बीवी के हुकूक शौहर पर
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
"और तुम में से सबसे बेहतर वो हैं जो अखलाक में अपनी बीवियों के हक में सबसे बेहतर हो!" [जामे तिर्मीजी : 1162]
जहां अल्लाह तआला ने मर्द को एक दर्जा फजीलत देकर उसे औरत का मुहाफिज बनाया वहीं दूसरी ओर औरत को मुकम्मल तौर पर मर्द के लिए सुकून और दुनियां में सृष्टि का जरिया, ताकि दुनिया में नस्ल दर नस्ल खानदान का निज़ाम आगे बढ़ता रहे। फिर वो औरत ही तो है जो 9 महीने शदीद दर्द और तकलीफ़ सह कर एक नए वजूद को जन्म देती है, फिर भी मर्द ने उसके लिय नजरिया कुछ इस तरह इख्तियार किया कि जब भी औरत के ताल्लुक से तब्सिरा किया तो उसे बेवफ़ा लिखा, बदचलन लिखा, नागिन लिखा, मतलबी और लालची लिखा और इस से भी आगे कमअक्ल लिखा।
और जब कभी भी तारीफ़ की तो उसके जिस्मानी खूबसूरती के हवाले से मसलन उसके जिस्म के मुख्तलिफ हिस्से की, औरत की रूहानी शख्सीयत को हमेशा नजर अंदाज किया। फिर शायद वो ये भूल गया कि ये खूबसूरत दुनियां अच्छे मर्दों से नहीं बल्कि अच्छी औरतों से चलती है।
हर औरत बेवफा नहीं होती, वो अपने पकीजा किरदार के साथ जिंदगी बसर करना चाहती है उसकी जिंदगी का हर लम्हा दूसरो को खुश करने में गुजरता है हां कुछ चंद औरतें मजबूरी में बेवफाई का दामन थाम लेती हैं लेकिन उनका मामला अल्लाह के हवाले है हम कौन होते हैं तनकीद करने वाले।
अल्लाह तआला ने उसे हर तरह से खूबसूरत बनाया बेटी के रूप में रहमत, बीवी के रूप में सुकून, राहत और सबसे बढ़ कर एक अच्छी दोस्त, फिर औलाद के लिय उसके कदमों में जन्नत रख दी। इस लिये गुजारिश है की औरत की इज्ज़त करें।
आइए इस हवाले से कुरान और हदीस पर गौर करें:
आखिरी पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने अपने बिदाई सम्बोधन में फरमाया:-
"अपनी औरतों पर तुम्हारा अधिकार है, और उनका तुम पर अधिकार है।" [सीरत इब्ने हिशाम, p. 604]
नोट: शौहर और बीवी दोनों को एक दूसरे के फर्ज़ पूरा करना लाज़मी है अन्यथा बिगाड़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
अल्लाह रब्बुल इज्जत कुरान-ए-करीम में फरमाता है:
"वह तुम्हारा लिबास है और तुम उसके लिबास हो।" [कुरान - 2:187]
लिबास (वस्त्र ) का हमारी जिंदगी में क्या एहमियत है?
इससे आप और हम बखूबी परिचित हैं किस तरह से यह हमारे जिस्म की सुरक्षा करता है और हमारी जीनत में चार चांद लगाता है ये लिबास ही तो है जो हमारे जिस्म का राजदार होता है। शौहर की मिशाल भी ऐसी ही है जो अपने मुहाफिज होने के फर्ज़ को बखूबी निभाया करे, बीबी के ऐब की पर्दा पोसी करे और ये बात बीवी पर भी लागू होती है, उन्हें एक दूसरे को समझने और जिंदगी की मुश्किलों में मददगार होना चाहिए।
फरमाने इलाही:
"और बिवियो के साथ अच्छी तरह रहो सहो।" [कुरान 4:19]
"औरतो का हक मर्दो पर वैसा ही है जैसा दस्तूर के मुताबिक (मर्दो का हक) औरतो पर है, अलबत्ता मर्दो को उन पर एक दर्जा फजीलत हासिल है।" [कुरान 2:228]
हदीस में आता है अल्लाह के रसूलﷺ ने फरमाया:
"औरतों के बारे में मेरी वसीयत का हमेशा ख्याल रखना क्योंकि औरत पसली से पैदा की गई है पसली में भी सबसे ज्यादा ऊपर का हिस्सा होता है अगर कोई शख्स इसे बिल्कुल सीधी रखने की कोशिश करे तो अंजाम कार तोड़ कर रहेगा और इसे वह यूंही छोड़ देगा तो फिर हमेशा टेढ़ी ही रह जायेगी बस औरतों के बारे में मेरी नसीहत मानों औरतों से अच्छा सुलूक (behaviour) करो।" [सही बुखारी - 3331]
"कोई मोमिन मर्द, मोमिना औरत, यानि अपनी बीवी से बुग्ज (नफ़रत) न रखे, क्योंकि अगर हमें कोई आदत नापसंद है तो कोई दुसरी पसंद भी होगी।" [सही मुस्लिम - 3645]
अल्लाह का फरमान है,
اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوۡنَ عَلَی النِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ اللّٰہُ بَعۡضَہُمۡ عَلٰی بَعۡضٍ وَّ بِمَاۤ اَنۡفَقُوۡا مِنۡ اَمۡوَالِہِمۡ ؕ
"मर्द औरतों पर क़व्वाम [ मामलों के ज़िम्मेदार] हैं, इस बुनियाद पर अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर फ़ज़ीलत दी है। और इस बुनियाद पर कि मर्द अपने माल ख़र्च करते हैं। इसलिये जो नेक और भली औरतें हैं वो फ़रमाँबरदार होती हैं और मर्दों के पीछे अल्लाह की हिफ़ाज़त और निगरानी में उनके हक़ों की हिफ़ाज़त करती हैं।" [कुरान - 4:34]
और दस्तूर के मुताबिक तुम्हारी बिवियो का खर्चा ( खुराक और पोशाक )तुम्हारे यानी मर्द के ज़िम्मे है।
नोट: औरत के नान वा नक्फा (खर्च) की ज़िम्मेदारी मर्द पर रखी गई है इसलिये शौहर को चाहिए कि अपनी बीवी को किसी दूसरे का मोहताज न होने दे, दीन से दूरी का आलम यह है कि हम ने बीवी और शौहर पर एक दूसरे का क्या हक है सही मायने में कभी जाना ही नहीं, और ना ही कोशिश की।
बचपन से ही दादी अम्मा और आस पास की औरतों से यही सुनती आई हू कि औरत मर्द के पैर की जूती होती है अब मर्द की मर्ज़ी है चाहे जैसा सलूक करे। जब की कुरान ने एक दूसरे को हम जींस कह कर फजीलत बक्शी है।
वल्लाहू आलम
मुआशरे में अक्सर मर्दो के दिल में जंग लगे हुए हैं बाज मर्द अपनी बीवी की ज़िम्मेदारी नहीं उठाते नतीज़ा उसे दूसरे का मोहताज होना पड़ता है हमारे मुआसरे के अक्सर घरों में ये मामला पाया जाता है,और मजबूर होकर बीवी अपने वालदेन के सामने हांथ फैलाती है , कभी अपनी सिस्टर्स से, कभी भाई से सावल करती है ,कभी अपने फ्रेंड से कर्ज़ लेती है । इसी कड़ी में मजबूर होकर अपनी जरुरत पूरा करने के लिए वो जॉब करती है। फितनों के इस दौर में क्या ये सही है?
और हम खुद को कितना बचा सकते हैं?
फिर तो शैतान अपने मकसद में कामयाब हो कर ही रहेगा क्यों कि वो हर पल अपनी चालें चल रहा है,और औरत अगर दीन से दूर है जैसा कि आज है भी, तो अल्लाह बचाए। कहते हैं औरत फिरती तौर पर तारीफ़ और मुहब्बत की भूखी होती है जब गैर मर्द उसकी झूठी तारीफ़ करता है तो वह उसके झूठे जाल में फसती चली जाती है इब्लीश इसका मजीद फ़ायदा उठा कर मिया बीवी में जुदाई पैदा करता है। अगर औरत मर्द की झूठी तारीफ को नज़र अंदाज़ कर दे तो बहुत से फ़ितनों से बच सकती है। इसके लिए औरत का दीनदार होना ज़रूरी है जो अल्लाह का खौफ अपने दिल में रखती हो फिर वहां शैतान की चाल नाकाम होती है।
शौहर का इस तरह गैर जिम्मेदाराना रवैया भी दीन से ला इल्मी ही है हर मुसलमान मर्द को अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलना चाहिए और अपनी बीवी को किसी भी हाल में दूसरे का मोहताज नहीं होने देना चाहिए।
एक हदीस में आता है :
अबू हुरैरा रज़ी° रिवायत करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:-
"अगर एक दिनार तुम अल्लाह की राह में खर्च करो, एक दिनार गुलाम आजाद करने के लिए खर्च करो, एक दिनार मिस्कीन को सद्का दो और एक दिनार अहल वो अयाल (फैमिली) पर खर्च करो तो अफजलियत के एतबार से सबसे अफजल दिनार अहल वो अयाल (फैमिली) पर खर्च किया गया होगा।"[सही मुस्लिम : 2311]
रसूल अल्लाह सल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:-
"बेशक तुम्हे हर उस चीज का अजर मिलेगा जो तुम अल्लाह के लिए खर्च करो, यहां तक के उस पर भी जो निवाला तुम अपनी बीवी के मुँह में डालो।" [सही बुखारी : 56]
अबू हुरैरा रज़ी° रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺने फ़रमाया:-
"सबसे कामिल मोमिन वो है जिसके अखलाक सबसे बेहतर हो और तुम में सबसे बेहतर वो है जो अपनी बीवियों के लिए बेहतर हों।" [तिर्मिज़ी : 1162]
बीवी को किसी ओर का मोहताज ना बनाएं
अब ये मर्द पर है कि वो अपनी बीवी को किसी ओर का मोहताज ना बनाएं-
अर्ज़ किया गया ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ हमारी बीवी का हम पर क्या हक़ है?
पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:-
"जब तुम खाओ तो उसे भी खिलाओ या कमाओ तो उसे भी पहनाओ। उसके चेहरे पर ना मारो और ना उसे बुरा भला कहो। और उससे (नाराज़गी के तौर पर जुदाई) करो भी तो घर के अंदर ही करो।" [अबु दाऊद 2142]
नोट:
- अगर कोई मिया बीवी में मसला हो जाए या नोक छोंक तो नाराजगी घर के अंदर ही हो और मर्द उसे घर से न निकाले।
- और बीवी को भी नर्मी से काम लेते हुए एक दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
- छोटी छोटी बातों पर घर से बाहर कदम नहीं रखना चाहिए।
- अल्लाह की बताई हदों का ख्याल रखना दोनों का फर्ज़ है।
फरमाने बारी तआला है:
"अगर किसी औरत को अपने शौहर से बदसुलूकी या बेरुख़ी का ख़तरा हो तो कोई हरज नहीं कि शौहर और बीवी [कुछ हक़ों की कमी-बेशी पर] आपस में समझौता कर लें। समझौता हर हाल में अच्छा है। मन [नफ़्स] तंगदिली की तरफ़ जल्द ही झुक जाते हैं। अगर तुम लोग एहसान से पेश आओ और ख़ुदा से डरो तो यक़ीन रखो कि अल्लाह तुम्हारे इस रवैये से बे ख़बर न होगा।" [कुरान 4:128]
"बीवियों के बीच पूरा-पूरा इंसाफ़ करना तुम्हारे बस में नहीं है। तुम चाहो भी तो तुम्हें इसकी क़ुदरत नहीं है। तो [अल्लाह के क़ानून को पूरा करने के लिये ये काफ़ी है कि] एक बीवी की तरफ़ इस तरह न झुक जाओ कि दूसरी को अधर में लटकता छोड़ दो। अगर तुम अपना रवैया ठीक रखो और अल्लाह से डरते रहो तो अल्लाह माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" [कुरान 4:129]
अम्मी आयशा (रजी०)बयान करती हैं कि रसूल अल्लाह ﷺ (अपनी अजवाज़ मोहतरमात के माबैन) तकसीम करते और अदल करते और फरमाते: "ऐ अल्लाह! यह मेरी तकसीम है जो मेरे बस में है और इस बात में मुझे मलामत न फरमाना जिसका तू मालिक है और मेरा उस पर अख़्तियार नहीं।"
इमाम दाऊद रह० ने कहा: इस से मुराद (दिल का मिलान)है। [अबू दाऊद 2134]
निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में "नेक और बेहतररीन बीवी" पर बात होगी। "इंशा अल्लाह"
तब तक दुआओं में याद रखें।
अल्लाह सुबहान व तआला हम मुसलमानो को कुरान व सुन्नत पर अमल की तौफीक अता फरमाए।
आमीन
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।