ईद उल अज़हा के लिए तकबीर ए तशरीक़
(तकबीर अल-तश्रीक)
[कुरान 2: 185]
अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है, "अल्लाह की बड़ाई का इज़हार व एतिराफ़ करो।" उसने हमें पैदा किया, रिज़्क़ देता है, अक़्ल दी और सबसे बड़ी चीज हिदायत दी, उसकी तारीफ करने का एक बेहतरीन तरीका यह है कि हम उस पर तक़बीर कहें "अल्लाह हू अकबर" यानी "अल्लाह सबसे बड़ा है"।
यह तो आम दिनों में कही जाने वाली तक़बीर है लेकिन ईद उल अज़हा के मौके पर एक खास तक़बीर कही जाती है जिससे "तक़बीर ए तशरीक़" कहते हैं। इजमा का मानना है कि यह रसूल अल्लाह (ﷺ) की सुन्नत का एक हिस्सा है।
यौम उल अरफ़ा की नमाज़ फ़ज्र से यौम उन नहर की नमाज़ असर तक कही जाने वाली तकबीरात,
اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَاَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ
"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द"
(अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह सबसे बड़ा है और तमाम तारीफें सिर्फ अल्लाह के लिए है।)
इसमें अल्लाह हू अकबर को दो की बजाय तीन (3) बार पढ़ा जाता है और वल्लाह हू अकबर के वाव (जिसका मतलब है और) को हटा दिया जाता है। ये दोनों तरह की तक़बीरात क़ाबिल ए कुबूल हैं आप इनमें से कोई भी कह सकते हैं।
اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ اَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُاللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ
"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द"
हज़रत असवद फरमाते हैं कि हज़रात अब्दुल्लाह यौम उल अरफ़ा की नमाज़ फ़ज्र से यौम उन नहर की नमाज़ असर तक तकबीरात कहा करते थें जिनके कलिमात ये थें:
"اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ اَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُاللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ"
[अल-मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा: 5679]
اللَّہُ أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ کَبِیرًا اللَّہُ ، أَکْبَرُ وَأَجَلُّ ، اللَّہُ أَکْبَرُ وَلِلَّہِ الْحَمْدُ
तक़बीर ए तशरीक़ कब कहना चाहिए?
नौ (9) ज़ुल हिज्जा (यौम ए अरफा) की फज्र की नमाज़ के बाद से तेरह (13) ज़ुल हिज्जा की असर की नमाज़ तक (कुल 23 फर्ज़ नमाज़) हर फर्ज़ नमाज़ के बाद मर्द और औरत दोनों को पढ़ना चाहिए।
नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया,"कोई दिन नही, जो अल्लाह तआला के यहाँ (ज़ुल-हिज्जा के) दस दिनों से ज़्यादा अज़मत वाले हो, और जिन में नेक अमल उसको सबसे ज़्यादा पसन्द हो, बस उनमें बहुत ज़्यादा तहलील (ला इलाहा इल्लल्लाह), तकबीर (अल्लाहु अकबर) और तहमीद (अल् हम्दुलिल्लाह) बयान किया करो।"
मर्द को ऊंची आवाज में और औरत को ख़ामोशी के साथ कहना चाहिए क्योंकि कुरान हुक्म देता है कि औरत अपनी आवाज को नीचे रखें। नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया,
ईद उल अज़हा के दिन नमाज के लिए जाते हुए तक़बीर कहना
तक़बीर कहने का हुकुम कुरआन से मिलता है। कुरआन में ये बात वाज़ेह नहीं की गयी कि कौन सी तक़बीर पढ़नी है? ज़ुल हिज्जा के मौके पर पढ़ी जाने वाली कई तक़बीर ए तशरीक़ हैं उनमें से आप कोई भी छोटी या बड़ी तक़बीर पढ़ सकते हैं।
नोट:
3. हाजी तकबीर अल-तशरीक़ के बाद तल्बिया (لَبَّيْكَ اللهُمَّ لَبَّيْكَ - لَبَّيْكَ لَا شَرِيْكَ لَكَ لَبَّيْكَ - إِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ - لَا شَرِيْكَ لَكَ) पढ़ेगा।
4. तक़बीर ए तशरीक़ मर्द और औरत दोनों पर वाजिब है।
5. मर्द इसे ऊंची आवाज़ में पढ़ेंगे और औरतें इसे धीरे-धीरे पढ़ेंगी।
6. ज़्यादा से ज़्यादा तादाद में पढ़ें।
1 टिप्पणियाँ
Allahu Akbar
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