Nikah (part 18): Chaar (4) nikah ki ijazat

Nikah (part 18): Chaar (4) nikah ki ijazat


मर्द को चार निकाह की इजाज़त क्यों?

बहुविवाह (Polygamy) जिसमें मर्द या औरत के एक ही समय में एक से अधिक वैवाहिक साथी हो सकते हैं।इण्डिया में रिवायती तौर पर बहुविवाह के तहत मुख्यतः एक से अधिक पत्नियों वाले पुरुष की स्थिति व्यापक रूप से प्रचलित थी। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया।

अगर मानव जीव विज्ञान की माने तो लड़के और लड़कियां दोनों समान अनुपात में जन्म लेते हैं। मगर ऐतिहासिक रूप से संसार के अधिकांश देशों में मर्दों की तुलना में औरतों की संख्या अधिक है इसके कई कारण हैं-

1. बाल शिशुओं की तुलना में बालिका शिशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता और बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है ।

2. अधिकांश समाज में मर्दों की तुलना में औरते लंबी उम्र तक जीवित रहती हैं। 

3. संसार में कई कारणों से औरतों की अपेक्षा मर्दों की मौत अधिक होती है।

अगर इंडिया को अपवाद स्वरूप (बालिका भ्रूण हत्या, गर्भपात आदि के कारण) छोड़ दिया जाय तो आज भी संसार के अधिकांश मुल्कों में मर्दों की तुलना में औरतें ज्यादा है। मोटे तौर पर ये अनुपात 1000 पुरुषों पर 1050 महिलाएं हैं।


इस्लामी कानून एक मर्द को चार शादी करने की इजाज़त देता है।

दुनियां की तमाम मखलूकात के अंदर अलग अलग सिफ़त (विशेषता) देकर अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने उसे नवाजा है, जब से दुनियां वजूद में आई हर छोटी बड़ी चीज़ की अलग सिफ़त पाई जाती है। जैसे एक सुई और तलवार की मिशाल ले लें, जहां सुई की जरूरत हो वहां तलवार काम नही कर सकती और जो काम तलवार कर सकती है वो सुई से नहीं हो सकता। ऐसेे ही इंसानों में मर्द औरत की भिन्न भिन्न विशेषताएं पाई जाती हैं यूं तो दोनों एक दूसरे के बराबर हैं लेकिन कुछ चीज़ों में जैसे 

जिस्मानी तौर पर देखें तो औरत दर्द बर्दास्त करने की अलग ही क्षमता रखती है। मसलन महीने के मुश्किल दिनों यानी हर महीने माहवारी की तकलीफों को बर्दास्त करना (जो कि एक मिनी हार्ट अटैक जितना दर्द होता है) फिर एक मां बनने के नौ महिने एक बच्चे को अपने गर्भ में रख कर दर्द को सहन करना। अगर किसी को कह दिया जाय की दो किलो का वजन लेकर 24 घंटे खड़े रहे तो शायद ही कोई होगा जो तैयार हो। 

डॉक्टर्स और साइंटिस्ट की मानें तो एक बच्चे को जन्म देते समय एक मां को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है।

ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मसलहत ही है कि औरत के अंदर ऐसा सिस्टम बनाया, एक बच्चे को गर्भ में रख कर 9 महीने पालने का ये सिस्टम किसी मर्द में नहीं है वैसे ही कोई औरत किसी मर्द के मनी (स्पर्म) के बगैर मां नहीं बन सकती। मर्द में कई और सलाहियत मौजूद है मर्द सर्दी और गर्मी के थपेड़ों को बर्दास्त करता है, दिन रात एक कर के अपने बीबी बच्चों के लिए समान ए जिंदगी का इंतजाम करता है इस लिए अल्लाह ने मर्द को कव्वाम बनाया है।

दुनियां के किसी भी धर्म में एक मर्द के लिए शादी करने की लिमिट नहीं बताई गई सिर्फ़ इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो चार शादियों की लिमिट तय करता है। दुनियां के मुख्तलिफ मुल्कों के मुख्तलिफ धर्मों का अध्यन्न करें तो पता चलता है की इस्लाम ने चार औरतों से निकाह की इजाज़त दी उसमें भी शर्त रख दी की अगर तुम इंसाफ़ नहीं कर सकते तो सिर्फ़ एक ही करो। 

इसके कुछ अहम बिंदु है-


पहला पॉइंट

पहला पॉइंट जो कि बहुत अहम है, इस्लाम ने दुनियां के तमाम मुल्कों में होने वाले दर्जनों विवाह (dozens of marriage) को 4 तक सीमित कर दिया।

इस्लाम से पहले लगभग सभी धर्मो में लोग अनगिनत शादियां करते थें। अकेले भारत के इतिहास और धर्म ग्रंथो पर नजर डालें तो अनगिनत शादियों की मिसालें मिलती हैं। इसके बाद भी लोग एक से अधिक नजायज़ रिश्तों में संलिप्त रहते थें। ऐसे में सैकड़ों औरतों के साथ और उनसे पैदा होने वाली नाजायज़ औलादों के साथ ना इंसाफी होती थी जिस पर इस्लाम ने चार बीबियों की इजाज़त दे कर उन मज़लूम औरतों पर होने वाले ज़ुल्म पर पाबन्दी लगा दी।


दूसरा पॉइंट

अरब कल्चर के हवाले से मुख्तलिफ कबीलों में रिश्ते कर के उनके बेटियों के ज़रिए इस्लाम का पैग़ाम पहुंचाना ताकि वो इस्लाम और उसकी जडों को मज़बूत करें।


तीसरा पॉइंट 

मर्द का फितरी तकाज़ा की अल्लाह ने फितरी तौर पर मर्द को ज्यादा एक्टिव नेचर दिया है और उसमे ये इस्तेतात मौजूद होती है कि शारीरिक, मानसिक और माली तौर पर एक से ज्यादा औरतों के साथ मामलात को लेकर चल सकता है।


चौथा पॉइंट 

समाज में वो औरतें जो परेशान हाल हैं जिनका कोई सरपरस्त नहीं, बेवा तलाक़ शुदा जिन्हें सहारे की जरुरत है और इस बात का डर हो कि वो बुराई में मुलाविश हो सकती हैं। अपनी नफशियाती ख्वाहिशात के लिए उनसे निकाह कर के हलाल तरीके से हुकुक़ अदा करे ताकि मर्द और औरत दोनों ही गुनाह से बच सके।


अल्लाह का फ़रमान है:

"और अगर तुम यतीमों के साथ नाइनसाफ़ी करने से डरते हो तो जो औरतें तुमको पसन्द आएँ उनमें से दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो। लेकिन अगर तुम्हें डर हो कि उनके साथ इनसाफ़ न कर सकोगे तो फिर एक ही बीवी रखो या उन औरतों को बीवी बनाओ जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हैं। नाइनसाफ़ी से बचने के लिये ये ज़्यादा अच्छा है।" [कुरान 04:03] 


तफ्सीर: ''और अगर तुम डरो कि यतीमों के हक़ मैं इन्साफ़ नहीं करोगे, तो (और) औरतों में से जो तुम्हें पसन्द हो उनसे निकाह कर लो।'' का मतलब पूछा गया तो आयशा (रज़ि०) ने फ़रमाया कि, "इससे मुराद वो यतीम लड़की है जो अपने वली के नीचे पली-बड़ी हो, फिर वली के दिल में उसका हसन और उसके माल की तरफ़ से निकाह कि चाहत पैदा हो जाए मगर इस कम महर पर जो वैसी लड़कियों का होना चाहिये। तो इस तरह निकाह करने से रोका गया लेकिन ये कि वली उनके साथ पूरे महर की अदायगी में इन्साफ़ से काम लें (तो निकाह कर सकते हैं) और उन्हें लड़कियों के सिवा दूसरी औरतों से निकाह करने का हुक्म दिया गया।" 

आयशा (रज़ि०) ने बयान किया कि फिर लोगों ने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से पूछा तो अल्लाह ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई (ويستفتونك في النساء قل الله يفتيكم فيهن) "आपसे लोग औरतों के मुताल्लिक़ पूछते हैं, आप कह दें कि अल्लाह तुम्हें उनके बारे में हिदायत करता है।" 

आयशा (रज़ि०) ने कहा कि फिर अल्लाह तआला ने इस आयत में बयान कर दिया कि, "यतीम लड़की अगर ख़ूबसूरत और माल वाली हो और (उनके वली) उनसे निकाह करने के ख़ाहिशमन्द हों, लेकिन पूरा महर देने में उनके (ख़ानदान के) तरीक़ों की पाबन्दी न कर सकें तो (वो उनसे निकाह न करें) जबकि माल और हसन की कमी की वजह से उनकी तरफ़ उन्हें कोई दिलचस्पी न होती हो, तो उन्हें वो छोड़ देते और उनके सिवा किसी दूसरी औरत को तलाश करते।"

रावी ने कहा, "जिस तरह ऐसे लोग दिलचस्पी न होने की सूरत में उन यतीम लड़कियों को छोड़ देते इसी तरह उनके लिये ये भी जायज़ नहीं कि जब उन लड़कियों की तरफ़ उन्हें दिलचस्पी हो तो उनके पूरे महर के मामले में और उनके हुक़ूक़ अदा करने में इन्साफ़ से काम लिये बग़ैर उनसे निकाह करें।"

[सहीह बुखारी 2763]


अब गौर करने वाली बात है कि एक मर्द को चार औरतों से निकाह का हक़ कुरान में अल्लाह ने दिया है इसका मतलब यह नहीं कि इसका मज़ाक बनाया जाय, जहां इस पर नॉन मुस्लिम्स सवाल उठाते हैं वहीं कुछ मुस्लिम्स को सोसल मीडिया या ग्राउंड पर भी मज़ाक बनाते देखा जा सकता है। 

जैसे सोशल मीडिया को ले लें तो कुछ लोग हसी मज़ाक करते हुऐ चार औरतों के साथ तस्वीर, मीम्स और पोस्ट शेयर करते हैं। अगर कोई मुसलमान मज़ाक में भी ऐसा करता है तो ये गुनाह है, और कुरान की तौहीन है।

अगर आज समाज में औरतों के हालात देखें तो दिल रोता है। आज का पसमंजर कहता है कि समाज में ऐसे मर्दों की जरुरत है जो किसी गरीब, बेवा और तलाक़ शुदा को अपने निकाह में लेकर उन्हें इज्ज़त और सहारा दें।

जब कुरान इजाज़त दे रहा है दो-दो, तीन-तीन,चार-चार से निकाह करो फिर कोई क्यू रोके? 

हां, ज़रूरी ये है कि शर्तें पूरी करें। किसी मासूम की जिंदगी खराब कर के किसी और से निकाह कर लेना ये इंसाफ़ नहीं है और समाज की औरतों को भी चाहिए थोड़ा दिल बड़ा करे।

अब हमारे समाज में मर्द दूसरा निकाह करना भी चाहे तो औरतें तैयार नहीं होती इसकी कई वजह है:

1. फेमिनिज्म (नारीवाद): आज कल फ़ेमिनिज़्म का भूत सर चढ़ कर बोल रहा है। इसमें वो औरतें आती हैं जो दीन से दूरी बनाए हुए हैं, ये Polygamy (बहुविवाह) के खिलाफ़ मोर्चा खोल कर खड़ी हो जाती हैं।

2. मुआशरे की दीनदार औरतें: समाज में ऐसी भी औरतें हैं जो एक तरफ़ दीनदारी का दावा करती हैं और दूसरी तरफ़ अगर जायज़ तरीके से शौहर दूसरा निकाह करना चाहे तो सीधे मुहँ से इंकार नहीं करती बल्कि कई पैंतरे अपनाती हैं जैसे बात चीत न करना, मायके जानें की धमकी, अक्सर कहती हैं आप मुझे तलाक़ दे दें, मैं खुला ले लेती हूं, आप कर लें अपने शौक पूरे, ये कैसे हो सकता है कि मैं अपनी मुहब्बत किसी और से बांट लूं, आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं "एक बार निकाह हो जाय तो कौन इंसाफ़ करता है"? वगैरह वगैरह...

कुछ तो मौन ही धारण कर लेती हैं जैसे खफा खफा रहना, बात चीत न करना, डेली रूटीन को चेंज कर लेना, खाना पीना छोड़ देना ताकि शौहर मजबूर होकर जायज़ और नेक ख्वाहिश को छोड़ दे। 


एक इल्तिज़ा मुस्लिम बहनों से

ए बिनते हव्वा! पॉलीगेमी जिसे अल्लाह ने जायज़ और हलाल किया है उसके खिलाफ़ न जाओ इस्लाम जिंदगी को आसान तरीके से गुजा़रने और सब के लिए असानी पैदा करने की तालीम देता है। ऐसा नहीं है कि मुश्किल और परेशानी नहीं होगी बल्कि कोशिश ये होनी चाहिए कि अल्लाह की रजा़ के लिए सब्र और बर्दास्त से काम लें, हराम और हलाल में फ़र्क को समझें। अगर आप शौहर को हलाल चीज़ों से रोकती हैं फिर वो हराम की तरफ़ क़दम बढ़ता है तो आप गुनहगार होंगीं। 

आज फितनो का दौर है हराम चीजें आसान होती जा रही हैं। जिस तरीके से फहाशी और बेहयाई को न केवल सोशल मीडिया पर बल्कि ग्राउंड लेवल पर भी प्रमोट किया जा रहा है। 

मुस्लिम मर्द वा औरत दीन से दूर हो रहे हैं ऐसे में हराम चीजों से बचना मुश्किल होता जा रहा है। 

आल्लाह के ख़ातिर नेक अमल करें, सब्र करें, अपनी कुछ ख्याहिशात की कुर्बानी दें , जिस तरीके से उम्मुल मोमिनीन ने दी, जिस तरह सहाबियात ने दीं। तौबा करें कहीं ऐसा न हो की हमारा शुमार आयातों का इंकार करने वाले लोगो मे हो जाए।


एक इल्तेजा कौम के नौजवानों से:

मिल्लत के नौजवानों से मेरी गुज़ारिश है कि वो निकाह को आसान बनाएं, सुन्नत तरीके अपनाएं, दहेज़ जैसी बला का बहिष्कार (Boycott) करें। चार बीबियों का शौक रखने वाले बेवा और तलाक़ सुदा से निकाह कर के नबी की सुन्नत को जिंदा करें। मर्द अपने कव्वाम होने की जिम्मेदारी पूरी करे अपनी बीवी के साथ खुश अखलाकी से पेश आए। 


अल्लाह हमे गुनाहों से बचने और कुरान ओ सुन्नत पर अमल करने की तौफीक दे और मुसलमान भाई बहनों को हिदायत दे। आमीन

निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में "किन् औरतों से निकाह जायज़/नाजायज़ है" पर बात होगी "इंशा अल्लाह"

तब तक दुआओं में याद रखें।


आपकी दीनी बहन
फ़िरोज़ा

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