Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-9

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-9


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-8]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


एथिज़्म (Atheism) – आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?

एथिज़्म का मतलब है किसी भी खालिक (Creator) में यक़ीन न रखना। एथिस्ट्स यानी नास्तिक अल्लाह, ग़ैब (अल-ग़ैब) यानी छुपी हुई चीज़ें जैसे जन्नत, जहन्नुम, फ़रिश्ते, जिन्न, या क़ियामत के दिन पर यक़ीन नहीं रखते। एथिज़्म की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह धर्म को एक अवैज्ञानिक या निराधार विश्वास मानता है, और विज्ञान को सर्वोच्च सत्य के रूप में अपनाता है, चाहे वह अल्लाह के अस्तित्व से इंकार करने की स्थिति में हो।

कुरआन और सुन्नत की रोशनी में, एथिज़्म तौहीद (अल्लाह की एकता) का इंकार करता है, और इंसान को उसकी अपनी ख्वाहिशात और दुनिया की मटीरियल चीज़ों का गुलाम बनाता है। यह इंसान को अल्लाह के बनाए हुक्म से दूर करता है और उसकी जगह नफ्स और दुनिया की अंधी दौड़ में लगा देता है। इसी वजह से यह ताग़ूत की शक्ल इख्तियार कर लेता है, जो अल्लाह के खिलाफ बगावत और उसके हुक्म की नाफरमानी है।


एथिज़्म और तौहीद का इंकार:

1. अल्लाह के अस्तित्व का इंकार:

एथिज़्म में अल्लाह या किसी भी प्रकार के सृष्टिकर्ता के अस्तित्व को नकारा जाता है। जबकि कुरआन स्पष्ट रूप से यह कहता है कि हर चीज़ का एक सृजनहार है:

"क्या उन्होंने खुद को खुद ही पैदा किया है या वे बिना किसी खालिक (Creator) के पैदा हुए हैं?"[कुरआन 52:35]

इस आयत में अल्लाह इंसान की फितरत पर सवाल करता है, जिससे यह साबित होता है कि कोई भी चीज़ अपने आप से पैदा नहीं हो सकती। कोई न कोई खालिक (Creator) है, और वही अल्लाह है, जिसने पूरी कायनात को बनाया। एथिज़्म इस वास्तविकता को नकारकर इंसान को भ्रमित कर देता है।


2. ग़ैब पर यक़ीन का इंकार:

एथिस्ट्स उन चीज़ों पर यक़ीन नहीं करते जो इंसान की आँखों से देखी नहीं जा सकतीं, जैसे जन्नत, जहन्नुम, फ़रिश्ते, और क़ियामत का दिन। जबकि कुरआन ने इसे साफ़ तौर पर ईमान का हिस्सा बताया है:

"जो लोग ग़ैब पर ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से खर्च करते हैं।" [कुरआन 2:3]

ग़ैब पर यक़ीन करना एक सच्चे मोमिन की पहचान है। लेकिन एथिज़्म इसे अस्वीकार करता है और केवल वही चीज़ें मानता है, जिन्हें साइंस द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है। यह तौहीद के एक अहम हिस्से को मिटाने का प्रयास करता है।


3. इंसानी फ़ितरत का इनकार:

इस्लाम में, अल्लाह ने इंसान की फ़ितरत को इस तरह बनाया है के वो उसकी इबादत करे। क़ुरान में फ़रमाया गया:

(ऐ नबी, और नबी की पैरवी करने वालो) यक्सू होकर अपना रुख़ इस दीन के रुख़ पर जमा दो, क़ायम हो जाओ उस फ़ितरत पर जिसपर अल्लाह ने इन्सानों को पैदा किया है, अल्लाह की बनाई हुई साख़्त बदली नहीं जा सकती, यही बिलकुल सीधा रास्ता और दुरुस्त दीन है, मगर अक्सर लोग जानते नहीं हैं। [कुरआन 30:30]

एथिज़्म इस फ़ितरत का इनकार करता है, जिससे इंसान असली मकसद से दूर होता है। जब इंसान अपनी फ़ितरत को भूल जाता है, तो वो अपने लिए खुद ही एक रुकावट बना लेता है।


4. आखिरत और हिसाब का इनकार:

इस्लाम का एक अहम पहलू ये है के हर इंसान का आखिरत में हिसाब होगा। एथिज़्म इस हक़ीकत को नहीं मानता। क़ुरान में अल्लाह ताअला ने फ़रमाया:

और आमालनामा सामने रख दिया जाएगा। उस वक़्त तुम देखोगे कि मुजरिम लोग अपनी ज़िन्दगी की किताब में लिखी बातों से डर रहे होंगे और कह रहे होंगे कि “हाय, हमारी बदनसीबी! ये कैसी किताब है कि हमारी कोई छोटी-बड़ी हरकत ऐसी नहीं रही जो इसमें दर्ज न हो गई हो।” जो-जो कुछ उन्होंने किया था, वो सब अपने सामने मौजूद पाएँगे, और तेरा रब किसी पर ज़रा भी ज़ुल्म न करेगा। [सूरह अल-कहफ 18:49]

इस तरह, जब इंसान आखिरत का इनकार करता है, तो वो अपने लिए एक बहुत बड़ा खुदकुशी का ज़रिया बना लेता है।


5. इंसानी मकसद की खुदकुशी:

इस्लाम के मुताबिक, इंसान का असल मकसद अल्लाह की इबादत करना है:

"और मैंने इंसान और जिन को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।" [सूरह अद-धारीयात 51:56]

एथिज़्म इस मकसद का इनकार करता है, और इंसान को बेकार की सोच में डाल देता है, जहाँ कोई आखिरत का ख़्याल नहीं होता। इस वजह से, इंसान की ज़िंदगी में बेकरारी और परेशानी बढ़ जाती है।


एथिज़्म की जड़:

1. नफ्स की परस्तिश:

एथिज़्म इंसान को उसकी नफ्सानी ख्वाहिशात (इच्छाओं) का गुलाम बना देता है। इंसान जब अल्लाह को छोड़ देता है, तो वह अपनी ख्वाहिशों का गुलाम बन जाता है। कुरआन कहता है:

"क्या तुमने उसे देखा जिसने अपनी नफ्स (इच्छाओं) को अपना खुदा बना लिया है?" [सूरह अल-जासिया, 45:23]

जब इंसान अल्लाह का इंकार करता है, तो उसके पास कोई ऊंचा मकसद नहीं रह जाता। वह सिर्फ अपनी इच्छाओं और दुनियावी जरूरतों के पीछे भागता है, और यही उसकी जिंदगी का मकसद बन जाता है। एथिज़्म इसी नफ्स को अल्लाह की जगह पर लाकर बिठा देता है, जो तौहीद के खिलाफ है।


2. दुनिया पर आधारित जीवन:

एथिज़्म केवल इसी दुनिया को मानता है और इसके बाद की जिंदगी पर यक़ीन नहीं रखता। यह इंसान को एक मटीरियलिस्टिक (भौतिकवादी) सोच में डाल देता है, जहाँ उसकी सारी जिंदगी केवल धन, सत्ता, और भौतिक सुख के लिए ही होती है। कुरआन में अल्लाह ने ऐसे लोगों का ज़िक्र किया है जो केवल दुनिया पर विश्वास करते हैं:

ये लोग कहते हैं कि “ज़िन्दगी बस यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है, यहीं हमारा मरना-जीना है और दिनों के आने-जाने के सिवा कोई चीज़ नहीं जो हमें हलाक करती हो,” हक़ीक़त में इस मामले में इनके पास कोई इल्म नहीं है। ये सिर्फ़ गुमान की बुनियाद पर ये बातें करते हैं। [सूरह अल-जासिया, 45:24]

एथिज़्म की यह सोच इंसान को इस्लाम की बुनियादी तालीमात से दूर ले जाती है और उसे सिर्फ इस दुनिया के फायदे के पीछे भागने वाला बना देती है। यही ताग़ूत की एक बड़ी निशानी है।


एथिज़्म का ताग़ूत होना:

ताग़ूत का मतलब है हर वो चीज़ जो अल्लाह के हुक्म से दूर ले जाए, चाहे वह कोई व्यक्ति हो, विचारधारा हो, या नफ्सानी ख्वाहिश। एथिज़्म न सिर्फ अल्लाह के वजूद का इंकार करता है, बल्कि इंसान को ऐसी विचारधाराओं और ख्वाहिशों के पीछे लगाता है, जो अल्लाह के खिलाफ बगावत हैं। अल्लाह ने कुरआन में स्पष्ट किया है:

"और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा (जो कहता था), अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत से बचो।"[सूरह अन-नहल, 16:36]

इस आयत में ताग़ूत से बचने का आदेश दिया गया है, और एथिज़्म स्पष्ट रूप से ताग़ूत की एक सूरत है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की इबादत से हटाकर दुनिया और नफ्स की परस्तिश में डालता है।


साइंस की अंध-भक्ति और एथिज़्म

एथिस्ट्स अक्सर साइंस को इंसानी ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत मानते हैं और अल्लाह या धर्म को किसी वैज्ञानिक प्रमाण के बिना नकार देते हैं। हालांकि, इस्लाम विज्ञान के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह मानता है कि साइंस अल्लाह की कुदरत का एक हिस्सा है। लेकिन जब साइंस को अल्लाह से ऊपर रखा जाता है, तो यह तौहीद के खिलाफ जाता है। कुरआन बार-बार इंसान को अल्लाह की निशानियों पर गौर करने की दावत देता है:

[इस हक़ीक़त को पहचानने के लिये अगर कोई निशानी और अलामत चाहिये तो] जो लोग अक़्ल से काम लेते हैं, उनके लिये आसमानों और ज़मीन की बनावट में रात और दिन के मुसलसल एक-दूसरे के बाद आने में, उन नावों में जो इन्सान के फ़ायदे की चीज़ें लिये हुए दरियाओं और समन्दरों में चलती-फिरती हैं, बारिश के उस पानी में जिसे अल्लाह ऊपर से बरसाता है, फिर उसके ज़रिए से ज़मीन को ज़िन्दगी देता है और अपने उसी इन्तिज़ाम की बदौलत ज़मीन में हर तरह की जानदार मख़लूक़ को फैलाता है, हवाओं के चलने में और उन बादलों में जो आसमान और ज़मीन के बीच फ़रमाँबरदार बनाकर रखे गए हैं, बेशुमार निशानियाँ हैं।[सूरह अल-बक़रह, 2:164]

विज्ञान को एक सीमा में रहकर समझने की जरूरत है। अल्लाह की कुदरत और उसके वजूद के इनकार में विज्ञान को हथियार बनाना और उसके आगे अल्लाह को मानने से इंकार करना इंसान को अंधी दौड़ में डालता है, और यही ताग़ूत की निशानी है।


एथिज़्म के खतरनाक असरात

1. खुदा से दूरी:

एथिज़्म अल्लाह से इंसान का रिश्ता खत्म कर देता है, जिससे इंसान का जीवन उद्देश्यहीन और निराशाजनक बन जाता है। अल्लाह का जिक्र और उसकी इबादत ही इंसान को सुकून और राहत दे सकती है।


2. अख़लाकी गिरावट:

जब इंसान अल्लाह की ओर से निर्धारित किए गए अख़लाकी सिद्धांतों को छोड़ देता है, तो वह अपनी नफ्सानी ख्वाहिशात और मटीरियल इच्छाओं का गुलाम बन जाता है, जिससे समाज में भ्रष्टाचार, जुल्म, और अन्याय फैलता है।


नतीजा:

इस्लाम इंसान को तौहीद पर वापस लाने का रास्ता दिखाता है, जिसमें इंसान अल्लाह की इबादत करता है और उसके बनाए हुक्मों के मुताबिक अपनी जिंदगी को ढालता है।

एथिज़्म तौहीद का इंकार करके इंसान को नफ्स और दुनिया की गुलामी में डाल देता है, जो इसे ताग़ूत की एक शक्ल बना देता है।


- मुवाहिद


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