Dhul (zul) hijja ke roze aur fazail

Dhul (zul) hijja ke roze aur fazail


अशुरा (दस ज़ुल हिज्जा) के रोज़े व फज़ाईल


टेबल ऑफ़ कंटेंट 
  1. ज़ुल हिज्जा के रोज़े व फज़ाईल
  2. नेक आमाल की तर्गीब
  3. अशुरा ज़ुल हिज्जा के रोज़े
  4. अरफा के दिन की फज़ीलत


ज़ुल हिज्जा के रोज़े व फज़ाईल

अल्लाह तआला अपनी कमाल रहमत की बदौलत अपने बंदो को अपनी रज़ा और खुशनूदगी के बेइंतेहां मौक़े नसीब फरमाता है ताकि बंदे उनमें अल्लाह तआला के हुज़ूर नेकियाँ और इताअत के काम बजा लाकर अपने गुनाहों की बख़्शीश उसकी रहमत व मवद्द्त और बुलंद दरजात का ईनाम पा सके। अब बंदों को चाहिए कि उन मवाक़ो को ग़नीमत जानतें हुए अपने ताल्लुक को अल्लाह मालिक उल मुल्क से मज़बूत करें और सआदत और कामरानी का हुसूल मुमकिन बनाएं।

इन्ही मवाक़ो में से एक "अशुरा" ज़ुल हिज्जा भी है जिसकी फज़ीलत व अहमियत और एहकाम क़ुरआन व हदीस में मुख़्तलिफ अंदाज़ से बयान किये गए, उस का सबब बयान करते हुए हाफ़िज़ इब्ने हजर रहिमाउल्लाह फरमाते हैं:

"अशुरा ज़ुल हिज्जा के बाक़ी अय्याम से इम्तियाज़ (फ़र्क़) का सबब ये मालूम होता है कि इसमें बड़ी बड़ी इबादत जमा हो जाती हैं जैसे नमाज़, रोज़ा, सदक़ा और हज। इबादात का ये इजतिमा बाक़ी अय्याम में नहीं होता।" [फतह उल बारी 02/460]

अल्लाह तआला ने इन 10 रातों की क़सम खायी है:

इमाम इब्ने क़य्यम रहिमाअल्लाह फरमाते हैं-

"अल्लाह तआला बहुत से उमूर (हुकमो) के लिए दूसरे उमूर की क़सम खाता है और कभी वो अपनी ज़ात मुबारक की क़सम खाता है उसकी सिफात ए आलिया से मुत्तासिफ है और कभी अपनी आयात की जो उसकी ज़ात व सिफात से जुड़ी हुई है, उसका अपनी बाज़ मखलूक़ात की कसम खाना इस बात पर दलालत करता हैं कि वो मखलूक़ उसकी अज़ीम निशानियों में से है।" [अत तिबयान फी अक़्साम उल क़ुरआन ल इब्ने क़य्यम सफा 01]

चुनाँचे अल्लाह सुभानहु वा तआला कसम खाते हुए फरमाता है:

"क़सम है फज्र की और 10 रातों की।" [सूरह फज्र: 01-02]

अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहू अन्हो फरमाते हैं:

"अल्लाह तआला ने जिन 10 रातों की क़सम खाई है ये ज़ुल हिज्जा की पहली (10) रातें हैं।" [तफसीर ए तबरी 11/530 सनद सहीह]

इमाम मुजाहिद बिन जबर रहिमाउल्लाह (अल मुतावफ्फा 101 हिजरी) फरमाते हैं:-

"इससे मुराद अशुरा ज़ुल हिज्जा है।" [तफसीर ए तबरी 11/531]


नेक आमाल की तर्गीब

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि अन्हुमा से रिवायत है नबी अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:-

"किसी दिन का अमल अल्लाह के यहाँ इन (दस) दिनों के अमल से अफज़ल नहीं, सहाबा ने पूछा क्या जिहाद भी नहीं? 

तो आपने फरमाया: जिहाद भी नहीं मगर वो शख़्स जो दुश्मनों से लड़ते हुए अपनी जान व माल की बाज़ी लगा दे और (उनमें से) किसी चीज़ के साथ वापस ना लौटे।" [सहीह बुखारी: 969]

एक दूसरी हदीस में इमाम सईद बिन जुबैर ताबई रहिमाउल्लाह अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि अन्हुमा से रिवायत करते हैं नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने फरमाया:

अल्लाह के नज़दीक़ कोई अमल उससे ज़्यादा पाकीज़ा और अज्र के लिहाज़ से बड़ा नहीं जो अशुरा ज़ुल हिज्जा में किया जाए। कहा गया अल्लाह के रास्ते में जिहाद भी नहीं? 

आपने फरमाया: अल्लाह के रास्ते में जिहाद भी नहीं।

 सिवाए उस शख़्स के जो अपनी जान और माल लेकर निकले फिर किसी शय के साथ वापस ना लौटे क़ासिम बिन अय्यूब (रावी) फरमाते हैं सईद बिन जुबैर रहिमाउल्लाह जब अशुरा में दाख़िल होते तो इस क़द्र (अमल में) मेहनत करते कि अपनी ताक़त से बढ़कर कोशिश करते है। [सुनन दारमी: 1815]


अशुरा ज़ुल हिज्जा के रोज़े

"नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ज़ुल हिज्जा के (पहले) 09 दिनों के रोज़े रखते।" [सुनन अबू दाऊद: 2437 & सुनन नसई: 2374]

इमाम अबू दाऊद ने इस हदीस पर इस तरह बाब (चैप्टर) क़ायम किया- "अशुरा ज़ुल हिज्जा (दस ज़ुल हिज्जा) के रोज़े"


नोट: हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा फरमाती है:

"मैंने नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम को अशुरा (ज़ुल हिज्जा) में रोज़ा रखते नहीं देखा।"

एक दूसरी हदीस में है, इमाम बहिएक़ी रहिमाउल्लाह फरमाते हैं:

"ये हदीस (हुनैद बिन खालिद की तरीक़ वाली) और उसके साथ जो (इस अशुरा) से मुतल्लिक़ पीछे ज़िक्र हुआ औला और राजेह हैं वो हदीसे जो हज़रत आयशा ने बयान की है कि मैंने नबी अलैहिस्सलाम को इन 10 दिनों में रोज़े रखते नहीं देखा क्यूंकि मज़कूरा बाला (Given Above) हदीस (रोज़े रखने) को साबित कर रही है इसलिए वो रोज़े रखने की नफी (Denied) करने वाली हदीस से राजेह और औला है।" [फज़ाईल ए अवक़ात लिल बहिएक़ी 175]

1. इमाम नववी रहिमाउल्लाह फरमाते हैं कि:

"हज़रत आयशा रजि• अन्हा के क़ौल कि वज़ाहत इस तरह से की जा सकती है कि उन्होंने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को रोज़े की हालत में ना देखा हो इससे यह लाज़िम नहीं आता कि आपने हकीकत में उन रोज़ों को छोड़ा था क्योंकि आप (ﷺ) 9 में से 1 दिन उनके पास ठहरते थे और बाकी दिन दूसरी बीवियों के साथ होते और ये भी मुमकिन है कि आप ﷺ कभी इस अशुरा के चंद दिनों रोज़े रखते हो और चंद दिनों छोड़ते हो और कभी पूरा आशूरा रोज़ा रखा हो और कभी सफर या मर्ज़ या किसी और सबब से पूरा आशूरा रोज़ा को छोड़ दिया हो इस वज़ाहत से हदीसो में ततबिक दी जा सकती है। [अल मजमूआ शरह मुहज़ज़ब 06/387]

2. मज़ीद फरमाते हैं:

"इन दिनों में रोज़े रखना मकरूह नहीं बल्कि मुस्तहब और शदीद मुस्तहब हैं और ख़ास तौर पर 09 ज़ुल हिज्जा को जो यौमे अरफा है।" [शरह सहीह मुस्लिम 08/78]

 3. इमाम अब्दुल्ला बिन ऑन रहिमाउल्लाह (150 हिजरी) फरमाते हैं:

"इमाम मोहम्मद बिन सीरीन रहिमाउल्लाह ताबई (110 हिजरी ) मुकम्मल आशूरा जिलहिज्जा के रोज़े रखते तो जब आशूरा ज़ुल हिज्जा और अय्याम ए तशरीक गुज़र जाते तो नौ दिन रोज़े का नागा करते जैसे पहले रोज़े रखते।" [मुसन्नफ इब्ने अबी शेयबा 02/300 )

यहाँ मुकम्मल अशुरा से मुराद 09 दिन ही हैं क्यूंकि अगले अल्फाज़ से ज़ाहिर हैं। वल्लाहु आलम


अरफा के दिन की फज़ीलत

यौमे अरफा अशुरा ज़ुल हिज्जा में से अहम तरीन दिन है और उसके कई फज़ाईल हैं:


01) अल्लाह तआला का यौमे अरफा की क़सम खाना:

अल्लाह फरमाता है:

وشاھد ومشھود

"क़सम है हाज़िर होने वाले और जिसके पास हाज़िर हुआ जाए।" [सूरह बुरूज: 03]

अक्सर मुफास्सारीन का मोक़िफ़ है कि इस आयत ए करीमा में शाहिद (شاھد) से मुराद जुमाअ का दिन और مشھود से मुराद अरफ़ात का दिन हैं जैसा के अबू हुर्रेरा रज़ि अन्हु से हज़रत अली रज़ि अन्हु और इमाम क़तादा रहिमाउल्लाह से सहीह व हसन इसनाद से मरवी है। [फसीर ए तबरी 11/48 - 482]


(02) दीन के तकमील और तमाम नेमत का दिन:

हज़रत तारिक़ बिन शिहाब रज़ि अन्हु हज़रत उम्र बिन ख़त्ताब रज़ि अन्हु से रिवायत करते हैं कि एक यहूदी ने उनसे कहा: ए अमीरुल मोमिनीन! तुम्हारी किताब में एक ऐसी आयत है जिसे तुम पढ़ते हो अगर हम यहूदियों पर उतरती तो हम ज़रूर इस दिन को ईद का दिन बना लेते हज़रत उमर ने पूछा: कौन सी आयत है? वो कहने लगा (सूरह मायदा 03) तो हज़रत उमर ने फरमाने लगे हम उस दिन और जगह को जानते हैं जिसमें यह नबी ﷺ पर उतरी, उस वक्त आप ﷺ अरफात (के मैदान ) में जुमाअ के दिन खड़े थे। [सहीह बुखारी: 45,7268 सहीह मुस्लिम: 301 7]

 एक दूसरी हदीस में है कि अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि अन्हु फरमाते हैं:

"बेशक यह आयत दो ईद के दिनों में उतरी जुमाअ का दिन और अरफा का दिन।" [सुनन तिरमिज़ी: 3044]


(03) यौमे अरफा अहले इस्लाम के लिए ईद का दिन

हज़रत उक़बा बिन आमिर अल जुहनी रज़ि अन्हु से रिवायत है के नबी ﷺ ने फ़रमाया:

"यौमे अरफा क़ुरबानी का दिन और अय्याम तशरीक़ हम अहले इस्लाम के ईद है और यह अय्याम खाने-पीने के हैं।" [सुनन अबू दाऊद 2419 तिरमिज़ी 773 नसई 3007]


(04) अरफा के दिन अल्लाह का अपने बंदों (हाजियो) पर फक्र करना और आम बखशिश फरमाना

 हजरत आयशा रजि अन्हा फरमाती हैं के नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया:

"अल्लाह ताला अरफा के दिन से ज्यादा किसी दिन अपने बंदों को जहन्नम से आजाद नहीं करता और अपने बंदों के करीब होता है फिर फरिश्तों के सामने अपने बंदों पर फ़ख्र करते हुए फरमाता है कि इन सारे बन्दों का क्या इरादा हैं?" [सहीह मुस्लिम 1348]


(05) यौमे अरफा का रोज़ा

हजरत अबू क़तादा रज़िअल्लाहू अन्हू से रिवायत है नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया:

"अरफा के दिन के रोज़े के बारे में मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि यह पिछले और आइंदा (दो ) सालों के गुनाहों का कफ़फ़ारा होगा।" [सहीह बुखारी 1988, 1658; मुस्लिम 1123]


आपका दीनी भाई 
मुहम्मद

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