Sacche paigambar hone ka saboot

 

Sacche paigambar hone ka saboot


हजरत मुहम्मद ﷺ के अल्लाह के पैग़म्बर होने के सबूत


हजरत मुहम्मद ﷺ का अनपढ़ होना, उनके सच्चे पैगम्बर होने का सबूत है


मुहम्मद (ﷺ) अनपढ़ थे। आप (ﷺ) के वतन के लोग और रिश्ते और बिरादरी के लोग जिनके बीच जन्म के दिन से अधेड़ उम्र को पहुँचने तक आप (ﷺ) की सारी ज़िन्दगी गुज़री थी, इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि मुहम्मद (ﷺ) ने उम्र भर न कभी कोई किताब पढ़ी, न क़लम हाथ में लिया। इसके बावजूद भी मुहम्मद ﷺ ने एक ऐसा कलाम लोगों के सामने पेश किया जिसके जैसा कलाम कोई इंसान तो क्या, सब इंसान मिलकर भी बैठ जाए तो उसके जैसा कलाम नहीं ला सकते। उस कलाम यानी कुरआन में खुद सब इंसानों को उसके जैसा बनाकर लाने का चैलेंज मौजूद है।


وَ اِنۡ کُنۡتُمۡ فِیۡ رَیۡبٍ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلٰی عَبۡدِنَا فَاۡتُوۡا بِسُوۡرَۃٍ مِّنۡ مِّثۡلِہٖ ۪ وَ ادۡعُوۡا شُہَدَآءَکُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ ﴿۲۳﴾ فَاِنۡ لَّمۡ تَفۡعَلُوۡا وَ لَنۡ تَفۡعَلُوۡا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِیۡ وَقُوۡدُہَا النَّاسُ وَ الۡحِجَارَۃُ ۚ ۖ اُعِدَّتۡ لِلۡکٰفِرِیۡنَ ﴿۲۴﴾

"और अगर तुम्हें इस मामले में शक है कि ये किताब जो हमने अपने बन्दे पर उतारी है, ये हमारी है या नहीं, तो इस जैसी एक ही सूरा बना लाओ, अपने सारे हिमायतियों को बुला लो, एक अल्लाह को छोड़कर बाक़ी जिसकी चाहो मदद ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो ये काम करके दिखाओ।

लेकिन अगर तुमने ऐसा न किया, और यक़ीनन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे इन्सान और पत्थर, जो तैयार की गई है हक़ का इनकार करने वालों के लिये।"

[कुरआन 2:23-24]


यहां थोड़ा गौर कीजिए कि एक ऐसा कलाम जिसके जैसा दुनिया के सारे इंसान मिलकर भी नहीं बना सकते, उस कलाम के बारे में ये सोचना की एक अनपढ़ शख्स ने उसे अपने पास से लिखकर दुनिया को बता दिया तो इससे बड़ी बेवाकूफी वाली बात और कोई नहीं हो सकती है। इसलिए ही अल्लाह कुरआन में मुहम्मद ﷺ के अनपढ़ होने को इस बात के सबूत के तौर पर पेश करते है कि वह सच्चे पैगम्बर है। और इन्हे ये कलाम हमारी तरफ से मिल रहा है।


وَ مَا کُنۡتَ تَتۡلُوۡا مِنۡ قَبۡلِہٖ مِنۡ کِتٰبٍ وَّ لَا تَخُطُّہٗ بِیَمِیۡنِکَ اِذًا لَّارۡتَابَ الۡمُبۡطِلُوۡنَ ﴿۴۸﴾

"(ऐ मुहम्मद ﷺ) तुम इससे पहले कोई किताब नहीं पढ़ते थे और न अपने हाथ से लिखते थे, अगर ऐसा होता तो बातिल-परस्त (असत्यवादी) लोग शक में पड़ सकते थे।"

[कुरआन 29: 48]


इस आयत में दलील की बुनियाद ये है कि मुहम्मद (ﷺ) अनपढ़ थे। और मुहम्मद (ﷺ) ने उम्र भर न कभी कोई किताब पढ़ी, न क़लम हाथ में लिया।

इस हक़ीक़त को पेश करके अल्लाह फ़रमाता है कि ये इस बात का खुला हुआ सुबूत है कि आसमानी किताबों की तालीमात, पिछले नबियों के हालात, दूसरे मज़हबों के अक़ीदों, पुरानी क़ौमों के इतिहास, और रहन-सहन, अख़लाक़ और मईशत के अहम् मसलों पर जिस फैले हुए और गहरे इल्म का इज़हार इस उम्मी (अनपढ़) की ज़बान से हो रहा है, ये उसको वह्य (प्रकाशना) के सिवा किसी दूसरे ज़रिए से हासिल नहीं हो सकता था। अगर इसको लिखना-पढ़ना आता होता और लोगों ने कभी इसे किताबें पढ़ते, मुताला और तहक़ीक़ करते देखा होता तो बातिल परस्तों (हक़ के इंकारियों) के लिये शक करने की कुछ बुनियाद हो भी सकती थी कि ये इल्म वह्य से नहीं बल्कि अपनी मेहनत से या कहीं और से हासिल किया गया है। लेकिन उसके उम्मी (अनपढ़) होने ने तो ऐसे किसी शक के लिये नाम की भी कोई बुनियाद बाक़ी नहीं छोड़ी है। अब ख़ालिस हठधर्मी के सिवा मुहम्मद ﷺ की पैग़म्बरी का इनकार करने की और कोई वजह नहीं है जिसे किसी दर्जे में भी मुनासिब और अक़ल के मुताबिक़ कहा जा सकता हो।

मुहम्मद ﷺ अनपढ़ होने के बावजूद कुरआन जैसा कलाम पेश करना किसी चमत्कार से कम नहीं है इसलिए अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ के अनपढ़ होने को रोशन निशानी बताया है:


بَلۡ ہُوَ اٰیٰتٌۢ بَیِّنٰتٌ فِیۡ صُدُوۡرِ الَّذِیۡنَ اُوۡتُوا الۡعِلۡمَ ؕ وَ مَا یَجۡحَدُ بِاٰیٰتِنَاۤ اِلَّا الظّٰلِمُوۡنَ ﴿۴۹﴾

"असल में ये रौशन निशानियाँ हैं उन लोगों के दिलों में जिन्हें इल्म दिया गया है, और हमारी आयतों का इनकार नहीं करते मगर वो जो ज़ालिम हैं।"

[कुरआन 29: 49]


एक उम्मी (अनपढ़) शख्स का क़ुरआन जैसी किताब पेश करना और अचानक उन ग़ैर-मामूली और इन्तिहाई ख़ूबियों को ज़ाहिर करना जिनके लिये किसी पहले से की गई तैयारी के आसार कभी किसी के देखने में नहीं आए, यही समझ-बूझ रखनेवालों की निगाह में उसकी पैग़म्बरी की दलील देनेवाली सबसे रौशन निशानियाँ हैं। दुनिया की तारीख़ी हस्तियों में से जिसके हालात का भी जायज़ा लिया जाए, आदमी उसके अपने माहौल में उन अस्बाब का पता चला सकता है जो उसकी शख़्सियत बनाने और उससे ज़ाहिर होनेवाले कमालात के लिये उसको तैयार करने में लगे हुए थे। उसके माहौल में और इस बात में कि उसकी शख़्सियत किन-किन चीज़ों से वुजूद में आई है खुली मुनासिबत पाई जाती है। लेकिन मुहम्मद (ﷺ) की शख़्सियत से जो हैरतअंगेज़ कमालात ज़ाहिर हो रहे थे, आप (ﷺ) के माहौल में इस बात को तलाश नहीं किया जा सकता कि वो कमालात और ख़ूबियाँ उन्हें कैसे हासिल हुईं। यहाँ न उस वक़्त के अरब समाज में, और न आसपास के जिन देशों से अरब के ताल्लुक़ात थे उनके समाज में, कहीं दूर-दराज़ से भी वो चीज़ें ढूँढकर नहीं निकाली जा सकतीं जो मुहम्मद (ﷺ) की शख़्सियत के अन्दर पाई जानेवाली बातों से किसी तरह मेल खाती हों। यही हक़ीक़त है जिसकी बुनियाद पर कुरआन में कहा गया है कि मुहम्मद (ﷺ) का वुजूद एक निशानी नहीं बल्कि बहुत सी रोशन निशानियों का मज्मूआ है। जाहिल आदमी को इस में कोई निशानी नज़र न आती हो तो न आए, मगर जो लोग इल्म रखनेवाले हैं वो इन निशानियों को देखकर अपने दिलों में कहने लगे हैं कि ये शान एक पैग़म्बर ही की हो सकती है।

मुहम्मद ﷺ का अनपढ़ होना एक रोशनी निशानी है लेकिन फिर भी हक़ का इंकार करने वालों का मुतालवा यह रहा है कि मुहम्मद ﷺ पर कोई निशानी क्यों न उतारी गई। 


وَ قَالُوۡا لَوۡ لَاۤ اُنۡزِلَ عَلَیۡہِ اٰیٰتٌ مِّنۡ رَّبِّہٖ ؕ قُلۡ اِنَّمَا الۡاٰیٰتُ عِنۡدَ اللّٰہِ ؕ وَ اِنَّمَاۤ اَنَا نَذِیۡرٌ مُّبِیۡنٌ۰

ये लोग कहते हैं कि “क्यों न उतारी गईं इस शख़्स पर निशानियाँ इसके रब की तरफ़ से?” कहो, “निशानियाँ तो अल्लाह के पास हैं और मैं सिर्फ़ ख़बरदार करनेवाला हूँ खोल-खोलकर।”

[कुरआन 29:50]


लोगों के निशानी मांगने के जवाब में अल्लाह ने कहा की मुहम्मद ﷺ अनपढ़ (उम्मी) होने के बावजूद मुहम्मद ﷺ पर क़ुरआन जैसी किताब का उतरना, क्या ये अपनी जगह ख़ुद इतना बड़ा मोजिज़ा (चमत्कार) नहीं है कि तुम्हारे पैग़म्बर होने पर यक़ीन लाने के लिये ये काफ़ी हो?

इसके बाद भी किसी और मोजिज़े की ज़रूरत बाक़ी रह जाती है?

दूसरे मोजिज़े तो जिन्होंने देखे उनके लिये वो मोजिज़े थे। मगर ये मोजिज़ा तो हर वक़्त तुम्हारे सामने है। तुम्हें आए दिन पढ़कर सुनाया जाता है। तुम हर वक़्त उसे देख सकते हो।

अल्लाह फरमाता है:


اَوَ لَمۡ یَکۡفِہِمۡ اَنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا عَلَیۡکَ الۡکِتٰبَ یُتۡلٰی عَلَیۡہِمۡ ؕ اِنَّ فِیۡ ذٰلِکَ لَرَحۡمَۃً وَّ ذِکۡرٰی لِقَوۡمٍ یُّؤۡمِنُوۡنَ ﴿۵۱﴾                

"और क्या इन लोगों के लिये ये (निशानी) काफ़ी नहीं है कि हमने तुमपर किताब उतारी जो इन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? हक़ीक़त में इसमें रहमत है और नसीहत उन लोगों के लिये जो ईमान लाते हैं।"

[कुरआन 29: 51]


बेशक इस किताब (यानी कुरआन) का उतरना अल्लाह की बहुत बड़ी मेहरबानी है और इसमें बन्दों के लिये बड़ी नसीहतें हैं, मगर इसका फ़ायदा सिर्फ़ वही लोग उठा सकते हैं जो इसपर ईमान लाएँ।


By- इस्लामिक थियोलॉजी

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