अल्लाह की निशानियां वाज़ेह हो गई
- ख़ालिक़
- रूह (Soul)
- माद्दा (Matter, Substance)
- दुनिया
- आखिरत
दुनिया इम्तिहान की जगह है जिसमें उसे कुछ वक्त गुजारने के लिए भेजा गया है ताकि आखिरत की हमेशा की जिंदगी के लिए उसकी परख हो जाए। इस अज़ीम मकसद की नाकामी की वजह बनने वाली सबसे बड़ी चीज़ दुनियापरसती है। जिसका शिकार होकर इंसान कायनात को खालिक पर, माद्दा (Matter) को रूह पर और दुनिया को आखिरत पर तर्जी देता है।
इंसान को चुंकि बेपनाह सलाहियतों से नवाज़ा गया है, इस तरह माद्दा (Matter) में भी बड़े करिश्मे रखे गए हैं इसलिए हमेशा से ही सेल्स इंसान की तवज्जो का मरकज़ रहा है। मौजूदा दौर जो साइंस की तरक्की का दौर है इसने इंसानों ने नई दुनिया की खोज की खोज की। लेकिन अल्लाह की बनाई हुई दुनिया के आगे यह बहुत ही छोटी और बेवक्त है लेकिन निगाहें इसी पर जमी होने की वजह से इसी में बेइंतेहा गहराइयां नजर आने लगी है। जब तक खालिक पर पूरा यकीन हासिल ना होगा उस वक्त तक माद्दापरसती (materialism) से निजात मुमकिन नहीं।
यह बात देखने में आई है कि लोगों की अकशरियत जिनमें मुस्लिम भी शामिल है, मुस्लिम पैदाइशी तौर पर अपने घर और माहौल से अल्लाह ताला के नाम के बारे में तो जान लेते हैं लेकिन उसकी वजूद के होने (existence) के यकीन से महरुम रहते हैं और इस बेयकीनी कि सी सूरत हाल में इस फानी जिंदगी के दिन और रात गुजार कर इस जहां से रुखसत हो जाते हैं।
"اِنَّ اللّٰہَ لَہٗ مُلۡکُ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ؕ یُحۡیٖ وَ یُمِیۡتُ ؕ وَ مَا لَکُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ مِنۡ وَّلِیٍّ وَّ لَا نَصِیۡرٍ"
"और ये भी सच है कि अल्लाह ही के क़ब्ज़े में आसमानों और ज़मीन की सल्तनत है, उसी के इख़्तियार में ज़िन्दगी और मौत है, और तुम्हारा कोई हिमायती व मददगार ऐसा नहीं है जो तुम्हें उससे बचा सके।"
[ कुरान 9:116]
अल्लाह ताला ने नस्ली इंसान की रहनुमाई के लिए अंबिया और रसूल भेजें। हमारे प्यारे नबी मोहम्मद (ﷺ) के बाद किसी भी नबी को नहीं आना था इसलिए उन पर नाज़िल होने वाली किताब को पूरी कयामत तक महफूज रखा गया। इस किताब में अल्लाह ताला ने आने वाले लोगों की हिदायत के लिए हकीकत की बुनियाद पर ऐसी निशानियां रखी जिनकी वक्त के साथ खोज हो रही है और ये पुरानी से पुरानी खोजो को अपने अंदर समाए हुए हैं। आज के आधुनिक साइंस की तरक्की उरूज के दौर में होने वाली बहुत सी साइंस से कुरान मजीद में मौजूद हकीकत जाहिर होने से हक की पहचान बहुत आसान हो गई है और अहले इल्म चीख उठे हैं कि यह किताब हक है। अल्लाह ताला ने कायनात में अपनी निशानियों के जाहिर होने के बारे में फरमाया:
"سَنُرِیۡہِمۡ اٰیٰتِنَا فِی الۡاٰفَاقِ وَ فِیۡۤ اَنۡفُسِہِمۡ حَتّٰی یَتَبَیَّنَ لَہُمۡ اَنَّہُ الۡحَقُّ ؕ اَوَ لَمۡ یَکۡفِ بِرَبِّکَ اَنَّہٗ عَلٰی کُلِّ شَیۡءٍ شَہِیۡدٌ"
"हम उन्हें अपनी निशानियां कायनात में भी दिखाएंगे और खुद उनके अपने वजूद में भी, यहां तक के उन पर यह बात खुलकर सामने आ जाए के यही हक है। क्या तुम्हारे रब का हर चीज से वाकिफ और आगाह होना काफी नहीं?" [ कुरान 41:53]
इसमें कोई शक नहीं कि जाहिरी दुनिया भी वही है जो इंसान माज़ी में देखता रहा है और उसकी अपने ज़ात भी उसी नेचर की है जो हर दौर में देखी गई है, फिर भी उनमें मालिक की निशानियां इतनी है कि इंसान ने कभी नहीं समझा। और वह कभी भी पूरी तरह से समझ नहीं सकेगा। हर इंसान को बहुत सी नई निशानियां मिलती रहे रही है रामा तक होता रहेगा। क्या लोगों को उनके बुरे अंजाम से खबरदार करने के लिए यह काफी नहीं है कि वह पैगाम हक को झुठलाने और शिकस्त देने के लिए जो कुछ कर रहे हैं अल्लाह उसे देख रहा है?
"وَیۡلٌ لِّکُلِّ اَفَّاکٍ اَثِیۡمٍ"
"तबाही है हर उस झूठे बुरा काम करने वाले शख़्स के लिये।" [कुरान 45:7]
बहुत जल्द हम अपनी आंखों से देखेंगे कि कुरान का मैसेज दुनिया भर में फैल जाएगा और सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम उसके सामने अपना सर झुका देंगे, तब उन्हें एहसास होगा कि आज जो कुरान में उन्हें बताया जा रहा है जिसको वह नकार रहे हैं वह सब बिल्कुल सच था। रसूल अल्लाह (ﷺ) और खलीफा के दौर में इस्लाम ने जो शानदार फतेह हासिल की वह अल्लाह ताला की निशानियां थी। उन्होंने एक के बाद एक मुल्क फतह किया इसका मतलब यह नहीं था कि वे दूसरे मुल्क, उनके माल, उनके परिवार, उनके खानदान वगैरह पर कब्जा जमा लेते बल्कि फतह का मतलब था इस्लाम को फैलाना। और उस दौर में इस्लाम जहां-जहां फैला उनमें जो बेहतर थे वह इस्लाम में शामिल हो गए, ईमान ले आए और जो उनमें बदतरीन थे वह वहां से बाहर निकल गए।
وَ فِیۡ خَلۡقِکُمۡ وَ مَا یَبُثُّ مِنۡ دَآبَّۃٍ اٰیٰتٌ لِّقَوۡمٍ یُّوۡقِنُوۡنَ ۙ
"और तुम्हार अपनी पैदाइश में और उन जानदारों में जिनको अल्लाह (ज़मीन में) फैला रहा है, बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो यक़ीन लानेवाले हैं।"
[कुरान 45:4]
जिन लोगों ने यक़ीन न करने का मन बना लिया है, या जिन्होंने खुद को शक की अंधी गलियों में खो जाने के लिए चुना है, उनका मामला अलग है, लेकिन जब उन्होंने यक़ीन के खिलाफ अपने दिलों को बंद नहीं किया है और पुख्ता यक़ीन से उनकी अपनी तख़्लीक़, अपने शरीर की बनावट, और पृथ्वी पर पाए जाने वाले अलग-अलग तरह के जानवरों पर ग़ौर करेंगे, वे अनगिनत निशानियां देखेंगे जो उनके दिमाग में कोई शक नहीं छोड़ेंगा कि यह सब वजूद में नहीं आया था। अल्लाह, या कि इसकी तख़्लीक़ के लिए एक से अधिक रब की जरूरत थी?
हमारे खालिक ने हमें बेशुमार नेमतों से नवाजा है। इन नेमतों का शुक्र वही कर सकते हैं जिन्हें इस बात का इल्म है कि यह दुनिया, यह कायनात, इंसान, जिन, पेड़-पौधे, जानवर, आसमान-जमीन, पहाड़, नदी, समुंदर को बनाने वाला सिर्फ एक खालिक है। इसलिए हमें उसकी कुदरत में गौर व फिक्र करना चाहिए जो हमारे अंदर एक जज्बा पैदा करेगा और उसकी बेमिसाल कारीगरी को जानकर हमारे ईमान में ताजगी पैदा होगी।
मुसन्निफ़ा (लेखिका): मरियम फातिमा अंसारी
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