Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13s): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13s): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13s)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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13. ग़ज़वा हुनैन 

1, हवाज़िन की मीटिंग

मक्का फ़तह हुआ और लोगों के समूह इस्लाम में दाख़िल होने लगे तो अरबों ने इस्लाम और मुसलमानों पर अपने तरकश का आख़िरी तीर भी चला दिया।

क़ुरैश के बाद हवाज़िन बड़ा ताक़तवर क़बीला था, क़ुरैश और उनके दरमियान छत्तीस का आंकड़ा रहता था इसलिए क़ुरैश  मक्का के समर्पण करने के बावजूद वह झुकने को तैयार न हुए।

हवाज़िन का सरदार मालिक बिन औफ़ अन नसरी खड़ा हुआ और मुसलमानों के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया। उसके साथ क़बीला सक़ीफ़ भी शामिल हो गया दोनों मिलकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ बढ़ने लगे। उन्होंने अपने साथ माल व दौलत, औरतों और बच्चों को भी इस वजह से साथ रखा ताकि लोग अपने घर वालों, अपने माल और अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त के लिए जंग लड़ेंगे।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी निकले उनके साथ दो हज़ार मक्का के लोग थे तथा कुछ ऐसे भी थे जो अभी मुसलमान नहीं हुए थे और दस हज़ार वह सहाबा थे जो मदीना से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ निकले थे। इस प्रकार संख्या इतनी हो गई जितनी इससे पहले किसी भी ग़ज़वे में नहीं हुई थी। इस वजह से कुछ मुसलमान यह कहने लगे कि आज हम अधिक संख्या में होने के कारण ग़ालिब हो जाएंगे, अधिक संख्या में होने के कारण वह बहुत ख़ुश थे।

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2, हुनैन की वादी में

मुसलमानों का सामना वादी हुनैन में हुआ, आठ हिजरी में शव्वाल की दसवीं तारीख़ थी मुसलमान सुबह के अंधेरे में नीचे उतर रहे थे और बनी हवाज़िन वादी में पहले ही पहुंच कर मुख़्तलिफ़ घाटियों में छुपकर बैठ गए थे उन्होंने मुसलमानों के साथ कोई रिआयत नहीं की, बल्कि लगातार तीर चलाते रहे, तलवारें खींच लीं और एक साथ मुसलमानों पर हमला कर दिया। वह लोग बड़े माहिर तीर अंदाज़ थे। 

तमाम मुसलमान बिखर कर भागे उनमें से किसी को दूसरे का होश नहीं था। ऐसा महसूस होता था कि ज़माने का पहिया मुसलमानों पर घूम जाएगा इसके बाद कोई भी अपनी जगह पर खड़ा नहीं था ऐसा ही मामला उहद में पेश आया था जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शहादत की अफ़वाह उड़ गई थी और मुसलमान भाग पड़े थे।

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3, फ़तह और सकीनत

जब अल्लाह की मशीयत से उन मुसलमान को सज़ा मिल गई जिन्हें अपनी संख्या की ज़्यादती पर घमंड था और अल्लाह तआला ने ज़रा सी देर में जीत की मिठास को हार की कड़वाहट में बदल दिया फिर दुश्मनों पर उनके हमले को लौटाया और अपने रसूल और मुसलमानों पर सकीनत नाज़िल की। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बग़ैर किसी डर और भय के एक ख़च्चर पर अपनी जगह खड़े थे उनके साथ मुहाजिरीन, अंसार तथा अहले बैत के कुछ लोग भी थे, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़च्चर की लगाम पकड़े हुए थे और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पुकार रहे थे,

 أَنَا النَّبِيُّ لَا كَذِبْ أَنَا ابْنُ عَبْدِ الْمُطَّلِبْ

"मैं नबी हूं इसमें कोई झूठ नहीं है मैं अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूं।"

नोट:- सही बुख़ारी 2874 तथा 2930 के अनुसार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़च्चर की लगाम अबु सुफ़ियान बिन हारिस पकड़े हुए थे।

जब तीर अंदाज़ों ने अपना रुख़ नबी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ किया तो आपने एक मुट्ठी मिट्टी उठाया और दुश्मान के आंखों की तरफ़ फेंक दिया जिससे पुरी क़ौम की आंखें भर गईं।

जब रसूलुल्लाह ने लोगों को नफ़्सी नफ़्सी में देखा तो कहा ऐ अब्बास आवाज़ लगाओ ऐ अंसार के लोगो, ऐ समुरा के साथियो! दौड़ो उन्होंने कहा लब्बैक लब्बैक, अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु की आवाज़ बहुत बुलंद थी जो भी उनकी आवाज़ को सुनता वह अपने ऊंट से उतरता तलवार और ढाल संभालते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुंच जाता। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जब एक जत्था इकट्ठा हो गया तो आप आगे बढ़े फिर लोगों ने जंग की। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी सवारी पर सवार थे जब भागने वाले पलटे तो उन्होंने देखा कि रसूलुल्लाह सल्ला वसल्लम के पास कैदी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं और अल्लाह ने फ़रिश्तों के ज़रिए मदद की थी जिससे पूरी घाटी भर गई थी और बनी हवाज़िन मुकम्मल तौर से परास्त हो गए थे। इस सिलसिले में अल्लाह तआला फ़रमाता है,

لَقَدۡ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ فِي مَوَاطِنَ كَثِيرَةٖ وَيَوۡمَ حُنَيۡنٍ إِذۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡ كَثۡرَتُكُمۡ فَلَمۡ تُغۡنِ عَنكُمۡ شَيۡـٔٗا وَضَاقَتۡ عَلَيۡكُمُ ٱلۡأَرۡضُ بِمَا رَحُبَتۡ ثُمَّ وَلَّيۡتُم مُّدۡبِرِينَ  ثُمَّ أَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦوَعَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودٗا لَّمۡ تَرَوۡهَا وَعَذَّبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ

"अल्लाह इससे पहले बहुत-से मौक़ों पर तुम्हारी मदद कर चुका है। अभी हुनैन की लड़ाई के दिन [उसकी मदद की शान तुम देख चुके हो] उस दिन तुम्हें अपनी तादाद के ज़्यादा होने का घमण्ड था, लेकिन वह तुम्हारे कुछ काम न आई, ज़मीन अपने फैलाव के बावजूद तुमपर तंग हो गई और तुम पीठ फेरकर भाग निकले।"

फिर अल्लाह ने अपनी 'सकीनत’ [प्रशान्ति] अपने रसूल पर और ईमानवालों पर उतारी और वह सेनाएँ उतारीं जो तुमको नज़र न आती थीं, और हक़ का इनकार करने वालों को सज़ा दी कि यही बदला है उन लोगों के लिये जो हक़ का इनकार करें।"   (सूरह 09 अत तौबा आयत 25,26)

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4, हुनैन के क़ैदी और माले ग़नीमत

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तायफ़ से जेअराना आए और वहां अपने सहाबा के साथ ठहरे रहे, बनी हवाज़िन का दस से अधिक दिनों तक इंतेज़ार किया जब कोई नहीं आया तो आपने फिर उनके माल को लोगों में तक़सीम करना शुरू कर दिया सबसे ज़्यादा हिस्सा नए होने वाले मुसलमानों को उनके दिल में मुहब्बत जगाने के लिए दिया गया।

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5, हवाज़िन के क़ैदियों की वापसी

बनी हवाज़िन का चौदह लोगों का एक प्रतिनिधि मंडल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया, उन्होंने कहा कि आप मेहरबानी करके क़ैदी और माल हमें वापस कर दें। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरे पास मेरे साथ जो कुछ है वह तुम देख रहे हो और मुझे सच्ची और हक़ बात से ज़्यादा कोई चीज़ पसंद नहीं, यह बताओ तुम्हारे बाल बच्चे ज़्यादा तुम्हें महबूब है या तुम्हारा माल।

उन्होंने जवाब दिया हम अपने बाल बच्चों के बराबर किसी चीज़ को नहीं समझते। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे कहा कि जब मैं सुबह की नमाज़ पढ़ा लूं तो तुम खड़े हो जाना और कहना कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुसलमानों पर और मुसलमानों को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सिफ़ारशी बनाते हैं कि हमारे क़ैदियों को लौटा दिया जाए। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुबह की नमाज़ ख़त्म की वैसे ही वह खड़े हो गए और उन्होंने वैसे ही कहा जैसे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें मशविरा दिया था। रसूलुल्लाह ने फ़रमाया सुनो! जो कुछ मेरे पास या बनी अब्दुल मुत्तलिब के पास है वह तुम्हारा है और मैं तुम्हारे लिए लोगों से पूछता हूं मुहाजिरीन और अंसार भी बोल पड़े जो कुछ हमारे लिए पास है वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए है केवल तीन क़बीलों बनी तमीम, बनी फ़ज़ारह और बनी सुलैम ने क़ैदियों को वापस करने से इनकार कर दिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सुनो यह वह लोग हैं जो मुसलमान होकर तुम्हारे पास आए हैं और उससे मानूस हो गए हैं, मैंने इन्हें इख़्तियार दिया था तो उन्होंने कहा, "हम बाल बच्चों के बराबर किसी चीज़ को नहीं समझते" इसलिए जिसके पास जो कुछ भी है वह ख़ुशी-ख़ुशी हवाले कर दे और जो अपना हक़ रोकना चाहता है तो वह दूसरा क़ैदी उसके बदले में लेकर वापस कर दे फिर जब माले फ़ै आएगा तो हम उनमें से एक हिस्से के बजाय छह हिस्से देंगे। (देखें: सही बुख़ारी 2307, 2308)

लोगों ने एक साथ कहा हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वास्ते देते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हम नहीं जानते तुम में से कौन राज़ी है और कौन राज़ी नहीं है। तुम जाओ और हमारे पास तुम्हारे सरदार तुम्हारा मामला लेकर आएं चुनांचे उनके बाल बच्चों को वापस कर दिया उनमें से कोई एक भी बाक़ी नहीं रहा और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ने तमाम क़ैदियों को एक-एक क़िब्ती चादर पहना कर रुख़्सत किया।

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6, नरमी और रहम

मुसलमानों के हाथ जो क़ैदी आए थे उनमें शीमा बिन्ते हलीमा सादिया भी थीं जो रसूलुल्लाह की दूध शरीक बहन थीं, जब उन्हें पड़कर कैम्प की तरफ़ ले जाया जा रहा था तो शीमा ने उनसे से कहा, क्या तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे साहब की दूध शरीक बहन हूं, किसी को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ इसलिए वह उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले गए।

जब शीमा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुंचीं तो उन्होंने कहा या रसूलुल्लाह मैं आपकी दूध शरीक बहन हूं रसूलुल्लाह ने पूछा इसका क्या सुबूत है शीमा ने कहा जब मैं आपको बचपन में गोद लिए हुए थी तो आपने मेरी पीठ पर दांत काट दिया था। आपने निशान को पहचान लिया और अपनी चादर उतार कर बिछाई और उसपर उन्हें बिठाया उनसे अच्छा बर्ताव किया और फिर फ़रमाया "अगर तुम चाहो तो मेरे पास प्यार व मुहब्बत के साथ रहो और अगर चाहो तो मैं तुम्हें सामान देकर इज़्ज़त और एहतेराम के साथ तुम्हारी क़ौम में वापस भेज दूं। शीमा ने जवाब दिया मुझे अपनी क़ौम के पास ही भेज दीजिए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें बहुत सा सामान देकर निहायत सम्मान के साथ उनकी क़ौम के पास भेज दिया। फिर वह मुसलमान हो गईं, उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन ग़ुलाम, एक बांदी और बहुत सी भेड़ बकरियां दीं।

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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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