खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (020) ताहा
सूरह (020) ताहा
(ii) आदम अलैहिस्सलाम का वाक़िआ
(iii) रसुल को तसल्ली
(i) मूसा अलैहिस्सलाम का वाक़िआ
मूसा अलैहिस्सलाम का वाक़िआ इस सूरह में काफ़ी तफ़सील से बयान हुआ है, मूसा अलैहिस्सलाम का समुद्र में डाला जाना, ताबूत का फ़िरऔन के पास पहुंचना, इज़्ज़त व एहरतेराम के साथ अपनी मां की तरफ़ लौटाया जाना, फ़िरऔन के घर में पालन पोषण, एक क़िबती का आप के हाथों क़त्ल होना, आप को क़िसास से निजात मिलना, मदयन में पनाह लेना और वहाँ क़ई वर्ष रहना, मदयन से लौटते हुए आग की तलाश में निकलना, रौशनी देख कर वहां जाना और अल्लाह तआला के साथ बातचीत, नबी बनाया जाना, फिर आपके भाई हारून का नबी बनाया जाना, फ़िरऔन के पास जाने का हुक्म, फ़िरऔन के साथ नरमी और उमदह नसीहतों के उसूल के तहत मुबाहिसा, जादूगरों से मुक़ाबला, जादूगरों का ईमान लाना, ईमान लाने पर फ़िरऔन की धमकी लेकिन उनकी साबित क़दमी, रातों रात बनी इस्राईल का मिस्र से निकलना, फ़िरऔन का अपने लश्कर के साथ पीछा करना और समुद्र में डूब जाना, अल्लाह की नेअमतों के मुक़ाबले में बनी इस्राईल का नाशुकरापन, सामिरी का बछड़ा बनाना और बनी इस्राईल की गुमराही, तौरात ले कर मूसा अलैहिस्सलाम की कोहे तूर से वापसी और अपने भाई पर ग़ुस्से का इज़हार, हारून अलैहिस्सलाम की वज़ाहत, वगैरह। (9 से 86)
(ii) सामिरी और उसका अंजाम?
सामिरी की निस्बत सामरा की तरफ़ है। यह बनी इस्राईल का एक बुद्धिजीवी व्यक्ति था जिसने मूसा अलैहिस्सलाम के पीछे ज़ेवरों से (जिन्हें बनी इस्राईल ने बोझ के कारण फेंक दिया था) एक बछड़ा बनाया जिस से बैल की आवाज़ निकलती थी। और कहा यह तुम्हारा और मूसा का माबूद है। इसके इस अमल से इमाम बग़वी के अनुसार 6 लाख में से केवल 12 हज़ार लोगों को छोड़ कर सब शिर्क में मुब्तिला हो गए थे। जब मूसा अलैहिस्सलाम ने सामिरी से पूछा तो उसने जवाब दिया मैंने ने वह देखा जो कोई न देख सका, मैंने एक मुट्ठी मिट्टी रसूल के क़दम के निशान से उठा कर उसमें डाल दिया था। उसकी सज़ा सामिरी को यह दी गई कि उसे दुनिया में ही अछूत बना दिया गया और वह ख़ुद कहता फिरता था لَا مِسَاسَۖ मुझे छूना नहीं। (87 से 97)
(iii) आदम अलैहिस्सलाम का वाक़िआ
अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा कर के फ़रिश्तों को सज्दा करने का आदेश दिया, चुनांचे सभी फ़रिश्तों ने सज्दा किया मगर इब्लीस ने घमण्ड के कारण इंकार कर दिया। अल्लाह ने आदम से फ़रमाया अब यह (शैतान) तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुश्मन है, कहीं ऐसा न हो कि यह तुम दोनों को जन्नत से निकलवा दे। तुम जन्नत में रहो न तुम यहाँ भूखे रहोगे न नंगे और न प्यासे रहोगे और न धूप लगेगी। लेकिन फ़ुलां दरख़्त के पास जाने की भी मत सोचना मगर शैतान ने वसवसा पैदा किया और आदम व हव्वा ने उस दरख़्त से कुछ खा लिया जिसके कारण वह एक दूसरे को नंगे नज़र आने लगे। आदम बहुत पछताए, उन्होंने माफ़ी मांगी तो अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया और ज़मीन पर ख़लीफ़ा बना दिया। (115 से 123)
(iv) रसूल को तसल्ली और पांच नमाज़ों का हुक्म
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का के काफ़िरों की तरफ़ से सख़्त रंज का सामना करना पड़ता था, उनकी बदज़ुबानी, मज़ाक़ उड़ाना और इस्लाम के ख़िलाफ़ दौड़ भाग से आप कुढ़ते थे, उन्हें क़ुरआन सुनाना चाहते तो वह सुनने को तैयार न होते। इसके लिए अल्लाह ने अपने रसूल को तसल्ली दी है कि "उनकी बातों पर आप सब्र करें, सूरज निकलने से पहले (फ़ज्र की नमाज़), डूबने से पहले (अस्र की नमाज़), रात में (ईशा की नमाज़, और नफ़्ली तहज्जुद भी) और दिन के दोनों किनारों में (फ़ज्र, ज़ुहर, और मग़रिब की नमाज़) अल्लाह की तारीफ़ और तस्बीह करते रहें, घर वालो को नमाज़ का हुक्म दें अपने काम पर साबित क़दम रहें और दुनिया का ख़्याल बिल्कुल दिल में न लाएं। (130 से 132)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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