Nikah (part 6): Meher, khutba, qubooliyat, do gawah

Islam Me mahar, Nikah me meher, ladhki ka meher


मेहर, निकाह की क़ुबूलियत और दो गवाह

Table Of Content 

  1. मेहर
  2. निक़ाह का खुत्बा
  3. ईजाब व क़ुबूल
  4. दो गवाहों की मौजूदगी


मेहर क्या है?

मेहर शरीयत ए इस्लामिया में तय शुदा रकम है जो निकाह में लड़के की तरफ़ से लड़की को दी जाती है।

ईरशाद ए बारी तआला है:

"औरतों के महर ख़ुशी से  [फ़र्ज़ जानते हुए] अदा करो। अलबत्ता अगर वो ख़ुद ही अपनी ख़ुशी से महर का कोई हिस्सा तुम्हें माफ़ कर दें तो उसे तुम मज़े से खा सकते हो।" 

[क़ुरआन 04:04]


"उनके महर फ़र्ज़ समझते हुए अदा करो।"

[क़ुरआन 04:24]


वजाहत

इन आयतों से पता चलता है कि महर फर्ज़ है और ये कभी माफ़ नहीं हो सकता। मगर बीवी चाहे तो माफ़ कर सकती है। 

एक हदीस में है कि नबी करीम صلى الله عليه وسلم के पास एक औरत आई और निकाह की ख्वाहिश जाहिर की आप ने उसे एक नज़र देखा और नज़रें नीची कर ली।

आप صلى الله عليه وسلم  के सहाबी में से एक सहाबी उठे और अर्ज़ किया या अल्लाह के रसूल आप को इनकी जरूरत नहीं, तो मेरे साथ इनका निकाह करा दें, नबी करीम ने फ़रमाया तुम्हारे पास मेहर के लिए भी कुछ है,

उन्होंने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह!

 अल्लाह की कसम! 

"नहीं" मेरे पास तो कुछ भी नहीं है।

तो नबी करीम ने फ़रमाया अपने घर जाओ और देखो सायद कोई चीज़ मिले, वह सहाबी गए और वापस आए, अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! वहां मुझे कोई चीज़ नहीं मिली आप ने फ़रमाया फिर देख लो एक लोहे की अंगूठी ही सही, वो सहाबी फिर गए और वापस आ गए,

अर्ज़ किया मुझे वहां कोई चीज़ नहीं मिली अलबत्ता यह एक तह बंद मेरे पास है।

उन्होंने कहा आप इसमें से आधा फाड़ कर उस औरत को दे दीजिए...

आपने फ़रमाया तुम्हारे इस तहबंद का वो क्या करेगी आधा होने पर इसे न वो इस्तमाल कर पाएगी न तुम,

फिर वो सहाबी ख़ामोश हो गए

आप ने दरयाफ्त किया तुम्हें कुरान मजीद कितना याद है?

उन्होंने कहा फलां फलां सूरत मुझे याद है नबी करीम ने फ़रमाया क्या तुम इन्हें जबानी पढ़ लेते हो अर्ज़ किया जी

आप ने फ़रमाया जाओ तुम्हें क़ुरान मजीद की जो सूरत याद है उसके बदले में मैंने तुम्हारा मेहर माफ़ किया। 

[सहीह बुखारी 5030]


अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि उन सहाबी के पास मेहर में देने के लिए कुछ नहीं था फिर भी नबी ने मेहर माफ़ नहीं किया।

जब तक इंसान मेहर नहीं देगा या देने की नियत नहीं रखेगा, तो उसने हराम काम किया।

قال النبي صلى الله عليه وسلم: من نكح امرأةً وهو يريد أن يذهب بمهرها فهو عند الله زان 

नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया, 

"किसी ने निकाह किया और मेहर अदा नहीं किया वो अल्लाह के नज़दीक जानी है।"

[मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 13425] 


एक रिवायत में है,

अबु तलहा रजी०जो अपने निकाह के वक्त मुसलमान नहीं थे यानी अपने निकाह से पहले जब उन्होने उम्मे सुलैम रजी०को रिश्ता भेजा तो उम्मे सुलैम रजी० अनहा ने उन से दीन की बुनियाद पर निकाह करना चाहा, उन्होंने फरमाया कि मेरा मेहर ये होगा की आप इस्लाम ले आओ यानी पहले उन्होंने अबू तल्हा रजी० को दीन की तरफ़ तरगीब दिलाई फिर उसके बाद उनसे निकाह किया।

[सुनन नसई 3342]


मेहर की इस्लाम में क्या हद है?

मेहर की इस्लाम में कोई हद मुकर्रर नहीं की गई है, ये अपनी हैसियत की हिसाब से कम या ज्यादा हो सकती है।

अब हम यहां लड़की वालों का ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे ये की लड़को वालों से मेहर की इतनी डिमांड न करे कि लड़का मेहर अदा ही न कर सके बल्कि मेहर दरमियाना होना चाहिए जिससे उसकी अदायगी आसानी से हो।


नबी करीमصلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:

"बा बरकत निकाह वो है जिसमें आसानी के साथ मेहर अदा किया गया हो।"

[सुनन अबु दाऊद 2117]


निक़ाह का खुत्बा:

निकाह के मौके पर खुत्बा पढ़ना सुन्नत है, इसके अल्फाज अहादीस में इस तरह से आये हैं:


Step 01

إِنَّ الْحَمْدَ لله نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِيْنُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوْذُ بلله مِنْ شُرُوْرِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا، مَنْ يَهْدِهِ الله فَلَا مُضِلَّ لَهُ وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَا هَادِيَ لَهُ، أَشْهَدُ أَنْ لَا إله إلا الله وَحْدَهُ لَا شَرِيْكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ.

तमाम तारीफ़े और शुक्र अल्लाह के लिए है । हम उसका शुक्र अदा करते हैं । उससे मदद माँगते हैं , (अपने गुनाहों की) माफ़ी चाहते हैं और अपने मन की बुराई और अपने बुरे कामों से बचने के लिए अल्लाह की पनाह में आते हैं । जिसे अल्लाह हिदायत दे उसे गुमराह करनेवाला कोई नहीं। और जिसे वो गुमराह करे उसे हिदायत देने वाला कोई नहीं।

मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल.) उसके बन्दे और रसूल हैं।


Step 02


يـٰأَيُّهَا الَّذينَ ءامَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ حَقَّ تُقاتِهِ وَلا تَموتُنَّ إِلّا وَأَنتُم مُسلِمونَ

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो ! अल्लाह से डरो जैसा कि उससे डरने का हक़ है । तुम को मौत आए तो बस इस हाल में कि तुम मुस्लिम (फ़रमाँबरदार) हो ।

[क़ुरआन 3:102]


Step 03


يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاءً ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ وَالْأَرْحَامَ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا

ऐ लोगों! अपने परवरदिगार से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक जान से पैदा किया और उसी जान से उसके जोड़े(बीवी) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक दूसरे से अपने हक़ माँगते हो और रिश्ते नाते तोड़ने से भी परहेज करो, यक़ीन जानो कि अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है

[क़ुरआन 4:1]


Step 04

 ‏ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا ‎O ‏ يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ O وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا 

ऐ ईमान लानेवालो अल्लाह से डरो और ठीक बात कहा करो । अल्लाह तुम्हारे आमाल दुरुस्त कर देगा और तुम्हारे क़सूरों से दरगुज़र फ़रमाएगा । जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करे उसने बड़ी कामयाबी हासिल की ।

[क़ुरआन 33: 70-71]

Final Step

أَمَّا بَعْدُ: فَإِنَّ أَصْدَقَ الْحَدِيْثِ كِتَابُ الله وَخَيْرَ الْهَدْيِ هَدْيُ مُحَمَّدٍ صلى الله عليه و سلم وَشَرَّ الْأُمُوْرِ مُحْدَثَاتُهَا، وَكُلَّ مُحْدَثَةٍ بِدْعَةٌ، وَكُلَّ بِدْعَةٍ ضَلَالَةٌ، وَكُلَّ ضَلَالَةٍ فِي النَّارِ



इसके बाद,

बेहतरीन बात अल्लाह की किताब और बेहतरीन तरीका अल्लाह के नबी सल्ल. का तरीका है। और सारे कामों में बदतरीन काम (मनगढ़ंत) नये तरीके हैं, और हर नया तरीका बिदअत है, और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही दोजख में ले जाने वाली है।

निकाह का खुत्बा पढ़ते वक्त काज़ी साहब को चाहिए कि आयत का तर्जुमा भी पढ़ें ताकि लोगों को दीन की समझ हो और लोग दीन को समझें तक्वा व परहेजगारी को अपनाएं

अक्सर काज़ी साहब निकाह की तकरीबात को 10 मिनट में पूरा कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं


नबी करीमصلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया: 

"निकाह मेरी सुन्नत (मेरा तरीका) है। जिसने मेरी सुन्नत (तरीके) से बेरगबती की वो मुझ से नहीं (यानी मेरा और उसका कोई ताल्लुक नहीं)।"

[सहीह बुखारी - 5063]


ईजाब व क़ुबूल

यानी निकाह पढ़ाने वाला लड़के और लड़की से क़ुबूल करवाए कि फलां निकाह फलां लड़की से उसके वली के नाम के साथ हम ने आप का निकाह इस लड़की/लड़के इतने मेहर पर किया है क्या आप इसे क़ुबूल करते हैं?

फिर अगर लडका/लड़की हां में क़ुबूल करें तो निकाह हो जायेगा।

इसके बाद रसमी तौर पर जैसा कि हर मुल्क में कवानीन होते हैं कि written paper  पर भी लिख लिया जाऐ ताकि बाद में इख्तलाफ का सामना न करना पड़े और लड़की का दस्तखत भी ले लिया जाय ये अच्छी बात है मगर लड़की के निकाह में अहम भूमिका उसके वली का ही है।


निकाह के लिये दो गवाहों की मौजूदगी

अक्सर उलमा हजारत के नजदीक निक़ाह की निम्न चार शर्तें हैं:

  1. लड़की के वली की इस निकाह  को इजाजत
  2. शौहर और बीवी के बीच ईजाब और कबूल
  3. लड़की को जो मेहर मुक़र्रर हो उसे अदा किया जाए।
  4. निकाह के वक्त  दो सच्चे और ईमानदार गवाह मौजूद हों।

ऊपर की चार शर्त में से तीन की चर्चा हम कर चुके हैं अब निकाह के वक्त दो गवाहों की मौजूदगी के हवाले से कुरान व सुन्नत की रोशनी में। इसे देखेंगे।

ईरशाद ए बारी तआला है:

"और दो ऐसे आदमियों को गवाह बना लो जो तुममें से अद्ल करने वाले हों।और (ऐ गवाह बनने वालो) गवाही ठीक-ठीक अल्लाह के लिये अदा करो। ये बातें हैं जिनकी तुम लोगों को नसीहत की जाती है, हर उस शख़्स को जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो। जो कोई अल्लाह से डरते हुए काम करेगा अल्लाह उसके लिये मुश्किलात से निकलने का कोई रास्ता पैदा कर देगा।"

[क़ुरआन 65:2]


वजाहत:

  • उपर्युक्त आयात से ये बात स्पष्ट है कि निकाह में दो गवाहों की मौजूदगी होनी चाहिए।
  • गवाह सच्चे और ईमान वाले हों जो अदल व इंसाफ़ कर सके।


अल्लाह रब्बुल इज़्जत हमें सही दीन समझने उस पर अमल करने...

और सिरातुल मुस्तकीम पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन

निकाह की अगली कड़ी में कुछ ख़ास बिंदु पर चर्चा होगी। इंशा अल्लाह


आप की दीनी बहन
फिरोज़ा

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1 टिप्पणियाँ

  1. Ye deen ke jaruri mashle hai ...or inko sab logo ko Janna chahiye. Apne sahi kaha ki nikah me khutbe ka tarjuma bhi padha jaay .

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