अस सबूर के रूट हैं ص-ب-ر इसके मायने हैं, पत्थर रखना। सबर करना असल में दिल पे पत्थर रखना होता है। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। इनमे से एक है अस सबूर। अस-सबूर- बहुत ज़्यादा सब्र करने वाला, बड़े तहम्मुल वाला । As saboor- The forBearing, The patient one
अस सबूर – ٱلْصَّبُورُ
99 names of Allah- Asma Ul Husna
अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। इनमे से एक है अस सबूर।
अस सबूर के रूट हैं ص-ب-ر इसके मायने हैं, पत्थर रखना। मिसाल से समझें जब नाव में अकेला मल्लाह बैठा होता है तो वो वज़न को बराबर करने के लिए नाव में अपने सामने पत्थर रख लेता है। और सवारी आती है तो वज़न बराबर हो जाता है तो पत्थर बीच में रख देता। इस पत्थर रखने को अरबी में स-ब-र कहते हैं। सबर करना असल में दिल पे पत्थर रखना होता है।
अस सबूर- बहुत ज़्यादा सब्र करने वाला, बड़े तहम्मुल वाला । As saboor- The forBearing, The patient one, हम सब्र करते हैं क्योंकि हम पे कोई परेशानी, कोई मजबूरी, कोई तकलीफ़ आ गई। अल्लाह सब्र करता किसलिए?
अल्लाह वो है के जो अपने ना-फरमान बंदो की ना-फरमानियों पर कमाल दरजे का सबर करने वाला है, इन्हें जल्द ही इनके गुनाहों पर अज़ाब नहीं देता बल्के इन्हें मोहलत देता है के अपनी ना-फरमानियों से और खराब-अमालियों से अल्लाह से तौबा व इस्तेगफ़ार करने में जल्दी करे।
अल्लाह वो हस्ती है, जो बंदों को सज़ा देने में जल्दी ना फरमाए, बल्कि मुक़र्रर वक्त पर पकड़े, और उस वक्त तक मोहलत दे। अस सबूर बंदों के गुनाहों पे सब्र करने वाला। और यही वजह के अल्लाह ने बंदों को मोहलत दी हुई है।
हम खुद हकीकत में सब्र नहीं कर पाते। किसी के बच्चे नाफरमानी करते हैं तो माँ गुस्से मे आ जाती है। जो हमारे मातहत होते हैं चाहे मुलाजिम हो, औलाद हो और जो ना भी हो, कोई भी बात होती है, ख्वाह छोटी ही हो, हम तुरंत रिएक्शन देते हैं। हम रिएक्शन देते हैं, कभी काम होता है, कभी कोई नहीं भी सुनता। कभी नाफरमानी बढ़ भी जाती है।
अब ज़रा सोचें, अस सबूर- जो पूरा पूरा अख्तियार रखता है, सब पर कादिर है, सज़ा देना उसके लिए कोई मुश्किल बात नहीं, वो अपनी असीमित ताकत के बावजूद, सब्र करता है। जिसके किसी फैसले से कोई जवाब तलब करने वाला नहीं, जिसे जैसी चाहे, जब चाहे, जितनी चाहे सज़ा दे दे। वो हस्ती जिसे कोई रोक टोक नहीं, ना उसे किसी की मदद की ज़रूरत, वो नाफरमानी करने पे ना पकड़े। वो है- अस सबूर। वो हस्ती अपने नाफरमान बंदों को मोहलत देता जाता है, मौका देता है, लौटने का और अपने रब को राज़ी करने का।
अब ज़रा गौर करें, अल्लाह तआला ने आज आपके-मेरे गुनाहों के बावजूद आज हमको क्यूँ नहीं पकड़ा। और बड़े बड़े गुनाहगारों को और बुरे बुरे लोगों को नहीं पकड़ा। ये अल्लाह के अस सबूर होने की वजह से है। यकीन करें हम अल्लाह के सब्र की वजह से बचे हुए हैं, वर्ना तो बहुत मुश्किल हो जाती।
रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
कोई शख्स भी या कोई चीज़ भी तकलीफ़ बर्दाश्त करने वाली, जो उसे किसी चीज़ को सुन कर हुई हो, अल्लाह से ज्यादा नहीं। लोग उसके लिए औलाद ठहराते, और वो उन्हें तंदरुस्ती देता है, और रोज़ी भी देता है।
बुखारी 6099
जी हाँ, अस सबूर, लोगों की नाफरमानी पर उन्हें आश्चर्यचकित नहीं करता, के उन्हें धर् दबोच कर अचानक सज़ा दे दे। बल्कि, वो अपनी सज़ा को रोक के रखता है, और मौका देता है, हमारे पश्चाताप का। अस सबूर किसी भी काम में जल्द बाज़ी नहीं करता, और किसी भी बात से प्रभावित होकर फैसले नहीं लेता, बल्कि उसके सारे फैसले हिकमत से भरे हुए और पूरी तरह योजना से परिपूर्ण होते हैं । वो अपना कोई फैसला उसके निर्धारित समय से पहले नहीं करता, ना ही जब फैसले का निर्धारित समय आ जाता है वो एक पल की भी देर करता।
अल्लाह का हर काम हिकमत से और योजनाबद्ध तरिके से, बिल्कुल बेहतरीन वक्त पर और बेहतरीन तरीके होता है, जैसा होना चाहिए। और ये सब करना अल्लाह के कोई मुश्किल बात नहीं, ना ही उसको किसी मदद की ज़रूरत। उसके हर फैसले में हिकमत और पूरा पूरा हिसाब होता है।
अस सबूर, देता है सबको, खाना, पानी, जमीन, हवा, रोशनी, बिना किसी भेदभाव के। आपको देता है सब कुछ जो आपके पास है, चाहे आप मतलबी और एहसान ना मानने वाले हो। ये सब्र का ही काम है, उन को बेहतरीन चीज़ें अता करना जो उसकी नाफरमानी करते हो।
अस सबूर, अवज्ञा करने वालों को दंड देने में जल्दी नहीं करता या गुनाहगारों को सज़ा देने मे। अल्लाह सज़ा तब तक नहीं देता जब तक वो बेहतरीन और मुक़र्रर वक्त ना आ जाए, जब सज़ा देने का उपयुक्त समय हो।
इमाम गज़ाली र. अलै. ने इस नाम की बढ़ाई की- गुनाहगारों को मोहलत देने वाला, अज़ाब में जल्दी ना करने वाला। अल्लाह, अस सबूर है, और सब्र करने वालों को पसंद फरमाता है। और सब्र करने वालों के लिए बेहिसाब इनामात मुक़र्रर कर रखें हैं।
एक रब पे ईमान लाना और उसके सिवा किसी का दर ना खटखटाना, इसके लिए सब्र ज़रूरी है। अगर सब्र ना हो और शिर्क करें, तो जब दुख हो बीमारी, तकलीफ़ तो बंदा दर दर की ठोकरे खाए। इसको उसको सबको पुकारता फिरे।
वो एक सजदा जिसे तू गिरा समझता है
दिलाता है हजार सजदो से आदमी को निजात।
-अल्लामा इक़बाल
जब बंदा एक रब को मान लेता है तो वो दर दर भिकारी की तरह नहीं भटकता। और फिर रसूल को मानना और उनके बताये रास्ते पे चलना, जबकि चारों तरफ़ फितना ही फितना हो, इसके लिए भी सब्र चाहिए। और फिक्र ए आख़िरत की नज़र से जिंदगी में कुर्बानीया और मेहनत, सब्र की ज़रूरत है ना।
सब्र ना हो तो अपनी मेहनत की कमाई में से सदक़ा जकात देना मुमकिन है? रोज़ा रख सकते हैं अगर सब्र ना हो? कोई देखने वाला नहीं, मगर पानी नहीं पीते, सब्र ना हो तो? मुमकिन है?
जो कुछ तुम्हारे पास है वो ख़र्च हो जानेवाला है और जो कुछ अल्लाह के पास है वही बाक़ी रहनेवाला है, और हम ज़रूर सब्र से काम लेनेवालों को उनके अज्र उनके बेहतरीन आमाल के मुताबिक़ देंगे।
कुरआन 16:96
सब्र ही दीन का दूसरा नाम है। अल्लाह की रज़ा और आखिरत के लिए, दुनिया में नेकी फैलाने और बुराईयों को मिटाने के लिए, दूसरों की खिदमत के लिए, सदमे, तकलीफ और दुख बर्दाश्त करने के लिए, ना माफ़िक (adverse) हालात में भी सच और हक़ पर मजबूती से जमे रहना , नेकी के रास्तों चलना सब्र कहलाता है।
और अल्लाह सब्र करने वालों से मोहब्बत करता है।
कुरआन 3:146
रमज़ान का महीना, सब्र और इस्तेकामत का महीना है। इस महीने में मोमिन अपनी नफ्सानी ख़्वाहिशात को काबु करते हैं और खाने पीने और कई ज़िंदगी के ज़रूरी चीज़ों को त्याग देते हैं। गुनाहों से दूर हो जाते हैं, और दिलों में वो सब्र उतरता है, के 15-16 घंटे भूखे प्यासे होने के बावजूद घर की औरतें, सब की पसंद का खाना बनाती हैं और एक खयाल तक में उनके नीयत नहीं भटकती। आदमी रोजा होने के साथ घरवालो और मिसकीन के लिए इफ्तार के लिए खाने की चीज़ें खरीदते हैं मगर ज़र्रे बराबर भी उनके दिल मे उसको खाने का ख़याल नहीं आता। ये है सब्र। और सब्र करने वालों को अल्लाह खुशखबरी सुनाता है-
ये वो लोग हैं जिन्हें दिया जाएगा दुगुना अजर उनके सब्र की वजह से।
कुरआन 28:54
सब्र- नफ्स को रोकना और काबु पाना- इसके तीन दर्जे हैं
- अपने नफ्स को हराम और नाजायज़ चीज़ों से रोकना
- अपने नफ्स को इताअत और इबादत की पाबंदी पे मजबूर करना
- मुसीबतों और परेशानियों को अल्लाह की तरफ़ से समझना और उसपे सब्र रखना, परेशान ना होना
इस तरह बनी-इसराईल के हक़ में तेरे रब का भलाई का वादा पूरा हुआ; क्योंकि उन्होंने सब्र से काम लिया था।
कुरआन 7:137
हज़रत मूसा अलै. ने जब अपनी कौम से नुसरत ए इलाही का वादा किया, तो उन्हें सब्र करने और अल्लाह से मदद मांगने की तलकीन कि। कौमे जब सब्र कर लेती है तो अल्लाह तआला उन्हें मजीद, ज्यादा से ज्यादा देता है। अल्लाह का बंदा जब सब्र अख्तियार करता रहे तो अल्लाह उसे बुलंदी और इज़्ज़त देता है। जितना सब्र करता है बन्दे की अल्लाह उतनी ज़्यादा मदद करते हैँ।
जब कोई आदमी किसी की इज़ा का मुकाबला इजा से करता है, यानी अपना बदला खुद लेने लगता है तो अल्लाह तआला उसको उसके हाल पे छोड़ देते है, क़ामयाब हो या नाकाम। और जब कोई शख्स लोगों की तकलीफ़ का मुकाबला सब्र और नुसरत ए इलाही के इन्तेज़ार से करता है, तो अल्लाह तआला ख़ुद उसके लिए रास्ते खोल देते हैं।
और जो सब्र करे और अपनी तकलीफ़ किसी पे ज़ाहिर ना करे उसके साथ मौजज़े होते हैं। 3 तरह के सब्र होते हैं- तायबीन का सब्र- इंसान अपना गम और परेशानी दूसरों को बताना छोड़ दे, ज़ाहिदीन- इंसान दुःख और परेशानी हर हाल में राजी रहे, सिद्दिकीन- बंदा मुसीबत पर खुश होता है, के मेरा अल्लाह मुझसे राजी है।
जब फिरौन के ज़ुल्म हद से ज्यादा बढ़ गए, तो हज़रत मूसा ने बड़ी मुहब्बत और शफकत से अपनी कौम को हिदायत दी थी के दुश्मन के मुकाबले में अल्लाह से मदद तलब करना, और मुश्किल हल होने तक सब्र और हिम्मत से काम लेना। और ये भी बता दिया था के इस नुस्खे का इस्तेमाल करोगे तो ये मुल्क तुम्हारा है, तुम ही ग़ालिब आओगे। और सब्र करने वालों को अल्लाह खुशखबरी सुनाता है-
सब्र करनेवालों को तो उनका बदला बेहिसाब दिया जाएगा।
कुरआन 39:10
अब देखें नमाज, जिंदगी की हर जरूरत को पूरा करवाने वाली, हर परेशानी और आफ़त से निजात दिलाने वाली चीज नमाज़ है। नमाज़ और सब्र साथ साथ हैं। और अल्लाह फरमाता है-
और मदद चाहो सब्र से और नमाज से और बेशक ये भारी चीज है, उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हों।
कुरआन 2:45
दुनिया मे खुशी के साथ गम और रोशनी के साथ अंधेरा, अस सबूर की तरफ़ से है। जब हम ईमान को मज़बूत कर लेंगे और सब्र करेंगे, तो जब ग़म का पहाड आ गिरेगा तो हम मायूसी के दलदल में नहीं गिरेंगे, और इन्तेहाइ बुलंदी के वक्त तकब्बुर में पढ़ जाएंगे। अपने रब से दुआ मांगे सब्र की-
“ऐ हमारे रब ! हमपर सब्र की बारिश कर, हमारे क़दम जमा दे और इस कुफ़्र करने वालों पर कामयाबी दे।”
कुरआन 2:250
“ऐ रब! हमपर सब्र की बारिश बरसा और हमें दुनिया से उठा तो इस हाल में कि हम तेरे फ़रमाँबरदार हों।”
कुरआन 7:126
2 टिप्पणियाँ
Ameen 🤲🤲🕋
जवाब देंहटाएंaameen
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।