कुछ लोगों का मानना है के विज्ञान दुनिया को समझने का तरिका है और धर्म ईश्वर को। लेकिन असल में विज्ञान, अल्लाह तक पहुचने ही जरिया है। अंधभक्ति (blind faith) किसी के लिए सही नहीं और इस्लाम में अंध भक्ति की जगह तर्क को हमेशा महत्व दिया गया। तर्क करना फायदेमंद है, लेकिन उसका फायदा तब होगा जब हम तर्क को समझना और मानना चाहेंगे।
कुछ अहम सवाल - कितना सच - कितना झूठ
20वी सदी में कदम रखने के साथ ही हमारी दुनिया विज्ञान (science and technology) की नयी ऊंचाईयों को छू रही है। हर मोड़ पर विज्ञान हमारे साथ साये की तरह मौजूद है। इस तरक्की ने हमारी जिंदगी को नया आयाम दिया। और ऐसे कई रास्ते खोल दिए जिनका तसव्वुर भी आज से 200-300 साल पहले मुमकिन नहीं था।
इस दौर मे भी इस्लाम ही इकलौता ऐसा दीन है जो बिना किसी बदलाव के अटल है, चट्टान की तरह हर तरह की मुश्किल और शक का सामना मजबूती से कर रहा है। समय समय पर विज्ञान के बहाने से इस्लाम पर सवाल उठाए जाते हैं।
इस्लाम का मतलब
मीडिया और न्यूज चैनल्स आपको बताते हैं के इस्लाम वो है जो कोई भी इंसान जिसका नाम मुस्लिम हो वो मानता है या करता है। इससे लोगों तक ये संदेश पहुचा के किसी मुस्लिम ने कोई गलती की तो इस्लाम गलत है।
कुछ लोग मानते है कलमा ऐ शहादत पढ़ने का नाम इस्लाम है, कुछ कहते है शांति और न्याय की लडाई का नाम इस्लाम है। आज हर जगह कई तरह की आधी अधूरी जानकारी की वजह से खुद हमारी ही नस्लों तक सही पैग़ाम नहीं पहुचा।
इस्लाम एक न बदलने वाला सच है के एक ईश्वर ने ये क़ायनात बनाई है, और इंसान को एक अजीम मकसद के लिए दुनिया मे भेजा गया है, हम तक हमारा मकसद बताने और समझाने के लिए कई पैगंबर (पैग़ाम पहुचाने वाले, messenger) भेजे गए हैं ताकि हम आखिरत (day of judgement) में क़ामयाब हो और हमेशा रहने वाली जिंदगी मे सफलता हासिल करें। इस्लाम मुस्लिम या किसी विशिष्ट व्यक्ती का मजहब नहीं। मगर ये सारी इंसानियत के लिए है।
क्या इस्लाम और विज्ञान आपस में विरोधाभासी हैं?
इस सीरीज में इस तरह के सारे सवाल के साथ उन के जवाब तर्कपूर्ण और रेफरेंस के साथ चर्चा करेंगे। ये सवाल जो हम सबके दिमाग़ में आते हैं और कई बार हमसे पूछते हैं हमारे दोस्त, औलाद और हमारे क़रीबी। आज के इस दौर में ये जानना और समझना बहुत जरूरी है के क्या इस्लाम विज्ञान के मुखालिफ है?
कुरआन में ऐसी एक भी आयत नहीं जिसमें ये कहा गया हो के अपना दिमाग़ इस्तेमाल ना किया जाए, मगर दर्जनों आयतें हैं जिसमें ये समझाया गया है के तर्क और अक्ल का इस्तेमाल करें और अपने बाप दादा के बनाए गलत रिवाजों पे ना चलें।
سورة البقرة
सूरत उल् बकरह
وَ اِذَا قِیۡلَ لَہُمُ اتَّبِعُوۡا مَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ قَالُوۡا بَلۡ نَتَّبِعُ مَاۤ اَلۡفَیۡنَا عَلَیۡہِ اٰبَآءَنَا ؕ اَوَ لَوۡ کَانَ اٰبَآؤُہُمۡ لَا یَعۡقِلُوۡنَ شَیۡئًا وَّ لَا یَہۡتَدُوۡنَ
उनसे जब कहा जाता है कि अल्लाह ने जो अहकाम [ आदेश] उतारे हैं उनकी पैरवी करो, तो जवाब देते हैं कि हम तो उसी तरीक़े की पैरवी करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। अच्छा, अगर उनके बाप-दादा ने अक़्ल से कुछ भी काम न लिया हो और सीधा रास्ता न पाया हो तो क्या फिर भी ये उन्हीं की पैरवी किये चले जाएँगे? (170)
اَتَاۡمُرُوۡنَ النَّاسَ بِالۡبِرِّ وَ تَنۡسَوۡنَ اَنۡفُسَکُمۡ وَ اَنۡتُمۡ تَتۡلُوۡنَ الۡکِتٰبَ ؕ اَفَلَا تَعۡقِلُوۡنَ
तुम दूसरों को तो नेकी का रास्ता अपनाने के लिये कहते हो, मगर अपने-आपको भूल जाते हो? हालाँकि तुम किताब की तिलावत करते हो! क्या तुम अक़्ल से बिलकुल ही काम नहीं लेते? (44)
अंधभक्ति (blind faith) किसी के लिए सही नहीं और इस्लाम में अंध भक्ति की जगह तर्क को हमेशा महत्व दिया गया। तर्क करना फायदेमंद है, लेकिन उसका फायदा तब होगा जब हम तर्क को समझना और मानना चाहेंगे। यदि बहस सिर्फ नीचा दिखाने या खुद को सही साबित करने के लिए की जाएगी तो आपके सामने कोई भी बेहतरीन तर्क दे दिया जाए उसे आप मानने वाले नहीं।
धर्म और विज्ञान
कुछ लोगों का मानना है के विज्ञान दुनिया को समझने का तरिका है और धर्म ईश्वर को। लेकिन असल में विज्ञान, अल्लाह तक पहुचने ही जरिया है। इसे इस तरह समझें – चार अंधे व्यक्ति जिन्होंने हाथी को पहले कभी नहीं देखा, पहली बार हाथी को देखें। क्यूंकि वो देख नहीं सकते टटोल के हाथी के अलग अलग हिस्से को महसूस करते हैं और उसके हिसाब से वो उस हाथी का एक तसव्वुर अपने मन मे बना लेते हैं। कोई पुंछ कोई सूंड कोई कान कोई दाँत, सभी अपने अनुभव के आधार पर अपनी अपनी तस्वीर को सच मान रहे हैं। तो पूरा हाथी कोई भी देख नहीं पाता, सभी की अपनी सीमाएं हैं। सीमित अनुभव की वजह से सही जानकारी भी अधूरी होती है।
इसी तरह विज्ञान बहुत तरक्की कर चुका, हम human anatomy, astronomy, zoology, biology, physics, केमिस्ट्री, maths, geography, history, computer और विभिन्न भाषाए पढ़ते हैं, लेकिन क्या ये सारे विषय एक दूसरे से वाकई अलग हैं? नहीं बल्कि ये सारे ही विषय हमें एक ही खालिक या बनाने वाले की असीमित कलाकृतियों को समझने और उनको अपने लिए और बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकने का जरिया है।
इंसान ने हाथी की पूंछ, सूंड, पैर, कान, दांत को अलग अलग करके समझना शुरू कर दिया। जब हम गौर करते है तो आप चाहे कोई भी विषय पढ़ें आप उसे बनाने वाले की बेहतरीन जहानियत (intellect) को अनदेखा नहीं कर सकते। किसी धमाके में ऐसा कामिल और बेजोड़ जहां बन जाना, मुमकिन ही नहीं।
क़ुरआन मोअज्जों का एक कामिल मोअज्ज़ा (चमत्कार)
अल्लाह ने कुरआन नाज़िल किया, जिसमें इस क़ायनात के निज़ाम की अलग अलग ज़रूरी जानकारी हमें बतायी। ऐसी जानकारी जिनके बारे मे उस वक़्त किसी वैज्ञानिक या दार्शनिक को भी जानकारी नहीं थी।
अल्लाह ने आखिरी नबी के लिए ऐसे इंसान को चुना जिनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी, ऐसी जानकारी जो वैज्ञानिक और बड़े बड़े उलेमा को नहीं पता वो जानकारी बिना किसी फ़ेर-बदल के देना किसी आम इंसान के बस की बात नहीं जिसने औपचारिक शिक्षा भी ना ली हो।
कुरआन में नाज़िल 80% बात आज विज्ञान के द्वारा आधिकारिक रूप से साबित हो चुकी हैं। उन मोअज्जों पे जो आज वैज्ञानिक तथ्य बन चुके हैं रेफरेंस के साथ चर्चा की जाएगी।
लेकिन 80% क्यूँ? 100% क्यूँ नहीं?
हम जानते हैं के विज्ञान प्रगतिशील है, आज कोई तथ्य विज्ञान हमारे सामने प्रस्तुत करता है तो वो कयामत तक के लिए ना बदलने वाला सत्य नहीं है। आज सीमित संसाधनों की वजह से जो खोज विज्ञान नहीं कर पाया वो आने वाले वक़्त में खोज हो सकती है और नयी थ्योरी आपके सामने रखी जा सकती है। ये ही वजह है के 20% तथ्य अब तक साबित नहीं हुए। इन इख्तिलाफ के बारे में भी तार्किक चर्चा करेंगे और उन सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे जिनके जरिए आपके दिल और ईमान के लिए वसवसे आते हैं।
इंशा अल्लाह।
साभार : फ़िज़ा ख़ान
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