Eid ul azha ke liye takbeer e tashreeq

Eid ul azha ke liye takbeer e tashreeq


ईद उल अज़हा के लिए तकबीर ए तशरीक़ 
(तकबीर अल-तश्रीक)

"रमज़ान वो महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया, जो इन्सानों के लिये सरासर रहनुमाई है और ऐसी वाज़ेह तालीमात पर मुश्तमिल [ आधारित] है जो सीधा रास्ता दिखाने वाली और सच और झूठ का फ़र्क़ खोलकर बयान कर देने वाली हैं। इसलिये अब से जो शख़्स इस महीने को पाए, उसके लिये ज़रूरी है कि इस पूरे महीने के रोज़े रखे। और जो कोई बीमार हो या सफ़र पर हो, तो वो दूसरे दिनों में रोज़ों की गिनती पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे साथ नरमी करना चाहता है, सख़्ती करना नहीं चाहता। इसलिये ये तरीक़ा तुम्हें बताया जा रहा है, ताकि तुम रोज़ों की गिनती पूरी कर सको और जिस सीधे रास्ते पर अल्लाह ने तुम्हें लगाया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई का इज़हार व एतिराफ़ करो और शुक्रगुज़ार बनो।"
[कुरान 2: 185]


अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है, "अल्लाह की बड़ाई का इज़हार व एतिराफ़ करो।" उसने हमें पैदा किया, रिज़्क़ देता है, अक़्ल दी और सबसे बड़ी चीज हिदायत दी, उसकी तारीफ करने का एक बेहतरीन तरीका यह है कि हम उस पर तक़बीर कहें "अल्लाह हू अकबर" यानी "अल्लाह सबसे बड़ा है"

यह तो आम दिनों में कही जाने वाली तक़बीर है लेकिन ईद उल अज़हा के मौके पर एक खास तक़बीर कही जाती है जिससे "तक़बीर ए तशरीक़" कहते हैं। इजमा का मानना है कि यह रसूल अल्लाह (ﷺ) की सुन्नत का एक हिस्सा है।


यौम उल अरफ़ा की नमाज़ फ़ज्र से यौम उन नहर की नमाज़ असर तक कही जाने वाली तकबीरात,


اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَاَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ

"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द"

(अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह सबसे बड़ा है और तमाम तारीफें सिर्फ अल्लाह के लिए है।)


हज़रत शरीक कहते है कि, मैने अबू इसहाक से कहा कि, 
"हज़रत अली और हज़रत अब्दुल्लाह रजि. कैसे तकबीरात कहा करते थे?"
उन्होंने फरमाया कि उनकी तकबीरात के अल्फ़ाज़ ये थे- 
اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَاَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ 
(अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द)
[अल-मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा: 5699]


इसमें अल्लाह हू अकबर को दो की बजाय तीन (3) बार पढ़ा जाता है और वल्लाह हू अकबर के वाव (जिसका मतलब है और) को हटा दिया जाता है। ये दोनों तरह की तक़बीरात क़ाबिल ए कुबूल हैं आप इनमें से कोई भी कह सकते हैं।


اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ اَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُاللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ

"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द"

हज़रत असवद फरमाते हैं कि हज़रात अब्दुल्लाह यौम उल अरफ़ा की नमाज़ फ़ज्र से यौम उन नहर की नमाज़ असर तक तकबीरात कहा करते थें जिनके कलिमात ये थें: 

"اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ اَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُاللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ" 

[अल-मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा: 5679]


اللَّہُ أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ وَأَجَلُّ ، اللَّہُ أَکْبَرُ وَلِلَّہِ الْحَمْدُ

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजि. कि तकबीरात के अल्फ़ाज़ ये थे- اللَّہُ أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ وَأَجَلُّ ، اللَّہُ أَکْبَرُ وَلِلَّہِ الْحَمْدُ (अल्लाहु अकबर कबीरा, अल्लाहु अकबर कबीरा, अल्लाहु अकबर व अजल्ल, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द) 
[अल-मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा: 5701]


तक़बीर ए तशरीक़ कब कहना चाहिए?

नौ (9) ज़ुल हिज्जा (यौम ए अरफा) की फज्र की नमाज़ के बाद से तेरह (13) ज़ुल हिज्जा की असर की नमाज़ तक (कुल 23 फर्ज़ नमाज़) हर फर्ज़ नमाज़ के बाद मर्द और औरत दोनों को पढ़ना चाहिए। 

नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया,"कोई दिन नही, जो अल्लाह तआला के यहाँ (ज़ुल-हिज्जा के) दस दिनों से ज़्यादा अज़मत वाले हो, और जिन में नेक अमल उसको सबसे ज़्यादा पसन्द हो, बस उनमें बहुत ज़्यादा तहलील (ला इलाहा इल्लल्लाह), तकबीर (अल्लाहु अकबर) और तहमीद (अल् हम्दुलिल्लाह) बयान किया करो।"

[मुसनद अहमद 2882]


हज़रत शकीक फरमाते हैं कि, हज़रत अली रजि. अ'रफा के दिन फज्र की नमाज़ के बाद तकबीर कहते, फ़िर ये तकबीर लगातार हर नमाज़ में कहते, यहां तक कि इमाम, अय्यामे तशरीक़ (11,12 और 13 तारीख़) के आख़िरी दिन की नमाज़ पढ़ाता, फ़िर आप असर के बाद तकबीर कहते।"
[अल-मुस्तद्रक लिल हाकिम 1113]


"अब्दुल्लाह बिन उमर और अबु हुरैरा रजि. (ज़ुल-हिज्जा के) इन 10 दिनों में बाज़ार कि तरफ़ निकल जाते और लोग इन बुजुर्गो की तकबीरात सुनकर तकबीर कहते थे और मुहम्मद बिन बाकिर नफ़्ल नमाजो के बाद भी तकबीर कहते थे।"
[इरवा उल ग़लील रक़म 651 सहीह बुखारी: 969 से पहले तालिकन]


मर्द को ऊंची आवाज में और औरत को ख़ामोशी के साथ कहना चाहिए क्योंकि कुरान हुक्म देता है कि औरत अपनी आवाज को नीचे रखें। नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया, 

"(नमाज़ में अगर कोई बात पेश आ जाए तो) मर्दों को सुब्हान अल्लाह कहना और औरतों को हाथ पर हाथ मारना चाहिये। (यानी ताली बजा कर इमाम को इत्तिला देनी चाहिये।"
[सहीह बुखारी 1203]


ईद उल अज़हा के दिन नमाज के लिए जाते हुए तक़बीर कहना

तक़बीर कहने का हुकुम कुरआन से मिलता है। कुरआन में ये बात वाज़ेह नहीं की गयी कि कौन सी तक़बीर पढ़नी है? ज़ुल हिज्जा के मौके पर पढ़ी जाने वाली कई तक़बीर ए तशरीक़ हैं उनमें से आप कोई भी छोटी या बड़ी तक़बीर पढ़ सकते हैं। 


नोट: 

1. दी हुई तकबीरात में में से कोई भी पढ़ें। 

2. 9 se 13 ज़िल हिज्जा फज्र से असर तक हर फर्ज़ नमाज़ बाद पढ़ें। 

3. हाजी तकबीर अल-तशरीक़ के बाद तल्बिया (لَبَّيْكَ اللهُمَّ لَبَّيْكَ - لَبَّيْكَ لَا شَرِيْكَ لَكَ لَبَّيْكَ - إِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ - لَا شَرِيْكَ لَكَ) पढ़ेगा।

4. तक़बीर ए तशरीक़ मर्द और औरत दोनों पर वाजिब है।

5. मर्द इसे ऊंची आवाज़ में पढ़ेंगे और औरतें इसे धीरे-धीरे पढ़ेंगी।

6. ज़्यादा से ज़्यादा तादाद में पढ़ें।



By Islamic Theology

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