फ़ज्र की नमाज़ की अहमियत
फ़ज्र की नमाज़ की अहमियत जानने के लिए चंद हदीस मुलाहिज़ा फरमाएं,
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया,
لَا يَلِجُ النَّارَ مَنْ صَلَّى قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ، وَقَبْلَ غُرُوبِهَا
"जो शख़्स सूरज डूबने और निकलने से पहले (यानी फ़ज्र और असर की) नमाज़ पढ़ेगा , वह शख़्स हरगिज़ आग में दाख़िल नहीं होगा।"
[सहीह मुस्लिम 634]
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया,
مَنْ صَلَّى الْعِشَاءَ فِي جَمَاعَةٍ فَكَأَنَّمَا قَامَ نِصْفَ اللَّيْلِ، وَمَنْ صَلَّى الصُّبْحَ فِي جَمَاعَةٍ فَكَأَنَّمَا صَلَّى اللَّيْلَ كُلَّهُ
"जो शख़्स ईशा की नमाज़ जमाअत के साथ अदा करे (उसे इतना सवाब) गोया उसने आधी रात तक नमाज़ पढ़ी। और फिर सुबह की नमाज़ (यानि फ़ज्र) जमाअत के साथ पढ़े (तो इतना सवाब पाया) गोया पूरी रात नमाज़ पढ़ी।"
[सहीह मुस्लिम: 656]
नबी करीम ﷺ ने फरमाया,
مَنْ صَلَّى الصُّبْحَ فَهُوَ فِي ذِمَّةِ اللهِ
"जिसने सुबह की नमाज़ (यानी फ़ज्र) की नमाज़ पढ़ी तो वह अल्लाह के ज़िम्मे (यानि उसके सुरक्षा) में है।"
[सहीह मुस्लिम: 657]
नबी करीम ﷺ ने फरमाया,
يَتَعَاقَبُونَ فِيكُمْ مَلَائِكَةٌ بِاللَّيْلِ وَمَلَائِكَةٌ بِالنَّهَارِ ، وَيَجْتَمِعُونَ فِي صَلَاةِ الْفَجْرِ وَصَلَاةِ الْعَصْرِ ، ثُمَّ يَعْرُجُ الَّذِينَ بَاتُوا فِيكُمْ فَيَسْأَلُهُمْ وَهُوَ أَعْلَمُ بِهِمْ ، كَيْفَ تَرَكْتُمْ عِبَادِي ؟ فَيَقُولُونَ : تَرَكْنَاهُمْ وَهُمْ يُصَلُّونَ ، وَأَتَيْنَاهُمْ وَهُمْ يُصَلُّونَ
"रात और दिन में फ़रिश्तों की ड्यूटियाँ बदलती रहती हैं। और फ़ज्र और अस्र की नमाज़ों मैं {ड्यूटी पर आने वालों और रुख़सत (छूट) पाने वालों का} इज्तिमाअ होता है। फिर तुम्हारे पास रहने वाले फ़रिश्ते जब ऊपर चढ़ते हैं तो अल्लाह तआला पूछता है हालाँकि वो उन से बहुत ज़्यादा अपने बन्दों के मुताल्लिक़ जानता है कि मेरे बन्दों को तुमने किस हाल में छोड़ा। वो जवाब देते हैं कि हमने जब उन्हें छोड़ा तो वो (फ़ज्र की) नमाज़ पढ़ रहे थे। और जब उन के पास गए तब भी वो (अस्र की) नमाज़ पढ़ रहे थे।"
[सहीह बुखारी: 555]
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया,
لَيْسَ صَلَاةٌ أَثْقَلَ عَلَى الْمُنَافِقِينَ مِنَ الْفَجْرِ وَالْعِشَاءِ ، وَلَوْ يَعْلَمُونَ مَا فِيهِمَا لَأَتَوْهُمَا وَلَوْ حَبْوًا ، لَقَدْ هَمَمْتُ أَنْ آمُرَ الْمُؤَذِّنَ فَيُقِيمَ ، ثُمَّ آمُرَ رَجُلًا يَؤُمُّ النَّاسَ ، ثُمَّ آخُذَ شُعَلًا مِنْ نَارٍ فَأُحَرِّقَ عَلَى مَنْ لَا يَخْرُجُ إِلَى الصَّلَاةِ بَعْدُ
"मुनाफ़िक़ों पर फ़ज्र और इशा की नमाज़ से ज़्यादा और कोई नमाज़ भारी नहीं और अगर उन्हें मालूम होता कि उन का सवाब कितना ज़्यादा है (और चल न सकते) तो घुटनों के बल घिसट कर आते और मेरा तो इरादा हो गया था कि मुअज़्ज़न से कहूँ कि वो तकबीर कहे फिर मैं किसी को नमाज़ पढ़ाने के लिये कहूँ और ख़ुद आग की चिंगारियाँ ले कर उन सब के घरों को जला दूँ जो अभी तक नमाज़ के लिये नहीं निकले।"
[सहीह बुखारी: 657]
ये तल्ख़ हक़ीक़त है की अक्सरियत फ़ज्र की नमाज़ छोड़ देती है लेकिन फ़ज्र की नमाज़, कितनी ज़्यादा अहमियत की हामिल है मज़कुरा बाला रिवायतों से पता चलती है इसीलिए मेरे अज़ीज़ दोस्तों कभी भी फ़ज्र की नमाज़ मिस ना किया करें।
क्योंकि नबी करीम ﷺ ने फरमाया,
إِنَّ أَوَّلَ مَا يُحَاسَبُ النَّاسُ بِهِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنْ أَعْمَالِهِمُ الصَّلَاةُ
"बिला सुब्हा क़यामत के दिन लोगो के आमाल में से सब से पहले नमाज़ ही का हिसाब होगा।"
[अबु दाऊद: 864]
मुहम्मद अज़ीम
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