Qayamat ki nishaniyan (series-3): choti nishaniyan (1)

Qayamat ki nishaniyan (series-3): choti nishaniyan


क़यामत की निशानियां सीरीज-3


Table of Contents
क़यामत की छोटी निशानियां (पार्ट 01)


क़यामत की छोटी निशानियां (पार्ट 01)


1. शक़्क़ुल कमर (चाँद के दो टुकड़े होना):

अल्लाह तआला फ़रमाता है:

"क़यामत करीब आ गई है और चांद फट गया। मगर इन लोगों का हाल ये है कि चाहे कोई निशानी देख लें मुँह मोड़ जाते हैं और कहते हैं ये तो चलता हुआ जादू है।"

[सूरह कमर 01-02]


हदीस 01:

"मक्का वालों ने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से कहा था कि उन्हें कोई मोजज़ा दिखाएँ तो आप (सल्ल०) ने चाँद के दो टुकड़े का मोजज़ा यानी चाँद का फट जाना उन को दिखाया।"

[सहीह बुखारी 3637]


हदीस 02:

नबी अकरम (सल्ल०) के ज़माना में चाँद फट कर दो टुकड़े हो गया, एक टुकड़ा इस पहाड़ पर और एक टुकड़ा उस पहाड़ पर, उन लोगों ने कहा : मुहम्मद (सल्ल०) ने हमपर जादू कर दिया है। लेकिन उन्हीं में से कुछ ने (इसकी तरदीद की) कहा : अगर उन्होंने हमें जादू कर दिया है तो (बाहर के) सभी लोगों को जादू के नीचे असर नहीं ला सकते।

[तिरमिज़ी 3289]


फायदे:

(01) चांद के दो टुकड़े होना एक हकीकी अम्र और नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का मौजज़ा ला जवाब था। 

(02) चांद के दो टुकड़े होने को कयामत की निशानी कहा गया। 

(03) कुफ्फार ने उसे जादू कहकर इंकार कर दिया। 

(04) कयामत की यह निशानी वाकेअ (गुज़र ) हो चुकी है। 


2. नबी अलैहिस्सलाम की वफ़ात:

ऑफ बिन मालिक कहते हैं,

"मैं ग़ज़वाए-तबूक के मौक़े पर नबी करीम (सल्ल०) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ आप उस वक़्त चमड़े के एक ख़ेमे मैं तशरीफ़ फ़रमा थे।" 
आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि क़ियामत की छः निशानियाँ गिनती कर लो "मेरी मौत"

[सहीह बुखारी 3176]


नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हमारी तरफ निकले और फरमाया:

"क्या तुम ख्याल रखते हो कि मैं तुम सब में आखरी में वफात पाऊंगा? खबरदार मै तुमसे पहले ही वफात पा जाऊंगा फिर तुम गिरोह दर गिरोह मेरे पीछे आओगे जबकि तुम आपस में एक दूसरे को हलाक करोगे।"

[मुसनद अहमद 17019]


फायदा:

(01) नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात कयामत की एक अलामत है। 

(02) दुनियादारी पानी है जिसमें दूसरे इंसानों की तरह अंबिया की मौत भी बरहक है। जैसे कि 

अल्लाह ताला ने क़ुरान में फरमाया:

"ऐ नबी, हमने आपसे पहले भी किसी इंसान को हमेशगी (ज़िन्दगी) नहीं दी जब आप फोत होने वाले हैं तो क्या यह लोग हमेशा रहेंगे हर जान को मौत कूचने वाली है।" 

[सूरह अम्बिया 05, 34]

(03) साहबा किराम भी यह समझते थे के हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम फोत हो जाएंगे अलबत्ता बाज़ सहाबा के ज़हनो में यह बात ठीक है अल्लाह के रसूल कम से कम हमारे बाद सब के आखिर में फोत होंगे मगर नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने यह कहते हुए उनकी तरदीद(DENIED) कर दी बल्कि मैं तुमसे पहले फोत होने वाला हूँ। 

(04) दुनिया एक कैदखाना और आजमाइश का घर है जिस से गुजरने के लिए मौत का दरवाजा खटखटाया जाता है और हर और हर इंसान को इससे गुज़रना है। 

(05) हज़रत आयेशा रज़ि अन्हा फरमाती हैं:

(जब नबी करीम (सल्ल०) की वफ़ात पा गई) अबू-बक्र (रज़ि०) अपने घर से जो सुन्ह मैं था घोड़े पर सवार हो कर आए और उतरते ही मस्जिद में तशरीफ़ ले गए। फिर आप किसी से बातचीत किये बग़ैर आयशा (रज़ि०) के हुजरे में आए (जहाँ नबी करीम (सल्ल०) की लाश मुबारक रखी हुई थी।) और नबी करीम (सल्ल०) की तरफ़ गए। नबी करीम (सल्ल०) को बुरदे-हिबरा (यमन की बनी हुई धारी दार चादर) से ढाँक दिया गया था। फिर आप ने नबी करीम (सल्ल०) का चेहरा मुबारक खोला और झुक कर उसका बोसा लिया और रोने लगे। 

आप ने कहा, मेरे माँ-बाप आप पर क़ुरबान हों ऐ अल्लाह के नबी! अल्लाह तआला दो मौतें आप पर कभी जमा नहीं करेगा, सिवा एक मौत के जो आप के मुक़द्दर में थी सो आप वफ़ात पा चुके। 

अबू-सलमा ने कहा कि मुझे इब्ने-अब्बास (रज़ि०) ने ख़बर दी कि अबू-बक्र (रज़ि०) जब बाहर तशरीफ़ लाए तो उमर (रज़ि०) उस वक़्त लोगों से कुछ बातें कर रहे थे। हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि०) ने फ़रमाया कि बैठ जाओ। लेकिन उमर (रज़ि०) नहीं माने। फिर दोबारा आप ने बैठने के लिये कहा लेकिन उमर (रज़ि०) नहीं माने। आख़िर अबू-बक्र (रज़ि०) ने कलिमाए-शहादत पढ़ा तो तमाम मजमअ आपकी तरफ़ मुतवज्जेह हो गया और उमर (रज़ि०) को छोड़ दिया। 

आप ने फ़रमाया! अगर कोई शख़्स तुममें से मुहम्मद (सल्ल०) की इबादत करता था तो उसे मालूम होना चाहिये कि मुहम्मद (सल्ल०) की वफ़ात हो चुकी और अगर कोई अल्लाह तआला की इबादत करता है तो अल्लाह तआला बाक़ी रहने वाला है। कभी वो मरने वाला नहीं। 

अल्लाह पाक ने फ़रमाया है ''और मुहम्मद सिर्फ़ अल्लाह के रसूल हैं और बहुत से रसूल इससे पहले भी गुज़र चुके हैं।" ( الشاكرين) तक (आप ने आयत तिलावत की) क़सम अल्लाह की ऐसा मालूम हुआ कि अबू-बक्र (रज़ि०) के आयत की तिलावत से पहले जैसे लोगों को मालूम ही न था कि ये आयत भी अल्लाह पाक ने क़ुरआन मजीद में उतारी है। अब तमाम सहाबा ने ये आयत आप से सीख ली फिर तो हर शख़्स की ज़बान पर यही आयत थी।

[सहीह बुखारी 4454]


जुड़े रहें इंशाअल्लाह इस टॉपिक से जुड़ी बातो पर मज़ीद अगली पोस्ट में वज़ाहत करेंगे। 


आपका दीनी भाई
मुहम्मद

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...