ताग़ूत का इनकार [पार्ट-11]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
सेक्युलरिज़्म (Secularism) ताग़ूत कैसे है?
ताग़ूत वह होता है जो इंसान को अल्लाह की इबादत और उसके कानून से हटा कर किसी और के कानून और अधिकार की तरफ ले जाए। यह हर वह चीज़ या व्यवस्था हो सकती है जो अल्लाह की हुकूमत से इंसान को दूर करती है और उसके खिलाफ़ जाती है। सेक्युलरिज़्म, जो धर्म और कानून को अलग रखने का दावा करता है, इस्लाम के विपरीत है, क्योंकि इस्लाम एक संपूर्ण जीवन प्रणाली (system of life) है जो जीवन के हर पहलू पर लागू होता है, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक, राजनीतिक या न्यायिक। इस्लाम की इस व्यापकता को नजरअंदाज कर सेक्युलरिज़्म ताग़ूत बन जाता है।
सेक्युलरिज़्म का मतलब और उसका इस्लामी उसूल से टकराव
1. सेक्युलरिज़्म की परिभाषा:
सेक्युलरिज़्म एक ऐसी सोच और व्यवस्था है जो धर्म और राज्य (सरकार और कानून) को अलग रखने की बात करती है। इस विचार के अनुसार, राज्य के कानून और नियम धर्म पर आधारित नहीं होते, बल्कि वे इंसानों द्वारा बनाए जाते हैं। यानि धर्म का कानून (शरीअत) राजनीति, शिक्षा, और न्यायपालिका जैसी चीज़ों से पूरी तरह अलग होता है।
2. इस्लामी उसूल:
इस्लाम एक संपूर्ण जीवन पद्धति है जिसमें मज़हब और कानून का कोई अलगाव नहीं है। इस्लाम में हुकूमत, न्यायपालिका, शिक्षा, सज़ा और इनसाफ सब कुछ शरीअत के आधार पर होता है। कुरआन और हदीस में अल्लाह का कानून सर्वोपरि है और इंसान के बनाए कानूनों को इस्लाम में कोई अहमियत नहीं दी जाती।
सेक्युलरिज़्म क्यों ताग़ूत है?
1. अल्लाह के कानून से इन्कार:
सेक्युलरिज़्म में कानून को धर्म से अलग रखा जाता है, जो इस्लाम के बुनियादी उसूलों के खिलाफ़ है। इस्लाम में कानून का पालन अल्लाह की शरीअत के अनुसार किया जाता है, जबकि सेक्युलरिज़्म में इंसानी दिमाग और समाज की राय के अनुसार कानून बनाए जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अल्लाह के कानून को पीछे छोड़कर इंसानी कानूनों का पालन किया जा रहा है, जो ताग़ूत की निशानी है।
2. ज़िना (व्यभिचार) की मिसाल:
जैसे कि आपने adultery (शादी के बाद ज़िना) का उदाहरण है, इस्लाम में इसके लिए मौत की सज़ा है, क्योंकि यह एक गंभीर गुनाह है। लेकिन सेक्युलर कानून, जैसे कि बहुत से मुल्कों में राइज है, इसे decriminalise कर चुके है। इसका मतलब यह है कि इंसानी कानून (जो अल्लाह के कानून के खिलाफ़ जाता है) को प्राथमिकता दी गई है। यह सीधी-सीधी ताग़ूत की परिभाषा है, जहां इंसान अल्लाह के बजाय अपने बनाए कानूनों को सर्वोपरि मान रहा है।
3. शरीअत का इनकार और इंसानी कानून की इबादत
जब सेक्युलरिज़्म धर्म और कानून को अलग करता है, तो यह लोगों को अल्लाह के कानून से हटा कर इंसानी कानून की तरफ ले जाता है। इंसान का बनाया हुआ कानून इस्लामी शरीअत का विकल्प नहीं हो सकता। कुरआन में अल्लाह ने साफ कहा है कि कानून सिर्फ उसी का हक़ है:
"फ़ैसले का सारा इख़्तियार अल्लाह को है, वही हक़ बात बयान करता है और वही बेहतरीन फ़ैसला करनेवाला है।" [कुरान 6:57]
"ख़बरदार हो जाओ, फ़ैसले के सारे इख़्तियारात उसी को हासिल हैं।" [कुरान 6:62]
"फिर जब हाल ये है तो क्या मैं अल्लाह के सिवा कोई और फ़ैसला करनेवाला तलाश करूँ, हालाँकि उसने पूरी तफ़सील के साथ तुम्हारी तरफ़ किताब उतार दी है? और जिन लोगों को हमने [तुमसे पहले] किताब दी थी वो जानते हैं कि ये किताब तुम्हारे रब ही की तरफ़ से हक़ के साथ उतारी है, इसलिये तुम शक करनेवालों में शामिल न हो।" [कुरान 6:114]
तुम्हारे रब की बात सच्चाई और इन्साफ़ के पहलू से मुकम्मल है, कोई फ़रमानों को बदलनेवाला नहीं है और वो सब कुछ सुनता और जानता है।
"और ऐ नबी ! अगर तुम उनके ज़्यादातर लोगों के कहने पर चलो जो ज़मीन में बसते हैं तो वो तुम्हें अल्लाह के रास्ते से भटका देंगे। वो तो सिर्फ़ गुमान पर चलते और अटकल दौड़ाते हैं। हक़ीक़त में तुम्हारा रब ज़्यादा बेहतर जानता है कि कौन उसके रास्ते से हटा हुआ है और कौन सीधे रास्ते पर है।" [कुरान 6:115-117]
सेक्युलरिज़्म कुरआन की इन आयतों के खिलाफ़ जाता है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की बजाय खुद से कानून बनाने का अधिकार देता है।
सेक्युलरिज़्म के खतरनाक असरात
1. मुस्लिम उम्मत की कमजोरी:
जब मुसलमान सेक्युलर कानूनों को अपनाते हैं, तो वे धीरे-धीरे इस्लामी उसूलों और शरीअत से दूर होते जाते हैं। इससे उम्मत की ताकत और उसका एकजुट होना कमजोर होता है, क्योंकि हर इंसान और समाज अपने अलग कानून और मूल्य अपनाने लगते हैं। इससे मुस्लिम समाज में फूट और बिखराव पैदा होता है, जो इस्लाम की बुनियादी तालीमात के खिलाफ़ है।
2. अखलाक़ी पतन:
जब इंसान अल्लाह के कानून को छोड़कर इंसानी कानूनों का पालन करता है, तो इससे समाज में अनैतिकता और गुनाह बढ़ते हैं। जैसे कि ज़िना (adultery) को सेक्युलर समाज में अपराध नहीं माना जाता, जबकि इस्लाम में इसे सबसे बड़े गुनाहों में से एक माना गया है। सेक्युलरिज़्म का यही मकसद होता है कि इंसान को उसकी धार्मिक और नैतिक ज़िम्मेदारियों से दूर कर दिया जाए।
इस्लाम में तौबा और वापसी:
इस्लाम हमें सिखाता है कि इंसान को हर तरह के ताग़ूत से दूर रहना चाहिए और सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। सेक्युलरिज़्म जैसी सोचों से दूर रहकर मुसलमानों को शरीअत और इस्लामी कानून पर कायम रहना चाहिए। अल्लाह के कानून से दूर होने पर मुसलमानों को तौबा करनी चाहिए और अल्लाह की राह पर चलने का इरादा करना चाहिए।
सेक्युलरिज़्म ताग़ूत इसलिए है क्योंकि यह इंसानों को अल्लाह के कानून से हटाकर इंसानी कानूनों को सर्वोपरि बनाता है। इस्लाम में, अल्लाह का कानून हर चीज़ से ऊपर है, और सेक्युलरिज़्म इस सिद्धांत को चुनौती देकर एक ताग़ूत की शक्ल में सामने आता है, जो मुसलमानों को गुमराह करता है।
- मुवाहिद
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