Ek shak ka izaala

 

Ek shak ka izaala

एक शक का इज़ाला

किसी ने मुझसे सुवाल किया जो एक अहम नुक्ता बयान करता हैं और वो सुवाल ये है:

"बहुत अहदीसों में भाईयों के मुतालिक अहकाम बताए गए होते हैं तो क्या वो औरतों के लिए नहीं होते हैं?" 


साइल (सवाल करने वाला) का कहने का मतलब ये है कि मैक्सिमम हदीसो में ये ज़िक्र मिलता है कि कोई अपने भाई का बुरा ना चाहे, अपने मुस्लिम भाई से मोहब्बत करो, जो खुद के लिए पसंद करो वो अपने भाई के लिए करो वगैरह वगैरह। 

अब उनका सुवाल ये हैं कि क्या सब भाई के लिए एहकाम हदीसो में आये हैं या ये भाई वाले एहकाम औरतों पर भी लागू होंंगे?

इस सवाल का जवाब देने कि कोशिश करता हूं इन शा अल्लाह


अल्लाह तआला ने कई मकामात पर एक मर्द के तबके को मेंशन करके उसमें औरत को भी मुराद लिया है:

अल्लाह तआला फरमाता है:

"मोमिन तो एक-दूसरे के भाई हैं, इसलिये अपने भाइयों के बीच ताल्लुक़ात को ठीक करो और अल्लाह से डरो, उम्मीद है कि तुम पर रहम किया जाएगा।" [सूरह हुजरात: 10] 

इस आयत में अल्लाह तआला ने तमाम मोमिनीन को एक कटघड़े में खड़ा कर दिया औरत हो या आदमी क्यूंकि अल्लाह ने लफ्ज़ मोमिन यूज़ किया यानी ईमान वाले अब इस आयत का मतलब ये हुआ कि जिस तरह से मोमिन भाई-भाई हैं उसी तरह मोमिना बहन-बहन हैं। अल्लाह को ज़रूरी नहीं है कि वो औरत के लिए अलग लफ्ज़ कहे। 

मिसाल देता हूं, अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया:

"हक़ीक़त में तुम लोगों के लिये अल्लाह के रसूल में एक बेहतरीन नमूना था, हर उस आदमी के लिये जो अल्लाह और आख़िरी दिन की उम्मीद रखता हो और अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करे।" [सूरह एहज़ाब: 21] 

इसमें अल्लाह तआला ने फ़रमाया हैं कि नबी अलैहिस्सलाम तुम्हारे लिए बेहतरीन नमूना (आइडियल) हैं, यहाँ औरत और मर्द दोनों शुमार हैं इल्ला ये की कुछ एहकाम अल्लाह ने और उसके नबी ने औरत के लिए अलग बयान कर दिए हो।


अल्लाह तआला फरमाता है:

"ए ईमान वालों! इतअत करो अल्लाह की और इतअत करो उसके रसूल की।" [सूरह निसा: 59] 

यहाँ अल्लाह ने ईमान वालों से ख़िताब किया हैं और लफ्ज़ "आमनु" (जो ईमान लाये) का सीगा यूज़ किया, इसमें आमनु में औरत और मर्द दोनों शुमार हैं। अल्लाह को अलग से कहने कि ज़रूरत नहीं हैं कि औरत के लिए नबी अलैहिस्सलाम आइडियल हैं।


अब आते हैं एक वाज़ेह दलील कि तरफ़;

अल्लाह तआला फरमाता हैं:

وَ الَّذِیۡنَ جَآءُوۡ مِنۡۢ بَعۡدِہِمۡ یَقُوۡلُوۡنَ رَبَّنَا اغۡفِرۡ لَنَا وَ *لِاِخۡوَانِنَا* الَّذِیۡنَ سَبَقُوۡنَا بِالۡاِیۡمَانِ وَ لَا تَجۡعَلۡ فِیۡ قُلُوۡبِنَا غِلًّا لِّلَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا رَبَّنَاۤ اِنَّکَ رَءُوۡفٌ رَّحِیۡمٌ 

"और (यह फ़ै का माल) उन लोगों का भी हक़ है जो इन (मुहाजिरों और अन्सार) के बाद आये। वे यह कहते हैं कि ऐ हमारे परवर्दिगार! हमारी भी मग़फ़िरत फ़रमाईये और हमारे उन भाईयों की भी जो हम से पहले ईमान ला चुके हैं, और हमारे दिलों में ईमान लाने वालों के लिये कोई बुग़ज़ न रखिये। ऐ हमारे परवर्दिगार! आप बहुत शफ़ीक़, बहुत मेहरबान हैं।" [सूरह हश्र: 10] 

आयत पर गौर कीजिए, आयत में एक लफ्ज़ आया है لِاِخۡوَانِنَ ये लफ्ज़ भाईयों के लिए इस्तेमाल होता हैं लेकिन जब आयत को हम पढ़ेंगे तो हमको पता चलेगा कि इस आयत में मर्द और औरत दोनों हैं। इस आयत में दुआ की जा रही है जो हम से पहले ईमान लाए हैं उनकी मग़फिरत फरमाए। अब सोचने की बात है कि पहले तो औरत भी ईमान लाई थी ऐसा तो नहीं कि सिर्फ़ मर्द ही ईमान लाए थे लिहाज़ा इससे पता चला कि यहां भाई से मुराद इसमें औरत शामिल हैं।


अब आते हैं कुछ हदीसों कि तरफ़ जिससे बात और भी साफ हो जाएगी;


1. पहली हदीस:

إِيَّاكُمْ وَالظَّنَّ ، فَإِنَّ الظَّنَّ أَكْذَبُ الْحَدِيثِ ، وَلَا تَحَسَّسُوا ، وَلَا تَجَسَّسُوا ، وَلَا تَبَاغَضُوا ، وَلَا تَدَابَرُوا ، وَكُونُوا عِبَادَ اللَّهِ إِخْوَانًا

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया:

''बदगुमानी से बचते रहो क्योंकि गुमान (बद-गुमानी) सबसे झूटी बात है। आपस में एक-दूसरे की बुराई की तलाश में न लगे रहो न एक-दूसरे से बुग़्ज़ रखो और न पीठ पीछे किसी की बुराई करो बल्कि अल्लाह के बन्दे भाई-भाई बन कर रहो।'' [बुखारी: 6724] 

हाईलाइट किये गए लफ्ज़ो को देखे नबी अलैहिस्सलाम ने कहा عِبَادَ اللَّهِ إِخْوَانًا (अल्लाह के बन्दे भाई भाई बनकर रहो) अब क्या कोई कह सकता है अल्लाह कि इबादत सिर्फ़ मर्द करते हैं औरत नहीं करेंगी क्यूंकि इबादल्लाह से मुराद अल्लाह कि इबादत करने वाले हैं लिहाज़ा यहाँ बहुत इखवान (भाई) से मुराद औरत और मर्द दोनों हैं।


2. दूसरी हदीस:

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:

، ‏‏‏‏ لَا يَحِلُّ لِمُسْلِمٍ أَنْ يَهْجُرَ أَخَاهُ فَوْقَ ثَلَاثٍ فَمَنْ هَجَرَ فَوْقَ ثَلَاثٍ فَمَاتَ دَخَلَ النَّارَ

"किसी मुसलमान के लिए ये हलाल नहीं के वो अपने मुसलमान भाई से 03 दिन से ज्यादा नाराज़ रहे, और जिसे इस हाल में मौत आयी वो जहन्नुम में जायगा।" [अबू दाऊद: 4914] 


हदीस के लफ्ज़ पर गौर करें لِمُسْلِمٍ أَنْ يَهْجُرَ أَخَاهُ (किसी मुस्लिम को जाएज़ नहीं भाई से नाराज़ हो) अब ज़रा सोचें क्या यहाँ औरत मुराद नहीं होंगी बिलकुल होंगी क्यूंकि लफ्ज़ मुस्लिम साथ में आया है और औरत भी मुस्लिम होती है इस हदीस से भी पता चला أَخَاهُ (भाई) से मुराद औरत मर्द यहाँ तक कि मुखन्नस भी मुराद है।


3. तीसरी हदीस:

لَا تَبَاغَضُوا وَلَا تَحَاسَدُوا وَلَا تَدَابَرُوا وَكُونُوا عِبَادَ اللَّهِ إِخْوَانًا ، وَلَا يَحِلُّ لِمُسْلِمٍ أَنْ يَهْجُرَ أَخَاهُ فَوْقَ ثَلَاثِ لَيَالٍ 

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया:

''आपस में बुग़्ज़ न रखो और एक-दूसरे से हसद न करो पीठ पीछे किसी की बुराई न करो बल्कि अल्लाह के बन्दे और आपस में भाई-भाई बन कर रहो और किसी मुसलमान के लिये जायज़ नहीं कि किसी भाई से तीन दिन से ज़्यादा तक बात चीत बन्द करे।" [बुखारी: 6076] 

हदीस में लफ्ज़ आये हैं عِبَادَ اللَّهِ إِخْوَانًا (तुम सब अल्लाह के बन्दे हो भाई बनकर रहो) अब समझने वाले के लिए काफ़ी है कि अल्लाह के बन्दे यानी अल्लाह कि इबादत करने वाले तो औरत मर्द दोनों हैं वाज़ेह हुआ यहाँ अख़वान (भाई ) से मुराद औरत मर्द दोनों हैं।


हमारे यहाँ एक मुहावरा भी कहा जाता हैं कि आपस में भाईचारा बनाकर रखो। अगर कोई टीचर क्लास में अपने स्टूडेंट को पढ़ा रहा हो उसमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं तो लड़ाई ख़त्म कराने के लिए बोलेगा कि आपस में भाईचारा बनाकर रखो अब कोई औरत या लड़की ये सोचेगी कि यहां भाईचारा बनाने को कहा गया है लड़कों को बहन चारा बनाने को नहीं कहा तो क्या यह बात सही होगी?

हरगिज़ नहीं क्योंकि टीचर का कहना था कि आपस में भाईचारा यानी ब्रदरहुड बनाकर रखो यानी इंसाफ का दामन पकड़े रहो और लड़ाई झगड़ा ना करो।

उसी तरह जो कायनात का रब है उसने अपने बंदी और बन्दों एक ही सफ़ में खड़ा कर कहा है कि आपस में भाई भाई रहो इसमें औरत मर्द किन्नर सब मुराद हैं।


4. चौथी हदीस:

الْمُؤْمِنُونَ  كَرَجُلٍ وَاحِدٍ إِنْ اشْتَكَى رَأْسُهُ تَدَاعَى لَهُ سَائِرُ الْجَسَدِ بِالْحُمَّى وَالسَّهَرِ

नबी ﷺ ने फ़रमाया:

"मुसलमान बाहम (आपस में) एक ही आदमी के जिस्म की तरह हैं कि अगर उसके सर में तकलीफ हो तो, बुख़ार और बे ख़्वाबी के ज़रिए सारा जिस्म इसके साथ देता है।" [मुस्लिम: 2586] 

यह एक बहुत ज़बरदस्त दलील है, इस हदीस में एक लफ्ज़ आया है كَرَجُلٍ (आदमी) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने كَرَجُلٍ से पहले الْمُؤْمِنُونَ (तमाम मोमिन मर्द औरत) मुराद लिया है और आदमी से तस्बीह दी है इससे साफ ज़ाहिर हो रहा है कि मोमिनून में औरत और मर्द दोनों हैं। पता चला मर्द का अगर लफ्ज़ भी आएगा तो उसमें औरत शुमार होगी।


5. पांचवी हदीस:

 مَامِنْ عَبْدٍ مُسْلِمٍ يَدْعُو لِأَخِيهِ بِظَهْرِ الْغَيْبِ إِلَّا قَالَ الْمَلَكُ وَلَكَ بِمِثْلٍ

"कोई मुसलमान बंदा अपने भाई के लिए दुआ करता है उसके पीठ के पीछे फरिश्ता कहता है तुम्हें भी इसकी तरह अता हो।" [मुस्लिम: 2730] 

ये भी एक बहुत अहम दलील है, इस हदीस में लफ्ज़ आया है مَامِنْ عَبْدٍ مُسْلِمٍ يَدْعُو لِأَخِيهِ (कोई मुसलमान बंदा अपने भाई के लिए दुआ करे) इससे पता चला कि मोमिन बंदा तो औरत भी होती है वो भी अल्लाह की इबादत करती है लिहाज़ा इस हदीस से पता चला कि यहां भाई से मुराद भी औरत और मर्द दोनों हैं।


दलीले तो सैकड़ों दे सकते हैं। लेकिन मैं यहां पर इस बात को मोअख़्ख़र करता हूं।

अल्लाह से दुआ है वह हमें सही रास्ते पर चलने की तौफीक दे।


आपका दीनी भाई
मुहम्मद

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