Zimmedar kaun- Mai ya mera pariwar?

Zimmedar kaun- dahej-dowrey-nikah-marriage-shadi


जिम्मेदार कौन?

हमें लड़की बहुत पसंद है, इंशा अल्लाह हम दो माह बाद ही शादी कर लेते है बच्चो की अगर आप इजाजत दे। वैसे भी हमारी कोई डिमांड नही है, रिहान की मां हसीना बी ने निगार के वालिद से बड़ी मसर्रत से कहा..... " जी बहन, जैसा आप मुनासिब समझें, बस घर वालों के मशवरे के बाद आप को बता देंगे", निगार के वालिद अफजल साहब ने कुछ तवफउक के बाद कहा, अरे अब इसमें क्या सोचना भाई साहब हमें न सा ढोल बाजों में शादी करना है, न ही हमारी कोई डिमांड है आप हमे कोई चीज नहीं दीजिएगा, बस आप की बेटी हमारी बेटी बन कर रहेगी बहुत खुश रखेंगे हम उसे.... आप फिक्र न करे बस बिस्मिल्लाह कर दें, "रिहान की मां ने जैसे एक सांस में सब कह डाला था"......

_________________________


दो माह बाद निगार की शादी थी, वो बहुत नर्वस महसूस कर रही थी, लेकिन अपने ससुराल वालों से मुत्मईन नज़र आ रही थी, भला जो लोग जहेज़ की मांग न करे वो कितने अच्छे होंगे निगार अपनी सोच में मानो आसमान को छू रही थी, "मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होगी", राज करूंगी मैं राज, "अब वो आसमान की सैर कर रही थी।" 

निगार के वालिद एक मामूली से मजदूर थे बहुत इज्जतदार और शरीफ इंसान थे। उन की चार बेटियां थी और अल्लाह के फजल से चारों खूबसूरत ओ खूबसीरत थी। बड़ी बेटी का निकाह रिहान से तय पाया था।

"चलिए अप्पी अब जल्दी जल्दी दफा हो जाइए अब घर में हमारा राज चलेगा, सब बहने कहकहा लगा कर हंसने लगी, "देखिए ना अम्मी कैसे कह रही ये सब...." निगार ने मानो मुंह बिसोड़ लिया था.... और अब अम्मी भी उन सब की बातों पर हसने लगी.... और निगार भी....

_________________________


हेलो, सलाम भाई साहब कैसे है आप?

अरे भाई ये पूछना था कि सामान आप खुद भेज रहें है या हम गाड़ी भिजवाए, "हसीना बी ने सब कुछ एक सांस में कह डाला था"। (निकाह के दो दिन पहले हसीना बी ने अफजल साहब को कॉल किया था)

वालेकुम अस्सलाम, कौन सा सामान बहन जी?

"अरे भाई कौन सा सामान का क्या मतलब है वही सामान जो आपकी बेटी का होगा पलंग, सोफा सेट, अलमारी, शृंगार दान और बाकी सब सामान"। कब तक भेज रहे है आप हमें सामान सेट भी तो करना है।

अफजल साहब बर्फ की मानिंद ठंडे पड़ चुके थे उन्होंने तो कुछ भी तैयारी नही की थी। 

"हमारी कोई डिमांड नही हम तो सादगी से निकाह करना चाहते है शरीयत के मुताबिक.....", हसीना बी के अल्फाज और शीरी बाते उन के कानो में गूंज रही थी। 

"ये क्या कह रही आप, आप ने तो कहा था कोई डिमांड नही और अब ये......ये सब...... वो कह नही पा रहे थे अरे भाई साहब मैने अब भी ये कहां कहा की कोई डिमांड है लेकिन ये सब तो देते है न ये तो रिवाज है और आराम तो आप की बेटी का होगा न, उसका रहेगा सब, हमारा क्या है भाई?

अफजल साहब कुछ कह नही पाए वो कह भी क्या सकते थे उन्हें ऐन मौके पर कर्ज में सब तैयारी करनी पड़ी, पलंग अलमारी वाशिंग मशीन सब कर्जे पर ले आए, वो कर भी क्या सकते थे अब रिश्ता तोड़ना मुमकिन न था। 

_________________________


जहेज के उस शातिराना मुतालबे से निगार बहुत सहम गई थी उसे अब केसे कुछ अंदेशे होने लगे थे हल्दी, मेंहदी सभी रस्मों रिवाज के साथ शादी कराई गई थी, हसीना बी के अरमान थे जो अब जाग चुके थे। 

आज निगार का निकाह था एक लड़की का निकाह उसकी नई जिंदगी का आगाज होता है...... वो न जाने क्या क्या ख्वाब लिए अपने ससुराल कदम रखती है....... कुछ डर, कुछ ख्वाब, कुछ हिचकिचाहट‌ न जाने क्या क्या अहसासात उसके बेचैन जहन को तवाना रखते है निगार बिलकुल उसी कैफियत में गिरफ्तार थी।

"हां भाभी जी, यह किचन में बोर्ड लगाया गया था इस लिए कि यहां फ्रिज लगा सके, लेकिन हाय हमारी कम बख्ती डिमांड न की तो पैर ही पसार लिए, हसीना बी अपनी पड़ोसन से कह रही थी,बल्कि वो निगार को सुना रही थी। निकाह के आठ दिन बाद ही ये निगार के लिए पहला ताना था। हसीना बी के अल्फाज उसके दिल पर निश्तर की तरह लगे।

सुबह का खाना, साफ सफाई, कपड़े, बर्तन सब निगार के नसीब में थे अपने‌ शेरख्वार बच्चे को संभालना और जरा सी गलती हो जाती तो गालियों की बौछार भी निगार ही के नसीब में थी। उन्हे कौन बताता कि शरीयत में लड़की को सिर्फ शौहर की जिम्मेदारी है उसके घरवालों की नही, हां ये उस का इखलाकी फर्ज है कि सब की जिम्मेदारी अदा करे, ससुराल वालों का उसपे कोई हक नही।

"या अल्लाह इतनी जल्दी मशीन खराब हो गई, तुम्हारे बाप ने खराब ही मशीन दी थी अच्छी कंपनी की देता तो ऐसा नहीं होता न तुम्हे हाथ से कपड़े धोने की नौबत आती, फकीर बाप की औलाद न जाने कैसे मेरी किस्मत को लग गई,........ हसीना बी के इस तरह के ताने सुनने की निगार को अब आदत सी हो गई थी। वो अपने शौहर को भी न बता सकती थी क्योंकि उसे यकीन था कि उसकी बात का यकीन न किया जायेगा। निगार की बिन ब्याही नन्दे अपनी मां के साथ पूरा तावुन करती थी वो निगार को ताने मारने में कोई कसर न छोड़ती थी।

"हाय मेरी कमर हसीना बी की कराहती आवाज पर सब लोग दौड़कर आए"

"क्या हुआ अम्मी ? रिहान ने बड़ी परेशानी में तशवीश की, कुछ नही बेटा बस ये कपड़े जमाने बैठी थी कि कमर दर्द ने जकड़ लिया.......

हाय मेरी कमर.....बहु लाई तो इस लिए थी कि मेरी खिदमत करे पर हाय मेरी किस्मत..... एक झर्राते दार थप्पड़ से घर गूंज उठा , "तुझे क्या आराम करने के लिए लाया था, इतना सा काम नहीं होता तुझे......खा पीकर आराम ही करना है क्या तुझे....... तेरे बाप का घर नही है ये समझी ! मेरी अम्मी को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए, "रिहान ने बाल पकड़ निगार को झिड़का वो दूर जा गिरी"....इस तरह के नाटक तो हर दूसरे दिन का मामला बन चुका था। बेटे के सामने दिखावे का काम करना और फिर बहु को डांट दिलवाना यही हसीना बी की मसरूफियत बन गई थी 

इस तरह के नाटक में बहनों का भी हिस्सा होता था।

_________________________


"मैं अब वापस ससुराल नही जाऊंगी अब्बा, मुझे यही रख लीजिए अब्बा", निगार ने बड़ी ही लज़ाज़त से कहा। वो इस तरह कई बार कह चुकी थी मगर अब वो तीन बच्चो की मां बन चुकी थी। "मेरी इतनी इस्तिताअत नही कि मैं तुम्हे पाल सकू बेटी.......तुम्हारी और भी तो बहने है उनकी भी तो शादी करनी है मेरी हैसियत नहीं है, तुम चली जाओ सब ठीक हो जायेगा 

झूठे दिलासो के साथ वो वापिस भेज दी गई......हमेशा की तरह......

"अरे बहुएं होती ही इस लिए ही कि सास की खिदमत करे ससुराल वालों को खुश रखे मगर तुम एक मनहूस हमारी किस्मत में आ गई, ईद के दिन निगार हल्के से बुखार में मुब्तिला थी और बर्तन धोने में देरी के सबब उसे ये सब सुनना पड़ा, बुखार की तपिश कम ही नही हो रही थी, न जाने सास को केसे रहम आ गया कि दवाई मंगवा कर खिला दी........लेकिन निगार के सर में मुसलसल तकलीफ रहने लगी, अब निगार का भी मामूल बन गया था कि दवाई मंगवा कर खाती और अपने कामों में मशगूल हो जाती..... धीरे-धीरे धीरे तंज तानो बेरुखियो से उस का पेट भर जाता था...... अब वो बहुत कमजोर हो गई थी छह माह वो इसी तरह बीमार रहने लगी......"कितनी सुस्त बहु लाई हो अम्मी.....हर वक्त बीमार रहती है, भाई की दूसरी शादी कर दीजिए ना", निगार की ननद ने कहा......निगार को आदत हो चुकी थी वो कहती भी तो क्या कहती!

न मायके का सपोर्ट था न दोस्तो से राब्ता रखने की इजाजत थी कि अपने दुख ही किसी को सुनाती, किसी से मशवरा लेती......वो अब डिप्रेस्ड रहने लगी थी उसने जिंदगी से हार मान ली वो तस्लीम कर चुकी थी.......निकाह सिर्फ ससुराल वालों की खिदमत के लिए किया जाता है। उनकी जहरीली बातों का सामना किए बगैर जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती। वो अब तस्लीम कर चुकी थी कि निकाह बाद बीमार भी हो तो इलाज कराना मां बाप का फर्ज होता है वरना बीमार होना गुनाह है बीमार होंगे तो बिलकुल तवज्जो नहीं मिलेगी और काम तो करना ही होगा.....लेकिन फिर भी वो बीमार रहने लगी थी......

 _________________________


हाय अल्लाह मेरा सर,.......मेरा सर.......जुमेरात की रात थी, निगार के सर में शदीद दर्द होने लगा वो चीखने लगी सब घरवाले परेशान हो गए, "उस की तबियत मुसलसल बिगड़ ही रही है इसे इस के मायके छोड़ आ रिहान.......वरना अगर कुछ हो गया तो बे वजह की खर्चा हमारे ही गले पड़ेगा......." हसीना बी ने कहा। दूसरे दिन रिहान उसे मायके छोड़ आया था, निगार को मां ने भी उसे दवाई मंगा कर खिलाई लेकिन फिर भी दर्द कम न हुआ उसे मुसल्सल कै (उल्टी) होने लगी गुनूदगी के सबब वो बेहोश हो गई। तीसरे रोज उसे अस्पताल ले जाया गया.......

_________________________


"अब तक क्या कर रहे थे आप लोग इतनी खराब हालत हो चुकी पेशेंट की और आप लोग उसे अब लेकर आए है?" डॉक्टर ने डांटते हुए कहा। उसे बड़े हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया, हसीना बी, रिहान और सब घर वालों को इत्तिला कर दी गई थी सब परेशान हो चुके थे। निगार को ब्रेन ट्यूमर हुआ था वो आखरी स्टेज पर थी..... उसका बड़ा ऑपरेशन होना था "या अल्लाह निगार को बचा ले उसके छोटे छोटे बच्चे है कौन संभालेगा उन्हे", हसीना बी को अब भी खुद की और अपने वारिसों की फिक्र थी....... रिहान को सब याद आ रहा था निगार के साथ किए गए हर जुल्म का वो खुद गवाह था अब वो बहुत पशेमान हो रहा था वो अब खूब दुआएं करने लगा लेकिन कुदरत ने उसे अब मौका नही दिया.......

"हम आपकी बेटी को नही बचा सके......डॉक्टर बहुत आसानी से कहकर चला गया था.......अफजल साहब‌ ढिचका खाकर दीवार से जा लगे, निगार की मां पर गुनूदगी छा गई रिहान अब फूट फूट कर रोने लगा...... " कोई नही मेरे बच्चे सब्र कर अल्लाह की अमानत थी अल्लाह ने ले ली", हसीना बी का इल्म जाग गया था......

"सब कुछ आप की वजह से हुआ है आप लोग अगर इलाज करवाते तो ये होता ही नही मौत तो मुकद्दर है लेकिन कम से कम मेरी बच्ची सुकून से तो मरती......यूं तड़प तड़प कर तो न मरती......शुरुआत में ही हमे बता देते.....निगार की मां ने फूट फूट कर रोते हुए कहा...... वही मां बाप जिन्होंने उसे वापस ससुराल भेज दिया था!

अरे इस में हमारी क्या गलती है आप ने सही से इलाज नही करवाया उसका........ इस लिए ये सब हुआ पहले ही दिन हॉस्पिटल ले जाते तो....... शायद बच जाती वैसे भी हमने उसे सही सलामत भेजा था आप के पास जिंदा थी वो, जिंदा छोड़ा था हमने आप के पास....... हसीना बी ने अपने जबरदस्ती के आंसू पोंछते हुए कहा.....

"आप ने बहुत तकलीफ दी मेरी बच्ची को...... इतना जुल्म किया कि आखिर वो बीमार हो कर मर गई अफजल साहब ने मरी हुई बेटी की तरफदारी में कहा, कोई तकलीफ नहीं दी हमने उसे अगर तकलीफ होती तो बैठ जाती अपने मायके में...... आप हमे जिम्मेदार ठहरा रहे है...... अब वो सब आपस में एक दूसरे से उलझ रहे थे एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, लेकिन वहीं दूसरी तरफ नासमझी लेकिन आंखों में हजारों सवाल लिए बच्चे और खामोश पड़ी निगार की लाश चीख चीख पूछ रही थी,

"जिम्मेदार कौन?"


जिंदगी जबर मुसल्सल की तरह काटी है,

जाने किस जुर्म की  पाई है सज़ा याद नहीं। 


आलिया खान हाफिज़ नज़रुल्लाह खान, अर्धापुर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...