Islam Me Maa Ka Darja (Part-3) | Maa Banne Se Lekar Qabr Tak

Islam Me Maa Ka Darja (Part-3) | Maa Banne Se Lekar Qabr Tak

मां बनने से लेकर कब्र तक कि ज़िंदगी

______________﷽______________

उसी ने इन्सान को पैदा किया और उसे बोलना सिखाया।

Surat No. 55:3,4


अल्लाह का एक नाम रहमान भी है क्या आप

जानते हैं रहमान का मतलब क्या होता है

रहमान यानी रहम करने वाला बेशक अल्लाह रहमान है जो आपने बंदों पर रहम करता है,

और अल्लाह ने मां की कोख को भी रहम बनाया है जिस रहम (कोख) में मां नौ महीने अपने बच्चे को रखती है, अल्लाह की मुहब्बत को मां की मुहब्बत से हरगिज़ compare नहीं कर सकते, मगर अल्लाह की रहमतों का शुक्र गुजार होना चाहिए जिसने मां के रहम को 9 महीने हमारे लिये आरामगाह बनाया।

मां नौ महीने हमें अपनी कोख में रखती है, तमाम तकलीफे और दर्द बर्दाश्त करती है 

और हमारा रब जो सारी दुनियां का मालिक है सारी ज़िन्दगी हमारा खयाल रखता है,

अल्लाह ताला का फ़रमान

लोगो, अगर तुम्हें मरने के बाद की ज़िन्दगी के बारे में कुछ शक है तो तुम्हें मालूम हो कि हमने तुमको मिट्टी से पैदा किया है; फिर नुत्फ़े (वीर्य की बूँद) से, फिर ख़ून के लोथड़े से, फिर गोश्त की बोटी से जो शक्लवाली भी होती है और बे-शक्ल भी। (ये हम इसलिये बता रहे हैं) ताकि तुमपर हक़ीक़त खोल दें। हम जिस (नुत्फ़े) को चाहते हैं एक ख़ास वक़्त तक रहमों (गर्भाशयों) में ठहराए रखते हैं। फिर तुमको एक बच्चे की सूरत में निकाल लाते हैं (फिर तुम्हें पालते हैं), ताकि तुम अपनी पूरी जवानी को पहुँचो।

कुरआन 22:5

दुनियां की जिंदगी भी अजीब सी है...

कहते हैं एक औरत तब तक मुकम्मल नहीं होती जब तक मां नही बनती। मां बनना उसके जीवन का सबसे खुबसूरत पल होता है, औरत के जरिए अल्लाह एक खानदान के नस्ल को आगे बढ़ता है ताकि दुनियां का निज़ाम चलता रहे।

अल्लाह ताला फरमाते हैं

ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये।

कुरआन 4:1


अब ज़रा गौर करें उस रब ए कायनात के बनाएं गए निज़ाम और कुवत जो उस ने नर और मादा के बीच रखा है।हम देखते हैं कि जो कुछ भी हम खाते है अमाशय में जाकर वो चीज 6-8घंटे बाद पाचन तंत्र द्वारा पचा कर कुछ घंटे बाद मलाशय द्वारा बाहर निकाल दीया जाता, इसी तरह पानी पीने पर ज्यादा से ज्यादा 6-8 घंटे यूरिन को हम होल्ड रख सकते है। मगर ताज्जुब की बात है की मां के रहम को अल्लाह ने इस तरह बनाया है कि एक बच्चे की तखलीक का जरिया बनया है। जिसमें बच्चा नौ महिने तक रहता है और उसे उसका रिज्क मिल रहा होता है।

मां की ओवरी में बच्चा कैसे डेवलप होता है ये किसकी कुदरत है।

"फिर तुम अल्लाह की कौन कौन सी नेमतों को झुठलाओगे"

कुरआन 55:13

ये अल्लाह की कुदरत ही है

जहां एक तरफ मर्द की मनी( स्पर्म) के बगैर कोई औरत मां नहीं बन सकती वहीं मां की ओवरी (रहम) में मर्द के एक हकीर नुत्फे से एक बच्चा नौ महीने पलता है।

क्या किसी औरत में इतनी सलाहियत है कि बिना वीर्य (स्पर्म) के बच्चा पैदा कर सकती है? या कोई मर्द मां की ओवरी के बगैर अपने खानदान के नस्ल को आगे बढ़ा सकने में सक्षम है?? 

साइंस ने कोई ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित की है?

नहीं न!

और 

 न आने वाले दिनों में कर पाएगी!!! फिर भी, फेमिनिज्म(स्त्री पुरुष ) समानता का नारा देने वाले, औरतों को मर्दों से कौन सी बराबरी दिलाना चाहते हैं या औरते कौन सी बराबरी चाहती है???

अल्लाह ने हर एक मखलूक को अलग अलग सलाहियत और कुबत से नवाजा है फिर भी हम उसकी नेमतों के शुक्र गुजार नहीं है?

अल्लाह ताला फिर फरमाते हैं:

क्या तुम उसका इनकार करते हो जिसने तुम्हें सत से पैदा किया, फिर एक नुत्फ़े से, फिर तुम्हें एक आदमी बना दिया?" 

कुरआन 18: 37


एक मां को प्रेग्नेंसी के नौ महीनों में उस की ज़िंदगी में हर रोज़ एक नया बदलाव आता है. उसके पहनने-ओढ़ने के तरीक़े से लेकर खान-पान, उठना-बैठना सब कुछ बदल जाता है. इस दशा में जहां उसकी जिस्मानी और रूहानी कैफियत में तब्दीली आती है वहीं उसकी जिंदगी नई उम्मीदों से भर जाता है आने वाले दिनों की चिंता उसे सताने लगती है ये चिंता अब खुद के लिए नहीं बल्कि अपने रहम में पल रहे बच्चे के लिय होती है इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता की प्रेग्नेंसी के दौरान औरत को सबसे ज्यादा देख भाल और परहेज़ की जरुरत होती है ऐसे वक्त में उसके लिऐ घर का माहौल का खुशनुमा होना और शौहर की केयर उसके लिए ख़ास होती हैं मगर देखने में आता है कि अक्सर सास जो इस कैफियत और तकलीफ़ से गुजर चुकी है अपनी बहु से नर्म रवैया नहीं अपनाती बल्कि कहती है "ये कोई नया काम नहीं कर रहीं हैं आप, हम ने भी अपनी दिनों में बच्चे पैदा किए हैं......

फिर भी बच्चे के ज़रिए एक खानदान वजूद में आता है ये एक मज़बूत कड़ी होती है

एक औरत की जिंदगी में यही नन्ही सी जान मां बाप के बीच मुहब्बत का सबब भी बनती है ऐसे बहुत से केसेज देखे जा सकते है अगर निकाह के बाद बीबी और शौहर में किसी भी वजह से थोड़ी अन बन भी होती है तो बच्चे की वजह से रिश्ते में मजबूती आती है , बच्चा दोनों के बीच एक चेन का काम करता है इसकी वजह से घर टूटने के चांसेज कम हो जाते हैं!!!

शौहर का रवैया बीवी के हवाले से नर्म हो जाता है उसे एहसास होता है कि ये मेरे बच्चे की मां है इसके गोद में मेरे वजूद की परवरिश होनी है। दूसरी तरफ बीवी को भी ये एहसास होता है कि उसके बच्चे के सर पर बाप का साया बना रहे।

उसे अपने बच्चे के मुस्तकबिल की फिक्र लगी रहती है इस लिय उसके रवैए में और भी नर्मी आती है!

डॉक्टर्स और साइंटिस्ट का मानना है कि एक बच्चे को जन्म देते समय एक औरत को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। 

आसान नहीं होता है साहेब मां बनना...

जान हथेली पर रखनी पड़ती है एक मां को मां बनने में।

इस्लाम में माँ  की फजीलत

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के बाद इंसान से मोहब्बत करने वाली ज़ात मां ही होती है

मां एक अज़ीम लफ्ज़ है एक ख़ूबसूरत एहसास है , एक पाक रिश्ता ह जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के करम व फज़ल से अपने रहम (कोख) मेंअपने खून से हमें सीचती है अपना दुध पिला कर इंसानी वजूद को ज़िंदा रखती है जिसे 

जिसे दुनियां माँ कहती है।

एक औरत एक जब बेटी होती है तब रहमत , बहन होती तो भाई की ताकत ,बीवी होती है तो सुकुन और राहत का जरिया और सबसे अच्छी दोस्त। मगर जिस दिन वो एक बच्चे को जन्म देती है उस दिन सबसे अजीम रिश्ता वजूद में आता है, उस हस्ती को मां कहते हैं।

"सलाम उस हस्ती को जिस के वजूद से कायम है मेरा वजूद"

वो माँ जो अपने ख़ून को दूध बना कर अपनी औलाद को पिलाती है । हम चाह कर भी जिसका कर्ज़ नहीं चुका सकते। 

अल्लाह ताला का फ़रमान:

और ये हक़ीक़त है कि हमने इन्सान को अपने माँ-बाप का हक़ पहचानने की ख़ुद ताकीद की है। उसकी माँ ने कमज़ोरी-पर-कमज़ोरी उठाकर उसे अपने पेट में रखा और दो साल उसका दूध छूटने में लगे। (इसीलिये हमने उसे नसीहत की कि) मेरा शुक्र करे और अपने माँ-बाप का शुक्र अदा कर, मेरी ही तरफ़ तुझे पलटना है।

कुरआन  31:14 


जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है मां फिर उसके साथ अपना बचपन जीती है, उसका हर तरह से ख्याल रखती है अपने सारे तकलीफों और परेशानियों को किनारे रख कर अपने बच्चे का ख्याल रखती है, जब उसका लाडला अपने पैरों पर चलने के क़ाबिल होता है उस ख़ुशी को सिर्फ़ माँ ही समझ सकती है ...

एक माँ जब उसका नौनिहाल उछलते कूदते बाल क्रीड़ा करता है तो खुद को उस पर न्योछावर करती, अगर गिर जाय और उसे चोट लग जाए तो रो पड़ती है, कोई गलती करे तो पहले उसे माँ डांटती है फिर अपने आंचल में छुपा कर दुलारती है ,

उसका बच्चा बीमार हो जाए तो अपने दिल के टुकड़े के लिए सारी सारी रात जाग कर अल्लाह से रहम की भीख मांगती , जानें कितनी ही राते ऐसे ही गुजार देती है । जब तक उसका बच्चा ना खाए ख़ुद भी भूखी रहती है, अपने हिस्से की रोटियां उसे खिलाती और खुद ऐसे ही सो जाती है । वो मां ही तो है जिसका पुरा ध्यान अपने बच्चे के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है सायाद अपने बच्चे की खुशी के लिए उसकी तकलीफे कुछ नहीं होती।

तमाम तकलीफे सह कर पाल पोस जवान करती है। ऐसी होती है "मां"।

लेकिन ये फिरती पहलू है इंसान जो कुछ भी करे थोड़ी सी उम्मीदें भी पाल ही लेता है ये

 कि उसकीऔलाद उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगाऔर यह लाज़मी भी है।

  

माँ जो अपनी औलाद की बेहतर परवरिश केलिए दूसरों के घर के बर्तन मांजती है,दूसरों के घर के कपड़े धोती , कपड़े सिलती,फैक्ट्री कारखानों मैं मज़दूरी करती है ख़ुद परेशानी मुसीबत का सामना करती है लेकिन अपनी औलाद पर जर्रा बराबर भी कोई आंच तक नहीं आने देती ।

मगर इसे बदनसीबी और विडंबना ही कहेंगे कि वही माँ जब बुढ़ापे की दहलीज़ पर क़दम रखती है जब कमज़ोरी को पहुंच जाए, अब उसकी जिस्म व हड्डियों में वो ताक़त नहीं बची हो अब जब उसे आराम करने का वक्त आया हो, उसके साथ नर्मी और आजीजी से पेस आना चाहिए,उसकी देख भाल और सेवा की ज़रूरत है तो उसके बच्चे बेगानो की तरह व्यवहार करते हुए नजर आते हैं इस से बढ़ कर अफ़सोस की बात क्या हो सकती है जिस हस्ती ने अपनी सारी जिन्दगी अपने बच्चो के लिय कुर्बान कर दी हो,

उसके दुध का कर्ज़ हम नहीं चुका सकते और यहीं पर उसे अपना घर फिर से पराया होता महसूस होता है, ये एक औरत की जिंदगी का नया मोड़ होता है उस पराए घर को अपना बनाते बनाते शायद उसे भरम हो जाता है की अब ये उसका घर है मगर ये भ्रम भी जल्दी ही टूटता है।

जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो खुद को काबिल समझने लगते हैं बात बात पर उन्हें झिड़कने लगते हैं उनके (औलाद) के जुमले एक आम इंसान को झकझोड़ देने वाले होते हैं: "क्या किया है आप ने??? आप तो चुप ही रहें, आप को बोलना नहीं आता!!! आप को और कोई काम नहीं है क्या??? जब देखो बोलती ही रहती है!!! वगैरह वगैरह

किसी ने सच ही कहा है:

तिनका चुन चुन महल बनाया

लोग कहे घर मेरा है,

ना घर तेरा ना घर मेरा

चिड़िया रैन बसेरा है!!

आखिर ये दुनियां फना हो जानी है... और फिर वो मां भी कब्र के आगोश में उतर जाती है।

और बदनसीबी हमारी की हम अपने जन्नत को सामने पा कर भी न कद्र करते हैं ना उसे पाने की कोशिश अफ़सोस।

अल्लाह ताला फरमाते हैं

और माँ-बाप के साथ अच्छा सलूक करो, अगर वे बुढ़े हो जाएं तो उनको उफ़ तक न कहो और न उनको झिड़को और उनसे अच्छे से बात करो। और उनके सामने नर्मी और बेबसी के साथ अपने हाथों को झुका दो और दुआ करो कि ऐ मेरे रब! उन दोनों पर रहम किजिए।

कुरआन 17: 23,24


नबी करीमﷺ

हजरत अबू हुरैरा रजि. से रिवायत हैं कि एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल . ﷺ खिदमत में हाजिर,हुआ और कहा ऐ अल्लाह के रसूल रिश्तेदारों में अच्छे सलूक का सबसे ज्यादा हक़दार कौन हैं ?

आप ﷺने फरमाया तुम्हारी माँ.

उसने एक बार फिर निवेदन किया कि फिर और कौन हैं ?

आप .ﷺ फिर से फरमाया तुम्हारी माँ.

उसने निवेदन किया फिर कौन हैं ?

और हमारे प्यार नबी मोहम्मद ﷺ. ने कहा तुम्हारी माँ.

उसने एक बार फिर निवेदन किया और हमारे नबी मोहम्मद ﷺसे पूछा फिर कौन हैं ?

तो अब हमारे प्यारे नबी मुहम्मद ﷺ ने फरमाया तुम्हारा बाप.

हदीस-बुखारी,मुस्लिम

 

इब्ने बतताल इस हदीस को बताते हैं,कि बाप का एक दर्जा हैं और बाप से पहले माँ के लिए 3 दर्जे हैं.इस हदीस से माँ के मर्तबे के बारे में इस्लाम में पता चलता हैं कि माँ का मर्तबा कितना आला हैं.

उन्होंने इन दर्जो के तफ्सील इस तरह से बयान कि हैं कि माँ बच्चे कि पैदाइश में तीन दर्जे कि परेशानियाँ झेलती हैं,पहले गर्भ की तकलीफ ,दूसरी पैदाइश की तकलीफ और तीसरी दूध पिलाने की तकलीफ और यही तीनो तकलीफें माँ को बाप से श्रेष्ट बनाती हैं.इन तीनो तरह की तकलीफो का जिक्र क़ुरआन की इस आयत में हैं.

और यह हकीकत हैं कि हमने इंसान को अपने माँ बाप का हक़ पहचानने की खुद ताकीद की हैं.उसकी माँ ने कमजोरी पर कमजोरी उठा कर उसे अपने पेट में रखा,और 2 साल उसके दूध छोड़ने में लगे.

कुरआन मजीद 31:14


अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस इस कुरानी आयत की व्याख्या हैं.वास्तव में माँ को अच्छे सलूक में उसके फर्ज़ को अदा करने में और मोहब्बत पर मेहबानी में सब में एहमियत हासिल है.

अफ़सोस हम अपनी जन्नत को सामने देख कर भी उसकी कद्र नहीं करते।

अल्लाह ने हमे जो नेमते दी हैं उसका हम ने खेल तमाशा बना दिया।

अल्लाह हम सबको अपने वालिदैन की ख़िदमत करने की तौफीक़ अता फ़रमाए 

आमीन.

जजाकल्लाह खैरुन कसीरा


आपकी दीनी बहन

फिरोजा खान

 

इस्लाम में बेटियों की फजीलत (पार्ट-1)

बेटियों के नसीब (पार्ट-2)



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