अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13u)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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15. ग़ज़वा तबूक
1, ख़ुद को सुरक्षित रखना
अरब के लोग रुमियों से मुक़ाबला करने और उनसे जंग लड़ने से घबराते थे इसका कारण यह था कि ख़ुद को उनसे कमतर समझते थे।
जबकि रोम के लोग अभी जंगे मूता को नहीं भूले थे, उनके दिलों की आग अभी ठंडी नहीं हुई थी और वह बदला लेने के लिए बेचैन थे।
इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यही बेहतर समझा कि वह ख़ुद रोम की तरफ़ एक लश्कर लेकर जाएं कहीं ऐसा न हो कि रूमी लश्कर अरब की सीमा में दाख़िल होकर इस्लाम के केंद्र मदीना को चैलेंज करने लगें।
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2, ग़ज़वा का समय
नौ हिजरी में रजब का महीना था, सख़्त गर्मी थी, खेतयों और फलों के पकने के समय था, दूर का सफ़र था और दुश्मन ताक़तवर और असंख्य था, ऐसे समय में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुश्मन से जंग लड़ने का फ़ैसला किया और मुसलमानों के सामने इरादा ज़ाहिर कर दिया ताकि लोग इस जंग के लिए अच्छी तरह तैयारी कर सकें और आपने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कहां जाना है और कब जाना है? जबकि यह दौर सख़्त तंगी और अकाल का था।
मुनाफ़िक़ों ने जंग से बचने के लिए बहाने बनाने शुरू कर दिए। सख़्त ताक़तवर दुश्मन का ख़ौफ़, झुलसा देने वाली गर्मी और जिहाद से नफ़रत के कारण वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु के साथ जाने से कतरा रहे थे। इसी सिलसिले में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है:
فَرِحَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ بِمَقۡعَدِهِمۡ خِلَٰفَ رَسُولِ ٱللَّهِ وَكَرِهُوٓاْ أَن يُجَٰهِدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَالُواْ لَا تَنفِرُواْ فِي ٱلۡحَرِّۗ قُلۡ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرّٗاۚ لَّوۡ كَانُواْ يَفۡقَهُونَ
"जिन लोगों को पीछे रह जाने की इजाज़त दे दी गई थी वह अल्लाह के रसूल का साथ न देने और घर बैठे रहने पर ख़ुश हुए और उन्हें गवारा न हुआ कि अल्लाह की राह में जान व माल से जिहाद करें। उन्होंने लोगों से भी कहा कि “इस सख़्त गर्मी में न निकलो।” उनसे कहो कि जहन्नम की आग इससे ज़्यादा गर्म है, काश उन्हें इसकी समझ होती।" (सूरह 09 अत तौबा आयत 81)
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3, सहाबा की एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस सफ़र का एहतेमाम किया और लोगों को ख़ूब तैयारी का हुक्म दिया तथा मालदार लोगों को अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करने के लिए उभारा चुनांचे मालदार मुसलमानों में से बहुत से लोगों ने उनका पूरा इंतेज़ाम किया जो मुसलमान सफ़र और रास्ते के ख़र्च की ताक़त नहीं रखते थे, उस्मान बिना अफ़्फ़ान रज़ि अल्लाहु अन्हु ने ग़रीब मुसलमानों पर एक हज़ार दीनार ख़र्च किया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए विशेष दुआ की। (देखें जामे तिर्मिज़ी 3701)
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4, लश्कर तबूक की ओर
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीस हज़ार लश्कर के साथ मदीना से तबूक के लिए निकले यह अबतक का सबसे बड़ा लश्कर था।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम समूद की बस्ती हिज्र में कुछ देर रुके और सहाबा को बताया कि यह वह बस्ती है जिन पर अज़ाब आया था और फ़रमाया "उन लोगों की बस्ती में जिन्होंने ख़ुद पर ज़ुल्म किया था जब दाख़िल हो तो रोते हुए दाख़िल हो। कहीं ऐसा न हो कि तुम पर वही अज़ाब आ जाए जो उन पर आया था।
सुबह हुई तो किसी के पास पानी नहीं था लोगों ने रसूलुल्लाह से शिकायत की। आपने दुआ की और अल्लाह तआला ने उनपर बादल भेज दिया ख़ूब बारिश हुई और लोग ख़ुश हो गए तथा आवश्यतानुसार पानी भर लिया। (सही बुख़ारी 3380/ सही मुस्लिम 2980)
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5, मदीना को वापसी
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक पहुंचे तो वह सरदार आपके पास आए जो अरब की सीमा में रहते थे उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह कर ली और जिज़या (कर) देना क़ुबूल किया। उनमें से कुछ को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अमन की तहरीर दी जिसमें सीमा की सुरक्षा, चश्मों, रास्तों और दोनों गिरोहों की सलामती और अमन की शर्त थी।
तबूक पहुंचकर आपको रुमियों के वापस चले जाने और अरब पर हमला करने का इरादा छोड़ देने की सूचना मिली फिर आपने उनके शहरों में घुसकर उनसे मुक़ाबला करना मुनासिब नहीं समझा और इस प्रकार यहां आने का उद्देश्य पूरा हो गया।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक में दस से ज़्यादा दिन ठहरे रहे फिर मदीना लौट आए।
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6, काब बिन मालिक की आज़माइश
इस ग़ज़वा में पीछे रह जाने वालों में काब बिन मालिक, मुरारा बिन रबीअ और हिलाल बिन उमैया भी थे यह तीनों अस साबेक़ुनल अव्वलून (पहले ईमान लाने वालों) में से थे। इस्लाम में उनकी ख़ूब अग्नि परीक्षा हुई, उनमें मुरारा बिन रबीअ और हिलाल बिनु उमैया तो वह सहाबी थे जो ग़ज़वा ए बदर में भी शामिल थे। वह किसी भी ग़ज़वे में पीछे नहीं रहे। इस ग़ज़वा में उनका शामिल न होना हिकमते इलाही, उनके ईमान की जांच तथा मुसलमानों की तरबियत मक़सूद थी। यह तो बस उनके इरादे की कमज़ोरी, अति आत्म विश्वास (Over confidence) के कारण तथा साधन की मौजूदगी के बावजूद रह गए थे।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को उनसे बातचीत बंद कर देने का आदेश दिया उस समय के मुसलमान तो केवल सुनना और इताअत करना (समअ व ताअत) जानते थे इसलिए लोगों ने उनसे बातचीत बंद कर दी। इसी हालत में वह पचास दिन रहे। काब बिन मालिक अपने घर से निकलते, मुसलमानों के साथ नमाज़ पढ़ते, बाज़ारों में जाते लेकिन कोई उनसे बात न करता। इस सज़ा ने उनके दिल में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और इस्लाम की मुहब्बत को और भी बढ़ा दिया।
यह सज़ा यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि हुक्म हुआ कि तुम तीनों अपनी अपनी बीवियों से भी अलग हो जाओ उन्होंने तत्काल आदेश का पालन किया।
इसी दौरान ग़स्सान के बादशाह ने काब बिन मालिक को सम्मान और इनआम का लालच देकर अपने पास बुलाना चाहा और अपने वाहक के द्वारा एक पत्र भेजा जब वह काब बिन मालिक के पास आया तो उन्होंने उसे पढ़ते ही उसी समय आग के हवाले कर दिया।
जब वह उद्देश्य पूरा हो गया जो अल्लाह ने इन तीनों मुसलमानों को पाक साफ़ करने का इरादा किया था। उनपर उनकी अपनी जान बोझ बन गई थी और ज़मीन अपनी वुसअत के बावजूद उनपर तंग हो गई थी तो अल्लाह तआला ने उसे कुशादा कर दिया और सात आसमानों के ऊपर से उनकी तौबा को क़ुबूल फ़रमाई। क़ुरआन में है:
لَّقَد تَّابَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلنَّبِيِّ وَٱلۡمُهَٰجِرِينَ وَٱلۡأَنصَارِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ فِي سَاعَةِ ٱلۡعُسۡرَةِ مِنۢ بَعۡدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٖ مِّنۡهُمۡ ثُمَّ تَابَ عَلَيۡهِمۡۚ إِنَّهُۥ بِهِمۡ رَءُوفٞ رَّحِيمٞ
وَعَلَى ٱلثَّلَٰثَةِ ٱلَّذِينَ خُلِّفُواْ حَتَّىٰٓ إِذَا ضَاقَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡأَرۡضُ بِمَا رَحُبَتۡ وَضَاقَتۡ عَلَيۡهِمۡ أَنفُسُهُمۡ وَظَنُّوٓاْ أَن لَّا مَلۡجَأَ مِنَ ٱللَّهِ إِلَّآ إِلَيۡهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيۡهِمۡ لِيَتُوبُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
"अल्लाह ने माफ़ कर दिया नबी को और उन मुहाजिरीन और अंसार को जिन्होंने बड़ी तंगी के ज़माने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमका साथ दिया हालाँकि इनमें से कुछ लोगों के दिल टेढ़ की तरफ़ झुक चले थे [मगर जब वह इस टेढ़ के पीछे न चले, बल्कि नबी का साथ ही दिया तो] अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया। बेशक उसका मामला इन लोगों के साथ मुहब्बत और मेहरबानी का है।
और उन तीनों को भी उसने माफ़ किया जिनके मामले को टाल दिया गया था। जब ज़मीन अपने तमाम फैलाव के बावजूद उनपर तंग हो गई और उनकी जानें भी उनपर बोझ मालूम होने लगीं और उन्होंने जान लिया कि अल्लाह से बचने के लिये कोई पनाहगाह ख़ुद अल्लाह ही की रहमत के दामन के सिवा नहीं है, तो अल्लाह अपनी मेहरबानी से उनकी तरफ़ पलटा, ताकि वह उसकी तरफ़ पलट आएँ। वास्तव में वह बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" (सूरह 09 अत तौबा आयत 117, 118)
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7, ग़ज़वा तबूक आख़िरी ग़ज़वा
ग़ज़वा तबूक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन का आख़िरी ग़ज़वा था। नबवी दौर में होने वाले कुल ग़ज़वात की संख्या 27 तथा बुऊस और सराया की संख्या 60 थी। तमाम ग़ज़वात में जंग भी नहीं हुई, इन जंगों में दोनों गिरोहों की तरफ़ से कुल मक़तूलों की संख्या किसी भी तरह 1018 से अधिक नहीं थी।
बल्कि यह जंगें उन ख़ूनी जंगों को ख़त्म करने वाली थीं जिसमें मारे जाने वालों की संख्या अल्लाह के इलावा किसी को मालूम नहीं, इन जंगों से पूरे अरब महाद्वीप में अमन व शांति हो गई यहांतक कि एक औरत बिना किसी भय और ख़तरे के हीरा (ईरान का एक मशहूर) से सफ़र करके काबा का तवाफ़ कर सकती थी और वापस जा सकती थी और उसे अल्लाह के इलावा किसी का ख़ौफ़ न होता था।
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8, इस्लाम में पहले हज्ज और बरअत का ऐलान
हज्ज नौ हिजरी में फ़र्ज़ हुआ, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु को उसी वर्ष अमीर ए हज्ज बनाकर भेजा ताकि लोग हज्ज अदा कर सकें अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के साथ जिन लोगों ने हज्ज का इरादा किया उनकी संख्या तीन सौ थी फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु को बुलाया और उनसे कहा कि तुम जाओ और कुर्बानी के दिन लोगों में ऐलान कर दो कि कोई काफ़िर जन्नत में दाख़िल नहीं होगा और इस वर्ष के बाद कोई मुशरिक हज्ज नहीं करेेगा और न कोई नंगा होकर बैतुल्लाह का तावफ़ करेेगा। (सूरह 09 अत तौबा आयत 28/ सही बुख़ारी 1622)
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9, आमुल वफ़ूद (प्रतिनिधिमंडलों का वर्ष)
1, प्रतिनिधिमंडलों का मदीना में आगमन
फ़तह मक्का के बाद जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक से सुरक्षित वापस लौटे तो इस्लाम के केंद्र मदीना में प्रतिनिधिमंडलों का तांता बंध गया। यह तमाम प्रतिनिधिमंडल अपने इलाक़े में इस्लाम की दावत, मूर्तिपूजा का विरोध तथा जाहिली रस्मो रिवाज से नफ़रत का जज़्बा लेकर वापस जाते थे।
बनी सअद बिन बकर से ज़िमाम बिन सअलबा आए और अपनी क़ौम के पास इस्लाम के प्रचारक बनकर लौटे, उन्होंने जाते ही सबसे पहली जो बात कही वह यह थी कि लात और उज़्ज़ा बहुत बुरे हैं। उनकी क़ौम ने कहा ज़िमाम तुम्हें क्या हो गया है कुछ तो डरो! कहीं सफ़ेद दाग़, कोढ़ या पागलपन की बीमारी न लग जाये, ज़िमाम ने जवाब दिया तुम्हारे लिए बर्बादी है अल्लाह की क़सम यह दोनों न तो कोई नुक़सान पहुंचा सकते हैं और न कोई लाभ पहुंचा सकते हैं। बेशक अल्लाह ने एक रसूल भेजा है और उनपर एक किताब उतारी है जो तुम्हारे लिए उससे ज़्यादा लाभदायक है जिसमें तुम पड़े हुए हो। "मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के इलावा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह बंदे और रसूल हैं" मैं तुम्हारे पास वही लेकर आया हूं जो उनके पास है उसमें वह सब कुछ है जिसको करने का तुम्हें आदेश दिया है जिस काम को करने से रोका है। यह सुनकर इलाक़े में कोई मर्द और औरत ऐसा नहीं था जो मुसलमान न हो गया हो (मुसनद अहमद 2380)
सख़ावत में मशहूर हातिम ताई के बेटे अदी बिन हातिम ताई रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़, चरित्र और उनकी नम्रता देखकर मुसलमान हो गए वह पुकार उठे कि अल्लाह की क़सम यह बादशाह नहीं हैं।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआज़ बिन जबल और अबु मूसा अशअरी रज़ि अल्लाहु अन्हुमा को इस्लाम के प्रचार के सिलसिले में यमन भेजा तो उन्हें वसीयत की "देखो आसानी पैदा करना मुश्किल पैदा मत करना लोगों को ख़ुशख़बरी देना नफ़रत न दिलाना। (सही बुख़ारी 4321, सही मुस्लिम 4526)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ि अल्लाहु अन्हु को तायफ़ भेजा, उन्होंने वहां जाकर लात का बुत तोड़ दिया फिर उसकी दीवारों पर चढ़ गए उनके साथ कुछ और लोग भी चढ़े, उन्होंने एक-एक पत्थर गिरा दिया और दीवारों को ज़मीन के बराबर कर दिया फिर वह साथियों के साथ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास वापस लौटे तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी तारीफ़ की।
प्रतिनिधिमंडल इस्लाम की शिक्षा और दीन की समझ बूझ प्राप्त करने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आते तथा उनके और सहाबा के चरित्र को देखते, मस्जिद नबवी के सहन में उनके लिए ख़ेमा लगा दिया जाता वहां वह क़ुरआन सुनते, मुसलमानों को नमाज़ पढ़ते हुए देखते और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपने दिल में आने वाले वसवसों और ख़्यालात के विषय में विस्तार से प्रश्न करते और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिकमत और प्रभावी अंदाज़ में उनका जवाब देते फिर वह क़ुरआन सुनते ईमान लाते और मुतमईन होकर अपनी क़ौम में वापस जाते थे।
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2, ज़कात का फ़र्ज़ होना
नौ हिजरी में ज़कात फ़र्ज़ हुई।
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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