Khulasa e Qur'an - surah 11 | surah hood

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir


खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (011) हूद


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (011) हूद 


(i) क़ुरआन करीम की अज़मत

क़ुरआन अपनी आयात, मआनी, और मज़मून के एतेबार से मुहकम (स्पष्ट) किताब है और उसमें किसी भी लिहाज़ से फ़साद और ख़लल नहीं आ (दूषित या बाधित नहीं किया जा) सकता। और न ही इसमें कोई विरोधाभास (conflict) या अन्तविरोध (Contradiction) है। मुहकम होने की बड़ी वजह यही है कि इसकी तफ़सील और तशरीह (explanation) उस ज़ात ने किया है जो हकीम भी है और ख़बीर भी। उसका हर हुक्म किसी न किसी हिकमत से इबारत है और उसे इंसान के माज़ी (past), हाल (present) मुस्तक़बिल (future). उसकी नफ़सियात (psychology), कमज़ोरी (weakness) और ज़रूरियात का इल्म है।

जो लोग यह दावा करते हैं कि इस्लाम सवा 1400 साल पहले की पैदावार है और हिंदुस्तानी इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि इस्लाम के संस्थापक (founder) मुहम्मद साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) थे तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि क़ुरआन उनके नज़रियात को रद्द करते हुए ऐलान करता है कि इस्लाम तो उसी वक़्त आया था जब पहले इंसान ने दुनिया में क़दम रखा था और हज़ारों अंबिया और रसूल के बाद आख़िरी नबी मुहम्मद अरबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रिसालत दी गई। उन लोगों का भी ज़िक्र किया गया है जो अल्लाह की आयात का इंकार करते हैं उनको जवाब दिया गया बल्कि चैलेंज किया गया कि 

أَمۡ يَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ فَأۡتُواْ بِعَشۡرِ سُوَرٖ مِّثۡلِهِۦ مُفۡتَرَيَٰتٖ وَٱدۡعُواْ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ

वह कहते हैं कि (नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह क़ुरआन ख़ुद घड़ लिया है तो आप उनसे कह दीजिए कि अगर वह सच्चे हैं तो उन झूठे माबूदों को भी मदद के लिए बुला लें और इस जैसी ज़रा दस सूरतें ही बना लाएं। (आयत 13)

आगे धमकी भी है,

अब अगर तुम्हारे अपने बनाये हुए माबूद तुम्हारी मदद नहीं कर सकते तो जान लो कि यह अल्लाह के इल्म से नाज़िल की गई है। और हक़ीक़त यह है कि अल्लाह के इलावा कोई माबूद नहीं है। क्या तुम अब भी न मानोगे। (आयत 14)


(ii) तौहीद और तौहीद के दलाएल

दुनिया में जितनी मख़लूक़ हैं इंसान हों या जिन्नात, चौपाए हों या परिंदे, पानी मे रहने वाली मछलियां और दूसरे जंतु हों या ज़मीन पर रेंगने वाले कीड़े मकोड़े, तमाम मख़लूक़ को रिज़्क़ दने वाला अल्लाह ही है, और तमाम मख़लूक़ात और आसमान व ज़मीन को अल्लाह ने ही पैदा किया है। (6, 7)


(iii) रिसालत और उसके सुबूत के लिए सात अंबिया के वक़िआत

(1) नूह अलैहिस्सलाम, 
(2) हूद अलैहिस्सलाम, 
(3) सालेह अलैहिस्सलाम, 
(4) इब्राहीम अलैहिस्सलाम, 
(5) लूत अलैहिस्सलाम, 
(6) शुऐब अलैहिस्सलाम, 
(7) मूसा अलैहिस्सलाम

इन वक़िआत में जहां एक तरफ़ अक़्ल, समझ बूझ और सुनने देखने वालों के लिए बे पनाह इबरत और नसीहत है वहीं दूसरी तरफ़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सच्चे पक्के मुसलमानों के लिए तसल्ली और अपने दीन पर जमे रहने की तलक़ीन भी है। इसीलिए यह वक़िआत बयान करते हुए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस्तेक़ामत का हुक्म दिया गया है और यह हुक्म पूरी उम्मत के लिए भी है। इस्तेक़ामत कोई सस्ती और आसान चीज़ नहीँ है बल्कि बहुत ही मुश्किल काम है जो अल्लाह के मख़सूस बंदों को ही नसीब होती है। इस्तेक़ामत का मतलब है उन तालीमात के मुताबिक़ पूरी ज़िंदगी गुज़ारी जाय जिसका अल्लाह ने हुक्म दिया है। (25 97)


(iv) क़यामत का तज़किरा

क़यामत के दिन इंसान दो गिरोहों में बंटे होंगे। 1, बदबख़्त लोग जिनके लिए हौलनाक अज़ाब होगा। कुफ़्र की हालत में मरने वाले सदैव जहन्नम में जलते रहेंगे परन्तु जो मुसलमान अपने गुनाहों की वजह से जहन्नम में जाएंगे, जबतक अल्लाह की मर्ज़ी होगी वह जलेंगे फिर उन्हें जहन्नम से निकाल कर जन्नत में दाख़िल किया जाएगा। 2, खुश किस्मत लोग, यह सदैव जन्नत में रहेंगे जहां उनके लिए सभी प्रकार का रिज़्क़ होगा। (105, 109)


(v) मोमिनों को नसीहत

(1) ज़ालिमों की बातों में हरगिज़ न आएं वरना जहन्नम के मुस्तहिक़ हो जाएंगे। नेकी बुराई को दूर कर देती है। (2) दिन के दोनों किनारों और रात के हिस्सों में नमाज़ अदा करें। (3) जो परेशानियां आएं उन पर सब्र करें। (113 से 115)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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