी ज़िंदगी में कोई था या फिर तुम्हारा किसी से अफेयर था??"
ये सावल आप के मर्दानगी के मुंह पर तमाचा है
शर्म आनी चाहिए!!!
मुहब्बत ये एक फितरी चीज़ है, किसी भी ऑपोजिट जेंडर के लिए। उम्र का एक पड़ाव ऐसा आता है जिसमें हर इंसान की (मर्द और औरत) कि ज़िंदगी में एक एसा वक्त आता है जब कोई अच्छा लगता है, हम उसकी बातें उसके बिहेवियर उसकी खूबसूरती और उसके टैलेंट से अट्रेक्ट होते हैं हालांकि यह सिर्फ एक अट्रैक्शन होता है।
खास कर बच्चियों का दिल कांच सा नाजुक होता है जो तस्वीर दिखाई जाती है उसे ही अपने मन में बसा लेती हैं लेकिन कांच की हकीकत भी तो आप जानते ही हैं जरा से ठेस पहुंची तो टूट जाता है। मैं इसे मोहब्बत नहीं मानती। क्यों की असल मोहब्ब्त निकाह के बाद ही शुरू होती है।
निकाह के जरिये मियाँ बीवी में आपसी मुहब्बत अल्लाह तआला ही डालता है, जैसा कि इरशाद ए बारी तआला है:
और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं।
अल-क़ुरआन ॥ सूरह 30 (रूम) ॥ आयत
बाज मर्द जो ना महरम मुहब्बत में गिरफ्तार होते हैं अपनी बीवी से पहले ही रात में यह बात भी कहते हैं मैंने अपने मां-बाप की खुशी के लिए तुमसे शादी की है तुम इस घर में रह सकती हो लेकिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है मेरी सारी चीजें पर्सनल है इसमें दखल देने की कोशिश मत करना।
कितना तकलीफ़ देह होगी उस लड़की के लिए जिसका शौहर जिसके लिए उसने अपनी दुनियां छोड़ी हो... क्या गुजरेगी...??
उसके लिए ये वक्त ऐसा हो जैसे किसी ने पैरों तले जमीन खीच ली हो... और सर से आसमान..
याद रखें औरत अपनी जिंदगी में हर दुख और दर्द बर्दाश्त कर सकती है पर दो चीजें उसकी जिंदगी में ना काबिले बर्दाश्त होती है पहला यह की कोई उसके चरित्र पर सवाल उठाए।
और दूसरा अपने शौहर की जिंदगी में किसी पराई औरत को।
अब जरा कुरान की रोशनी में इस पर नजर डालते हैं जैसा कि उपर्युक्त आयत में बताया गया है कि निकाह के ज़रिए अल्लाह ही शौहर और बीबी के बीच मुहब्बत डालता है- निकाह का अर्थ ही होता है मिलना जिस तरह नींद आँखों में मिल जाती है अल्लाह चाहता है कि निकाह के बाद शौहर और बीवी में आपस में ऐसा ताल्लुक पैदा हो जाये जैसा ताल्लुक आँख और नींद के होता है। इसी बात को क़ुरआन में अल्लाह तआला एक दूसरी मिसाल में बयान किया है:
هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ
वे तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास हो।
अल-क़ुरआन ॥ सूरह 2 (बक़रह) ॥ आयत 187
यानी जिस तरह लिबास और जिस्म के बीच कोई दूरी नहीं होती और वे एक दूसरे की हिफाजत करते है उसी तरह का ताल्लुक शौहर और बीवी के बीच होना चाहिये।
मगर अफसोस की बात है कि हमने कुरान को कभी तर्जुमा के साथ पढ़ा ही नहीं...
बचपन से यही सुनते आई की औरत पैर की जूती होती है...
इससे एक बात साफ़ का अंदाजा होता है कि इस्लाम सही मायने में हम तक पहुंचा ही नहीं
शायद हमारे मुआशरे ने ऐसे ही दीन को हम तक पहुंचाया।
अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाते हैं
ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक दूसरे से अपने हक़ माँगते हो और रिश्ते नाते तोड़ने से भी परहेज करो, यक़ीन जानो कि अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है
अल-क़ुरआन ॥ सूरह 4 (निसा) ॥ आयत 1
सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही अल्लाह) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और जानवरों के जोड़े भी उसी ने बनाये, और वही तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है।
अल-क़ुरआन ॥ सूरह 42 (शूरा) ॥ आयत 11
खुलासा:
इन आयात में अल्लाह ने इंसानों की पैदाइश का जिक्र किया है कि किस तरह उसने आदम और हव्वा के जोड़े से इंसानियत को पूरी दुनिया में फैला दिया।
उन दोनों के बाद निकाह के इदारे से ही इंसानों की नस्ल जारी रखने का तरीका अल्लाह ने पसन्द किया।
अल्लाह ने खास जोर लफ्ज़ ‘जोड़ा‘ पर दिया है, अल्लाह ने मियाँ और बीवी को एक जोड़ा करार दिया है। और हम जानते हैं कि ‘जोड़े’ (Pair) में एक चीज दूसरे को पूरी करती है, दोनों एक दूसरे के पूरक होते है या यूं कहें एक गाड़ी के दो पहिए, जो एक दूसरे के बिना पूरे नहीं होते। ऐसा ही ताल्लुक एक मियाँ और एक बीवी के दरमियान भी होता है।
फिर साथ ही अल्लाह ने इस निकाह के जरिये वजूद में आने वाले रिश्ते नातों को जोड़ने का हुक्म दिया है।
नबी सल्ल. का इरशाद है ::
रहम(रिश्ते) का ताल्लुक रहमान से जुड़ा है । जो रिश्तों को जोड़ता है अल्लाह उससे जुड़ता है, और जो रिश्तों को तोड़ता है अल्लाह उससे(अपना ताल्लुक) तोड़ता है.
सहीह बुखारी हदीस न०- 5988
नबी-ऐ-करीम (सलाल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया
“कता रहमी करनेवाला (यानी रिश्ते तोड़ने वाला) जन्नत में नहीं जायेगा”
–सही बुखारी, हदीस 5984
औरत निकाह से पहले किसी से अट्रेक्ट भी हो तो निकाह के बाद उसका ये अट्रैक्शन (लगाव) खत्म हो जाता है
वह अपने सोच पर भी पहरे लगा लेती है
वो सिर्फ़ अपने शौहर से प्यार करती है फिर जब वो जिस से प्यार करती है उसे पाने और उसके दिल में जगह बनाने के लिऐ किसी भी हद तक जाती है उस से जुडे रिस्तो का एहतराम, उसकी पसंद ना पसंद का ख्याल, उस पराए घर को जन्नत बना देना चाहतीं हैं, यहां तक की रात को रो रो कर तहज्जुद में दुआएं करती है।
ऐसा नहीं है कि बेटियां जवाब देना नहीं जानती उनके मुंह में जबान नहीं है उनकी खामोश को कमजोरी ना समझा जाए वह आपकी इज्जत करती ह रिश्तो को जोड़े रखना चाहती है, हालात को बद से बदतर नहीं होने देना चाहती उसे ख्याल है अपने मां की परवरिश का अपने बाप के मान का अपने भाई के गुरूर का अपनी छोटी बहनों की आने वाली जिंदगी का।
और सबसे बढ़ कर अपने शौहर का मान बनाए रखना चाहती है।
मगर याद रखें जरूरत से ज्यादा उम्मीदें या बोझ हमेशा नुकसान देह होते हैं 18/20साल की बच्ची से 40साल उम्र वाली जिम्मेदारी और बोझ कुछ बच्चियां इसे निभा नहीं पाती फिर नतीज़ा झगड़ा,लड़ाई, कलह और मामला तलाक़ तक पहुंच जाता है।
मेरी कोई बेटी नहीं है मगर हर नमाज़ में अल्लाह ताला से दुआ होती हैं की अल्लाह बेटियों के नसीब अच्छे करें उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो इंसान हो जो उसे तपती हुए सहरा से निकाल करअपने पनाह में ले लेउसके जज्बातों की कद्र करें ऐसा ना की जानवर की तरह पेश आए।
ऐसा घर मिले जिसे हक से अपना कह सके।
जजाकल्लाह खैर
जारी है....
इस्लाम में बेटियों की फजीलत (पार्ट-1)मां बनने से लेकर कब्र की आगोश तक (पार्ट-3)
#फिरोजा
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