Jannati aurton ki sardar kon-kon hain? (part-3)

Jannati aurton ki sardar kon-kon hain? khadija bint khuwalid


जन्नती औरतों की सरदार (क़िस्त 3)


3. ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद रज़ियल्लाहु अन्हा

नाम ख़दीजा, पिता का नाम ख़ुवैलिद चौथी नस्ल में क़ुसई बिन किलाब पर आपका नसब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिल जाता है।

ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा का जन्म अरब के उस युग में हुआ था जब अरब में जहालत का दौर था, हर तरफ़ अंधकार फैला हुआ था, शराब पीना, जूआ खेलना, घमंडी स्वभाव और ब्याज का लेनदेन सामान्य बात थी, लड़कियों को पैदा होते ही जिंदा दफ़न कर दिया जाता था, महिलाओं को पांव की बेड़ी समझा जाता था ऐसे युग में ख़दीजा अपनी पाक दामनी के कारण "ताहिरा" (पाकीज़ा) के नाम से प्रसिद्ध थीं।

ख़दीजा जब बड़ी हुईं तो उनका विवाह एक मालदार घराने के नौजवान अबू हाला से हुआ जिन से दो बच्चे पैदा हुए एक हाला और दूसरे हिंद जो मुसलमान हुए और एक लड़ाई में शहीद हुए।

अबू हाला की मृत्यु के पश्चात ख़दीजा का विवाह अतीक बिन ज़ायद से हुआ उनसे केवल एक लड़की पैदा हुई जिसका नाम भी हिन्द था (हिन्द ने बाद में इस्लाम क़ुबूल किया) लेकिन जल्द ही आतीक़ का भी देहांत हो गया। दूसरी बार विधवा होने के पश्चात भी बहुत से रिश्ते आए परन्तु ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने विवाह करने से इनकार कर दिया

जब फ़ुज्जार की जंग में उनके पिता ख़ुवैलिद बिन असद मारे गए तो उनका कारोबार ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने संभाला वह एक हिम्मतवाली और अक़लमंद महिला थीं, उन्होंने कारोबार को इतना आगे बढ़ाया कि उनकी गिनती शहर के मालदार लोगों में होने लगे।

ख़दीजा को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उनके कारोबार को और आगे बढ़ा सके इधर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पूरे मक्के में सादिक़ और अमीन के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे, उसके साथ साथ अबू तालिब के साथ सीरिया जाने से तिजारत का काफ़ी तजुर्बा भी हो चुका था चुनांचे ख़दीजा ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ डील की और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़दीजा के व्यापार का सामान लेकर सीरिया गए उनके साथ ख़दीजा का एक ग़ुलाम मैसरा भी था जब सफ़र से वापसी हुई और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हिसाब पेश किया तो लाभ पिछले वर्षों के मुक़ाबले में कई गुना ज़्यादा था इससे ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सच्चाई, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का यक़ीन हो गया बाक़ी उनके ग़ुलाम मैसरा ने सफ़र में जो कुछ देखा था उसे प्रशंसा करते हुए विस्तार से बताया इससे प्रभावित होकर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास अपनी एक सहेली नफ़ीसा के ज़रिए निकाह का पैग़ाम भिजवाया जिसे अबू तालिब द्वारा मंज़ूर किया गया और अब ख़दीजा का विवाह मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से हो गया अबू तालिब ने निकाह पढ़ाया और वह मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पत्नी बन गई इस प्रकार अल्लाह ने आप को मालदार बना दिया। क़ुरआन में इसके विषय में इशारा किया गया है। 

 وَوَجَدَكَ عَآئِلٗا فَأَغۡنَىٰ  

"हमने आपको माली हैसियत से कमज़ोर पाया और फिर मालदार कर दिया।" (सूरह 93 अज़ ज़ुहा, आयत 8)


ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा को विवाह के पश्चात मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को और क़रीब से देखने का मौक़ा मिला तो उन्हें नैतिकता और आचरण के उच्चतम स्थान पर पाया। उन्होंने देखा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अनाथों, दासों, विधवाओं और निर्धनों की सहायता करते हैं तो अपना तमाम कारोबार मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हवाले कर दिया और उन्हीं के रंग में रंग गई। ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा एक पतिवर्ता पत्नी थी वह हर बात में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ख़्याल रखती थीं, दास दासियों के होने के बावजूद वह ख़ुद मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सेवा करतीं।

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के चाचा अबू तालिब की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उनके बेटे अली को अपनी किफ़ालत (जीवन पोषण) का मशविरा किया। ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा फ़ौरन तैयार हो गईं और बड़ी मुहब्बत से अली का पालन पोषण किया।

विवाह के लगभग 13 वर्ष बाद ग़ारे हिरा में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुछ खाने पीने का सामान लेकर चले जाते और वही अल्लाह के ज्ञान ध्यान में लगे रहते। उन्हें इबादत का तरीक़ा अगरचा नहीं मालूम था परंतु आपने कभी शिर्क नहीं किया, कभी मूर्ति पूजा नहीं की, कभी किसी बूत के सामने दंडवत नहीं किया बल्कि आप मुसलसल हक़ की तलाश में थे। इसी सिलसिले में क़ुरआन में आया है। 

وَوَجَدَكَ ضَآلّٗا فَهَدَىٰ 

"हमने तुम्हें हक़ की तलाश में सिर खपाते पाया तो आप को हिदायत दी।" (सूरह 93 अज़ ज़ुहा आयत 7)

 

एक पत्नी का आचरण और अख़लाक़ कैसा होना चाहिए उसका नमूना ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की ज़िंदगी से मिलता है। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ग़ारे हिरा में थे कि अचानक एक फ़रिश्ता ज़ाहिर होता है और उनसे कहता है ٱقۡرَأۡ "पढ़" मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जवाब देते हैं مَا أَنَا بِقَارِئٍ "मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं" फ़रिश्ते ने उन्हें पकड़ा और अपनी तरफ़ इस क़दर भेंचा कि आप की ताक़त जवाब देने लगी फिर छोड़ा और कहा ٱقۡرَأۡ "पढ़" मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जवाब देते हैं مَا أَنَا بِقَارِئٍ "मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं" ऐसा तीन बार हुआ तीसरी बार भेंचा और फिर छोड़ते हुए कहा 

ٱقۡرَأۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلَّذِي خَلَقَ  خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِنۡ عَلَقٍ  ٱقۡرَأۡ وَرَبُّكَ ٱلۡأَكۡرَمُ  ٱلَّذِي عَلَّمَ بِٱلۡقَلَمِ  عَلَّمَ ٱلۡإِنسَٰنَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡ 

"पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया इंसान को लोथड़े से पैदा किया पढ़ो और तेरा रब बड़ा करीम है जिसने क़लम के ज़रिए सिखाया और इंसान को वह सिखाया जो वह न जानता था।" (सूरह 97 अल अलक़ आयत 1 से 5)


मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जब ग़ारे हिरा से लौटे तो आप का दिल इस अनोखे ख़ौफ़ से कांप रहा था आप जल्दी जल्दी ख़दीजा के पास तशरीफ़ लाए और बोले मुझे कम्बल ओढ़ाओ, कम्बल ओढ़ाओ। आपको कंबल ओढ़ा दिया गया जब आपका डर जाता रहा तो आपने अपनी बीवी ख़दीजा को विस्तार से पूरा वाक़िआ सुनाया और कहने लगे मुझे अपनी जान के बारे में ख़तरा महसूस होता है आपकी बीवी ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने आप को ढारस बधाई और कहा आपका यह अंदेशा सही नहीं है अल्लाह की क़सम, आपको अल्लाह कभी ज़लील नहीं होने देगा आप तो अख़लाक़ के उच्चतम स्थान पर हैं। आप तो ख़ानदान के लोगों का ख़्याल रखते हैं, बेसहारा लोगों के सहारा बनते हैं, निर्धन लोगों की सहायता करते हैं, मेहमानों को सम्मान देते हैं, मुश्किल समय में आप हक़ का साथ देते हैं, ऐसे अच्छे चरित्र वाला इंसान कभी ज़िल्लत और रुसवाई की मौत का शिकार नहीं हो सकता। 

फिर और तसल्ली के लिए ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा आप को अपने चचा के बेटे वरक़ा बिन नौफ़ल के पास ले गईं। यह जाहिली दौर में ईसाईयत क़ुबूल कर चुके थे और इंजील को इबरानी ज़बान में लिखते थे। उस समय बहुत बूढ़े और अंधे हो चुके थे। ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने उनके सामने आप के बारे में विस्तार से बताया और कहा ज़रा अपने भतीजे की ज़बानी उनकी कैफ़ियत सुन लीजिए। वह बोले भतीजे जो कुछ देखा है उसे विस्तार से बताओ चुनांचे आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूरा वाक़िआ सुनायाउस जिसे सुनकर वरक़ा बिन नौफ़ल बोल उठे "यह तो वही नामूस (नामूस उस राज़ जानने वाले को कहते हैं जो उसकी भी ख़बर दे जिसे लोगों से छुपाया गया हो) है जिसे अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम पर वही देकर भेजा था। काश मैं उस समय जवान होता, काश उस समय मैं जीवित रहता जब आप की क़ौम आप को इस शहर से निकाल देगी। 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तअज्जुब से पूछा, क्या वास्तव में यह लोग मुझे यहां से निकाल देंगे? 

वरक़ा बोले हां, यह बिल्कुल सच है। जो शख़्स भी अल्लाह का यह पैग़ाम लेकर आया लोग उसके दुश्मन हो गए अगर मुझे आप का ज़माना मिला तो मैं ज़रूर आप की मदद करूंगा मगर कुछ दिन बाद ही वरक़ा की मौत हो गई।

(सही बुख़ारी 03/ किताब बदइल वही, 3392/किताब अहादीसुल अंबिया)


नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तौहीद की आम दावत का ऐलान क्या किया कि मक्का के लोग जो उन्हें सादिक़ और अमीन कहते थे शत्रु हो गए। वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तरह-तरह से सताने और मज़ाक उड़ाने लगे, रोज़ाना उनको नीचा दिखाने और उनके काम को रोकने के लिए मशविरे होते, क़त्ल करने की साज़िशें होती। एक बार कुफ़्फ़ारे मक्का ने आपस में मशविरे से बनी हाशिम का हुक्का पानी बंद (मुकम्मल बायकॉट) करने की योजना बनाई और एक दस्तावेज़ लिखी गई जिसमें मुआहिदा किया गया कि जब तक बनी हाशिम मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हमारे हवाले नहीं कर देते कि हम उन्हें क़त्ल करके इस नए दीन को मिटा दें तब तक उनसे हर प्रकार का लेनदेन, व्यापार, शादी विवाह, तथा तमाम संबंध ख़त्म रहेंगे, इस दस्तावेज़ को ख़ाना ए काबा में लटकाया गया। इस बॉयकॉट के कारण अबू तालिब तमाम बनी हाशिम के साथ (अबू लहब के इलावा) एक घाटी में चले गए वह घाटी शेअबे अबि तालिब (अबू तालिब की घाटी) के नाम से प्रसिद्ध थी, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ से इस घाटी में रहीं।वह चाहतीं तो यह कह कर अलग हो सकती थीं कि यह आपने बैठे बिठाये क्या मुसीबत मोल ले ली है, इस तहरीक को छोड़-छाड़ कर सुकून से जीवन गुज़ारना चाहिए लेकिन ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने इन बातों की परवाह नहीं की, उन्हें परवाह थी तो केवल इस बात की कि अल्लाह का रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर किसी प्रकार की आंच न आए। तीन वर्ष तक वह सबके साथ हर प्रकार के दुख सहती और तकलीफ़ बर्दाश्त करती रहीं जब कोई तिजारती क़ाफ़िला आता तो क़ुरैश विशेष अबू जहल उन तक पहुंचने नहीं देता और उनका सामान भारी रक़म देकर ख़रीद लेता जिसके कारण भूखमरी की नौबत आ गई लोग पत्ते चबाने और चमड़ा भून भून कर खाने पर मजबूर हुए। इस सोशल बॉयकॉट के ज़माने में कुछ लोगों ने बनी हाशिम के यहां खाने-पीने का सामान पहुंचाया उनमें एक अहम ज़रिआ ख़दीजा भी थीं। उनके भतीजे हकीम बिन हिज़ाम जो बाद में ईमान लाए वह कभी कभी ग़ल्ला पहुंचाया करते थे कई बार इस मामले में अबू जहल से उनकी झड़प भी हुई। तीन वर्ष के बाद यह सोशल बॉयकॉट समाप्त हुआ और बनी हाशिम ने आज़ादी के वातावरण में सांस ली लेकिन वैसे ही नबी सल्ला वसल्लम के चचा अबू तालिब का इंतेक़ाल हो गया अभी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस सदमे से निकल भी न पाए थे कि ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की भी मृत्यु हो गई। इन दो मौतों के कारण नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत दुख पहुंचा और आपने इसे आमुल हुज़्न (ग़म का वर्ष) क़रार दिया।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दावत के विशेष तौर पर तीन हिमायती थे जिसके कारण कुफ़्फ़ारे मक्का की नुक़सान पहुंचाने की तमाम योजनाएं फ़ेल हो जाती थीं उनमें एक शख़्सियत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु की थी जिनके बारे में ज़्यादातर लोग भलि भांति जानते हैं, दूसरी शख्सियत अबू तालिब की थी जिन्होंने इस्लाम तो नहीं क़ुबूल किया था लेकिन वह बनी हाशिम के सरदार थे जिसके कारण लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हाथ डालते हुए डरते थे और उन्होंने अपने भतीजे यानी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आज़ादी दे रखी थी कि बेटे अपना काम करते रहो मैं तुम्हारे साथ हूं।

तीसरी शख़्सियत उम्मुल मुमेनीन ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की थी जिनकी हस्ती इस्लाम की राह में दूध में घी की तरह शामिल रही। दूध में घी किसी को नज़र नहीं आता लेकिन दूध की असल ताक़त ही घी के कारण होती है यही हाल ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा का था जो महिला होने की हैसियत से उस चश्मे की तरह थी जो ज़मीन के अंदर अंदर बहता है और पेड़ की जड़ को मज़बूत बनाता है लेकिन नज़र नहीं आता। वह इस्लाम के मामले में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्ची सलाहकार थीं।

चचा अबू तालिब और और उम्मुल मुमेनीन ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की वजह से कुफ़्फ़ारे मक्का नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हाथ डालते हुए झिझकते थे लेकिन उन दोनों की मृत्यु के उपरांत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जान से मारने की योजना बनाई जाने लगी, नमाज़ की हालत में गर्दन पर ओझड़ी डालना, रास्ते में कांटा बिछाना, गले में चादर लपेट कर खींचना, कूड़ा करकट फेंकना, ख़ुदा और जिब्रील को गाली देना, तायेफ़ का सफ़र वहां पथराव पूरा शरीर ख़ून ख़ून होना यह तमाम वाक़िआत उसी दौर में पेश आये। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल की योजना बनाई गई उसी दौरान आपको मदीना हिजरत का आदेश मिला और फिर आपने मदीना पहुंच कर एक इस्लामिक स्टेट की स्थापना की।

"ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा जब तक जीवित रहीं आप ने दूसरा निकाह नहीं किया।" (सही मुस्लिम 6281, 6282/) 


नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुल ग्यारह निकाह किये लेकिन ख़दीजा के इलावा किसी से कोई औलाद न हुई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़दीजा से दो बच्चे क़ासिम,तथा अब्दुल्लाह, और चार बच्चियां ज़ैनब, रुक़य्या, उम्मे कुलसूम और फ़ातिमा पैदा हुईं। दोनों बच्चों का तो बचपन में ही देहांत हो गया परंतु बच्चियां बड़ी हुई अलबत्ता ज़ैनब, रुक़य्या और उम्मे कुलसूम का इंतेक़ाल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन मे ही हो गया था जबकि छोटी बेटी फ़ातिमा का इंतेक़ाल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मृत्यु के छः महीने बाद हुआ।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अगरचे ग्यारह निकाह किये लेकिन ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने जिस प्रकार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सहायता की, हर मौक़ा पर आपका ग़म दूर किया, आपके लिए ढाल बनी रहीं और इस्लाम के लिए जान माल का महत्वपूर्ण योगदान दिया उसके कारण नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें बराबर याद करते रहे ख़ुद उम्मुल मुमेनीन आयशा सिद्दीका रज़ि अल्लाहु अन्हा ने बयान किया:

"मुझे किसी औरत पर इतना रश्क नहीं आता था जितना ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा पर आता था हालांकि मेरी शादी से तीन साल पहले उनका इंतेक़ाल हो चुका था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मैं बहुत ज़्यादा उनका ज़िक्र करते सुनती थी।" (सही बुख़ारी 3819, 3820, 6004/ किताब मनाक़िबिल अंसार, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की शादी और उनकी फ़ज़ीलत का बयान)

"एक मौके पर ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की प्रशंसा करते हुए फ़रमाया: ख़दीजा तो उस समय ईमान लाईं जब लोग इनकार करते थे, उस समय तस्दीक़ की जब लोग मुझे झुठलाते थे, उस समय माल दिया जब लोगों ने मुझे महरूम कर रखा था और मेरी औलादें भी उन्हीं से हुईं।" (मुसनद अहमद 10560/ बाक़ी मुसनदुल अंसार, सैयदा आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा की हदीस)

 ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा से आप को बेपनाह मुहब्बत थी उनकी मृत्यु के बाद न केवल उनको जीवन भर याद करते रहे बल्कि उनके रिश्तेदारों, सहेलियों और मिलने जुलने वालियों का किस का किस क़दर ख़्याल रखते कि इसका अंदाज़ा इन निम्नलिखित वाक़िआत से लगाया जा सकता है।

आयेशा सिद्दिक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा बयान करती हैं, "कभी बकरी ज़बह होती तो टुकड़े करके ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की सहेलियों को ज़रूर भेजते थे। कभी कभी मैं कहती कि "जैसे दुनिया मे ख़दीजा से बेहतर कोई औरत ही नहीं है" आप फ़रमाते वह ऐसी थीं और ऐसी थीं और उन्हीं से मेरे औलाद भी है।" (सही बुख़ारी 3816, 3818 / किताब मनाक़िबिल अंसार, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की शादी और उनकी फ़ज़ीलत का बयान) 


अनस बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि "जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कोई चीज़ आती तो आप फ़रमाते हैं ले जाओ इसे फ़ुलाना को दे दो क्योंकि वह ख़दीजा की सहेली थी इसे फ़ुलाना के पास दे दो क्योंकि वह ख़दीजा से मुहब्बत करती थी।" (अस सिलसिला अस सहीहा 3531)


एक बार ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की बहन हाला बिन्ते ख़ुवैलिद रज़ि अल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलने आईं और अनुमति मांगी तो आपको ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की अदा याद आ गई आप चौंक उठे और फ़रमाया या अल्लाह यह तो हाला हैं। आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मुझे इस पर बड़ी ग़ैरत आई और मैंने कहा आप किस बुढ़िया का ज़िक्र किया करते हैं जिसके मसूड़ों में भी दातों के टूट जाने की वजह से केवल लाली बाक़ी राह गई थी और जिसकी मौत को भी एक ज़माना गुज़र कर चुका है अल्लाह तआला ने आपको उससे बेहतर बीवी दे दी है। (सही बुख़ारी 3821/ किताब मनाक़िबिल अंसार, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की शादी और उनकी फ़ज़ीलत का बयान)


आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने बयान किया कि, "एक बूढी औरत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई आप मेरे पास थे। रसूलुल्लाह ने पूछा तुम कौन हो उसने कहा मैं जुसामा मुज़निया हूं। आपने फ़रमाया नहीं बल्कि तुम हस्साना मुज़निया हो। कहो तुम कैसी हो? तुम्हारा क्या हाल है? हमारे बाद तुम्हारा क्या बना, उसने कहा सब ख़ैरियत है। जब वह चली गई तो मैंने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल आप इस बूढी औरत पर इतनी तवज्जुह क्यों दे रहे थे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "ख़दीजा के ज़माने में हमारे यहां आया करती थी और अच्छा व्यवहार ईमान का हिस्सा है।" (अस सिलसिला अस सहीहा 1949)


जंगे बद्र के मौके पर जहां बहुत से काफ़िर क़ैदी बनाये गए उनमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दामाद अबुल आस भी थे जो उस समय तक ईमान नहीं लाये थे। दूसरे क़ैदियों की तरह उनसे भी फ़िदिया तलब किया गया तो ज़ैनब ने एक हार भेजा जब उस हार पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़र पड़ी तो आप को ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की याद आ गईं और आप की आंखों में आंसू आ गए। वह हार ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की निशानी थी जिसे उन्होंने ने अपनी बेटी को उनके विवाह के समय दिया था। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से कहा अगर चाहो तो इस हार के बदले में छोड़ दो और अगर चाहो तो वैसे छोड़ दो चुनांचे सहाबा ने अबुल आस को बग़ैर फ़िदिया के छोड़ दिया और हार ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा को वापस कर दिया। (सुनन अबु दाऊद 2692/ मुसनद अहमद 5092, मिश्कातुल मसाबीह 3970)


उम्मुल मुमेनीन ख़दीजा ने जो इस्लाम की सेवा तन मन धन से की और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जिन हालात में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम साथ दिया तो उनका यह अमल इतना पसंद आया कि "जिब्रील अलैहिस्सलाम रसूलुल्लाह के पास आये और कहा, ख़दीजा आप के पास एक बर्तन लिये आ रही हैं जिसमें सालन या खाने पीने की कोई चीज़ है जब वह आप के पास आएं तो उन्हें उनके रब की जानिब से और मेरी तरफ़ से सलाम पहुंचा दें और उन्हें जन्नत में मोतियों के एक महल की ख़ुशख़बरी सुना दीजिए जहां न कोई शोर शराबा होगा, न कोई तकलीफ़ और थकावट होगी।" (सही बुख़ारी 3819, 3820, 6004/ किताब मनाक़िबिल अंसार, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की शादी और उनकी फ़ज़ीलत का बयान)


और उन्हें संसार की बेहतरीन औरत क़रार दिया गया।

خَيْرُ نِسَائِهَا خَدِيجَةُ بِنْتُ خُوَيْلِدٍ وَخَيْرُ نِسَائِهَا مَرْيَمُ ابْنَةُ عِمْرَانَ

"बेहतरीन औरत ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद हैं और बेहतरीन औरत मरयम बिन्ते इमरान हैं।" (सही बुख़ारी 3432, 3815/किताब अहादीसुल अंबिया सूरह मरयम आयत .... के तहत, सही मुस्लिम 6271, तिर्मिज़ी 3877)


حَسْبُكَ مِنْ نِسَاءِ الْعَالَمِينَ مَرْيَمُ ابْنَةُ عِمْرَانَ وَخَدِيجَةُ بِنْتُ خُوَيْلِدٍ وَفَاطِمَةُ بِنْتُ مُحَمَّدٍ وَآسِيَةُ امْرَأَةُ فِرْعَوْنَ

"तमाम दुनिया की औरतों में मरयम बिन्ते इमरान, ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद, फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद और फ़िरऔन की बीवी आसिया तुम्हारे लिए काफ़ी हैं(जामे तिर्मिज़ी 3878/ किताबुल मनाक़िब अन रसूलिल्लाह ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत के विषय में, मिश्कातुल मसाबीह 6190)


ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा अपनी बे पनाह कुर्बानियों के बदौलत ही जन्नत में औरतों की सरदार होंगी। जन्नत में सरदार से संबंधित निम्नलिखित रिवायात हैं,

سَيِّداتُ نِسَاءِ أَهْلِ الْجَنَّةِ بَعْدَ مَرْيَمَ بنتِ عِمْرَانَ، فَاطِمَةُ، وَخَدِيجَةُ، وَآسِيَةُ امْرَأَةُ فِرْعَوْنَ .

"जन्नत में औरतों की सरदार मरयम बिन्ते इमरान के बाद फ़ातिमा, ख़दीजा और फ़िरऔन की बीवी आसिया होंगी।" (अस सिलसिला अस सहीहा 3507)


خَطَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي الْأَرْضِ أَرْبَعَةَ خُطُوطٍ قَالَ تَدْرُونَ مَا هَذَا فَقَالُوا اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَعْلَمُ فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَفْضَلُ نِسَاءِ أَهْلِ الْجَنَّةِ خَدِيجَةُ بِنْتُ خُوَيْلِدٍ وَفَاطِمَةُ بِنْتُ مُحَمَّدٍ وَآسِيَةُ بِنْتُ مُزَاحِمٍ امْرَأَةُ فِرْعَوْنَ وَمَرْيَمُ ابْنَةُ عِمْرَانَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُنَّ أَجْمَعِينَ

रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़मीन पर चार लकीरें खींची और पूछा क्या तुम जानते हो यह क्या है? लोगों ने कहा अल्लाह और अल्लाह के रसूल को बेहतर पता है फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:

"जन्नत की औरतों में ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद, फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद, आसिया बिन्ते मुज़ाहिम और मरयम बिन्ते इमरान।" (अस सिलसिला अस सहीहा 3470, मुसनद अहमद 10557)


سَيِّدَاتُ نِسَاءِ الْجَنَّةِ أَرْبَعٌ مَرْيَمُ بِنْتُ عِمْرَانَ وَخَدِيجَةُ بِنْتُ خُوَيْلِدٍ وَفَاطِمَةُ ابْنَةُ مُحَمَّدٍ وَآسِيَةُ"

"जन्नत की औरतों में चार सरदार होंगी मरयम बिन्ते इमरान, फ़ातिमा बिन्ते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद, और आसिया होंगी।" (मुस्तदरक हाकिम 4853, मुसनद अहमद 10412/ मुसनद बनी हाशिम, अब्दुल्लाह बिन अब्बास)


आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

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3 टिप्पणियाँ

  1. Agar hzt. Abu talib ne Islam qubool nhi kiya tha to Rasool khuda aur janabe khadija ka nikha kyse parha diya ,ek kafir nikah kyse parha sakta h ,dusri baat rasool khuda ki bas ek beti aur ek hi damad the hzt.Ali jinhone sbse pehle Islam qubool kiya tha aur wahi rasool khuda k sath shana ba shana rhe akhiri waqt tk

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  2. ‏اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎
    ye post Quran aur sahih ahadees ki roshni mein tayyar ki gai hai with referece. Baki sawalon ke jawab ke liye hamse whatsapp par contact karein...

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  3. खदीजा बिन्ते खुवैलिद की जात ऐ अकदस पे लाखो सलाम

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