Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-8

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-8

 

ताग़ूत का इनकार [पार्ट-8]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


हर नबी ने ताग़ूत की बंदगी से रोका।

इस्लाम की सबसे बुनियादी और अहम बात तौहीद (अल्लाह की एकता) है। अल्लाह की इबादत के अलावा किसी भी दूसरी ताकत, चीज़ या इंसान की बंदगी से बचने को कहा गया है, जिसे ताग़ूत कहा जाता है। ताग़ूत का मतलब है “हर वो चीज़, जो अल्लाह की इबादत से भटकाए और अल्लाह के खिलाफ सरकशी करे।” हर दौर के नबियों का मिशन रहा है कि अपनी उम्मत को ताग़ूत की बंदगी से रोके और उन्हें अल्लाह की सही राह पर लाए।

हमने हर उम्मत (समुदाय) में एक रसूल भेज दिया और उसके ज़रिए से सबको ख़बरदार कर दिया कि “अल्लाह की बन्दगी करो और ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) की बन्दगी से बचो। इसके बाद इनमें से किसी को अल्लाह ने सीधा रास्ता दिखाया और किसी पर गुमराही छा गई। फिर ज़रा ज़मीन में चल-फिरकर देख लो कि झुठलानेवालों का क्या अंजाम हो चुका है।" [कुरआन 16:36]

तफसीर : यानी तुम अपने शिर्क और अपने इख़्तियार से चीज़ों को हलाल-हराम ठहराने के हक़ में हमारी मर्ज़ी को जाइज़ होने की दलील कैसे बता सकते हो, जबकि हमने हर उम्मत में अपने रसूल भेजे और उनके ज़रिए से लोगों को साफ़-साफ़ बता दिया कि तुम्हारा काम सिर्फ़ हमारी बन्दगी करना है, ताग़ूत की बन्दगी के लिये तुम पैदा नहीं किये गए हो। इसी तरह जबकि हम पहले ही मुनासिब ज़रिओं से तुमको बता चुके हैं कि तुम्हारी इन गुमराहियों को हमारी रिज़ा (ख़ुशी) हासिल नहीं है, तो इसके बाद हमारी मशीयत और मर्ज़ी की आड़ लेकर तुम्हारा अपनी गुमराहियों को जाइज़ ठहराना साफ़ तौर पर ये मतलब रखता है कि तुम चाहते थे कि हम समझानेवाले रसूल भेजने के बजाए ऐसे रसूल भेजते जो हाथ पकड़कर तुमको ग़लत रास्तों से खींच लेते और ज़बरदस्ती तुम्हें सीधे रास्ते पर चलनेवाला बनाते।

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब के इल्म में से कुछ हिस्सा दिया गया है और उनका हाल ये है कि जिब्त और ताग़ूत को मानते हैं और [ हक़ का] इनकार करनेवालों के बारे में कहते हैं कि ईमान लानेवालों से तो यही ज़्यादा सही रास्ते पर हैं।" [कुरआन 4:51]

फिर कहो, “क्या मैं उन लोगों की निशानदेही करूँ जिनका अंजाम ख़ुदा के यहाँ फ़ासिक़ों और नाफ़रमानों के अंजाम से भी बुरा है? वो जिनपर ख़ुदा ने लानत की, जिन पर उसका ग़ज़ब टूटा, जिनमें से बन्दर और सूअर बनाए गए, जिन्होंने ताग़ूत की बन्दगी की, उनका दर्जा और भी ज़्यादा बुरा है और वो ‘सवाउस्सबील’ (सीधे रास्ते) से बहुत ज़्यादा भटके हुए हैं।” [कुरआन 5:60)]

कुरआन में 25 नबियों का जिक्र मिलता है, और उनकी ज़िन्दगी में हमें यह साफ दिखाई देता है कि हर नबी ने अपनी क़ौम को ताग़ूत से रोकने की कोशिश की और तौहीद की दावत दी। यहां हम नबियों की ज़िन्दगी से कुछ मिसालें देंगे कि कैसे हर दौर में उन्होंने ताग़ूत की बंदगी से अपनी क़ौम को रोका।


1. हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम):

आदम (अ.) अल्लाह के पहले नबी थे, और उनके ज़माने में सबसे पहले शैतान ने इंसान को बहकाया। शैतान का मकसद था कि इंसान अल्लाह की हिदायत से दूर हो जाए और उसकी बात माने। यह ताग़ूत की पहली मिसाल थी, जिसे शैतान ने पेश किया। हज़रत आदम (अ.) ने अपनी क़ौम को सिखाया कि सिर्फ अल्लाह की बात माननी चाहिए, और शैतान की बात को नकारना चाहिए।

फिर हमने आदम से कहा कि “तुम और तुम्हारी बीवी, दोनों जन्नत में रहो और यहाँ जी भर कर जो चाहो खाओ, मगर उस पेड़ का रुख़ न करना, वरना ज़ालिमों में गिने जाओगे।”

आख़िरकार शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ का लालच देकर हमारे हुक्म की पैरवी से हटा दिया और उन्हें उस हालत से निकलवाकर छोड़ा जिसमें वो थे। हमने हुक्म दिया कि “अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ, तुम एक-दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हें एक ख़ास वक़्त तक ज़मीन में ठहरना और वहीं गुज़र-बसर करना है।” [कुरआन 2:35-36]


2. हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम):

हज़रत नूह (अ.) का दौर ताग़ूत के एक बड़े रूप का दौर था, जहां लोग बुतों की इबादत करते थे। उनकी क़ौम ने बुतों को खुदा का दर्जा दे रखा था और उनके सामने सज्दा करते थे। नूह (अ.) ने अपनी क़ौम को तौहीद की दावत दी और ताग़ूत (बुतों) का इनकार करने को कहा।

"इन्होंने कहा हरगिज़ न छोड़ो अपने माबूदों को, और न छोड़ो वद्द और सुवाअ को, और न यग़ूस और यऊक़ और नसर को।" [कुरआन 71:23]

हज़रत नूह (अ.) ने अपनी क़ौम को समझाया कि सिर्फ अल्लाह की इबादत करो, और इन बुतों की इबादत से बचो।


3. हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम)

हज़रत इब्राहीम (अ.) की पूरी ज़िन्दगी ताग़ूत के खिलाफ एक संघर्ष की मिसाल है। उनकी क़ौम बुतों की इबादत करती थी और राजा नमरूद ने खुद को अल्लाह बना लिया था। इब्राहीम (अ.) ने सबसे पहले अपने वालिद और फिर अपनी क़ौम को ताग़ूत (बुत और राजा नमरूद) से रोका।

इबराहीम का वाक़िआ याद करो जबकि उसने अपने बाप आज़र से कहा था, “क्या तू बुतों को ख़ुदा बनाता है? मैं तो तुझे और तेरी क़ौम को खुली गुमराही में पाता हूँ।” [कुरआन 6:74]

इबराहीम (अ.) ने अपने हाथों से बुतों को तोड़ा और अपनी क़ौम से कहा कि अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत न करो।


4. हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम):

हज़रत मूसा (अ.) को फिरौन के दौर में नबूवत दी गई। उस वक्त फिरौन खुद को खुदा मानता था और लोगों से अपनी इबादत कराता था। यह ताग़ूत का एक सबसे बड़ा रूप था। मूसा (अ.) ने अपनी क़ौम और फिरौन को तौहीद की दावत दी और कहा कि फिरौन की बंदगी से बचो।

(फिरौन ने कहा), "मैं तुम्हारा सबसे बड़ा रब हूँ।" [कुरआन 79:24]

मूसा (अ.) ने अपनी क़ौम को फिरौन की ताग़ूतियत से निकाला और अल्लाह की राह पर चलने की हिदायत दी।


5. हज़रत लूत (अलैहिस्सलाम):

लूत (अ.) की क़ौम सामाजिक बुराइयों और ताग़ूत के बुरे आचरण में फंसी हुई थी। उन्होंने अपनी क़ौम को उनके बुरे और सरकश तरीकों से रोका और अल्लाह की इबादत करने को कहा। लेकिन उनकी क़ौम ने उनकी बात नहीं मानी और अपनी नाफरमानियों में डूबी रही।

"क्या तुम दुनिया के जानदारों में से मर्दों के पास जाते हो। और तुम्हारी बीवियों में तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिये जो कुछ पैदा किया है, उसे छोड़ देते हो? बल्कि तुम लोग तो हद से ही गुज़र गए हो।” [कुरआन 26:165-166]


6. हज़रत शुऐब (अलैहिस्सलाम):

हज़रत शुऐब (अ.) की क़ौम आर्थिक ताग़ूत के शिकार थी। वो धोखाधड़ी से काम लेती थी, व्यापार में बेईमानी करती थी, और अल्लाह की हिदायत से दूर थी। हज़रत शुऐब (अ.) ने उन्हें रोका और कहा कि सिर्फ अल्लाह की इबादत करो और अपने व्यापार में ईमानदारी लाओ।

और मदयनवालों की तरफ़ हमने उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, “ऐ क़ौम के भाइयो ! अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की साफ़ रहनुमाई आ गई है, इसलिये नाप और तौल पूरे करो लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो, और ज़मीन में बिगाड़ न पैदा करो जबकि उसका सुधार हो चुका है। इसी में तुम्हारी भलाई है अगर तुम वाक़ई ईमानवाले हो।" [कुरआन 7:85]


7. हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम):

हज़रत सालेह (अ.) की क़ौम भी ताग़ूत की इबादत में फंसी थी। उन्होंने अपनी क़ौम को अल्लाह की इबादत की दावत दी और ताग़ूत (ग़लत और नाफरमान आचरण) से रोका। लेकिन उनकी क़ौम ने उनकी बात नहीं मानी और आखिरकार अल्लाह का अज़ाब उनपर आ गया।

और समूद की तरफ़ हमने उनके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो ! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। वही है जिसने तुमको ज़मीन से पैदा किया है और यहाँ तुमको बसाया है, इसलिये तुम उससे माफ़ी चाहो और उसकी तरफ़ पलट आओ, यक़ीनन मेरा रब क़रीब है और वो दुआओं का जवाब देनेवाला है।” [कुरआन 11:61-62]


8. हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम):

हज़रत ईसा (अ.) का ज़माना भी एक ऐसे दौर में आया जब उनकी क़ौम ने ताग़ूत का रूप धारण कर लिया था। उन्होंने अपनी क़ौम को तौहीद की दावत दी और उन्हें अल्लाह के हुक्म पर चलने की हिदायत दी। उनकी क़ौम के कई लोग उनको नबी मानने के बजाय उन्हें खुदा का बेटा मानने लगे, जो तौहीद के खिलाफ था।

“ऐ मरयम के बेटे ईसा, क्या तूने लोगों से कहा था कि ख़ुदा के सिवा मुझे और मेरी माँ को भी ख़ुदा बना लो?” [कुरआन 5:116]


9. हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम):

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी ताग़ूत के दौर में नबूवत दी गई। उनकी क़ौम बुतों की इबादत करती थी और सरकश शासकों के हुक्म में थी। आपने अपनी क़ौम को तौहीद की दावत दी और उन्हें बुतपरस्ती और ताग़ूत से रोका।

"हमने तुमसे पहले जो रसूल भी भेजा है उसको यही वही की है कि मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं है, इसलिये तुम लोग मेरी ही बन्दगी करो।" [कुरआन 21:25]

हर नबी की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा मकसद तौहीद की दावत देना और ताग़ूत की बंदगी से रोकना था।


- मुवाहिद



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