Khuda mehshar me puchega? do saheliyon ki kahani

 

Khuda mehsar me puchega? do saheliyon ki kahani

खुदा महशर में पूछेगा


आसमान अपनी तारों से मुज़य्यन चादर लपेट चुका था, कायनात का चिराग धीरे-धीरे रोशनी के साथ अपने नूर से इस फानी दुनिया को मुनव्वर कर रहा था।

हुदा घर के सहन में बैठी चाय की चुस्की ले रही थी, हल्की हल्की चलती हवाएं, सहन में लगी हरियाली पेड़ पौधे गुलाब के फूल उसे मसरूर कर रहे थे, उस के सहन में आम का एक दरख़्त था वो गौर से उसे देखने लगी उसे कुछ सरसराहट महसूस हुई। उसे कुछ नजर आया था। वो खौफ जदा हुई, कहीं सांप......उसने लम्हे भर को सोचा और आगे बढ़ी "ओह ये तो एक नन्ही चिड़िया है" वो खुशी से उन्हे देखने लगी। एक चिड़िया अपने तीन बच्चो के साथ बैठी हुई उन्हे कुछ खिला रही थी जो वो अपने बच्चो के लिए बाहर से लाई थी। ये देख हुदा की आंखों में आंसू आने लगे। उसके नर्म रुखसारो पर अश्को का चश्मा बहने लगा, उसे कुछ याद आया था। उसे बहुत कुछ याद आया था। 

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क्या तुम्हे वाकई नही पता? अरे यार.... सब लोग जान चुके है अफेयर चल रहा है दोनो का अदीना के घर वालो को मालूम भी हो चुका। हुदा ने अपना बैग उतारते हुए कहा वो ज़बूर के घर पढ़ने आई थी ज़बूर के घर के आंगन में नीम के पेड़ के नीचे दोनो स्टडी किया करते थे दोनो में गहरी दोस्ती थी। 

"या खुदा! ये तो बहुत बुरा हुआ ज़बूर ने बड़े अफसोस से कहा..... अरे यार क्या बुरा हुआ.....बहुत अच्छा हुआ बहुत गुरूर था उसे अब झेले बदनामी उस सुमित के साथ... क्या? क्या? वाकई लड़का गैर मुस्लिम था? हां और वो दोनो भागने वाले थे पर लोगो ने पकड़ लिया। इतना कुछ हो गया और तुम्हे खबर तक नहीं। मुझे तो बिलकुल इल्म नहीं था या अल्लाह खैर कर हमारी मुस्लिम लड़कियों पर। इस के वालिदेन का क्या हाल होगा? हमे अदीना से बात करनी चाहिए। हां हां अब तुम अपना लेक्चर शुरू मत कर देना वो जाने हमे उस से क्या? बुराइयों से रोकना हमारा काम है हुदा"

"ओह प्लीज अब तुम फिर शुरू मत हो जाना, हुदा ने बड़ी बेजारी से कहा।" जबूर अदीना के मिजाज से वाकिफ थी वो खामोश हो गई। जबूर एक मजहबी लड़की थी, वो अंबियाई मिशन को लेकर इकामत ए दीन के फराइज अंजाम दे रही थी इंतिहाई खुश इखलाक, मिजाज और अपनी बातों से लोगो को मोह लेना उस की सरिशत में था भला क्यों न होता जो कलाम ए खुदा को आम करने उठा हो खुदा उस की जुबान में तासीर पैदा कर ही देता है। 

"तुम बैठो मैं चाय लेकर आती हूं", जबूर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, हां बेटा जरूर, बस अच्छी चाय बनाना और सुनो "गैस चालू करना मत भूलना" हुदा ने मजाक उड़ाते हुए कहा। हुदा भी हंस कर चली गई।

आज बाबा ने मुझे सोने की बालियां बनवाई है देखो.... चाय की चुस्की लेते हुए हुदा ने कहा ओहो माशाल्लाह बहुत प्यारी है। तुम्हारे लिए भी बनवा लूं? "नही, मुझे सोना चांदी पसंद नहीं", ज़बूर ने बेजारी से कहा। लेकिन क्यू? हुदा ने हैरानी से पूछा। क्योंकि मेरे नबी ﷺ ने अपनी बेटी के लिए इसे पसंद नहीं किया था फातिमा से मुंह मोड़ लिया था और कुरान में जब भी इसका जिक्र आया तो अल्लाह ने अज़ाब का ज़िक्र साथ किया और मुझे अजाब से डर लगता है। ओहो! बस भी करो, ये सब अल्लाह ने अपने बंदों की जीनत के लिए ही पैदा किया है‌ जबूर, तुम भी ना कुछ भी सोचती हो। हां हुदा बस अपनी अपनी सोच ही है अल्लाह दुनिया की ज़ाहिरी चमक दमक से बचाए। 

वैसे मेने ख्वाब देखा था मैं दुल्हन बनी हुई हूं, जबूर ने कुछ शरमाते हुए कहा। ओहो! मैडम जी की डोली उठेगी फिर तो मैं तुम्हे तुम्हारी शादी में हाथी दांत के कंगन बनाकर दूंगी, हुदा ने हंसते हुए कहा अरे वो भी तो महंगे होंगे। फिर सुनो मुर्गी के पंखों का हार बनाकर दूंगी। हुदा जोर जोर से हसने लगी थी जबूर भी हुदा के साथ हसने लगी। 

"वैसे जबूर मुझे समझ नही आता कि जब अल्लाह ने हमे पैदा किया हम उसकी इबादत भी करते है तुम भी और मैं भी फिर तुम में और मुझ में इतना फर्क क्यूं? तुम इतनी शिद्दत पसंद क्यूं हो?

मैं भी तो नमाज पढ़ती हूं बस कभी कभी फज्र या इशा छूट जाती है और जुमा तो बहुत पाबंदी से पढ़ती हूं फिर तुम इतनी बेचैन क्यूं रहती हो! इस्लाम को लेकर कौन बुरा करता है कौन अच्छा करता है ये अल्लाह को सब अपना अपना हिसाब देंगे तुम सब का हिसाब नही दोगी? हुदा ने ये सवाल तीन साल में दूसरी बार दोहराया था। 

"अल्लाह ने हमे पैदा जरूर किया लेकिन एक मकसद के साथ और वो रज़ा ए इलाही है। 

हां, मैं जानती हूं। हुदा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा और रज़ा ए इलाही तो हम भी करते है नमाज, कुरान, जकात सब तो फराइज़ अंजाम देते है। अब थोड़ा दुनिया का मजा ले ले तो ये कोई गुनाह नहीं न जबूर!

"हम्म्म बेशक गुनाह नही लेकिन रज़ा ए इलाही के लिए मिशन इलाही पर काम करना होगा तो रज़ा ए इलाही हासिल होगा न?

मिशन ए इलाही का मतलब?

वही जो कुरान कहता है, کنتم خیر امة اخرجت للناس "तुम वो बेहतरीन उम्मत हो लोगों के लिए तुम भलाई का हुक्म देती हो और बुराई से रोकती हो" कह कर अपना मकसद ए वजूद याद दिलाता हैं। 

बुराई देखना और अपनी जगह खामोश रहना ये बनी इसराइल के उन लोगो की तरह है जो बंदर बना दिए गए थे सिर्फ वो लोग बच गए थे जिन्होंने हुक्म माना भी और बुराई से रोका भी। 

हुदा बड़ी गौर से सुनने लगी थी। 

अच्छा ये बताओ हम में और जानवरों में क्या फर्क है?

जाहिर सी बात है वो सोचने समझने की सलाहियत नही रखते है और इंसान सोचने समझने की‌ सलाहियत रखते हैं, हुदा ने बड़ी तमानियत से कहा। 

"हम्म कुछ हद तक सही कहा लेकिन ये सलाहियत उनमें भी होती है बस ये लोग अहकाम ए इलाही के पाबंद नही होते है और इंसान और जिन्न अपने अमल में आजाद होते है कुछ सब्र शुक्र करने वाले होते है तो कुछ नाफरमन!

अच्छा वो देखो, नीम के दरख़्त पर इशारा कर के जबूर ने कहा, वो चिड़िया देख रही हो, वो अपने बच्चों को खिला रही है हमारे मां बाप ने भी हमे खिलाया पिलाया ये भी जिंदगी गुजारने के लिए गिजा पर इंहिसार करती है और हम भी, फिर हम में और इन चरिंद परिंद जानवरों में क्या फर्क रह गया? ये भी खाते पीते है, रिज्क की तलाश में रहते है और इंसान भी, फर्क बस इतना है कि हम अशरफुल मखलूकात है और खुदा की जमीन पर खुदा के कानून को नाफिज करने के लिए उठे है। 

हुदा टिकटिकी बांधे उस चिड़िया को देख रही थी वो अब अपने बच्चो को परों में समेट रही थी। 

हां‌‌, जबूर लेकिन ये काम आसान भी तो नहीं है लोग वैसे ही बदनाम करते है, बोहतान लगाते है, ताने देते है और फिर खूबियों पर पर्दा डाल कर बे वजह ऐब तलाश करते है। बहुत बुरे होते है लोग, हुदा ने बहुत उदासी से कहा।

'इज्जत और जिल्लत का मालिक अल्लाह है 'وتعز من تشاء وتذل من تشاء

लोग कुछ नही कर सकते अल्लाह ने अपने हबीब से कहा था, بلغ ما انزل الیک من ربك وان لم تفعل فما بلغت رسالتہ "ऐ पैगंबर जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ से नाजिल हो वो लोगो तक पहुंचा दो अगर तुम ने ऐसा न किया उसकी पैगंबरी का हक अदा न किया अल्लाह तुम को लोगो के शर से बचाने वाला है यकीन रखो कि वो काफिरों को (तुम्हारे मुकाबले में) कामयाबी की राह हरगिज़ न दिखाएगा (सूरह मायदा)

देखो तारीख गवाह है, बोहतान लगाने वाले, दावत ए इलाही में रुकावट बनने वाले, घर बैठे रहने वाले तमाशाइयो में तमाशाई बनने वालो का आज नाम ओ निशान भी नही है जबकि अल्लाह की राह में काम करने वालो को अल्लाह ने हमेशा दुनिया ओ आखिरत में इज्जत बख्शी उन का जिक्र बुलंद किया और उन की ताईद की। 

जो लोगों से डर गया वो कभी फी सबिलिल्लाह काम नही कर सकता वैसे भी हमारे नबी ﷺ और हमारे तमाम अंबिया का यही मिशन रहा। ऐसे कैसे हो सकता है कि रब जुल जलाल की जमीन पर कुफ्र दनदनाता फिर रहा हो, बुराइयां रक्स कर रही हो, अल्लाह के बंदों पर जुल्म किया जा रहा हो, मस्जिदें तोड़ी जा रही हो, हमारी कौम की लडकियों को फरेब दे कर मुर्तद किया जा रहा हो और हम हाथ पर हाथ‌‌ धरे तमाशाई बने रहे?

बनी इसराइल की तरह?

खुदा मेहशर में पूछेगा, तो हम क्या जवाब देंगे?

भरे मेहशर में एक आवाज आयेगी,  كلا لما يقض ما امره "हरगिज़ नही इंसान ने पूरा ही नही किया जो उसे हुक्म दिया गया था।" वही काम इकामत ए दीन, अंबियाईं मिशन। सोचो इस गिरोह में हम शामिल हो जाए तो क्या होगा?

हुदा के आंसू बहने लगे थे। 

"चिड़िया अपने बच्चो को छोड़ कर फिर उड़ान भर कर रिज्क की तलाश में निकल पड़ी थी। हुदा उसे आखिर तक देखती रह गई वो जबूर की बातों से मरुऊब होने लगी थी उसे अपना वजूद जानवरों की तरह लगने लगा था। 

मैं भी तुम्हारे साथ ये काम करूंगी। उस की आंखे आयत ए इलाही के असर से बहने लगी थी। मुझे भी अपने रसूल ﷺ से मुहब्बत है और मैं जुबानी दावे से नही अमल से साबित करूंगी, पूरे जज्बे के साथ हुदा ने कहा। उसे हिदायत मिल चुकी थी, هواجتبکم ( उस ने तुम्हे चुन लिया) 

जबूर ने बड़ी मसर्रत से कहा, बचपन से मैं तुम्हारे साथ हूं लेकिन आज उमर के पच्चीस्वे साल मुझे अपने मकसद ए वजूद का सही इदराक हुआ। मैं कितनी गाफिल थी जबूर। वो अब रो रही थी। 

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हेलो अस्सलामु अलैकुम! कैसी हो मोहतरमा? चलो आज गश्त के लिए जाना है वतनी बहनों को दावत ए इस्लाम पेश करने।

वालेकुम अस्सलाम, हां हां भाई सांस तो ले लो इतनी क्या जल्दी है सबकत ले जाने की, आ रही हूं जस्ट। 

एक उम्मीद एक जोश के साथ सड़क पार कर के दोनो को उस पार जाना था लेकिन वक्त ने मोहलत न दी। हुदा आगे को हुई तो एक कार ने जबूर को जोरदार टक्कर मार दी। 

जबूर, हुदा जोर से चीखी थी, शोर, लोगो का मजमा, बहता खून, वो शहीद हो चुकी थी। उसका ख्वाब सच हुआ लेकिन उसकी डोली नही डोला उठा था। एक खूबसूरत तमानियत थी उस के चेहरे पर, वो मुत्मइन‌‌ बख्श अपने रब के पास लौटी थी नफ्स‌ए मुत्मइना बन कर वो हमेशा कहती थीं,

 فلاتموتن إلا و انتم مسلمون

"तुम्हे मौत न आए मगर इस हाल में कि मुस्लिम हो।" (कुरान) 

उसे अब समझ में आया कि मुस्लिम क्या होता है उसके जनाजे में आई सभी खातून की आंखों में आंसू जारी थे और हर एक जुबान पर जिक्र ए खैर था वो सुबह के सितारे की तरह जिंदगी गुजार गई थी, मुख्तसर लेकिन बामकसद जिंदगी!

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वो चिड़िया के बच्चो को हाथ में लेकर सहलाने लगी, उसे जबूर याद आई थी जिसने उसे जिंदगी का मकसद दिया। 

हुदा के जरिए कई लोग मुसलमान हो चुके थे वो इसलाह ए मुआश्रा का काम अंजाम दे रही थी। जबूर तो वफात पा चुकी थी लेकिन अपनी दोस्त को एक बामकसद जिंदगी दे गई "खुदा मेहशर में पूछेगा" जबूर के ये अल्फाज हुदा को हमेशा जुमूद का शिकार होने से बचाते थे। बेशक अल्लाह जिससे चाहता है अपना काम लेकर रहता है उसे मंजिल नहीं मंजिल तक पहुंचने की जद्दो जहद मतलूब है! जिन लोगो को जबूर इस्लाम की दावत देना चाहती थी वो हुदा के हाथ मुस्लिम हो चुके थे।


आलिया खान हाफिज़ नज़रुल्लह खान, अर्धापुर

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